Friday, May 18, 2018

दिव्यादान

दिव्यादान
अवदान का अर्थ है- चरित-कथा। दिव्यादान, वास्तव में द्विव्य अवदानों या चरित्र-कथाओं का संकलन है। यह महायानी सर्वास्तिवादियों का प्रमुख ग्रंथ है।

इसमें निम्न 38 अवदानों/चरित-कथाओं का संकलन है-
1. कोटिककर्णावदान 2. पूर्णावदान 3. मैत्रोयावदान 4. बाहमणदारिकावदान 5. स्तूतिबाहमणवदान 6. इन्द्रबाहमणवदान 7. नगरावलम्बिकावदान 8. सुप्रियावदान 9. मेण्ढकगृहपति विभूति परिच्छेद 10. मेण्ढकावदान 11. अशोकवर्णावदान 12. प्रातिहार्य-सूत्र 13. स्वागतावदान 14. शूकरिकावदान 15. चक्रवर्तिव्याकृतावदान 16. शुतपोतकावदान 17. मान्धातावदान 18. धर्मरुच्यावदासन 19. ज्योतिष्कावदान 20. कनकवर्णावदान 21. सहसोद्रतावदान 22. चन्द्रप्रभ-बोधिसत्वचर्यावदान 23. संघरक्षितावदान 24. नागकुमारावदान 25. संघरक्षितावदान-शेष 26. पांशुप्रदानावदान 27. कुणालावदान 28. वीतशोकावदान 29. अशोकावदान 30. सुधनकुमारावदान 31. तोयिकामहावदान 32. रूपावत्यावदान 33. शार्दूलकर्णावदान 34. दानाधिकारमहायान-सूत्र 35. चूड़ापक्षावदान 36. माकन्दिकावदान 37. रुद्रायणावदान 38. मैत्राकन्यकावदान।

द्वियादान की भासा ‘पालि-संस्कृत’ है। मूल पालि के बौद्ध-ग्रंथों को जब संस्कृत में लिखा जाने लगा, तब इनकी भासा पालि-संस्कृत का मिश्रण थी और इसीलिए इसे ‘पालि-संस्कृत’ कहा गया।

द्वियादान बौद्धकालीन इतिहास और संस्कृति की धरोहर है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। इतिहास की किताबों में बिना दिव्यादान के उद्धहरणों के प्राचीन इतिहास की पुष्टि असम्भव है। सम्राट असोक की जीवन-चर्या एवं महान कार्यों का प्रमाणिक विवरण दिव्यादान से ही प्राप्त होता है। इसमें ब्राह्मणों द्वारा बौद्ध धर्म पर किए गए भयंकर आक्रमणों की घटनाएं दर्ज हैं। इसमें पुष्यमित्र शुंग को मौर्य वंश का अंतिम शासक बतलाया गया है।

दिव्यादान का चीनी अनुवाद 265 ईस्वी में हो गया था। इससे इन ग्रंथों का लेखन और संकलन के काल का अनुमान किया जा सकता है। इसका रोमन लिपि संस्करण 1886 ईस्वी में तथा नागरी लिपि संस्करण 1959 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था। अश्वघोष कृत बुद्धचरितं और संस्कृत ग्रन्थ ललितविस्तर का अनुवाद दिव्यादान के काफी पहले हो चुका  था । 

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