प्रसंग हिन्दू कोड बिल के सन्दर्भ में हिन्दुओं के धर्मगुरु करपात्रीजी महाराज का देश के प्रथम कानून मंत्री बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर से मुलाकात करने का है। तब, बाबासाहब अम्बेडकर देश के कानून मंत्री थे। वे दलितों के बेताज बादशाह तो थे ही, हिन्दुओं के भी बेताज बादशाह रहे ।
हिन्दू, तब कई प्रकार की धार्मिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और कुप्रथाओं से घिरे थे जो सदियों से उनमें व्याप्त रही। बाबासाहब अम्बेडकर तब न सिर्फ दलितों के सामाजिक सुधारों के लिए कटिबद्ध थे वरन वे इसके सामानांतर हिन्दुओं में व्याप्त इन कुप्रथाओं से भी निजात पाने को जूझ रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि हिन्दू देश के बहुसंख्यक हैं, उनके आचारों-विचारों से देश की सोच बनती है। दूसरे, उनके आचार-विचार देश के भिन्न सांस्कृतिक विरासत सिक्ख, जैन, बुद्धिस्ट, मुस्लिम, ईसाई आदि को भी प्रभावित करते हैं। और इसलिए, वे अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ दलित-सुधारों के साथ-साथ हिन्दुओं के धार्मिक सुधारों के लिए प्रयासरत थे।
हिन्दू, तब कई प्रकार की धार्मिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और कुप्रथाओं से घिरे थे जो सदियों से उनमें व्याप्त रही। बाबासाहब अम्बेडकर तब न सिर्फ दलितों के सामाजिक सुधारों के लिए कटिबद्ध थे वरन वे इसके सामानांतर हिन्दुओं में व्याप्त इन कुप्रथाओं से भी निजात पाने को जूझ रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि हिन्दू देश के बहुसंख्यक हैं, उनके आचारों-विचारों से देश की सोच बनती है। दूसरे, उनके आचार-विचार देश के भिन्न सांस्कृतिक विरासत सिक्ख, जैन, बुद्धिस्ट, मुस्लिम, ईसाई आदि को भी प्रभावित करते हैं। और इसलिए, वे अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य के साथ दलित-सुधारों के साथ-साथ हिन्दुओं के धार्मिक सुधारों के लिए प्रयासरत थे।
बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर जब 'हिन्दू कोड बिल' तैयार करने में दत्तचित थे तब बनारस के हिन्दुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु करपात्री महाराज ने बाबा साहेब को बहस करने की चुनौती दे डाली। उन्होंने कहा डॉ अम्बेडकर एक अछूत है वे कितना जानते हैं हमारे धर्म के बारे मे, हमारे ग्रन्थ और शास्त्रों के बारे में ? क्या उन्हें कहाँ संस्कृत और संस्कृति का ज्ञान है? यदि उन्होंने हमारी संस्कृति से खिलवाड़ किया तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। करपात्री महाराज ने डॉ अम्बेडकर को इस पर बहस करने हेतु पत्र लिखा और निमंत्रण भी भेज दिया।
बाबासाहेब बहुत शांत और शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने आदर सहित करपात्री महाराज को पत्र लिखकर उनका निमंत्रण स्वीकार किया और कहा कि हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, मराठी या अन्य किसी भी भाषा में वे उनसे शास्त्रार्थ करने को तैयार हैं। यदि उनके मन में कोई प्रश्न है तो वे अपने समयानुसार आकर अपनी जिज्ञासा पूरी कर सकते हैं।
यह पढ़ते ही करपात्री महाराज आग बबूला हो गए। उन्होंने वापस बाबासाहब को पत्र लिखा कि डॉ अम्बेडकर शायद, भूल रहे हैं कि एक साधू, सन्यासी को वे अपने स्थान पर बुला रहे हैं। उन्हें यहां आकर बात करनी चाहिए न कि एक साधू उनके पास जा कर बात करें ?
"मैं साधू, सन्तों का सम्मान करता हूँ। उनके तप और त्याग का आदर करता हूँ लेकिन फिलहाल जिनसे मैं पत्राचार कर रहा हूँ वे साधु कहाँ हैं? वे तो राजनेता हो गए हैं वरना इस बिल से किसी साधू को क्या लेना देना हो सकता है? एक ऐसा बिल जिसमें महिलाओं को भी सम्पत्ति रखने का अधिकार मिलने की बात है, उन्हें तलाक और विधवा विवाह का अधिकार देने की बात की है। इसमें मुझे तो कोई बुराई नजर नही आती इसलिए मेरी नजर में आप राजनीति कर रहे हैं और राजनीतिक लिहाज से आप शायद भूल रहे हैं कि मैं वर्तमान समय मे भारत का कानून मंत्री हूँ और एक मंत्री के रूप में मैं ऐसी किसी जगह नही जा सकता हूँ जहां जनता का हित न हो या लोकतंत्र का अपमान हो।''- डॉ अम्बेडकर ने करपात्रीजी महाराज को जवाब दिया।
यह पढ़कर करपात्री महाराज अचंभित रह गए। कुछ समय बाद उन्होंने बाबासाहब को पुनः एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने मिलने की बात कही थी। यद्यपि वे मिलने कभी नही आए ।
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