1. विपस्सना
बहोत ही महत्वपूर्ण लेख है, इसे वक्त निकाल के ध्यान से पढ़े जीवन काम्बले ने बड़ी मेहनत से इसे मराठी से हिंदी में भाषांतरित किया है. विपस्सना के बारे में ठीक से समझे और अपनी गलतफहमी दूर करे .
बहोत ही महत्वपूर्ण लेख है, इसे वक्त निकाल के ध्यान से पढ़े जीवन काम्बले ने बड़ी मेहनत से इसे मराठी से हिंदी में भाषांतरित किया है. विपस्सना के बारे में ठीक से समझे और अपनी गलतफहमी दूर करे .
विपस्सना
यह पाली शब्द है पस्सना-
खुली आँखों से देखना, to look, to see with open eyes. वि-
विशेष रूप से, मूल गुण, धर्म, स्वभाव से, नैसर्गिक दृष्टि से देखना.
अपने ' The Buddha & His Dhamma' इस अंग्रेजी किताब में
बाबासाहब ने meditation यह शब्द इस्तेमाल किया है
जिसका अर्थ ध्यान/विपस्सना से है. डॉ आंबेडकर जी ने खुद पाली शब्दकोश लिखा है जो
सरकार ने 16वे खंड में प्रकाशित किया है, उसका अध्ययन समझदार
व्यक्तियों ने करना चाहिए. बाबासाहब
ने त्रिपिटक का अभ्यास कर के ही "The Buddha & His Dhamma" यह महान ग्रंथ हमे दिया है..
त्रिपिटक
के सुत्तपिटक मझ्झिमनिकाय में सतिपठ्ठान सुत्त है. सुत्त मतलब भगवान बुद्ध ने किए
हुए उपदेश. सतिपठ्ठान सुत्त में कायानुपस्सना, चित्तानुपस्सना, वेदनानुपस्सना और धम्मानुपस्सना के बारे में विस्तार से
लिखा है. सतिपठ्ठान सुत्त यह मूल त्रिपिटक का है. भंते सोण मोगलीपुत्त तिस्स, भंते उत्तर ये स्थविरवादी मूल पिटक को माननेवाले थे.
उन्होंने यह सुत्त श्रीलंका ओर ब्रम्हदेश में प्रसारित किए. बाबासाहब ने सतिपठ्ठान
सुत्त का कभी विरोध नही किया. जिनको विपस्सना का सखोल अभ्यास/अध्ययन करना हो
उन्होंने इस सुत्त का गंभीर रूप से अभ्यास करना चाहिए.
त्रिपिटक
यह धम्म की ग्रंथ सम्पदा जो एक theory है तो विपस्सना यह उसका Practical है. इसीलिए Theory
और Practical दोनो का अपना महत्व है.शीलों पर चलने के लिए विपस्सना के
अलावा दूसरा मार्ग नही. जबतक हम शीलों पर नही चलते कम से कम पंच-शीलों का कठोर पालन
नही करते तब तक हम सही मायनों में बौद्ध नही. यह काफी गंभीर विषय पर हमारे बांधव
इसकी गहराई नही समझते. सिर्फ उपदेशों से बुद्ध हो गए होते तो पिछले 60 सालों में पूरा भारत बौद्धमय हो चुका होता. तृष्णाओं से
बाहर निकलो ऐसा कहने मात्र से बाहर निकल गए होते तो इस देश मे कोई दुःखी न होता.
जबकि सभी धर्म तृष्णा, मोह, माया से दूर रहने की सलाह देते है. सिर्फ उपदेश/भाषण से
कुछ भी नही होता. बुद्ध ने अगर सिर्फ उपदेश किया होता तो सभी राजा और रंक उनके
बताए मार्ग पर चले होते क्या ?
प्रत्येक
व्यक्ति बाबासाहब या बुद्ध नही होते. बाबासाहब की लड़ाई यह तनावमुक्ति की लड़ाई है.
महामानव दुःख है करके रुकते नही, तो दुःखमुक्ति का मार्ग खुद
ढूंढते हैं और औरो को उसपर चलने को प्रवृत्त करते है. बुद्ध का तत्वज्ञान ओर
बाबासाहब ने बताया धम्म कभी अलग हो ही नही सकते.
दुनिया के सभी बौद्ध देशो में विपस्सना को मान्यता है. थेरवादी(हीनयान) हो या महायान या तंत्रयान या कोई भी पंथ हो. सिर्फ भारत में ही उसपर वाद किया जाता है ऐसा देखा जा रहा है.
दुनिया के सभी बौद्ध देशो में विपस्सना को मान्यता है. थेरवादी(हीनयान) हो या महायान या तंत्रयान या कोई भी पंथ हो. सिर्फ भारत में ही उसपर वाद किया जाता है ऐसा देखा जा रहा है.
किसीने
बताया इसीलिए करना या न करना इसके बदले खुद की अनुभूति के द्वारा सीखना यही तथागत
की मूल शिक्षा है. जिन्हें
विपस्सना का सही मतलब नही समझा ऐसे कुछ प्रतिष्ठित लोग भी अज्ञान के वजह बाकी
लोगों का बुद्धि-भेद करते हैं, निरर्थक से उदाहरण दे के. तब
अपना समाज क़्यो पीछे रहा इसका जवाब मिलता है.
विपस्सना
मतलब क्या इसे खुद जाने बिन कई लोग खुद की प्रसिद्धि की तृष्णा में विपस्सना का
विरोध कर के धम्म-द्रोह कर रहे हैं और धम्म प्रचार में रोड़े खड़े कर रहे हैं. अविद्या
ओर तृष्णा यह सारी समस्याओं और दुःखो की जड़ है ऐसा तथागत कहते हैं और यहा भी यही
कारण बताया जाता है. अविद्या
ओर फटाफट प्रसिद्धि की तृष्णा के कारण हमारे धम्मबन्धु बेवजह विरोध करते हैं. दुनिया
के अलग अलग धर्म, जाति में अंधविश्वास और
अवैज्ञानिकता से मन पर हुए संस्कार से पूर्वाग्रह के वजह से कई बार लोगो को
विपस्सना के बारे मे गलतफहमी होती है.
इन
विरोधियों को लगता है कि विपस्सना मतलब शांत पड़े रहना, किसी अनैसर्गिक शक्ति की आराधना करना, कर्मकांड करना, तंत्र मंत्र बोलकर आत्मा को
बुलाना, अंधश्रध्दा में डूब जाना
वगैरा वगैरा. विपस्सना
की वजह से संघर्ष की ताकत कम हो के मनुष्य का निष्क्रिय हो जाना यह बहुत बड़ी
गलतफहमी है, पर इसके विपरीत उसके फायदे
कई गुना सकारात्मक है. सही
मायनो में विपस्सना शिबिर में तथागत के पंच-शील, अष्टांगिक मार्ग के
अलावा(शील, समाधि और प्रज्ञा) और 10 पारमिता को छोड़कर अन्य कुछ भी सिखाया नही जाता.
प्रज्ञा, शील, करुणा इन कठिन शब्दो की
व्याख्या खुद के अनुभवों से सिद्ध करने का मार्ग विपस्सना है. जिसके वजह से ही
समता, बंधुत्व और न्याय की दुनिया
निर्माण होनी है. शीलों पर चलकर धम्म अनुसरण में कैसे प्रगति कर सकते है इसका practical और practice किया जाता है.
विपस्सना
मतलब नैसर्गिक रूप से खुद के बारेमे जान लेना. खुद का शरीर और मुख्य मतलब मनपर के
सभी प्रकार के विकार दूर करना मतलब विपस्सना. विपस्सना
के वजह से कार्य लड़ने की ऊर्जा और एकाग्रता बढ़ती है. मनुष्य का मन संयमित होने के
कारण कार्यकुशलता ओर productivity बढ़ती है. पर यह सारी बाते
खुद के अनुभव के बिना समझ नही आएगी.
