Sunday, October 4, 2020

करणीय मेत्त सुत्तं

 तिट्ठं चरं निसिन्नो वा, सयानो वा यावतस्स विगतमिद्धो।

Titthañ carañ nisinno vâ, sayâno vâ yâvatassa vigatamiddho

खड़े(तिट्ठं), चलते(चरं), बैठते(निसिन्नो) या लेटे हुए(सयानो), जब तक(यावतस्स) आलस(विगतमिद्धो) नहीं आता

Weather standing or walking, seated or lying down, as long as he is not under sluggishness


एतं  सतिं  अधिट्ठेय्य,  ‘करणीय मेत्तं' इधं आहु।।9।।

Etañ satiñ adhittheyya, 'Karaòiya Mettañ* idhañ âhu

इसी प्रकार(एतं) मैत्री-भाव स्मृति में(सतिं) अधिष्ठित(अधिट्ठेय्य) हो, इसे करणीय-मेत्ता यहां (इध ) कहा(आहु) है।

In this way, let be developed mindfulness; here, this is what called 'Karaniya-Metta',


दिट्ठिं च  अनुपगम्म,  सीलवा  दस्सनेन  सम्पन्नो।

Ditthiñ ca anupagamma, sîlavâ dassanena sampanno

(ऐसा करने वाला नर कभी) मिथ्या-दृष्टि में(दिट्ठिं) न पड़कर(अनुपगम्म), शील और प्रज्ञा-दृष्टि से(सीलवा दस्सनेन) सम्पन्न होकर।

Without falling into any views, being virtuous and endowed with insight


कामेसु विनेय्य गेधं, न हि जातु गब्भ सेय्यं पुनरेति।।10।।

Kâmesu vineyya gedhañ, na hi jâtu gabbha seyyañ punareti.

काम-तृष्णा में(कामेसु), हटाकर(विनेय्य) लोभ(गेधं), नहीं जाता(न हि जातु) है, गब्भ सेय्यं अर्थात भव-सागर में पुनः(पुनर-इति)।

And leaving behind craving for sensuous-desire, never be entangled in the worldly suffering

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