बुद्ध की खड़ी प्रतिमा
प्रारंभ में, जैसे कि अमरावती आदि के स्तूप और बुद्धविहार(ई. पू. दूसरी सदी) अवशेषों में हम देखते हैं, बुद्ध की राज-मुद्रा में खड़ी प्रतिमा ही थी. राज-मुद्रा में खड़ी यह प्रतिमा संभतया बुद्धकाल में ही कोसम्बी के महाराज उदयन के द्वारा चन्दन की लकड़ी पर तैयार करवाई गयी थी, जिसका उल्लेख ह्वेनसांग ने किया है.
बाद में भी, चाहे गांधार हो या मथुरा, इस कला अनुकरण बड़े पैमाने पर हुआ. किन्तु फिर इस 'राज-मुद्रा' को कब 'ध्यान-मुद्रा' में लाया गया, कब इसकी आँखें बंद की गई, खोज और गहन अध्ययन का विषय है. बहरहाल, चाहे 'ध्यान-मुद्रा' हो या 'अभयमुद्रा' हो, बुद्ध के जीवन से ये कतई मेल नहीं खाती.
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