पी एन राजभोज
जब कभी मैं, डॉ आंबेडकर के सामाजिक आंदोलन के बारे में पढता हूँ तब, कई जगह पी एन राजभोज का नाम आता है। किसी समय पी एन राजभोज , डॉ बाबा साहब आंबेडकर के लेफ्टिनेंट माने जाते थे। आइए; हम इन हस्ती के बारे में जानने का यत्न करे।दलितों के राजनैतिक हितों की रक्षा के लिए 17 -20 जुला 1942 के नागपुर अधिवेशन में 'आल इण्डिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' की स्थापना की गई थी। मद्रास के राव बहादुर एन शिवराज इसके पहले अध्यक्ष और मुम्बई के पी एन राजभोज महासचिव चुने गए थे।
ब्रिटिश सरकार के केबिनेट मिशन ( जो 24 मार्च 1946 को भारत आया था) की घोषणा में दलित वर्ग के लिए जो देश की जनसंख्या का एक चौथाई भाग है, कुछ नहीं कहा गया था। देश का नया संविधान बनाने के निमित्त मुसलमानों और सिखों को तो संविधान-समिति में जगह दी गई थी। किन्तु , दलितों को इससे बाहर रखा गया था। इस तरह अपनाये जा रहे भेदभाव पूर्ण रवैये से दलित जातियों के बीच भारी रोष था । पी एन राजभोज के नेतृत्व में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने इसके विरोध में देश भर में व्यापक सत्याग्रह का आन्दोलन चलाया था।
दलितों के इस राष्ट्रयापी विरोध को देखते हुए पंडित नेहरु को शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के जे एन मंडल को जो बंगाल से चुने गए थे, अपने अंतरिम मंत्री-मंडल में शामिल करना पड़ा था।
इसी तरह सन 1952 के प्रथम आम चुनाव में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने कुल 34 स्थानों से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में करीमनगर से एम आर कृष्णा और सोलापुर (महाराष्ट्र ) से पी एन राजभोज ने अपनी एतिहासिक जीत दर्ज कराई थी ।
मगर, बाद में पी एन राजभोज कांग्रेस में चले गए थे। धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर वे डा. आंबेडकर से भिन्न मत रखते थे।
यद्यपि कांग्रेस में रह कर पी. एन. राजभोज को कांग्रेस के नेताओं के कथनी और करनी के अंतर को समझने में देर नहीं लगी। दि. 21 मई सन 1940 को भानखेडा (नागपुर ) में इंडीपेंडेंट लेबर पार्टी की एक सभा में उन्होंने इसका खुलासा किया था. यह सभा एडव्होकेट शेंदरे की अध्यक्षता में आयोजित थी.
सभा में पी. एन. राजभोज ने रहस्योद्घाटन करते हुए बतलाया था कि उन्हें गाँधी जी ने उन्हें अपने साबरमती आश्रम ठहराया था. वहां उन्हें उबला हुआ खाना दिया जाता था. वहां शांति और अहिंसा का पाठ पढाया जाता था. दरअसल, आश्रम में उन्हें दलित समाज का 'महात्मा' बनाने की कवायद हो रही थी.
Independent Labor party members with Dr Ambedkar |
पी. एन. राजभोज ने आगे कहा कि डा. आंबेडकर से उनका विरोध धर्मान्तरण के प्रश्न पर था। इस्लाम या सिख धर्म में जाना उन्हें पसंद नहीं था। किन्तु अब, उनकी आँखे खुल गई है. वे बाबा साहेब डा. आंबेडकर का विरोध किये जाने की माफ़ी मांगते है।
एक और कंट्रवर्सरी पी एन राजभोज के साथ जुडी है। रत्नागिरी (महाराष्ट्र ) स्थित पतितपावन मंदिर इन आर्गेनाईजेशन कार्यक्रम में पी एन राजभोज ने महार समाज का होते हुए भी हिंदुओं के शंकराचार्य डॉ कुर्तकोटि की पाद-पूजा की थी।
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