सद्गुरु कबीर ज्ञानपीठ; बैनगंगा संगम बपेरा (महा.)
1 . कि मेरे गावं सालेबर्डी में बुद्ध विहार हो।
2 . कि बपेरा में गुरूजी ने जिस आश्रम की स्थापना की है, वह सामाजिक समरसता का केंद्र हो ।
3 . कि मेरे बड़े लड़के राहुल के नाम से स्कॉलरशिप हो जो किसी दलित समाज के बच्चे को आई आई टी या समकक्ष एकेडेमिक क्वॉलिफिकेशन प्राप्त करने स्पॉन्सर करे।
बात तब की है, जब मैं 4/ 5 वीं में पढ़ रहा होगा। बपेरा (महा.) के महंत बालकदास साहेब हमारे गावं सालेबर्डी आए हुए थे। बालकदास साहेब तब, उस क्षेत्र में एक बड़े संत के रूप में जाने जाते थे। कबीर पंथ के महंत कटंगी के गुरु ज्ञानदास साहेब के उत्तराधिकारी के तौर पर तब, उनकी बड़ी चर्चा थी।
लगता है, पिताजी को यह निर्णय लेना पड़ा कि उन्हें उस श्रेष्ठ समाज का हिस्सा होना चाहिए। उधर, बालकदास साहेब की भी कृपा हुई। उन्होंने पिताजी से कहा कि 'काल करे सो आज कर , आज करे सो अब--।' पिताजी ने घर पर आ कर अपने मन की बात बताई। माँ को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी ? पिताजी ने हम दोनों भाइयों से पूछा था कि क्या हम उस में सम्मिलित हो रहे हैं ? हम ने अपनी स्वीकृति दी थी। मगर, मुझे ध्यान नहीं कि बहनों से भी पूछा गया हो ?
गुरूजी का मुझ पर काफी कर्ज था और मुझे हमेशा फ़िक्र रही थी कि मैं इस दिशा में कुछ करूँ। सन 1992 में प्रकाशित 'साक्षात्कार ' ग्रन्थ जो गुरूजी पर केंद्रित था, मेरी उसी कर्ज से उऋण होने की कोशिश थी।
गुरूजी मुझे बेहद चाहते थे। वे कभी मुझे अपना प्रमुख शिष्य बतलाते तो कभी कहते कि उनकी गद्दी का वारिश तो अमृत है, वह चाहे जो करे। मैं कबीर पंथ को लेकर प्राय: असमंजस में रहा हूँ। तमाम विरोधों के बावजूद कबीर पंथ जाने क्यों हिंदुइज्म से अलग स्थापित नहीं हो सका है। वह हिंदुइज्म का एक सम्प्रदाय बन कर रह गया है। अभिलाषदास साहेब जैसे विद्वान् लेखक और विचारक कबीर का अध्ययन उस तरह नहीं कर सके जैसे डॉ आंबेडकर ने बुद्ध का किया ?
पिछली मर्तबा महंत कुमार साहेब (छति. ) की उपस्थिति में तय हुआ था कि आयोजन समिति में युवा साथी हो। महंत साखरे साहेब (कटंगी ) को साथ ले कर इस वर्ष मकर संक्रांति ( जन. 14 , 2014 ) का कार्यक्रम आयोजित किया गया। महंत सुबोध साहेब (लोधी खेड़ा) और धुन्दीलाल साहेब का सहयोग बराबर मिलता रहा है, इस बार भी मिला। पूरा कार्यक्रम बेहद उत्साहवर्धक रहा।
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