मांग-पत्र
सेवा में
आदरणीय कमलनाथ जीमाननीय मुख्यमन्त्री महोदय
मध्यप्रदेश शासन, भोपाल
विषय- स्कूल-कालेजों में उ. प्र., बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्यों की तरह संस्कृत के साथ पालि पढ़ाने एवं पालि भाषा के संवर्धन हेतु ‘मध्यप्रदेश पालि संस्थान’ की स्थापना बाबद।
महोदय!
पालि भाषा भारत-वर्ष की अत्यन्त पुरातन और अतीव महत्त्वपूर्ण भाषा है। इस देश की संस्कृति, इतिहास और दर्शन पालि-भाषा से पूर्णतः प्रभावित और अभिसिंचित हैं। भारत-वर्ष के प्राचीन इतिहास से ज्ञात होता है कि इस देश में पुरातन काल में पालि-भाषा एक ‘जनभाषा’ थी। समाज के सभी वर्गों के लोग इस भाषा के माध्यम से अपने विचारों तथा सांस्कृतिक-विरासत का आदान-प्रदान किया करते थे। इसी भाषा को तथागत भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों की माध्यम-भाषा बनाया, ताकि समाज के सभी वर्गों के लोग उनकी शिक्षा को समझ सके तथा तदनुसार उन्हें ग्रहण कर आचरण में उतार सके। एक समय ऐसा भी था कि जनभाषा होने तथा लोकप्रियता के कारण यह भाषा ‘राष्ट्र-भाषा’ का गौरव प्राप्त किये हुए थी। फिर समय बदला और धीरे-धीरे इस भाषा का देश से विलोप ही हो गया, किन्तु पड़ौसी देशों ने इसे बड़ा ही सम्भाल कर रखा तथा इसका संवर्धन भी किया। आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व भारत के महान् मनीषियों एवं विद्वानों के माध्यम से इसका भारत में पुनरागमन हुआ है तथा आज अनेक विश्वविद्यालयों में इसके स्वतन्त्रा विभाग संचालित हो रहे हैं।
यद्यपि पालि भाषा का समाज में आज अधिक प्रचलन नहीं हो पाया है। आज नागरिक पालि के विषय में अधिक नहीं जानते हैं, किन्तु भारतीय भाषाओं में पालि भाषा के शब्द तथा धातुएँ बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। विलुप्त होने के बावजूद पालि भाषा की सुगन्ध को यहाँ की विभिन्न भाषाओं (मराठी, भोजपुरी, हिन्दी, उड़िया, तेलुगु, गुजराती इत्यादि) में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यूरोप तथा एशिया महाद्वीप सहित विश्व के अनेक देशों में पालि-भाषा का समाज में अत्यन्त सम्मानजनक स्थान है। अनेक देशों में पालि-भाषा के अध्ययन-अध्यापन की अच्छी व्यवस्था है। पालि के अध्ययन-अध्यापन के लिए वहां स्वतन्त्रा विश्वविद्यालय तक हैं। भारत में पालि की स्थिति अच्छी नहीं है।
यहाँ समाज का एक बड़ा वर्ग (बौद्ध-जनसमुदाय) आज पालि-भाषा के माध्यम से अपने संस्कार करता आ रहा है। बौद्धों में परित्त-पाठ मूलतः पालि में ही सम्पन्न किया जाता है। लेकिन इसके बावजूद पालि के संवर्धन, अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार हेतु कार्य करने वाली एक भी शासकीय संस्था पूरे देश में नहीं है। समाज का प्रबुद्ध वर्ग पालि के प्रचार-प्रसार के