भिक्खुओं के लिए 7 अपरिहाणीय धर्म
"भिक्खुओ! तुम्हे 7 अपरिहाणीय धर्म उपदेश करता हूँ. उन्हें सुनो, कहता हूँ."
"अच्छा भंते !"
"1. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु बार-बार बैठक करने वाले रहेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
2. जब तक भिक्खुओ! एक होकर बैठक करेंगे, एक ही उत्थान करेंगे, एक ही संघ के करणीय को करेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
3. भिक्खुओ! जब तक अप्रज्ञप्तों को प्रज्ञप्त नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त का उच्छेद नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त भिक्खु-नियमों के अनुसार व्यवहार करेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
4. भिक्खुओ! जब तक चिर प्रवजित, संघ के नायक थेर भिक्खु हैं, उनका सत्कार करेंगे, गुरुकार करेंगे, मानेंगे, पूजेंगे, उनको सुनने योग्य मानेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
5. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु तृष्णा के वश में नहीं पड़ेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
6. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु आरण्यक सयनासन की इच्छा वाले रहेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.
7. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु यह याद रखेगा कि अनागत में सुन्दर समण आये, सुख से विहरें, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं(महापरिनिब्बान सुत्त: दीघ निकाय)."
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