कई
विरोधक बताते है कि बाबासाहब ने विपस्सना का स्वीकार नही किया, पर उसका एक भी ठोस Reference
दे
नही सकते. कई
बार बाबासाहब के Reference आधे-अधूरे समझ के या बुद्धि
का इस्तेमाल किये बिना ही नजर आते है, क़्यो कि दूसरा कोई भी ठोस
कारण इनके पास नही होता. इसका मतलब यह होता है कि यह लोग पंच-शील, अष्टांगिक मार्ग,
10 पारमिता
इन तीन मूल शिक्षाओं को भी अंधश्रध्दा के वजह से स्वीकारते है. विपस्सना का खुद
अनुभव न लेते हुए खुद को बुद्धिजीवी समझनेवाले धम्मबन्धु ही प्रतीत्यसमुत्पाद का
गहराई से अर्थ न समझ आने के कारण नकारात्मक लिखान कर के धम्म-प्रसार में रोड़े डाल
रहे है.
बुद्ध
जैसे महान धम्मसूर्य को भी प्रतीत्यसमुत्पाद का अर्थ जल्द समझा नही था. इसीलिए ऐसे
लोगो ने गड़बडाना नही चाहिए तो थोड़ी अपनी स्पीड कम करके अभ्यास ओर स्वानुभव ले के
इन बातों को समझना चाहिए.
वास्तविक
विपस्सना यह किसी वाद का विषय है ही नही. धम्म मतलब ज्ञान का अथाह महासागर है.
सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को विशेष महत्व देनेवाले भगवान बुद्ध और उन
वास्तविक विपस्सना यह किसी वाद का विषय है ही नही. धम्म मतलब ज्ञान का अथाह महासागर है. सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को विशेष महत्व देनेवाले "भगवान बुद्ध और उनका धम्म" इस ग्रंथ में बाबासाहब ने कही भी ध्यान, "विपस्सना या अभिधम्म” के ज्ञानसम्बन्धी नकारात्मक भूमिका नही रखी
इसके विपरीत इस संबंध में सकारात्मक ही लिखान किया है. सदर ग्रंथ में 35 से ज्यादा बार meditation का उल्लेख उन्होंने किया है. सदर ग्रंथ के खंड 1, भाग 7 में 'बुद्ध ने क्या स्वीकारा ?" इस प्रकरण पढोगे तो पता चलेगा कि,- चित्तशुद्धि यह धम्म का सार है. पाठकगण इसे जान सकता है कि धम्म का पालन/अनुसरण यह मन का विषय है
वास्तविक विपस्सना यह किसी वाद का विषय है ही नही. धम्म मतलब ज्ञान का अथाह महासागर है. सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को विशेष महत्व देनेवाले "भगवान बुद्ध और उनका धम्म" इस ग्रंथ में बाबासाहब ने कही भी ध्यान, "विपस्सना या अभिधम्म” के ज्ञानसम्बन्धी नकारात्मक भूमिका नही रखी
इसके विपरीत इस संबंध में सकारात्मक ही लिखान किया है. सदर ग्रंथ में 35 से ज्यादा बार meditation का उल्लेख उन्होंने किया है. सदर ग्रंथ के खंड 1, भाग 7 में 'बुद्ध ने क्या स्वीकारा ?" इस प्रकरण पढोगे तो पता चलेगा कि,- चित्तशुद्धि यह धम्म का सार है. पाठकगण इसे जान सकता है कि धम्म का पालन/अनुसरण यह मन का विषय है
डॉ
आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेस में कई बार चित्त शुद्धि करना जरूरी है और यह उसकी
पहली स्टेप है ऐसा उल्लेख भी है. विपस्सना के विरोधको ने इसका क्या अर्थ निकाला
वही जाने...
चित्त शुद्ध करना मतलब क्या? चित्त शुध्द करने के लिए किस डॉ के पास जाना? या किसी तांत्रिक को पकड़ना है क्या? प्रिय विरोधको, इसकी खोज करो और समय व्यर्थ गवा के अगर इसका उत्तर न मिले तो एकबार खुद विपस्सना का अनुभव करो.
चित्त शुद्ध करना मतलब क्या? चित्त शुध्द करने के लिए किस डॉ के पास जाना? या किसी तांत्रिक को पकड़ना है क्या? प्रिय विरोधको, इसकी खोज करो और समय व्यर्थ गवा के अगर इसका उत्तर न मिले तो एकबार खुद विपस्सना का अनुभव करो.
जीवन
मे आनेवाली प्रत्येक अनुकूल या प्रतिकुल परिस्थितियों में अपना चित्त शुध्द ओर
स्थिर रखना महत्वपूर्ण होता है. और चित्त की शुद्धि ओर स्थिरता के लिए ध्यान, विपस्सना यही एकमेव मार्ग है.. विपस्सना से चित्त शुद्ध
होता है, मन से अकुशल संस्कार, अकुशल लेप दूर होकर मन/चित्त योग्य दिशा में ओर कुशल कर्म
में लगता है. विपस्सना मतलब कोई चमत्कार नही. विपस्सना ही सही मायनों में बुद्ध की
शिक्षा, चित्त कुशल करने का प्रभावी
और एकमेव साधन है. श्रुत प्रज्ञा, चिंतन प्रज्ञा ओर भावनामय
प्रज्ञा का फर्क सिर्फ विपस्सना से ही जाना जा सकता है. मैं खुद भी आपकी ही तरह था, उनका सुनकर विपस्सना का विरोध करता था. उसके बाद खूब अनुभव
करने के बाद मेरी बत्ती जली.
आप
भी खुद अनुभव लेकर अगर समझ आये तो स्वीकार करे अन्यथा उसके बारेमे नकारात्मक लिखान
कर के धम्मद्रोह न करे यही विनती है.
मेरे
जैसे skeptical लोगोने खुद अनुभव लेकर
देखना चाहिए. उसके बाद ही अपना मत बनाना चाहिए. क़्यो की इन विरोधको का मत मतलब
खट्टे अंगूर की कहानी के जैसा है. जिन्होंने खुद अंगूर खाये ही नही वो उन्हें
खट्टे बोल रहा है.. आप खुद प्रत्यक्ष 10 दिन का शिविर करे और खुद
प्रयोग कर के अच्छा या बुरा तय करे यही आप से गुजारिश है.
एहि
पस्सिको(आओ और देखो). स्वाद
चखना जरूरी है, जब तक चखेंगे नही समझोगे
कैसे भाई ?बाबासाहब
के पीछे छुपने वालो ने वो ध्यान करते थे इसके और इसके संबंधित कुछ references....
1.. Little facets known about Dr. Babasaheb Ambedkar
By - Nanak Chand Rattu
By - Nanak Chand Rattu
Chapter 3 :Daily Routine, Page No. 60
After the morning ablution he would say his prayers, standing before best of Bhagvan Buddha. Then meditation for a while and a little exercise in variation.
After the morning ablution he would say his prayers, standing before best of Bhagvan Buddha. Then meditation for a while and a little exercise in variation.
2.
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर चरित्र: By - आयु. चांगदेवजी खैरमोडे
खंड-11, पेज क्र. 140/143
खंड - 12, पेज क्र. 106
खंड-11, पेज क्र. 140/143
खंड - 12, पेज क्र. 106
गाझियाबाद अलीपुर रोड
जानेवाले मार्ग, दिल्ली युनिवर्सटी लॉन जैसी
जगह बाबासाहेब 1-2 घंटे ध्यान करते थे. कभी कभी रिडींग रोड के बुद्ध विहार में वे
जाते और आधा घंटा ध्यानमग्न बैठकर वंदना कर के घर जाते थे . बाबासाहेब सारनाथ गए थे तब
वहां बोधिवृक्ष के नीचे आधा घंटा ध्यान किया था.
3. Writings and Speeches of Ambedkar, Vol. 18, Part 3, Page 441.
धमे
१९५५ वैशाख पौर्णिमा, नालासोपारा में दिया गया
बाबासाहेब का भाषण.
सम्यक
स्मृती :- शरीर की सुख-दुखवादी संवेदनांओ का वारंवार अवलोकन करना (यह विपस्सना में
ही किया जाता है केले)
4.
बुद्ध और उनका धम्म
तृतीय
खंड: भाग
चौथा :निब्बाण
पर प्रवचन, धम्म
पर प्रवचन, सम्यक दृष्टी
5.
बुद्ध आणि त्यांचा धम्म
चतुर्थ
खंड ; भाग
तीसरा, धम्म
मतलब,1-
कायानुपश्यना, चित्तानुपश्यना, वेदनानुपश्यना व धम्मानुपश्यना.
