नागार्जुना महाबोधि विहार
यह प्रसिध्द महाबोधि विहार बोद्धिसत्व नागार्जुन स्मारक सस्थान और अनुसन्धान केंद्र रामटेक के द्वारा संचालित है। संस्थान के अध्यक्ष भंदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई है।भंते सुरई ससाई, अब इस देश की जानी-मानी हस्ती है। आप मूलत: जापान के है। .आप सन 1966 में भारत आये थे। तब से आप यहीं पर हैं। आपने यहाँ की नागरिकता ले ली है। भंते जी काफी वर्षों से भारत में बौद्ध धर्म के पुरुत्थान में लगे है। आपने डा. आम्बेडकर के भारत को बौद्धमय बनाने की सोच को अपने हाथ में लिया है। आपने, खास कर महाराष्ट्र में जगह-जगह कई बड़े-बड़े बुद्ध विहारों का निर्माण कराया है। बोधिसत्व नागार्जुन महाबोधि विहार उन्हीं में से एक है।
भंते सुरई ससाई ने इस देश में रह कर बौद्धगया के बुद्ध महाविहार को हिन्दुओं के कब्जे से छुड़ाने के लिए जो जबर्दस्त आन्दोलन चलाया, उसने भारत के बौद्धों का ही नहीं, वरन विश्व के तमाम देशों का ध्यान आकृष्ट किया है।
महाबोधि विहार लम्बे-चौड़े क्षेत्र में फैला है। विहार का आर्किटेक्ट जापानी शैली है, मगर जगह-जगह भारतीय और खास कर बौद्ध प्रतीकों को उकेरा गया है.
मुख्य प्रवेश द्वार के कपाटों पर अशोक चक्र देखते ही बनते हैं। प्रवेश द्वार के अन्दर सुन्दर-सा दीर्घ हाल है। हाल के दूसरे सिरे पर भगवान् बुद्ध की मूर्ति, एक बड़े-से चबूतरे पर स्थापित है। इस खुले-से दीर्घ हाल में भगवान् बुद्ध की विशाल मूर्ति के सामने बैठने पर एक अजीब-सी नि:शब्द शांति और सुकून का एहसास होता है.
महाबोधि विहार के ऊपर वाले फ्लोर पर जाने के लिए घुमावदार सीढिया बड़े ही सलीके की कारीगरी से बनायीं गई है। इस तल के रेलिंग में जगह-जगह बनी स्तूप-नुमा डिजाइन अनोखी है। सीढियों के ऊपर से देखने से सामने दूर पहाड़ी-लिए विस्तृत भू-भाग बड़ा ही मनोहर कारी दृश्य प्रस्तुत करता है।
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