लिए थोड़ा प्रयासरत भी दिखाई दे रहा है; किन्तु यह अपर्याप्त ही है। हाँ, विपस्सना के प्रचार के साथ धीरे-धीरे समाज में पालि के प्रति जागरुकता बढ़ रही है तथा लोग पालि को पाठ्यक्रम में शामिल कराते हुए अपने बच्चों को इसका अध्यापन कराने के इच्छुक हैं, क्योंकि समस्त पालि साहित्य में नैतिक-शिक्षा, शील-सदाचार और शुद्ध-धर्म का स्वरूप ही विद्यमान है। यदि बच्चों को पालि पढ़ाना शुरु कर दिया जाये, तो आने वाली पीढ़ी शील-सदाचार और चारित्रिक दृष्टि से अधिक बलवती होगी। वहीं, मध्य प्रदेश एक बहु-सांस्कृतिक तथा विविधता से परिपूर्ण प्रदेश है। यहाँ इस भाषा तथा संस्कृति से सम्बद्ध अनेक पुरातात्विक-धरोहरें भी हैं। मध्यप्रदेश के उज्जैन में बौद्ध-धर्म की अनेक धरोहरें मौजूद हैं। साँची सम्पूर्ण विश्व में यहाँ के बौद्ध-स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। भरहुत की बौद्ध कला के विषय में कौन नहीं जानता। मध्यप्रदेश की बाघ की गुफाएँ भी विश्व-प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार अनेक स्थान हैं; जो बौद्ध-कला, स्थापत्य और इससे सम्बद्ध हैं। मध्यप्रदेश किसी समय कला और शिक्षा का बड़ा केन्द्र रह चुका है। भगवान् बुद्ध की शिक्षा का मध्यप्रदेश की धरा से पूरे विश्व में शान्ति स्थापना के लिए सन्देश सम्प्रेरित किया गया।
अतः मध्यप्रदेश में पालि भाषा के संवर्धन, अनुसन्धान, अध्ययन-अध्यापन और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से स्कूल-कालेजों में पालि पढ़ने-पढ़ाने की सुविधा देना आवश्यक है वहीं, राज्य की राजधानी भोपाल में ‘मध्यप्रदेश पालि संस्थान’ की स्थापना परम आवश्यक है। अनेक देशों के नागरिक श्रद्धापूर्वक मध्यप्रदेश की पावन धरा में स्थित धम्म-स्थलों के दर्शन और अनुसन्धान हेतु आते हैं। इस कारण ‘मध्यप्रदेश पालि संस्थान’ के माध्यम से पालि को वास्तविक रूप में वैश्विक-प्रसार प्राप्त होगा तथा अन्तर्राष्ट्रीय रोजगार की दृष्टि से भी यह अतीव लाभदायक सिद्ध होगा। पालि भाषा के विकास से अवश्य ही मध्यप्रदेश को विश्व के मानचित्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। ‘मध्यप्रदेश पालि संस्थान’ की स्थापना के पश्चात् यह भी आवश्यक है कि यह संस्था वास्तविक रूप में पालि के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से कार्य करें। इस हेतु इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों, प्रभागों तथा केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे भारत का प्राचीन इतिहास पुनर्जीवित हो सकेगा ।
अतः निवेदन है कि तत्सम्बंध में आवश्यक कार्रवाई कर, की गई कार्रवाही से अवगत कराने का कष्ट करें। धन्यवाद।
दिनाँक
निवेदक
दी इंस्टीट्यूट ऑफ़ पालि स्टडीज एंड ट्रेनिंग
(IPST) कोर ग्रुप, भोपाल: म. प्र.