8 - विवेकशीलता और एकाग्रता,9 - जागृतता करुणा और धैर्य,
8 - विवेकशीलता और एकाग्रता,9 - जागृतता करुणा और धैर्य,
6. बुद्ध
और उनका धम्म: पृष्ठ
क्र. 177
7. Writings and Speeches of Ambedkar, Vol.-3, Chapter 18
Buddha or Karl Marks Page - 461-462.
Buddha or Karl Marks Page - 461-462.
8. Writings and Speeches of Ambedkar, Vol - 16, Pali
dictionary, Page No. 415.
9. Es sense of Buddhism: By - Pro. P lakshmi Narasu
इस
ग्रंथ की प्रस्तावना में बाबासाहब कहते है कि यह ग्रंथ जो पढ़ेगा उसका कोई नुकसान
नही होगा इसकी मुझे शाश्वती है. पाठकों
ने यह ग्रंथ अध्ययन करना चाहिए. वही यह वाद खत्म हो जाएगा.
आज
सभी जाति धर्म और संप्रदाय के लोगो को विपस्सना आकर्षित कर रही है. ऐसा इसीलिए हो
रहा है क़्यो कि मन किसी भी जात धर्म या सम्प्रदाय से नही चलता. विपस्सना मन को
समझकर उसका अपने जीवन मे इस्तेमाल कैसे यह सिखाती है, किसी भी धर्म, जाती, सम्प्रदाय के लेबल न लगाते कोई भी विपस्सना कर सकता है.
ऐसी परिस्थिति में उसका विरोध कर के धम्मद्रोह न करे यही विनती है..
"1956 की धम्म-दिक्षा आयोजन के दौरान दिक्षाभुमी में भी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने ध्यान किया था" ऐसा उस आयोजन में आये भंते पुज्य प्रज्ञानंद भंतेजी कहते है.
अविनाश पवार: बुद्ध धम्म अनुसरण संघ: BDAS (बुद्ध धम्म अनुसरण संघ ®) facebook group"
Follow given links ..
- विपश्यना
सर्व प्रथम मी सतीश घेवंदे यांची क्षमा मागतो, त्यांची पूर्व परवानगी न घेता त्यांचा हा विपश्यने वरील अप्रतिम लेख पोष्ट करीत आहे. ही पोष्ट खुप मोठी आहे, सर्वांनी वेळ काढुन शांत चित्ताने ही पोष्ट वाचावी.
सर्व प्रथम मी सतीश घेवंदे यांची क्षमा मागतो, त्यांची पूर्व परवानगी न घेता त्यांचा हा विपश्यने वरील अप्रतिम लेख पोष्ट करीत आहे. ही पोष्ट खुप मोठी आहे, सर्वांनी वेळ काढुन शांत चित्ताने ही पोष्ट वाचावी.
आजकाल
जो तो उठतो आणि विपश्यनेला विरोध करतो यांचे मुख्य कारण यांनी कधीच विपश्यने चा
अभ्यास केलेला नसतो, यांना
विपश्यना चे अ ब क ड सुध्दा माहित नसते यांचा बुध्द धम्मा वर सखोल अभ्यास नसतो, मोजकेच वाचन केले की हे
स्वत:ला मोठे लेखक समजतात आणि विपश्यनेला खालच्या स्थराला जावुन विरोध करतात.
यांचे म्हणने बाबासाहेबांनी आणि भ.बुध्दाने सुध्दा विपश्यना नाकारली,
बाबासाहेबांनी विपश्यना नाकारली यांचे कुठेच ठोस पुरावा नाही, बाबासाहेबांनी विपश्यना केली नाही हे बरोबर आहे, या मागील कारण ही तेवढेच महत्वाचे आहे कारण बाबासाहेबां असंख्य कामे असायची त्यांना विपश्यना शिबिर करायला पुरेसा वेळ नव्हता. दूसरे कारण बाबासाहेबांनी 1956 बुध्द धम्माची दिक्षा दिलि त्या वेळेस विपश्यना भारतातुन मृतप्राय झालेली होती, गोयनका गुरूजींनी वर्ष 71-72 मधे पुन: भारतात आनली गोयनका गुरूजी वारंवार आपल्या प्रवचनात सांगतात. बाबासाहेब लिखित बुध्द आणि त्याचा धम्म हा संपूर्ण त्रिपीटक नाही, जेवढे समजेल तेवढेच या ग्रंथात उल्लेख केलेला आहे. बुद्ध आणि त्यांचा धम्म हा ग्रंथ लिहायला जवळपास तिन वर्ष लागली जर संपूर्ण त्रिपीटक लिहायला किती वर्ष लागली असती.
आज विपश्यना च्या माध्यमातुन असंख्य लोक बुध्द धम्मा कडे वळत आहेत. असंख्य विपश्यना केंद्र केवळ भारतात नव्हे तर संपूर्ण विश्वात उघडले जात आहेत. लाखों भारतीय लोक यांचा लाभ घेत आहेत.
सतीष घेवंदे या 20-22 वर्षाच्या युवकाने विपश्यने चा सखोल अभ्यास केला आहे त्यांचाच हा हा लेख मी पुन: पोष्ट करीत आहे, ही पोष्ट वाचल्यानंत्तरही आपला विपश्यनेला विरोध असेल तर बुध्द धम्म अधोगती ला गेल्याशिवाय राहनार नाही.
बाबासाहेबांनी विपश्यना नाकारली यांचे कुठेच ठोस पुरावा नाही, बाबासाहेबांनी विपश्यना केली नाही हे बरोबर आहे, या मागील कारण ही तेवढेच महत्वाचे आहे कारण बाबासाहेबां असंख्य कामे असायची त्यांना विपश्यना शिबिर करायला पुरेसा वेळ नव्हता. दूसरे कारण बाबासाहेबांनी 1956 बुध्द धम्माची दिक्षा दिलि त्या वेळेस विपश्यना भारतातुन मृतप्राय झालेली होती, गोयनका गुरूजींनी वर्ष 71-72 मधे पुन: भारतात आनली गोयनका गुरूजी वारंवार आपल्या प्रवचनात सांगतात. बाबासाहेब लिखित बुध्द आणि त्याचा धम्म हा संपूर्ण त्रिपीटक नाही, जेवढे समजेल तेवढेच या ग्रंथात उल्लेख केलेला आहे. बुद्ध आणि त्यांचा धम्म हा ग्रंथ लिहायला जवळपास तिन वर्ष लागली जर संपूर्ण त्रिपीटक लिहायला किती वर्ष लागली असती.
आज विपश्यना च्या माध्यमातुन असंख्य लोक बुध्द धम्मा कडे वळत आहेत. असंख्य विपश्यना केंद्र केवळ भारतात नव्हे तर संपूर्ण विश्वात उघडले जात आहेत. लाखों भारतीय लोक यांचा लाभ घेत आहेत.
सतीष घेवंदे या 20-22 वर्षाच्या युवकाने विपश्यने चा सखोल अभ्यास केला आहे त्यांचाच हा हा लेख मी पुन: पोष्ट करीत आहे, ही पोष्ट वाचल्यानंत्तरही आपला विपश्यनेला विरोध असेल तर बुध्द धम्म अधोगती ला गेल्याशिवाय राहनार नाही.
सतीष
घेवंदे यांची पोष्ट.
विपश्यना
म्हणजे विशेष रूप ने स्वत:चा श्वास पाहने ही भगवान बुद्धाचा उपदेश आहे. तो
मज्जिम निकाय च्या सतीपत्ठान सूत्तात आहे.डॉ बाबासाहेब अम्बेडकरानी बुद्ध आणि
त्यांचा धम्म ग्रंथात धम्म म्हणजे काय? या प्रकरणात हा उपदेश
नमूद केला आहे. आपले
काही गैर-समज असतिल तर दूर करण्याचा अल्प्सा प्रयत्न करतो
विपश्यना शिबिर म्हणजे एक कार्यशाला आहे.तेथे धम्म प्रशिक्षण असते.अंधश्रद्धा मुळीही नसते.तिन रत्नास शरण व पन्च्शिलाची शपथ घेवुन
ही कार्यशाळा सुरू होते.
विपश्यना शिबिर म्हणजे एक कार्यशाला आहे.तेथे धम्म प्रशिक्षण असते.अंधश्रद्धा मुळीही नसते.तिन रत्नास शरण व पन्च्शिलाची शपथ घेवुन
ही कार्यशाळा सुरू होते.
1
🍯2
🍯3
🍯4
🍯5
🍯6
🍯7
🍯8
🍯9
🍯10
🍯विपश्यना शिबिरात 10 पारमिता
व पंचशील अष्टांगमार्गआणिमैत्रीभाव
याचेही प्रशिक्षण दिले जाते.
पारमिता काय आहेत ? त्या कशा पूर्ण होतात हे अनेकांना माहीत नाही. विपश्यना शिबिरात 10 दिवस शिबिरात पारमिता कशा विकसित होतात सांगतात. पारमिताबद्दल विपश्यना शिबिराशिवाय कुठही मार्गदर्शन केले जात नाही. विपश्यना शिबिरात विपश्यनाशिवाय पंचशील,अष्टांगमार्ग ,मैत्रीभावना आणि पारमिता चे सुध्दा प्रशिक्षण दिले जाते. जे कुठेच मिळत नाही. हे दहा सद्गुण म्हणजे दहा पारमिता होय .
पारमिता काय आहेत ? त्या कशा पूर्ण होतात हे अनेकांना माहीत नाही. विपश्यना शिबिरात 10 दिवस शिबिरात पारमिता कशा विकसित होतात सांगतात. पारमिताबद्दल विपश्यना शिबिराशिवाय कुठही मार्गदर्शन केले जात नाही. विपश्यना शिबिरात विपश्यनाशिवाय पंचशील,अष्टांगमार्ग ,मैत्रीभावना आणि पारमिता चे सुध्दा प्रशिक्षण दिले जाते. जे कुठेच मिळत नाही. हे दहा सद्गुण म्हणजे दहा पारमिता होय .
1) शील:- शील म्हणजे नित्तिमता धम्मानुसार
वाईट गोष्टी टाळणे आणि चांगल्या गोष्टी
करणे म्हणजे शील! 2) दान:- परतफेडीची अपेक्षा न करता दुसऱ्याच्या
भल्यासाठी आवयशक तो त्याग करणे. 3) उपेक्षा:- म्हणजे अलिप्तता, अनासक्ति, फलप्राप्तिने विचलित न
होणे. निरपेक्षपने सतत प्रयत्न करीत राहणे. 4) नैक्षम्य :- म्हणजे स्वःच्या व इतरांचे उज्वल व्यक्तिमत्त्व
निर्मितीत बाधा आणणाऱ्या ऐहिक सुखाचा त्याग. 5) वीर्य:- म्हणजे हाती घेतलेले काम पूर्ण
शक्ति पणाला लावून पूर्ण करणे. 6) शांति:-
म्हणजे क्षमाशीलता. द्वेषाने द्वेष संपत नाही.
द्वेष क्षमाशीलतेने संपतो. 7) सत्य:-म्हणजे खरे असणे. खरे बोलणे. 8)अधिष्ठान:-
म्हणजे ध्येय गाठण्याचा दृढ़ निश्चय. 9) करुणा:- म्हणजे सर्व प्राणी व मानवाविषयी दयाशीलता, करुणा. 10 ) मैत्री:-म्हणजे सर्व जिवमात्राविषयीबंधुभाव.
हे दहा सद्गुण तथागत
बुद्धाने सांगितले आहे ...
धम्म वंदना व विपश्यना-
उत्तमनंगेन वंदे ह,धम्मच तिविध वर,
धम्मो यो खलीतो दोसो,धम्मो खमंतू त मम.
धम्म वंद्ने तिल हे एक कडवे आहे. याचा मराठी अर्थ होतो,तिन प्रकारच्या उत्तम धम्मा ला मी नतमस्तक होऊन वंदन करतो.माझ्या कडून काही अकुशल कार्य झाले असेल तर मला धम्माने मला क्षमा करावी.
बुद्धाने दिलेले उपदेश म्हणजे धम्म. धम्मची तिविध वर म्हणजे तिन प्रकारे धम्म आहे
1)परीयत्त्त्ती 2) पटिपत्त्ती 3) पटिवेदण
धम्म वंदना व विपश्यना-
उत्तमनंगेन वंदे ह,धम्मच तिविध वर,
धम्मो यो खलीतो दोसो,धम्मो खमंतू त मम.
धम्म वंद्ने तिल हे एक कडवे आहे. याचा मराठी अर्थ होतो,तिन प्रकारच्या उत्तम धम्मा ला मी नतमस्तक होऊन वंदन करतो.माझ्या कडून काही अकुशल कार्य झाले असेल तर मला धम्माने मला क्षमा करावी.
बुद्धाने दिलेले उपदेश म्हणजे धम्म. धम्मची तिविध वर म्हणजे तिन प्रकारे धम्म आहे
1)परीयत्त्त्ती 2) पटिपत्त्ती 3) पटिवेदण
अ)परीय्त्त्त्ती
म्हणजे सिद्धांत, अभ्यास
धम्म साहित्याचाअभ्यास
2)पटिपत्त्त्ती
म्हणजे प्रॅक्टिकल, विपश्यना
ध्यान ,धम्म
आचरण ,संस्कार
ई.
3)पटिवेद्न
म्हणजे अनुभूती,संवेदना
जानने व धम्म अनुभूती ई.
धम्म
हा पोपटपंछी नाही.तर तो अनुभूती द्वारे समजून घ्यावा लागतो.भ बुद्धाने धम्म
सांगितला त्याचे प्रॅक्टिकल सतीपत्ठान सूत्तात सांगितले त्यातून अनुभव घ्यायचा
मार्ग सांगितला .म्हणूनच *उत्तमंगेन वंदेह धम्मच तिविध वर* धम्म वंद्नेत म्हटले
आहे *मानवाच्या कल्याणाचा मार्ग*
विपश्यना-
विपश्यना-
निर्वाण
प्राप्त करणे म्हणजे निर्मळ मनाची अवस्था प्राप्त करणे .त्या साठी एकमेव मार्ग
बुद्धाने सांगितला तो म्हणजे सतीपत्ठान .स्म्रुतिची प्रतिष्ठापणा करणे.म्हणजे
विपश्यना .हे ध्यान हिंदू पद्धतीचे नसून बुद्धाच्या उपदेशाचे आहे.ध्यान या शब्दा
मुळे गैरसमज होवू देवू नये.
भगवान
बुध्द हे महान मनोवैज्ञानिक आणि संशोधक होते. त्यांनीच ही *विपश्यना* विधी अडीच
हजार वर्षापूर्वी शोधून काढली. *विपश्यना* भगवान बुध्दांने संशोधीत केलेल्या सत्य
आणि प्रज्ञेचा प्रत्यक्ष अनुभव या अभ्यासानेच घेतलेला आहे. म्हणूनच त्यांनी आपल्या
शिकवणुकीत.मनाच्या निर्मळतेवर अर्थात त्या साठी *ध्यानावरच* विशेष भर दिला आहे.
*विपश्यना* ही ध्यानविधी अगदी सोपी आणि साधी आणि तितकीच अवघड असून अद्वितीय आहे. ती एक निखळ सुख आणि मन:शांती मिळवून देणारी तर्कसंगत अशी साधना आहे.
या साधनेच्या अभ्यासाने स्वत:च्या शरीर व मनात खोलवर दडलेल्या समस्यांची उकल होऊन, त्या दूर होण्यास मदत होते. आपल्यामधील सुप्त शक्तींचा विकास होतो. त्या शक्तीचा उपयोग स्वत:च्या व इतरांच्या कल्याणासाठी करता येतो. या साधनेद्वारे केवळ शारीरिक समस्या दूर होतात, असे नाही तर जीवनात मोठा क्रांतीकारी मानसिक बदल सुध्दा घडून येतो.
ही कल्याणकारी विद्या भारतातून जगात पसरली. गुरु-शिष्य परंपरेच्या माध्यमातून ही विद्या ब्रम्ह देशात मागील 2500/2600 वर्षांपासून परम परिशुद्ध स्वरूपात जतन करण्यात आली. परमपुज्य सत्यनारायन गोयंका गुरुजी यांनी ही विधी ब्रम्हदेशातून भारत देशात आणून नाशिक जवळील इगतपुरी येथे व देशातील आणि जगातील इतर अनेक ठिकाणी दहा दिवसाच्या शिबिरातून प्रशिक्षित आचार्यांच्या माध्यमातून शिकवीत आहेत.
