एम सी राजा (1883 - 1943 )
राव बहादूर एम सी. राजा शुरुआत में बाबा साहेब डा. आंबेडकर के सहयोगी थे। वे डा. आंबेडकर के नेतृत्व में काम करते थे। दलितों के प्रश्न पर पृथक निर्वाचन पध्दति की उन्होंने जोरदार शब्दों में वकालत की थी.देश के भावी राज्य घटना के सम्बन्ध में ब्रिटिश 'क्रिप्स योजना' को जो विरोध-पत्र सौपा गया था, उस में डा. बाबा साहेब आंबेडकर के साथ एम सी. राजा के हस्ताक्षर थे. विरोध-पत्र में कहा गया था की दलितों की मांगे मंजूर किये बिना कथित भावी संविधान का कोई अर्थ नहीं है।
भारत की स्वाधीनता के संबंध में लंदन गोलमेज सम्मेलन के द्वितीय सत्र में राव बहादूर श्रीनिवासन के साथ एम सी राजा; डॉ आंबेडकर के साथ शरीक हुए थे।
मगर, बाद में राव बहादूर एम सी. राजा का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया। कांग्रेस में जाकर वे 'ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लासेस असोसिएशन' के अध्यक्ष हो गए थे। कांग्रेस में जाकर एम सी. राजा ने पृथक निर्वाचन पध्दति के सम्बन्ध में अपना स्टेंड बदल दिया था। अब वे कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए 'संयुक्त निर्वाचन पध्दति' का समर्थन करने लगे थे। बदले में वे चाहते थे कि कांग्रेस 'डिप्रेस्ड क्लासेस एसोसिएशन' के उम्मीदवारों लिए कुछ सीटें सुरक्षित रखे।
सनद रहे , एम. सी. राजा के विरोध और संयुक्त निर्वाचन की हिमाकत करने के कारण ही डा. आंबेडकर को 'पूना पेक्ट' पर हस्ताक्षर करने बाध्य होना पड़ा था।
यद्यपि, बाद में एम सी. राजा को अपने करनी पर भारी पछतावा हुआ. मगर, समय बीत चूका था। काश, डा. आंबेडकर पूना पेक्ट पर हस्ताक्षर नहीं करते और पृथक निर्वाचन पध्दति कायम होती तो दलितों की स्थिति निश्चित तौर पर आज दूसरी होती।
एम सी राजा का पूरा नाम राव बहादूर मिलै चिन्ना थंपी पिल्लई राजा था। आपका जन्म 17 जून 1883 को मद्रास (तमिलनाडू) के सेंट थामस माउंट में हुआ था। आप एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। राजा ने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वे स्कूल में टीचर थे।
एम सी राजा उम्र के प्रथम पड़ाव में ही राजनीति में कूद गए थे। वे चिंगलेपुत डिस्ट्रिक बोर्ड के अध्यक्ष बन गए। सन 1916 में वे आदि द्रविड़ महाजन सभा के अध्यक्ष हुए। वे 'साऊथ इन्डियन लिबरल फेडरेशन' के संस्थापकों में एक थे।
तमिलनाडु में जस्टिस पार्टी गैर-ब्राह्मणों की राजनैतिक पार्टी थी। नव. 1920 के प्रथम आम चुनाव में जस्टिस पार्टी के टिकिट पर वे विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। मद्रास लेजिसलेटिव काउन्सिल में वे एक मात्र दलित नेता थे। काउन्सिल में राजा ने मांग रखी थी कि वहाँ की दलित जातियों के लिए 'परइया' या 'पञ्चम' बोलने का निषेध कर अधिकारिक भाषा में 'आदि द्रविड़' या 'आदि आंध्र' कहा जाए।
सन 1921 में जस्टिस पार्टी की सरकार ने पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की बात की थी। इस बिल में दलित जातियों के लिए आरक्षण की बात नहीं थी। राजा ने उक्त बिल का विरोध करते हुए दलित जातियों को भी इस में सम्मिलित करने की मांग की थी। राजा ने अपनी मांग का कोई असर ने देख सन 1923 में पार्टी से स्तीफा दे दिया था।
1922 में राजा सेन्ट्रल असेंबली के लिए मनोनीत हुए थे। तब, वे एक मात्र दलित नेता थे, जो सेन्ट्रल असेम्बली में पहुंचे थे। डॉ आंबेडकर के सम्पर्क में आने के बाद सन 1923 में उन्होंने जस्टिस पार्टी छोड़ दिया था।
22 -24 दिस 1927 को दिल्ली में सामाजिक सुधारों के मुद्दे के आलावा साइमन कमीशन के स्वागत के लिए देश की तमाम दलित जातियों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाया गया था, जिसकी अध्यक्षता रॉव बहादूर एम सी राजा ने की थी। इसमें दलित जातियों के लिए पृथक चुनाव पर भी निर्णय लिया गया था।
सन 1928 में राजा ने 'ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड कास्ट्स एसोसिएशन' की स्थापना की। इसके अध्यक्ष गणेश अक्काजी गवई और संयुक्त महासचिव जी एम थवारे थे। वास्तव में, इसे कांग्रेस ने दलित जातियों में डा आंबेडकर के नेतृत्व को चुनौति के रूप में खड़ा किया था। किन्तु 1942 में एम सी राजा इसे छोड़ कर 'शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन' में शामिल हो गए थे।
वे सन 1926-1937 की अवधि में इम्पेरियल लेजिसलेटिव असेम्बली के सदस्य रहे थे। वे बीच में अप्रेल-जुलाई 1937 के अल्प अवधि के लिए मद्रास प्रेसिडेंसी में कुर्मा वेंकटा रेडी नायडू के अंतरिम केबिनेट में डवलप्मेंट मिनिस्टर रहे थे
सन 1932 में राजा ने इन्डियन नॅशनल कांग्रेस के नेता डॉ बी एस मुंजे औए जाधव से कुछ पेक्ट किया था। इस पेक्ट के अनुसार मुंजे ने राजा के लोगों के लिए कुछ आरक्षित सीटें खाली छोड़ने की पेशकश की थी। कांग्रेस नेताओं के इस ऑफर से डॉ आंबेडकर को अखिल भारतीय स्तर पर दलितों के लिए पृथक चुनाव की मांग को अधिकारिक तौर पर उठाने में काफी बल मिला।
राजा की मृत्यु 20 अग. 1943 को हुई थी।
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