हस्ताक्षर
संस्था का नाम और पता
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निवेदक- IPST (दी इन्सटीट्यूट ऑफ पालि स्टडीज एण्ड ट्रेनिंग कोर ग्रुप)
भोपाल
पत्र व्यवहार- अ. ला. उके
डी. 05 डूप्लेक्स : फारचुन सोम्या हेरिटेज
मिसरोदः होशंगाबाद रोड़ः भोपाल
मोब. 9630826117
संलग्नक-
1. ‘मध्यप्रदेश पालि संस्थान’ द्वारा पालि-भाषा के प्रचार-प्रसार, अनुसन्धान और संवर्धन के लिए करणीय कार्यों की प्रस्ताविका (16 पृष्ठ)
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सेवा में
आदरणीय भूपेश बघेलजी
माननीय मुख्यमन्त्राी महोदय,
छत्तीसगढ़ (रायपुर)
विषय- स्कूल-कालेजों में महाराष्ट्र आदि राज्यों की तरह संस्कृत के साथ पालि भाषा पढ़ाये जाने एवं पालि भाषा की उन्नति के लिए ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना बाबद।
महोदय!
पालि भाषा भारत-वर्ष की अत्यन्त पुरातन और अतीव महत्त्वपूर्ण भाषा है। इस देश की संस्कृति, इतिहास और दर्शन पालि-भाषा से पूर्णतः प्रभावित और अभिसिंचित हैं। भारत-वर्ष के प्राचीन इतिहास से ज्ञात होता है कि इस देश में पुरातन काल में पालि-भाषा एक ‘जनभाषा’ थी। समाज के सभी वर्गों के लोग इस भाषा के माध्यम से अपने विचारों तथा सांस्कृतिक-विरासत का आदान-प्रदान किया करते थे। इसी भाषा को तथागत भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों की माध्यम-भाषा बनाया, ताकि समाज के सभी वर्गों के लोग उनकी शिक्षा को समझ सके तथा तदनुसार उन्हें ग्रहण कर आचरण में उतार सके। एक समय ऐसा भी था कि जनभाषा होने तथा लोकप्रियता के कारण यह भाषा ‘राष्ट्र-भाषा’ का गौरव प्राप्त किये हुए थी। फिर समय बदला और धीरे-धीरे इस भाषा का देश से विलोप ही हो गया, किन्तु पड़ौसी देशों ने इसे बड़ा ही सम्भाल कर रखा तथा इसका संवर्धन भी किया। आज से लगभग 110 वर्ष पूर्व भारत के महान् मनीषियों एवं विद्वानों के माध्यम से इसका भारत में पुनरागमन हुआ है तथा आज अनेक विश्वविद्यालयों में इसके स्वतन्त्रा विभाग संचालित हो रहे हैं।
यद्यपि पालि भाषा का समाज में आज अधिक प्रचलन नहीं हो पाया है। आज नागरिक पालि के विषय में अधिक नहीं जानते हैं, किन्तु भारतीय भाषाओं में पालि भाषा के शब्द तथा धातुएँ बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। विलुप्त होने के बावजूद पालि भाषा की सुगन्ध को यहाँ की विभिन्न भाषाओं (मराठी, भोजपुरी, हिन्दी, उड़िया, तेलुगु, गुजराती इत्यादि) में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यूरोप तथा एशिया महाद्वीप सहित विश्व के अनेक देशों में पालि-भाषा का समाज में अत्यन्त सम्मानजनक स्थान है। अनेक देशों में पालि-भाषा के अध्ययन-अध्यापन की अच्छी व्यवस्था है। पालि के अध्ययन-अध्यापन के लिए वहां स्वतन्त्रा विश्वविद्यालय तक हैं। भारत में पालि की स्थिति अच्छी नहीं है।