*विपश्यना* ही ध्यानविधी अगदी सोपी आणि साधी आणि तितकीच अवघड असून अद्वितीय आहे. ती एक निखळ सुख आणि मन:शांती मिळवून देणारी तर्कसंगत अशी साधना आहे.
या साधनेच्या अभ्यासाने स्वत:च्या शरीर व मनात खोलवर दडलेल्या समस्यांची उकल होऊन, त्या दूर होण्यास मदत होते. आपल्यामधील सुप्त शक्तींचा विकास होतो. त्या शक्तीचा उपयोग स्वत:च्या व इतरांच्या कल्याणासाठी करता येतो. या साधनेद्वारे केवळ शारीरिक समस्या दूर होतात, असे नाही तर जीवनात मोठा क्रांतीकारी मानसिक बदल सुध्दा घडून येतो.
ही कल्याणकारी विद्या भारतातून जगात पसरली. गुरु-शिष्य परंपरेच्या माध्यमातून ही विद्या ब्रम्ह देशात मागील 2500/2600 वर्षांपासून परम परिशुद्ध स्वरूपात जतन करण्यात आली. परमपुज्य सत्यनारायन गोयंका गुरुजी यांनी ही विधी ब्रम्हदेशातून भारत देशात आणून नाशिक जवळील इगतपुरी येथे व देशातील आणि जगातील इतर अनेक ठिकाणी दहा दिवसाच्या शिबिरातून प्रशिक्षित आचार्यांच्या माध्यमातून शिकवीत आहेत.
विपश्यना
शिबिरात-
पहिला अभ्यास *आनापानसतीचा* (श्वासा चे निरीक्षण) व दुसरा *विपश्यना* (स्वत:च्या शरीरातील प्रत्येक पेशीत उमटणार्या संवेदनाचे निरीक्षण) आणि तिसरी *मंगल मैत्री* (विश्वातल्या सर्व प्राण्यांप्रति मंगल भाव करणे) शिकवले जाते.
*आनापानसती विपश्यनाचा* प्रारंभीक भाग आहे. ही एक प्राथमिक क्रिया आहे. म्हणून या शिबिरात सुरुवातीला *आनापानसती* शिकवून मनाच्या एकाग्रतेचा अभ्यास आणि सराव केल्या जाते. हा अभ्यास *विपश्यना* साधनेची पूर्वतयारीच असते. आन म्हणजे अश्वास, अपान म्हणजे प्रश्वास व सती म्हणजे सजगता. म्हणजेच येणार्या व जाणार्या श्वासावर लक्ष ठेवणे. म्हणजेच या अभ्यासात शरीरात नाकावाटे सहज आणि स्वाभविक येणारा तसेच बाहेर पडणारा श्वासावर लक्ष केंद्रित केल्या जाते. आपले मन जागृत ठेवले जाते.
*विपश्यनाला* पाली भाषेत *विपस्सना* म्हटले जाते. त्यात वि आणि पस्सना असे दोन शब्द आहेत. वि म्हणजे विशेष रुपाने आणि पस्सना म्हणजे जाणणे, पाहणे किवा अनुभूती घेणे. म्हणजेच जग जसे आहे तसे पाहणे. जगाची वास्तवता समजून घेणे. सर्व बाबींना त्यांच्या मुळ गुण-धर्म-स्वभावात पाहाणे (सत्यदर्शन) म्हणजे *विपश्यना*.
या विधीत आपल्या स्वत:च्या शरीरात उत्पन्न होणार्या सर्वसामान्य, नैसर्गिक संवेदनाचे पध्दतशीर व नि:पक्षपातीपणे निरीक्षण केल्या जाते. कारण संवेदनाच्या आधारेच आपल्याला प्रत्यक्ष सत्याची अनुभूती होते. *विपश्यना* करतांना शरीर आणि मनाचे संपूर्ण सत्य अनुभवाच्या पातळीवर समजून घेतल्या जाते. *विपश्यनामुळे* मनाच्या खोल गाभ्यात बदलांची प्रक्रिया सुरु होते.
कोणत्याही समस्येचे मूळ आपल्या मनात असल्याने तिच्याशी मानसिक स्तरावरच सामना केला पाहिजे. म्हणून *विपश्यनेच्या* माध्यमातून मनावर संस्कार करण्याचा अभ्यास *विपश्यना* शिबिरात शिकविले जातात. हा अभ्यास अत्यंत गांभिर्याने, नैसर्गिक वातावरणात आचार्याच्या मार्गदर्शनात भारतात आणि परदेशात वैज्ञानीक पद्धतीने शिकविल्या जाते.
मन हे सतत भरकटत असते. चवताळलेला हत्ती काहीही नुकसान करू शकतो, पण त्याला जर काबूत ठेवले तर तो चांगल्या कामात उपयोगी पडू शकतो. तसेच मनाचे आहे. मनाला काबूत ठेवण्यासाठी *विपश्यना* हे एक चांगले साधन आहे. आपले चित्त, मन एखाद्या गोष्टीवर अथवा कार्यावर एकाग्र करणे, त्या कार्याप्रती पूर्णपणे जागृत राहणे व ते कार्य सर्वशक्तीनिशी पार पाडणे हे *आनापानसतीचा, विपश्यनाचा आणि मंगल मैत्री* चा अभ्यास करणारे चांगल्या रीतीने करू शकतात.
ह्या अभ्यासाने आपले जीवन किती अनित्य आहे, क्षणभंगुर आहे. या गोष्टीची अनुभूती च्या स्तरावर जाणीव होत असते. म्हणून या ध्यानात एकाग्रता, जागरूकता व प्रज्ञा या गोष्टींचा लाभ होतो.
सत्याच्या अनुभूतीचा एकमेव मार्ग म्हणजे स्वत :च्या अंतर्मनाचे आपण स्वत:च केलेले निरीक्षण होय. म्हणून भगवान बुद्धांनी सांगितलेला हा मार्ग आत्मनिरीक्षणाचा, स्वत:ला शास्त्रीय पद्धतीने तपासण्याचा मार्ग आहे. त्यामुळे आपल्या स्वत:च्या स्वभावाचे ज्ञान करून आपल्यामधील दोष, विकार नष्ट करता येतात. अंतर्मनातील अंधकार दूर करता येते. निसर्गाचे नियम अनुभवातून समजून घेता येते. या अभ्यासाने दु:ख, प्रक्षुब्द व ताणतणाव निर्माण करणारे कारणे शोधून त्याला नष्ट करता येतात. त्यामुळे आपले मन शुध्द, शांत व आनंदी होत जाते.
भगवान बुध्दांनी आपल्या मनाच्या तीक्ष्ण एकाग्रतेने आपल्या मनाच्या खोलीत शिरून सत्याचा तळ गाठला. त्यांना आढळले की, आपले शरीर अत्यंत लहान लहान परमानुंचे बनले आहे. ते सतत उत्पन्न होवून नष्ट होत असतात. म्हणजेच जीवनाच्या अनित्यतेची जाणीव होते. अनित्यतेची जाणीव झाल्याने मनुष्य कुशल कर्मे करण्याकडे वळतो. स्वतःतील दोष कमी करण्याचा प्रयत्न करतो. आपल्या मनातील राग, द्वेष, मोह, तृष्णा, वासना, लोभ, भय इत्यादी विकार दूर होऊ लागतात. उर्वरित आयुष्य दु:खात घालविण्यापेक्षा सुख आणि आनंदात जाते. असे अनेक फायदे *विपश्यना ध्यान साधनेने* मनुष्याला प्राप्त होतात.
शरीरातील प्रत्येक कण परिवर्तनीय व बदलत असल्याने ‘मी’ ‘माझा’ असे म्हणावे असे काहीच स्थिर राहात नाही, हे सत्य साधकाच्या लक्षात येते. त्यामुळे अनात्मतेचा बोध होतो. आणखी एक सत्य साधकाला स्पष्ट होते ते असे की, ‘मी’ व ‘माझे’ ची आसक्ती हीच तर दु:ख निर्मिती चे कारण आहे. ह्या सार्या गोष्टी कोणी सांगितले म्हणून नव्हे तर आपल्या स्वत:च्या अनुभवावरून संवेदनाच्या निरीक्षणामुळे समजू लागतात.
