29. 12 . 2013
सबेरे सबेरे धुप्प, कोहरा था छत के पार
अलसायी आँखे खोला , तो रजाई नज़र आयी ।
यह ठीक है के बनाया है, आदम हव्वा ने इस जहाँ को
अगरचे न भी बनाता , तो हम क्या कर लेते।
तुम चलो तो सही , हम तुम्हारे साथ हैं
जहाँ चलना होगा चलेंगे, जहाँ रुकना होगा रुकेंगे।
इस जहाँ के उस पार , शायद और जहाँ हो
मगर, पडोसी मुल्क के न हो सके, तो उसे क्या करेंगे।
तुम करते हो बात तोड़ने की , जमीं से चाँद सितारे
किसी समंदर की लहरों से , कुछ सीख लिया करो
-अ ला उके
-------------------------------------------------------------
सबेरे सबेरे धुप्प, कोहरा था छत के पार
अलसायी आँखे खोला , तो रजाई नज़र आयी ।
यह ठीक है के बनाया है, आदम हव्वा ने इस जहाँ को
अगरचे न भी बनाता , तो हम क्या कर लेते।
तुम चलो तो सही , हम तुम्हारे साथ हैं
जहाँ चलना होगा चलेंगे, जहाँ रुकना होगा रुकेंगे।
इस जहाँ के उस पार , शायद और जहाँ हो
मगर, पडोसी मुल्क के न हो सके, तो उसे क्या करेंगे।
तुम करते हो बात तोड़ने की , जमीं से चाँद सितारे
किसी समंदर की लहरों से , कुछ सीख लिया करो
-अ ला उके
-------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment