Source-Bauddhacharya Shanti Svaroop Bauddh |
महा मोग्गलायन (ई पू 527 )
भगवन बुद्ध के 80 प्रधान शिष्यों में सारिपुत्त और महा-मोग्गलायन का स्थान अग्रणी था। विश्व प्रसिद्द साँची के स्तूप में सारिपुत्त और महा मोग्गलायन की अस्थियां आज भी रखी है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध जगत की तमाम हस्तियां एवं अन्य धम्मानुयायी इकट्ठे होते हैं और भगवन बुद्ध के इन दोनों महान शिष्यों को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। आइए , इन महापुरुषों के बारे में कुछ जानने का प्रयास करे।महा-मोग्गलायन के बारे में सारिपुत्त के बनिस्पत विस्तृत जानकारी अनुपलब्ध है। महा-मोग्गलायन का जन्म राजगृह के समीप कोलित गावं में हुआ था। शायद, इसलिए उन्हें कोलित के नाम से भी जाना जाता है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस दिन सारिपुत्त का जन्म हुआ था, ठीक उसी दिन महा-मोग्गलायन का जन्म हुआ।
सारिपुत्त और महा-मोग्गलायन भगवान बुद्ध के दो ऐसे वरिष्ठ शिष्य थे जो किसी भी प्रश्न का उत्तर क्रमश: और विस्तृत रूप से दे सकते थे। दोनों को तात्विक ज्ञान में महारत हासिल थी।
महा-मोग्गलायन और सारिपुत्त के बीच असीम और स्वाभाविक प्रेम था। दोनों मित्रों में अकसर किसी गम्भीर विषय पर चर्चा होती रहती थी। दोनों के ह्रदय में भगवन के प्रति असीमित प्रेम और भक्ति थी। जब वे भगवान से कहीं दूर होते तो वे भगवान से हुई बातें और चर्चा के संबंध में एक दूसरे से कहते। यात्रा के समय दोनों ही अन्य भिक्षुओं का नेतृत्व करते थे। भिक्षुओं को दान देने वाले गृहपति दोनों को ही शामिल करने के लिए हमेशा आतुर रहते थे।
महा-मोग्गलायन को कई सिद्धियाँ प्राप्त थी। यह महा-मोग्गलायन ही थे जिन्होंने भगवान की अनुज्ञा लेकर अपने ऋद्धि बल से नदोपनंद नाग का पराभव किया था।
कहा जाता है कि महा-मोग्गलायन के शरीर का वर्ण नीला था और यही कारण है कि श्रीलंका जैसे बौद्ध देश में उनकी प्रतिमा नीले रंग की बनाई जाती है।
महा-मोग्गलायन का देहांत कार्तिक अमावस को हुआ था। उनकी हत्या निगंठों ने की थी।ज्ञान और चर्चा में निरंतर हारने के कारण निगंठ, महा-मोग्गलायन से खफा रहते थे। उन्होंने पहले भी कई बार उनकी हत्या का प्रयास किया था।
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स्रोत -'बुद्ध और उनके समकालीन भिक्षु' लेखक: डॉ भदंत सावंगी मेधंकर
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