या अभ्यासात शिकविले जाते की, शरीरात उमटणार्या संवेदनावर कोणतीही मग ती सुखद असो, दु:खद असो की, सुखद-दु:खद असो – प्रतिक्रिया व्यक्त न करता नि:ष्पक्ष राहून केवळ निरीक्षण केल्याने दुखा:च्या आहारी जात नाही. कारण संवेदना सतत बदलत असतात. त्या कायम राहत नाही. उदय होणे, व्यय होणे हा तिचा नैसर्गिक स्वभाव असल्याचे जाणवते. म्हणून सजगता व समतेत राहिल्याने आपण दुख:मुक्त होऊ शकतो, ही गोष्ट साधकाच्या लक्षात येते.
तसेच प्रत्येक संस्कार उत्पन्न होते, लय पावते. ते परत उत्पन्न होते, लय पावते. ही क्रिया सतत सुरु राहते. आपण प्रज्ञेचा विकास करून तटस्थपणे निरीक्षण केल्यास, संस्काराची पुनर्निर्मिती थांबते. आताच्या आणि पूर्वसंचित संस्काराचे उच्चाटन झाले की, आपण दुख:मुक्तीचा आनंद उपभोगू शकतो, हेही साधकाच्या लक्षात येते.
संवेदनापासून तृष्णे ऐवजी प्रज्ञाच विकसित होते. प्रज्ञेमुळे दुखा:ची साखळी तुटते. राग व द्वेषाच्या नवीन प्रतिक्रिया निर्माण होत नाहीत. त्यामुळे दुख: निर्माण होण्याचे कारणच उरत नाही. मनाच्या दोलायमान स्थितीत घेतलेले निर्णय ही एक प्रतिक्रियाच असते. ती सकारात्मक कृती राहत नसून ती एक नकारात्मक कृती बनते.
ज्यावेळी मन शांत व समतोल असते. तेव्हा घेतलेले निर्णय हे कधीही दुख:दायक नसतात तर ते आनंददायकच असतात. जेव्हा प्रतिकिया थांबतात, तेव्हा तणाव दूर होतात. त्यावेळी आपण जीवनातील खरा आनंद उपभोगू शकतो, याची साधकाला प्रचीती येते.
आपण सुखी व आनंदित झालो की, असेच सुख आणि आनंद दुसर्यालाही मिळावे म्हणून कामना करतो. सर्वांचे कल्याण होवो, सर्व दुख:मुक्त होवोत, हीच तर *विपश्यना ध्यान साधनेचा* उद्देश आहे. यालाच *मेत्ता भावना* म्हणजेच ‘मैत्री भावना’ म्हणतात.
भगवान बुद्धांनी या अभ्यासाद्वारे जाणले की, मनुष्याला होणारे दु:ख हे काही दैवी कारणाने होत नसते. तर त्याला जसे इतर कोणत्याही गोष्टी कारणाशिवाय घडत नाहीत, तसे दु:खाला सुध्दा कारणे आहेत.
भगवान बुद्धांनी अखिल मानवाला दु:खमुक्त होण्यासाठी चार आर्यसत्य व अष्टांगिक मार्गाची शिकवण दिली. चार आर्यसत्यामध्ये दु:ख. दु:खाची कारणे, दु:खाचा निरोध आणि दु:ख नष्ट करण्याचा मार्ग म्हणजेच आर्य अष्टांगिक मार्ग यांचा समावेश आहे. अष्टांगिक मार्गामध्ये सम्यक दृष्टी, सम्यक संकल्प, सम्यक वाचा, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृती व सम्यक समाधी याचा समावेश होतो. आपले शरीर निरोगी ठेवण्यासाठी जसे शारीरिक व्यायाम करतो, तसेच मनाला निरोगी ठेवण्यासाठी मनाचा व्यायाम म्हणजे ही *विपश्यना* साधना होय.
जागतिक आरोग्य संघटनेने म्हटले आहे की, जो व्यक्ती शरीराने आणि मनाने निरोगी आहे, अशा व्यक्तीला सुदृढ आणि सक्षम म्हटल्या जाते. *विपश्यना* साधनेमध्ये मानवी मन हे केंद्रस्थानी आहे. शरीरावर होणार्या प्रतिक्रिया ह्या मनातून निर्माण होतात. म्हणून मन हे निरोगी असेल तरच शरीर निरोगी राहण्यास मदत होते.
ही वैज्ञानीक साधना शिकण्यासाठी विविध भाषा, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग असलेले लोक मोठ्या प्रमाणात आकर्षित होत आहेत. त्यामुळे जातीय सलोखा निर्माण होण्यात या विधीचा मोठा हातभार लागत आहे.
आज दहशतवाद व अण्वस्त्राच्या भीतीने जगात अशांतता व अस्वस्थता निर्माण होत आहे. तेव्हा जगात शांतता नांदण्यासाठी *विपश्यना* विधीची फार मोठी मदत होत आहे. जगात ठिकठिकाणी *विपश्यना* केद्रे स्थापन होत आहेत. त्यामुळे ह्या विधीचा सार्या जगात झपाट्याने प्रसार होत आहे.
भारतातील पहिल्या महिला आय.पी.एस. अधिकारी किरण बेदी यांनी *कैद्यांसाठी विपश्यना* अभ्यासाची व्यवस्था केली होती. त्यामुळे गुन्हेगारी जग सुधारण्यास या विधीचा उपयोग होत आहे.
शासन त्यांच्या अधिकार्यांना ही विद्या शिकता यावी म्हणून *विपश्यना* शिबिराला पाठविण्याची व्यवस्था करीत आहेत. प्रशासकीय कामे करतांना मानसिक तणाव दूर होतो. ही विधी शिकतांना भगवान बुद्धांनी सांगितलेला शील-समाधी-प्रज्ञा तसेच पंचशीलेची शिकवण मिळत असल्याने साधक वर्ग नीतीमान बनत असतो. त्यामुळे भ्रष्टाचाराला वाव राहत नाही. वक्तशीरपणा, प्रामाणीकपणा हे गुण साधक वर्गात वाढीस लागत आहेत.
लहान मुलांपासून ते मोठ्या माणसापर्यंत आज शिबिरे आयोजीत होत आहेत. त्यामुळे मैत्री, करुणेचे भगवान बुध्दाचे तत्वज्ञान जनमानसात रुजत आहेत. सामाजिक सलोखा निर्माण होण्यास तसेच आजच्या अनैतिक जगात माणसाला सदाचारी, चारीत्रवान, निरोगी बनविण्यासाठी या विधीचा फार मोठा हातभार लागत आहे.
*विपश्यनेचा* व्यक्तिगत दृष्टीने नियमित अभ्यास केल्याने मनातील राग, द्वेष, मोह, तृष्णा, वासना, लोभ, भयं असे विकार नष्ट होतात. त्यामुळे दु:ख आणि विकारातून मुक्त होवून मानवाचे कल्याण होते. तसेच सामाजिक दृष्टीने विशुद्धी, पावित्र, सदाचार, नैतिकतेचा पाया मजबूत होवून समाजविकास घडून येतो.
आज जगासमोर उपासमार, गरिबी, जातीयवाद, हिंसाचार, दहशतवाद, हुकूमशाही, युध्दजन्य परिस्थिती असे जे भयावह स्थिती दिसत आहेत, त्याला शांत करण्यासाठी भगवान बुध्दाचे समता, स्वातंत्र, बंधुत्व व न्याय तसेच अहिंसा, प्रज्ञा, शील, करुणा व मैत्रीचे तत्वज्ञान म्हणजेच *विपश्यना विधी* हेच एकमेव उत्तर आहे. म्हणून *विपश्यना* साधना ही मानवी कल्याणाचा मार्ग आहे.
पहिला अभ्यास *आनापानसतीचा* (श्वासा चे निरीक्षण) व दुसरा *विपश्यना* (स्वत:च्या शरीरातील प्रत्येक पेशीत उमटणार्या संवेदनाचे निरीक्षण) आणि तिसरी *मंगल मैत्री* (विश्वातल्या सर्व प्राण्यांप्रति मंगल भाव करणे) शिकवले जाते.
