देश में लाखों मन्दिर हैं. मन्दिरों में पंडे हैं , पुजारी/ महंत हैं. महंतों के चेले हैं. चेलों के लिए मठ हैं. इन मठों/ मन्दिरों में अकूत सम्पति है. कई मन्दिरों में मन्दिर-ट्रस्ट को नहीं मालूम की उनके पास कितनी सम्पति है, फिर बात चाहे त्रुपति के बालाजी मन्दिर की हो या काशी के भगवन विश्वनाथ मन्दिर की. इसके आलावा मन्दिरों में और भी खेल खेले जाते हैं -
मुग़ल बादशाह औरंगजेब अपने काफिले के साथ बंगाल की ओर कूच कर रहा था. वाराणसी के पास से गुजरते हुए काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं की रानियों ने इच्छा जाहिर की कि वे भगवन विश्वनाथ की पूजा करना चाहती है. रानियों की इच्छा को मुग़ल दरबार तक पहुँचाया गया. बादशाह को इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आयी.औरंगजेब के आदेश से बंगाल की ओर बढ़ता काफिला एक दिन के लिए रुक गया. शहर से करीब 5 -6 मील दूर फ़ौज ने डेरा डाल दिया.
हिन्दू रानियों ने पहले गंगा स्नान किया और फिर पूजा के लिए विश्वनाथ मन्दिर गयी. पूजा के बाद सब रानियाँ वापिस आ गयी मगर, कच्छ की महारानी वापिस लौट नहीं पायी. खोज-बिन की गयी लेकिन महारानी का पता नहीं चला. जब यह खबर मुग़ल दरबार पहुंची तो बादशाह को फ़िक्र हुई . बादशाह ने आदेश दिया कि महारानी का पता हर कीमत पर लगाया जाये. उन्होंने अधिकारीयों को भेजा.
मन्दिर का चप्पा-चप्पा छाना गया.और अंतत: महारानी का पता चल गया. अन्दर मन्दिर की दीवार में गणेश की मूर्ति जड़ी मिली, जिसे अपनी जगह से इधर उधर सरकाया जा सकता था. मूर्ति सरकाने से अन्दर तहखाने में उतरती सीढियाँ दिखी. नीचे महारानी को रोते हुए पाया गया. महारानी के द्वारा पता चला कि उनकी इज्जत लुटी जा चुकी है.
घटना की रिपोर्ट जब औरंगजेब को दी गयी. बादशाह ने हुक्म दिया, भगवन विश्वनाथ की मूर्ति को अन्यत्र स्थापित कर मन्दिर को ढहा दिया जाये और महंत को गिरफ्तार कर दरबार में पेश किया जाए।
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स्रोत: द फीदर्स एंड द स्टोंस (1946): लेखक डा. पट्टाभि सितारमैया
मुग़ल बादशाह औरंगजेब अपने काफिले के साथ बंगाल की ओर कूच कर रहा था. वाराणसी के पास से गुजरते हुए काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं की रानियों ने इच्छा जाहिर की कि वे भगवन विश्वनाथ की पूजा करना चाहती है. रानियों की इच्छा को मुग़ल दरबार तक पहुँचाया गया. बादशाह को इसमें कोई आपत्ति नजर नहीं आयी.औरंगजेब के आदेश से बंगाल की ओर बढ़ता काफिला एक दिन के लिए रुक गया. शहर से करीब 5 -6 मील दूर फ़ौज ने डेरा डाल दिया.
हिन्दू रानियों ने पहले गंगा स्नान किया और फिर पूजा के लिए विश्वनाथ मन्दिर गयी. पूजा के बाद सब रानियाँ वापिस आ गयी मगर, कच्छ की महारानी वापिस लौट नहीं पायी. खोज-बिन की गयी लेकिन महारानी का पता नहीं चला. जब यह खबर मुग़ल दरबार पहुंची तो बादशाह को फ़िक्र हुई . बादशाह ने आदेश दिया कि महारानी का पता हर कीमत पर लगाया जाये. उन्होंने अधिकारीयों को भेजा.
मन्दिर का चप्पा-चप्पा छाना गया.और अंतत: महारानी का पता चल गया. अन्दर मन्दिर की दीवार में गणेश की मूर्ति जड़ी मिली, जिसे अपनी जगह से इधर उधर सरकाया जा सकता था. मूर्ति सरकाने से अन्दर तहखाने में उतरती सीढियाँ दिखी. नीचे महारानी को रोते हुए पाया गया. महारानी के द्वारा पता चला कि उनकी इज्जत लुटी जा चुकी है.
घटना की रिपोर्ट जब औरंगजेब को दी गयी. बादशाह ने हुक्म दिया, भगवन विश्वनाथ की मूर्ति को अन्यत्र स्थापित कर मन्दिर को ढहा दिया जाये और महंत को गिरफ्तार कर दरबार में पेश किया जाए।
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स्रोत: द फीदर्स एंड द स्टोंस (1946): लेखक डा. पट्टाभि सितारमैया
Kya Shriman ji aap to Hamare Hindu Dharma ko nicha dikhane tule huve ho. Apni lekhani ka sadupyog karo na ki Durupyog.
ReplyDeleteSamaj me Ekta Sthapit krne me apni lekhani ka prayog karo. na ki purani bato ko lekar Hindu Samaj ko todne ka.
Jo huva so huva Ab to Ek bane Nek bane.
!!!Jai Hindutva!!!
गुरुतेगबहादुर जी व गुरु गोविन्द सिंह जी के विषय में तथा उनके पुत्रों के विषय में भी कुछ बताएं कि कैसे औरंगजेव ने इन सभी महापुरुषों की निर्मम हत्या करवाई
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