धम्मानन्द कोसम्बी (1876-1947)
धम्मानंद कोसंबी को पालि भाषा और साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित के तौर पर जाना जाता है। पाठक इन्हें डी.डी. कोसंबी के नाम से भी जानते हैं।
धम्मनद कोसंबी का जन्म 9 अक्टू. सन् 1876 में गोवा के एक गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके मन में गृहस्थी के प्रति उपरति और बुध्द के प्रति लगाव बचपन से ही पैदा हो गया था। इन्होंने 22 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था। आप बौध्द धर्म का अध्ययन करने लिए सिरिलंका गए। वहां सन् 1902 में भदन्त सुमंगलाचार्यजी से भिक्षु-दीक्षा प्राप्त की।
सिंहलद्वीप से लौटने के बाद धम्मानंद कोसंबी की मुलाकात बड़ोदा-नरेश सयाजी गायकवाड़ से हुई । महाराजा ने उन्हें पाली अध्ययन का काम निश्चिन्त होकर करने कहा।
पूना में डॉ. भण्डारकर की मदद से बम्बई यूनिवर्सिटी में कोसाम्बी ने पाली भाषा के अध्ययन को स्थान दिलाया। आपने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में ‘विसुध्दिमग्ग’ के सम्पादन का काम किया। फर्ग्यूसन कॉलेज में आपने पालि पढ़ाने का काम किया। महात्मा गांधी की गुजरात विद्यापीठ में रहकर जैन और बौध्द धर्म पर ग्रंथ तैयार किए।
सन् 1921 में कोसाम्बी, सोवियत संघ गए। सन् 1030 के दौरान आपने स्वराज-आन्दोलन में भाग लिया। इसी बीच आपने ‘हिन्दी संस्कृति आणि अहिंसा’ नामक ग्रंथ लिखा। सारनाथ में आपने भिक्षु जगदीश कश्यप के साथ काम किया। जीवन के अंतिम दिनों में गांधी के सेवाआश्रम में रहे और वहीं आपने 5 जून 1947 को देह त्याग दिया।
कोसम्बी जी सभी धर्मों का आदर करते थे। वे जैन धर्म को उतना ही मानते थे जितना बौध्द धर्म को। गांधी जी के प्रति असीम आदर रखते हुए भी कोसम्बी उनकी टीका-टिप्पणी करने में नहीं चुकते थे।
कोसम्बी ने मराठी, हिन्दी, गुजराती में बौध्द धर्म पर अनेक ग्रंथ लिखे। आपकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं- बुध्द धर्म आणि संघ, बुध्दलीला-सार संग्रह, बौध्द संघा चा परिचय, समाधि मार्ग, हिन्दी संस्कृति आणि अहिंसा। अभिधम्मसंगहो पर पाली में आपका ग्रंथ ‘नवनीत टीका’ एक पाण्डित्यभरी कृति है।
कोसाम्बी जी ने शान्तिदेव की पुस्तक ‘बोधिचर्यावतार का मराठी और गुजराती में अनुवाद किया। आप ने धम्मपद और सुत्तनिपात का अनुवाद किया। ‘विसुध्दिमग्ग’ पर ‘समाधिमार्ग’ नाम से आपने टीका लिखी (काकासाहब कालेलकर, लेख ‘भक्त पण्डित धर्मानंद कोसंबी, भगवान बुध्द जीवन और दर्शन; धर्मानन्द कोसम्बी)।
धम्मानंद कोसंबी को पालि भाषा और साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित के तौर पर जाना जाता है। पाठक इन्हें डी.डी. कोसंबी के नाम से भी जानते हैं।
धम्मनद कोसंबी का जन्म 9 अक्टू. सन् 1876 में गोवा के एक गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके मन में गृहस्थी के प्रति उपरति और बुध्द के प्रति लगाव बचपन से ही पैदा हो गया था। इन्होंने 22 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था। आप बौध्द धर्म का अध्ययन करने लिए सिरिलंका गए। वहां सन् 1902 में भदन्त सुमंगलाचार्यजी से भिक्षु-दीक्षा प्राप्त की।
सिंहलद्वीप से लौटने के बाद धम्मानंद कोसंबी की मुलाकात बड़ोदा-नरेश सयाजी गायकवाड़ से हुई । महाराजा ने उन्हें पाली अध्ययन का काम निश्चिन्त होकर करने कहा।
पूना में डॉ. भण्डारकर की मदद से बम्बई यूनिवर्सिटी में कोसाम्बी ने पाली भाषा के अध्ययन को स्थान दिलाया। आपने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में ‘विसुध्दिमग्ग’ के सम्पादन का काम किया। फर्ग्यूसन कॉलेज में आपने पालि पढ़ाने का काम किया। महात्मा गांधी की गुजरात विद्यापीठ में रहकर जैन और बौध्द धर्म पर ग्रंथ तैयार किए।
सन् 1921 में कोसाम्बी, सोवियत संघ गए। सन् 1030 के दौरान आपने स्वराज-आन्दोलन में भाग लिया। इसी बीच आपने ‘हिन्दी संस्कृति आणि अहिंसा’ नामक ग्रंथ लिखा। सारनाथ में आपने भिक्षु जगदीश कश्यप के साथ काम किया। जीवन के अंतिम दिनों में गांधी के सेवाआश्रम में रहे और वहीं आपने 5 जून 1947 को देह त्याग दिया।
कोसम्बी जी सभी धर्मों का आदर करते थे। वे जैन धर्म को उतना ही मानते थे जितना बौध्द धर्म को। गांधी जी के प्रति असीम आदर रखते हुए भी कोसम्बी उनकी टीका-टिप्पणी करने में नहीं चुकते थे।
कोसम्बी ने मराठी, हिन्दी, गुजराती में बौध्द धर्म पर अनेक ग्रंथ लिखे। आपकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं- बुध्द धर्म आणि संघ, बुध्दलीला-सार संग्रह, बौध्द संघा चा परिचय, समाधि मार्ग, हिन्दी संस्कृति आणि अहिंसा। अभिधम्मसंगहो पर पाली में आपका ग्रंथ ‘नवनीत टीका’ एक पाण्डित्यभरी कृति है।
कोसाम्बी जी ने शान्तिदेव की पुस्तक ‘बोधिचर्यावतार का मराठी और गुजराती में अनुवाद किया। आप ने धम्मपद और सुत्तनिपात का अनुवाद किया। ‘विसुध्दिमग्ग’ पर ‘समाधिमार्ग’ नाम से आपने टीका लिखी (काकासाहब कालेलकर, लेख ‘भक्त पण्डित धर्मानंद कोसंबी, भगवान बुध्द जीवन और दर्शन; धर्मानन्द कोसम्बी)।
Sir kya dharmanand kosambhi ki Navneet Tika mil Sakti hai
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