*आनापानसती विपश्यनाचा* प्रारंभीक भाग आहे. ही एक प्राथमिक क्रिया आहे. म्हणून या शिबिरात सुरुवातीला *आनापानसती* शिकवून मनाच्या एकाग्रतेचा अभ्यास आणि सराव केल्या जाते. हा अभ्यास *विपश्यना* साधनेची पूर्वतयारीच असते. आन म्हणजे अश्वास, अपान म्हणजे प्रश्वास व सती म्हणजे सजगता. म्हणजेच येणार्या व जाणार्या श्वासावर लक्ष ठेवणे. म्हणजेच या अभ्यासात शरीरात नाकावाटे सहज आणि स्वाभविक येणारा तसेच बाहेर पडणारा श्वासावर लक्ष केंद्रित केल्या जाते. आपले मन जागृत ठेवले जाते.
*विपश्यनाला* पाली भाषेत *विपस्सना* म्हटले जाते. त्यात वि आणि पस्सना असे दोन शब्द आहेत. वि म्हणजे विशेष रुपाने आणि पस्सना म्हणजे जाणणे, पाहणे किवा अनुभूती घेणे. म्हणजेच जग जसे आहे तसे पाहणे. जगाची वास्तवता समजून घेणे. सर्व बाबींना त्यांच्या मुळ गुण-धर्म-स्वभावात पाहाणे (सत्यदर्शन) म्हणजे *विपश्यना*.
या विधीत आपल्या स्वत:च्या शरीरात उत्पन्न होणार्या सर्वसामान्य, नैसर्गिक संवेदनाचे पध्दतशीर व नि:पक्षपातीपणे निरीक्षण केल्या जाते. कारण संवेदनाच्या आधारेच आपल्याला प्रत्यक्ष सत्याची अनुभूती होते. *विपश्यना* करतांना शरीर आणि मनाचे संपूर्ण सत्य अनुभवाच्या पातळीवर समजून घेतल्या जाते. *विपश्यनामुळे* मनाच्या खोल गाभ्यात बदलांची प्रक्रिया सुरु होते.
कोणत्याही समस्येचे मूळ आपल्या मनात असल्याने तिच्याशी मानसिक स्तरावरच सामना केला पाहिजे. म्हणून *विपश्यनेच्या* माध्यमातून मनावर संस्कार करण्याचा अभ्यास *विपश्यना* शिबिरात शिकविले जातात. हा अभ्यास अत्यंत गांभिर्याने, नैसर्गिक वातावरणात आचार्याच्या मार्गदर्शनात भारतात आणि परदेशात वैज्ञानीक पद्धतीने शिकविल्या जाते.
मन हे सतत भरकटत असते. चवताळलेला हत्ती काहीही नुकसान करू शकतो, पण त्याला जर काबूत ठेवले तर तो चांगल्या कामात उपयोगी पडू शकतो. तसेच मनाचे आहे. मनाला काबूत ठेवण्यासाठी *विपश्यना* हे एक चांगले साधन आहे. आपले चित्त, मन एखाद्या गोष्टीवर अथवा कार्यावर एकाग्र करणे, त्या कार्याप्रती पूर्णपणे जागृत राहणे व ते कार्य सर्वशक्तीनिशी पार पाडणे हे *आनापानसतीचा, विपश्यनाचा आणि मंगल मैत्री* चा अभ्यास करणारे चांगल्या रीतीने करू शकतात.
ह्या अभ्यासाने आपले जीवन किती अनित्य आहे, क्षणभंगुर आहे. या गोष्टीची अनुभूती च्या स्तरावर जाणीव होत असते. म्हणून या ध्यानात एकाग्रता, जागरूकता व प्रज्ञा या गोष्टींचा लाभ होतो.
सत्याच्या अनुभूतीचा एकमेव मार्ग म्हणजे स्वत :च्या अंतर्मनाचे आपण स्वत:च केलेले निरीक्षण होय. म्हणून भगवान बुद्धांनी सांगितलेला हा मार्ग आत्मनिरीक्षणाचा, स्वत:ला शास्त्रीय पद्धतीने तपासण्याचा मार्ग आहे. त्यामुळे आपल्या स्वत:च्या स्वभावाचे ज्ञान करून आपल्यामधील दोष, विकार नष्ट करता येतात. अंतर्मनातील अंधकार दूर करता येते. निसर्गाचे नियम अनुभवातून समजून घेता येते. या अभ्यासाने दु:ख, प्रक्षुब्द व ताणतणाव निर्माण करणारे कारणे शोधून त्याला नष्ट करता येतात. त्यामुळे आपले मन शुध्द, शांत व आनंदी होत जाते.
भगवान बुध्दांनी आपल्या मनाच्या तीक्ष्ण एकाग्रतेने आपल्या मनाच्या खोलीत शिरून सत्याचा तळ गाठला. त्यांना आढळले की, आपले शरीर अत्यंत लहान लहान परमानुंचे बनले आहे. ते सतत उत्पन्न होवून नष्ट होत असतात. म्हणजेच जीवनाच्या अनित्यतेची जाणीव होते. अनित्यतेची जाणीव झाल्याने मनुष्य कुशल कर्मे करण्याकडे वळतो. स्वतःतील दोष कमी करण्याचा प्रयत्न करतो. आपल्या मनातील राग, द्वेष, मोह, तृष्णा, वासना, लोभ, भय इत्यादी विकार दूर होऊ लागतात. उर्वरित आयुष्य दु:खात घालविण्यापेक्षा सुख आणि आनंदात जाते. असे अनेक फायदे *विपश्यना ध्यान साधनेने* मनुष्याला प्राप्त होतात.
शरीरातील प्रत्येक कण परिवर्तनीय व बदलत असल्याने ‘मी’ ‘माझा’ असे म्हणावे असे काहीच स्थिर राहात नाही, हे सत्य साधकाच्या लक्षात येते. त्यामुळे अनात्मतेचा बोध होतो. आणखी एक सत्य साधकाला स्पष्ट होते ते असे की, ‘मी’ व ‘माझे’ ची आसक्ती हीच तर दु:ख निर्मिती चे कारण आहे. ह्या सार्या गोष्टी कोणी सांगितले म्हणून नव्हे तर आपल्या स्वत:च्या अनुभवावरून संवेदनाच्या निरीक्षणामुळे समजू लागतात.
या अभ्यासात शिकविले जाते की, शरीरात उमटणार्या संवेदनावर कोणतीही मग ती सुखद असो, दु:खद असो की, सुखद-दु:खद असो – प्रतिक्रिया व्यक्त न करता नि:ष्पक्ष राहून केवळ निरीक्षण केल्याने दुखा:च्या आहारी जात नाही. कारण संवेदना सतत बदलत असतात. त्या कायम राहत नाही. उदय होणे, व्यय होणे हा तिचा नैसर्गिक स्वभाव असल्याचे जाणवते. म्हणून सजगता व समतेत राहिल्याने आपण दुख:मुक्त होऊ शकतो, ही गोष्ट साधकाच्या लक्षात येते.
तसेच प्रत्येक संस्कार उत्पन्न होते, लय पावते. ते परत उत्पन्न होते, लय पावते. ही क्रिया सतत सुरु राहते. आपण प्रज्ञेचा विकास करून तटस्थपणे निरीक्षण केल्यास, संस्काराची पुनर्निर्मिती थांबते. आताच्या आणि पूर्वसंचित संस्काराचे उच्चाटन झाले की, आपण दुख:मुक्तीचा आनंद उपभोगू शकतो, हेही साधकाच्या लक्षात येते.
संवेदनापासून तृष्णे ऐवजी प्रज्ञाच विकसित होते. प्रज्ञेमुळे दुखा:ची साखळी तुटते. राग व द्वेषाच्या नवीन प्रतिक्रिया निर्माण होत नाहीत. त्यामुळे दुख: निर्माण होण्याचे कारणच उरत नाही. मनाच्या दोलायमान स्थितीत घेतलेले निर्णय ही एक प्रतिक्रियाच असते. ती सकारात्मक कृती राहत नसून ती एक नकारात्मक कृती बनते.
ज्यावेळी मन शांत व समतोल असते. तेव्हा घेतलेले निर्णय हे कधीही दुख:दायक नसतात तर ते आनंददायकच असतात. जेव्हा प्रतिकिया थांबतात, तेव्हा तणाव दूर होतात. त्यावेळी आपण जीवनातील खरा आनंद उपभोगू शकतो, याची साधकाला प्रचीती येते.
