दम घूंटते प्रश्न
आजकल, नित नई कॉलोनियां खड़ी हो रही हैं। बढती आबादी को देखते कॉलोनी डेवलपर, नई-नई साइट्स लॉन्च करते हैं। हर कोलोनी में अन्य सुविधाओं के आलावा एक मंदिर भी होता है।
आजकल, नित नई कॉलोनियां खड़ी हो रही हैं। बढती आबादी को देखते कॉलोनी डेवलपर, नई-नई साइट्स लॉन्च करते हैं। हर कोलोनी में अन्य सुविधाओं के आलावा एक मंदिर भी होता है।
पिछले दिनों, अपने कॉलोनी डेवलपर से एक रूटीन मीटिंग के दौरान मैंने सवाल किया - "मैं बुद्धिस्ट हूँ । मैं बुद्ध विहार में ही जाता हूँ। आप बतलाइए कि मैं क्या करूँ ?" कॉलोनी डेवलपर सकपका गया। वह ऐसे प्रश्न के लिए तैयार नहीं था।
"सर, अगर इस तरह मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी मांग करने लगे तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा। हम मकान बनाएँगे कि मंदिर, मस्जिद ?"
"मगर, यह स्पेस तो मुझे आपने ही दिया है, ऐसा पूछने का ? आप अगर एक समुदाय का ख्याल रखते हैं तो दूसरे समुदाय का क्यों नहीं ?"
इसी बीच हमारे एक हिन्दू मित्र ने अपनी कलाई में बंधी घडी की ओर इशार किया और मुझे 'एजेंडा' पर आने की गुजारिश की। दूसरे मित्रों ने भी चट से उसकी हाँ में हाँ मिला दी और मेरा प्रश्न वही दम घूंट कर मर गया।
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