बुद्ध का चमत्कार से परहेज
दीघनिकाय के पाथिकवग्ग में 'सुनक्खत्तवत्थु' नामक एक प्रसंग है। इसमें मल्लों के नगर अनुपिय्या के वज्जी ग्राम निवासी लिच्छवि पुत्र सुनक्खत का जिक्र है जो एक समय बुद्ध का बड़ा प्रशंसक था। किन्तु वह चाहता था कि अन्य चमत्कारी महापुरुषों की तरह बुद्ध भी लोगों को चमत्कार दिखाएं । उसने बुद्ध के सामने जा कर यह बात कही। तत्सम्बंध में बुद्ध और सुनक्खत के बीच हुआ संवाद दिलचस्प है-
"भंते ! अब मैं भगवान के धम्म को छोड़ रहा हूँ। क्योंकि, आप मुझे चमत्कार नहीं दिखाते हैं ? "
"सुनक्खत! क्या मैंने तुझसे कहा था कि आ मेरे धम्म को स्वीकार कर, मैं तुझे चमत्कार दिखाऊंगा। "
"नहीं भंते।"
"सुनक्खत! क्या तू समझता है कि चमत्कार दिखाने या न दिखाने से दुक्ख क्षय के लिए मेरे द्वारा उपदिष्ट धम्म पर कोई अनुकूल/प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ?"
"नहीं भंते !"
"तो मोघ पुरुष ! तू चमत्कार में क्यों पड़ता है ?"
दीघनिकाय के पाथिकवग्ग में 'सुनक्खत्तवत्थु' नामक एक प्रसंग है। इसमें मल्लों के नगर अनुपिय्या के वज्जी ग्राम निवासी लिच्छवि पुत्र सुनक्खत का जिक्र है जो एक समय बुद्ध का बड़ा प्रशंसक था। किन्तु वह चाहता था कि अन्य चमत्कारी महापुरुषों की तरह बुद्ध भी लोगों को चमत्कार दिखाएं । उसने बुद्ध के सामने जा कर यह बात कही। तत्सम्बंध में बुद्ध और सुनक्खत के बीच हुआ संवाद दिलचस्प है-
"भंते ! अब मैं भगवान के धम्म को छोड़ रहा हूँ। क्योंकि, आप मुझे चमत्कार नहीं दिखाते हैं ? "
"सुनक्खत! क्या मैंने तुझसे कहा था कि आ मेरे धम्म को स्वीकार कर, मैं तुझे चमत्कार दिखाऊंगा। "
"नहीं भंते।"
"सुनक्खत! क्या तू समझता है कि चमत्कार दिखाने या न दिखाने से दुक्ख क्षय के लिए मेरे द्वारा उपदिष्ट धम्म पर कोई अनुकूल/प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ?"
"नहीं भंते !"
"तो मोघ पुरुष ! तू चमत्कार में क्यों पड़ता है ?"
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