Anihilation of caste
पिछले वर्ष, ताई (छोटी बिटिया) की शादी के सिलसिले में मैं वर परिवार की सरनेम /जाति भी जानने की कोशिश करता था। www.shadi.com जैसे साईट्स से बेटे /बिटिया के लिए आप जब वधु /वर खोजते हैं तब सामने वाले पक्ष के प्रोफ़ाइल में दिए गए डिटेल्स से एक्जेक्ट यह पता नहीं चलता कि जो आपकी रिक़्वायर्मेन्ट है वह फुलफिल हो रहा है या नहीं।हम चाहते थे कि लड़का सजातीय बुद्धिस्ट हो। मगर, अधिकांश प्रोफ़ाइल के जाति/सरनेम वाले कॉलम के अनफिल्ड रहने से मुझे परेशानी हो रही थी।
वर पक्ष वाले पूछते-
"अंकल, हम बुद्धिस्ट हैं , क्या इतना पर्याप्त नहीं हैं ? आप सरनेम/जाति क्यों जानना चाहते हैं ?"
मैं सकपका जाता। थोडा सम्भल कर कहता -
" देखिए, मैं सरनेम या जाति इसलिए जानना चाहता हूँ कि यह तय कर सकूं कि जिस घर/परिवार में मेरी बिटिया जा रही है उस घर/परिवार के संस्कार वैसे या उससे मिलते-जुलते हैं या नहीं, जहाँ वह पैदा हुई है, पली-बढ़ी है ? आप जानते हैं कि बुद्धिस्ट होने के बावजूद लोगों के धार्मिक-सामाजिक संस्कारों में बड़ी भारी भिन्नता होती हैं। अगर मेरे पास च्वॉइस है तो मैं चाहूंगा कि मेरी बिटिया उस परिवार में जाए जहाँ के धार्मिक-सामाजिक संस्कारों से एकाकार होने में उसे ज्यादा परेशानी न हो।"
अब निरुत्तर हो जाने की बारी सामने वाले की होती। वे केटेगोरिकली स्पष्ट करते कि किस सरनेम /जाति को वे बिलॉन्ग करते हैं।
हिंदुओं की जाति-व्यवस्था हमारे सामाजिक ताने-बाने पर इतना बड़ा अभिशाप है कि यह देश सिर्फ इसी के कारण सदियों तक गुलाम रहा। मगर, इस सच्चाई के बावजूद तब भी जाति -व्यवस्था के ठेकेदार इस बुराई को न सिर्फ ज़िंदा रखे हुए हैं वरन वे इसके समर्थन में बेहूदे तर्क देने में नहीं हिचकते।
डॉ आंबेडकर ने जब इस समस्या को हिन्दू नजरिए से देखा तो इसके खात्मे के लिए उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह को सबसे कारगर कदम बतलाया था। उन्होंने दलित जातियों सहित सभी को सुझाव दिया कि अगर ऊँच-नीच की जाति-पांति ख़त्म करना है तो समाज में अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देना होगा।
मगर , डॉ आंबेडकर को हिंदुओं ने गंभीरता से लिया ही कब है ? हिन्दू तो ठीक है , क्या दलित जातियों ने डॉ आंबेडकर की इस सलाह को सिरियसली लिया ? मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब मैं 3 जन 2014 को जबलपुर में सम्पन्न अपने साढू भाई डब्ल्यू आर डाहटे के सुपुत्र डाली की शादी का नज़ारा अपनी आँखों से देख रहा था।
यह अन्तर्जातीय विवाह था। मोहल्ले के ही भट्ट (ब्राह्मण) परिवार की लड़की थी।
शादी में शरीक होने मुझे थोड़ी हिचकिचाहट-सी हो रही थी। क्योंकि, इस तरह के शादी में शरीक होने पर समाज के द्वारा बहिष्कृत किए जाने के हम भुक्त-भोगी थे। फिर भी, समाज में तेजी से परिवर्तन हो रहे थे और मैं इस परिवर्तन का संवाहक था । मेरा मन -मस्तिष्क जड़ और सड़ रही मान्यताओं को कहीं दूर पीछे छोड़ रहा था।
दुल्हन का घर दुल्हे से एक मकान के अंतर पर था। मगर, किसी तरह का कोई तम या विरोध नजर नहीं आ रहा था। दुल्हन का घर खुब सजा था। रंग -बिरंगी रोशनाई से दोनों मकान सराबोर थे। शादी और रिसेप्शन के लिए कृष्णा लॉज बुक था। जैसे ही बारात प्रवेश द्वार पर पहुंची , दुल्हन पक्ष के बड़े बुजुर्ग हाथों में फूलों की माला लिए हम वर पक्ष के बारातियों का बड़ी प्रसन्नता से स्वागत कर रहे थे।
अंदर शादी / रिसेप्शन लॉन खूबसूरत तरीके से सजाया गया था। मेन स्टेज के बाई ओर शहनाई वादक 'मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया, सज के आयेंगे दुल्हे राजा-----' धुन पर जहाँ वधु पक्ष के दिलों की धड़कन को शब्द दे रहे थे वही करीने से सजी मेजे वर पक्ष के बारातियों को जैसे बैठने की गुजारिश कर रही थी ।
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