सीताराम एन शिवतारकर (1909 -1966 )
दलित अस्मिता के मुद्दे पर जब डॉ आंबेडकर अपनी लड़ाई लड़ रहे थे, तब लाखों-करोड़ों उनके अनुयायी कंधे से कन्धा मिला कर डॉ आंबेडकर के साथ चले थे। इन में कई ऐसे थे जो उनकी एक आवाज पर मर मिटने को तैयार थे मगर, धर्मांतरण के मुद्दे पर वे अलग राय रखते थे। सन 1935 में येवला में डॉ आंबेडकर की यह गर्जना कि वे हिन्दू धर्म में पैदा हुए किन्तु , एक हिन्दू होकर मरेंगे नहीं; पर उनके कई साथियों की त्यौरियां चढ़ गई थी। चाहे शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के उनके अपने साथी हो या फिर, देश की दलित राजनीति में अलग-अलग मंचों पर काम रहे कांग्रेस व दीगर पार्टियों के नेता।गांधीजी और कांग्रेस की अछूतों के प्रति द्वेष-पूर्ण नीति से यद्यपि डॉ आंबेडकर ख़फ़ा थे। फिर भी जहाँ तक राष्ट्रहित की बात है, उन्होंने एक सीमा रेखा खीच दी थी। वे उससे कोई समझौता नहीं चाहते थे। चाहे पाकिस्तान का मुद्दा हो या उनके अपने धर्मान्तरण का, राष्ट्रहित को उन्होंने पहले तरजीह दी।
डॉ आंबेडकर की यह सीमा नेहरु और गांधीजी तो जानते थे किन्तु , दलित नेता इतनी बड़ी रिस्क लेने को तैयार नहीं थे । दूसरे, दलित नेता सामाजिक गुलामी से छुटकारा चाहते थे। सब चाहते थे कि उनके साथ न्याय हो और मानवता का व्यवहार किया जाए। मगर, इसकी कीमत चुकाने को वे तैयार नहीं थे ।
आज, जब हम उन परिस्थितियों का जिक्र करते है, आंकलन करते हैं तो चाह कर भी उन हस्तियों को नज़रअंदाज नहीं कर पाते जिनके योगदान के बिना हम जहाँ आज खड़े हैं शायद, नहीं पहुँच पाते । दलित आंदोलन से जुड़े सीताराम एन शिवतारकर उन में एक है।
सीताराम एन शिवतारकर का जन्म कमाथीपूरा (मुम्बई) में हुआ था। वे दलित चमार परिवार में पैदा हुए थे। इनके पिताजी नामदेवरॉव शिवतारकर शिक्षक थे। सीताराम एन शिवतारकर की पत्नी का नाम विट्टा बाई था। उनकी शादी सन 1913 में हुई थी।
सीताराम शिवतारकर परेल मुम्बई के एक मराठी स्कूल में शिक्षक थे। वे सन 1926 में पदोन्नत हो कर हेड मास्टर बन गए थे। बाद के दिनों में वे पदोन्नत हो कर एजुकेशनल सुपरवाइजर बन गए थे। वे सन 1949 में सेवानिवृत हुए थे।
शिवतारकर जी शुरू से ही सामाजिक सुधार के क्षेत्र में प्रवृत हुए थे। वे सन 1914 से ही वे डॉ आंबेडकर के सम्पर्क में आ चुके थे। जब डॉ आंबेडकर अपने उच्च अध्ययन के सिलसिले में इंग्लैण्ड में थे तब, शिवतारकर जी और डी डी घोलप जी मूकनायक का प्रबंध सम्भल रहे थे जिसे डॉ आंबेडकर ने शुरू किया था।
बहिष्कृत हितकारिणी सभा जिसकी स्थापना 20 जुला 1924 में बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने की थी, एस एन शिवतारकर उसके सेक्रेटरी थे। महाड में 20 दिस 1927 को जो डिप्रेस्ड क्लासेस की कॉन्फ्रेंस हुई थी, शिवतारकर की उस में प्रमुख भूमिका थी।
डिप्रेस्ड क्लासेस एजुकेशन सोसायटी के , जिसकी स्थापना डॉ आंबेडकर ने 14 जून 1928 को की थी, सेकेटरी और खजांजी शिवतारकर जी ही थे। नासिक में 2 मार्च 1930 को कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह के लॉन्ग मार्च में शिवतारकर ने शिरकत की थी।
इसी तरह लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन के समय शिवतारकर ने डॉ आंबेडकर का पुरे जोश से समर्थन किया था। गांधीजी और डॉ आंबेडकर के बीच हुए पूना-पेक्ट में वे एक प्रमुख हस्ताक्षर कर्ता थे।
अकोला में 6 -7 मई 1933 को सी पी एंड बरार स्तर पर जो डिप्रेस्ड क्लासेस की कांफ्रेन्स हुई थी, की अध्यक्षता शिवतारकर ने की थी। इसी तरह 9 मई 1933 को बरार के कापस टैनी में हुई कॉन्फ्रेंस की भी उन्होंने अध्यक्षता की थी। इन सम्मेलनों में शिवतारकर ने डॉ आंबेडकर का भारी समर्थन करने के लिए समाज से अपील की थी।
दलित आंदोलन में प्रमुख भूमिका निबाहने के बावजूद सीताराम एन शिवतारकर धर्मान्तरण के प्रश्न पर डॉ आंबेडकर से अलग मत रखते थे। धर्मान्तरण के मुद्दे पर हिन्दू सुधारवादी संगठन आर्य समाज से उनकी नजदीकियां थी। वे बाद के दिनों में कांग्रेस में चले गए।
सन 1952 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकिट पर शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के आर डी भंडारे के
विरुद्ध चुनाव जीता था। सन 1952 में ही सीताराम एन शिवतारकर ने रोहिदास समाज पंचायत संघ की स्थापना की थी। वे सन 1963 तक इसके अध्यक्ष रहे थे।
उनका देहांत 29 मार्च 1966 को 75 वर्ष की उम्र में हुआ था।
Dear Brother, can you send a Photo of Sivtharkar?
ReplyDeleteOne Request ! I have heard that Shri. Sitaram Shivtarkarji had written a biography on Dr. Ambedkar. I dont know the exact name of the same. Can you please tell me ? Its a request. ! Thanks.
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