'सुलगन'
वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश वानखेड़े की सद्य प्रकाशित, बहु चर्चित कहानी संग्रह 'सुलगन' पर साहित्यिक परिचर्चा प्रोफ़ेसर डॉ हेमलता महिश्वर जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली के मार्गदर्शन में दि. 15 दिस. 2019 को 'भोपाल साहित्य मंच' के तत्वाधान में हिंदी भवन भोपाल में संपन्न हुई.
वरिष्ठ साहित्यकार कैलाश वानखेड़े की सद्य प्रकाशित, बहु चर्चित कहानी संग्रह 'सुलगन' पर साहित्यिक परिचर्चा प्रोफ़ेसर डॉ हेमलता महिश्वर जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली के मार्गदर्शन में दि. 15 दिस. 2019 को 'भोपाल साहित्य मंच' के तत्वाधान में हिंदी भवन भोपाल में संपन्न हुई.
आद. कैलाश वानखेड़े द्वारा सुलगन की एक कहानी का संक्षिप्त पाठ कर परिचर्चा का आरंभ हुआ. प्रो. हेमलता महिश्वर द्वारा पाठ की गई कहानी के साथ सुलगन की सभी कहानियों की समीक्षा की गई. इसके साथ ही आपने कैलाश वानखेड़े के व्यक्तित्व और कृतित्व से साहित्य-प्रेमियों को रूबरू कराया. मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पंकज सुबीर और परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ गजल और साहित्यकार जहीर कुरेशी साहब द्वारा भी कैलाश वानखेड़े की कहानियों पर समीक्षात्मक वक्तव्य/आलेख दिए/पढ़े गए. रचनाकारों और पाठक के बीच संवाद के तहत तत्सम्बंध में उठते प्रश्नों का वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा समाधान किया गया. कार्यक्रम का सञ्चालन वरिष्ठ साहित्यकार और धम्मलिपि पर शोधरत मोतीलाल आलमचंद्र द्वारा बेहद सुन्दर तरीके से किया गया.
साहित्यकार का लक्ष्य समाज होता है. साहित्य का अर्थ परिवर्तन है. साहित्य में रचना है, तो समाज में भी संरचना है. साहित्य, समाज के लिए होता है. सामाजिक परिवर्तन उसका हेतु है. सामाजिक जड़ता को खंगालता साहित्य परिवर्तन चाहता है. समाज याने जीवन. जीवन अर्थात जीवंतता; मानवीय मूल्यों की जीवन्तता. इसका ध्वज-वाहक साहित्यकार के अलावा कौन हो सकता है ?
जिस प्रकार साहित्य, समाज के लिए होता है, ठीक उसी प्रकार साहित्यकार भी समाज के जीता है, मरता है. उसका हर क्षण, उसके लहू के हर कतरे में मानवीय मूल्यों का स्पंदन होता है. समाज के पास उस स्पंदन को महसूस करने की तमीज होनी ही चाहिए. यह परिचर्चा इसी के लिए थी.
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