एक बार सिद्धार्थ अपने पिता के खेतों पर गया। विश्राम के समय वह एक वृक्ष के नीचे लेटा हुआ प्राकृतिक शान्ति और सौंदर्य का आनंद ले रहा था। उसी समय आकाश से एक पक्षी ठीक उसके सामने आ गिरा। पक्षी को एक तीर चुभा था। सिद्धार्थ ने तीर निकाला और उसके जख्म पर पट्टी बांधी। तभी उसका ममेरा भाई देवदत्त वहां आ पहुंचा।
"क्या तुमने घायल पक्षी को देखा है ?"
"हाँ।" - सिद्धार्थ ने कहा और वह पक्षी दिखाया जो अब कुछ स्वस्थ हो चला था।
"वह मेरा शिकार है, मुझे दिया जाए।" देवदत्त ने मांग की।
"नहीं, यह तुम्हें नहीं दिया जा सकता। -सिद्धार्थ ने कहा ।
दोनों में काफी विवाद हुआ। देवदत्त का कहना था कि शिकार के नियमों के अनुसार जो पक्षी को मारता है, वही उसका मालिक होता है। इसलिए वही उसका मालिक है।
सिद्धार्थ का कहना था कि यह आधार ही सर्वथा गलत है। जो किसी की रक्षा करता है, वही उसका स्वामी हो सकता है। हत्यारा कैसे किसी का स्वामी हो सकता है ?
"क्या तुमने घायल पक्षी को देखा है ?"
"हाँ।" - सिद्धार्थ ने कहा और वह पक्षी दिखाया जो अब कुछ स्वस्थ हो चला था।
"वह मेरा शिकार है, मुझे दिया जाए।" देवदत्त ने मांग की।
"नहीं, यह तुम्हें नहीं दिया जा सकता। -सिद्धार्थ ने कहा ।
दोनों में काफी विवाद हुआ। देवदत्त का कहना था कि शिकार के नियमों के अनुसार जो पक्षी को मारता है, वही उसका मालिक होता है। इसलिए वही उसका मालिक है।
सिद्धार्थ का कहना था कि यह आधार ही सर्वथा गलत है। जो किसी की रक्षा करता है, वही उसका स्वामी हो सकता है। हत्यारा कैसे किसी का स्वामी हो सकता है ?
No comments:
Post a Comment