पहला बच्चा भिक्खु-संघ को-
जब तक हम, अपना पहला बच्चा भिक्खु-संघ को दान नहीं करेंगे, धम-प्रचार की सारी बातें बेमानी है. जो पारिवारिक कारणों-वश घर से भाग कर चीवर धारण करते हैं, उनसे निस्वार्थ धम्म-प्रचार की आशा नहीं की जा सकती. अगर दूसरे बुद्धिस्ट देशों में छोटे-छोटे बच्चें सामणेर बनते हैं तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
जब तक हम, अपना पहला बच्चा भिक्खु-संघ को दान नहीं करेंगे, धम-प्रचार की सारी बातें बेमानी है. जो पारिवारिक कारणों-वश घर से भाग कर चीवर धारण करते हैं, उनसे निस्वार्थ धम्म-प्रचार की आशा नहीं की जा सकती. अगर दूसरे बुद्धिस्ट देशों में छोटे-छोटे बच्चें सामणेर बनते हैं तो हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
भिक्खु-संघ से हम धम्म-प्रचार की अपेक्षा करते हैं. यह आदर्श ठीक है परन्तु, व्यवहारिक नहीं. या तो धम्म-प्रचार के लिए हम, भिक्खु-संघ की ओर देखना बंद कर दें या फिर, हर घर से कम-से कम एक बच्चा, चाहे लड़का हो या लड़की, संघ को दें.
प्रायोगिक रूप से इसके लिए, प्रत्येक बच्चा एक निश्चित अवधि के लिए सामणेर/ सामणेरा के रूप में धम्म का अध्ययन/संघ सेवा करें, ऐसी व्यवस्था भी बनाई जा सकती है. बौद्ध-पद्यति से विवाह के इच्छुक वर-वधु के लिए बुद्दिस्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया जैसी धार्मिक नियामक संस्थाओं द्वारा इस तरह के नियम 'बुद्धिस्ट आचार-संहिता' में जोड़े जा सकते हैं. जिस प्रकार वर-वधु के लिए श्वेत वस्त्र धारण करना आवश्यक है, ठीक उसी तरह निश्चित अवधि के सामणेर/ सामणेरा का सर्टिफिकेट भी आवश्यक बनाया जा सकता है.
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