यहाँ समाज का एक बड़ा वर्ग (बौद्ध-जनसमुदाय) आज पालि-भाषा के माध्यम से अपने संस्कार करता आ रहा है। बौद्धों में परित्त-पाठ मूलतः पालि में ही सम्पन्न किया जाता है। लेकिन इसके बावजूद पालि के संवर्धन, अनुसन्धान और प्रचार-प्रसार हेतु कार्य करने वाली एक भी शासकीय संस्था पूरे देश में नहीं है। समाज का प्रबुद्ध वर्ग पालि के प्रचार-प्रसार के लिए थोड़ा प्रयासरत भी दिखाई दे रहा है; किन्तु यह अपर्याप्त ही है। हाँ, विपस्सना के प्रचार के साथ धीरे-धीरे समाज में पालि के प्रति जागरुकता बढ़ रही है तथा लोग पालि को पाठ्यक्रम में शामिल कराते हुए अपने बच्चों को इसका अध्यापन कराने के इच्छुक हैं, क्योंकि समस्त पालि साहित्य में नैतिक-शिक्षा, शील-सदाचार और शुद्ध-धर्म का स्वरूप ही विद्यमान है। यदि बच्चों को पालि पढ़ाना शुरु कर दिया जाये, तो आने वाली पीढ़ी शील-सदाचार और चारित्रिक दृष्टि से अधिक बलवती होगी। वहीं, छत्तीसगढ़ एक बहु-सांस्कृतिक तथा विविधता से परिपूर्ण प्रदेश है। यहाँ इस भाषा तथा संस्कृति से सम्बद्ध अनेक पुरातात्विक-धरोहरें भी हैं। छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में बौद्ध-धर्म की अनेक धरोहरें मौजूद हैं। सिरपुर सम्पूर्ण विश्व में यहाँ के बौद्ध-स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। मल्हार(बिलासपुर) में प्राप्त 7 से 12 वीं सदी का बौद्धकालीन इतिहास अपनी समृद्धता की दास्तान स्वयं कहता है। इसी प्रकार का साक्ष्य पुरातात्विक खनन से प्राप्त भोंगपाल(बस्तर) का बौद्धकालीन इतिहास देता है। दुर्ग की प्रज्ञागिरी पहाड़ी पर स्थित 30 फुट उंची बुद्ध प्रतिमा शांति और करुणा का संदेश चहुं ओर प्रकाशित करती है। तिब्बति बौद्ध परम्परा का केन्द्र बना मेनपाट; आदि अनेक स्थान हैं, जो बौद्ध-कला, स्थापत्य और इससे सम्बद्ध हैं। जैसे कि सिरपुर साक्षी है, छत्तीसगढ़ किसी समय कला और शिक्षा का बड़ा केन्द्र रह चुका है। भगवान बुद्ध की शिक्षा का छत्तीसगढ़ की धरा से पूरे विश्व में शान्ति स्थापना के लिए सन्देश सम्प्रेरित किया गया।
अतः छत्तीसगढ़ में पालि भाषा के संवर्धन, अनुसन्धान, अध्ययन-अध्यापन और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से स्कूल-कालेजों में पालि पढ़ने-पढ़ाने की सुविधा देना आवश्यक है वहीं, राज्य की राजधानी रायपुर अथवा प्राचीन बुद्धिस्ट स्थल सिरपुर में ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना परम आवश्यक है। अनेक देशों के नागरिक श्रद्धापूर्वक छत्तीसगढ़ की पावन धरा में स्थित धम्म-स्थलों के दर्शन और अनुसन्धान हेतु आते हैं। इस कारण ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ के माध्यम से पालि को वास्तविक रूप में वैश्विक-प्रसार प्राप्त होगा तथा अन्तर्राष्ट्रीय रोजगार की दृष्टि से भी यह अतीव लाभदायक सिद्ध होगा। पालि भाषा के विकास से अवश्य ही छत्तीगढ़ को विश्व के मानचित्रा में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। ‘छत्तीसगढ़ पालि प्रतिष्ठान’ की स्थापना के पश्चात् यह भी आवश्यक है कि यह संस्था वास्तविक रूप में पालि के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से कार्य करें। इस हेतु इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों, प्रभागों तथा केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे भारत का प्राचीन इतिहास पुनर्जीवित हो सकेगा ।
तत्सम्बन्ध में अनुरूप कार्रवाई की अपेक्षा में। धन्यवाद।
दिनाँक
हस्ताक्षर
नाम व पता-
मोब. न.-
सम्बन्धित संस्था का नाम-
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