आपण सुखी व आनंदित झालो की, असेच सुख आणि आनंद दुसर्यालाही मिळावे म्हणून कामना करतो. सर्वांचे कल्याण होवो, सर्व दुख:मुक्त होवोत, हीच तर *विपश्यना ध्यान साधनेचा* उद्देश आहे. यालाच *मेत्ता भावना* म्हणजेच ‘मैत्री भावना’ म्हणतात.
भगवान बुद्धांनी या अभ्यासाद्वारे जाणले की, मनुष्याला होणारे दु:ख हे काही दैवी कारणाने होत नसते. तर त्याला जसे इतर कोणत्याही गोष्टी कारणाशिवाय घडत नाहीत, तसे दु:खाला सुध्दा कारणे आहेत.
भगवान बुद्धांनी अखिल मानवाला दु:खमुक्त होण्यासाठी चार आर्यसत्य व अष्टांगिक मार्गाची शिकवण दिली. चार आर्यसत्यामध्ये दु:ख. दु:खाची कारणे, दु:खाचा निरोध आणि दु:ख नष्ट करण्याचा मार्ग म्हणजेच आर्य अष्टांगिक मार्ग यांचा समावेश आहे. अष्टांगिक मार्गामध्ये सम्यक दृष्टी, सम्यक संकल्प, सम्यक वाचा, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृती व सम्यक समाधी याचा समावेश होतो. आपले शरीर निरोगी ठेवण्यासाठी जसे शारीरिक व्यायाम करतो, तसेच मनाला निरोगी ठेवण्यासाठी मनाचा व्यायाम म्हणजे ही *विपश्यना* साधना होय.
जागतिक आरोग्य संघटनेने म्हटले आहे की, जो व्यक्ती शरीराने आणि मनाने निरोगी आहे, अशा व्यक्तीला सुदृढ आणि सक्षम म्हटल्या जाते. *विपश्यना* साधनेमध्ये मानवी मन हे केंद्रस्थानी आहे. शरीरावर होणार्या प्रतिक्रिया ह्या मनातून निर्माण होतात. म्हणून मन हे निरोगी असेल तरच शरीर निरोगी राहण्यास मदत होते.
ही वैज्ञानीक साधना शिकण्यासाठी विविध भाषा, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग असलेले लोक मोठ्या प्रमाणात आकर्षित होत आहेत. त्यामुळे जातीय सलोखा निर्माण होण्यात या विधीचा मोठा हातभार लागत आहे.
आज दहशतवाद व अण्वस्त्राच्या भीतीने जगात अशांतता व अस्वस्थता निर्माण होत आहे. तेव्हा जगात शांतता नांदण्यासाठी *विपश्यना* विधीची फार मोठी मदत होत आहे. जगात ठिकठिकाणी *विपश्यना* केद्रे स्थापन होत आहेत. त्यामुळे ह्या विधीचा सार्या जगात झपाट्याने प्रसार होत आहे.
भारतातील पहिल्या महिला आय.पी.एस. अधिकारी किरण बेदी यांनी *कैद्यांसाठी विपश्यना* अभ्यासाची व्यवस्था केली होती. त्यामुळे गुन्हेगारी जग सुधारण्यास या विधीचा उपयोग होत आहे.
शासन त्यांच्या अधिकार्यांना ही विद्या शिकता यावी म्हणून *विपश्यना* शिबिराला पाठविण्याची व्यवस्था करीत आहेत. प्रशासकीय कामे करतांना मानसिक तणाव दूर होतो. ही विधी शिकतांना भगवान बुद्धांनी सांगितलेला शील-समाधी-प्रज्ञा तसेच पंचशीलेची शिकवण मिळत असल्याने साधक वर्ग नीतीमान बनत असतो. त्यामुळे भ्रष्टाचाराला वाव राहत नाही. वक्तशीरपणा, प्रामाणीकपणा हे गुण साधक वर्गात वाढीस लागत आहेत.
लहान मुलांपासून ते मोठ्या माणसापर्यंत आज शिबिरे आयोजीत होत आहेत. त्यामुळे मैत्री, करुणेचे भगवान बुध्दाचे तत्वज्ञान जनमानसात रुजत आहेत. सामाजिक सलोखा निर्माण होण्यास तसेच आजच्या अनैतिक जगात माणसाला सदाचारी, चारीत्रवान, निरोगी बनविण्यासाठी या विधीचा फार मोठा हातभार लागत आहे.
*विपश्यनेचा* व्यक्तिगत दृष्टीने नियमित अभ्यास केल्याने मनातील राग, द्वेष, मोह, तृष्णा, वासना, लोभ, भयं असे विकार नष्ट होतात. त्यामुळे दु:ख आणि विकारातून मुक्त होवून मानवाचे कल्याण होते. तसेच सामाजिक दृष्टीने विशुद्धी, पावित्र, सदाचार, नैतिकतेचा पाया मजबूत होवून समाजविकास घडून येतो.
आज जगासमोर उपासमार, गरिबी, जातीयवाद, हिंसाचार, दहशतवाद, हुकूमशाही, युध्दजन्य परिस्थिती असे जे भयावह स्थिती दिसत आहेत, त्याला शांत करण्यासाठी भगवान बुध्दाचे समता, स्वातंत्र, बंधुत्व व न्याय तसेच अहिंसा, प्रज्ञा, शील, करुणा व मैत्रीचे तत्वज्ञान म्हणजेच *विपश्यना विधी* हेच एकमेव उत्तर आहे. म्हणून *विपश्यना* साधना ही मानवी कल्याणाचा मार्ग आहे.
आपण सर्व *विपश्यना*
करा, नियमित
पणे करत रहा
हा भ बुद्धा चा उपदेश आहे.सूत्त्त्त पिट्काच्या मज्जीम निकाय ग्रंथात सती पत्ठान सत्त्तात आहे
4 डिसेंबर 1954 ला डॉ बाबासाहेबानी रंगून येथिल भाषनात विपश्यना नाकारली काय ?
हा भ बुद्धा चा उपदेश आहे.सूत्त्त्त पिट्काच्या मज्जीम निकाय ग्रंथात सती पत्ठान सत्त्तात आहे
4 डिसेंबर 1954 ला डॉ बाबासाहेबानी रंगून येथिल भाषनात विपश्यना नाकारली काय ?
4 डिसेंबर 1954 ला म्यानमार ला रंगून येथे जागतिक बौद्ध धम्म परिषद झाली.या परिषदेत
डॉ बाबासाहेब आंबेडकराचे भाषण झाले.आपल्या भाषणाचे त्यांनी मेमोरेन्डम भाग 1 व भाग 2 केले.भारतात बौद्ध धम्माचे कशा प्रकारे उत्थान करता येईल यावर विविध योजना
परिषदेत मांडल्या. त्यात क्र 6 चा मुद्दा असा होता कि बौद्ध धम्माच्या अनुयाया साठी
छोट्या स्वरूपात धम्म ग्रंथाची आवश्यकता आहे कारण धर्मांतरीत बौद्धांची ग्रंथाची
गरज पूर्ण करने आवश्यक होते. ते म्हणाले कि,पाली भाषेतील 73 खंड
वाचण्याची अपेक्षा सामान्य व्यक्ती कडुन करता येणे शक्य नाही. या ग्रंथात
भ. बुद्धाच्या सामाजिक व नैतिक शिकवणुकीवर भर (Emphasis) देणे आवश्यक राहिल. ते
म्हणाले कि ध्यान, मनाचे निरीक्षण व अभिधम्म यावर फार भर दिला जात आहे. या मार्गाने भारता मधे बौद्ध धम्म नवनिर्मित
ग्रंथात प्रस्तुत केला तर आमच्या धेय्यात अडथळा निर्माण होईल. डॉ बाबासाहेब English
मधे
काय म्हणाले,
6) I will now turn to the preliminary steps which must be taken for the revival of the Buddhism in India I mention below those that occur to me
1)The preparation of Buddhist Gospel which could be a constant companion of the convert.The want of a small Gospel containing the teaching of the Buddha is a great handicap in propagation of Buddhism in having the message of Christ,contained in a small booklet.The Bible This handicap in the way of the propagation of Buddhism must be removed.In regard to the preparation of Buddhas Gospel care must be taken to emphasis
(भर देणे)the social and moral teaching of the Buddh.I have to emphasis(हे मी भर देवून सांगत आहे कारण) this because what is emphasis is meditation,contemplation and Abhidhamma.(ध्यान,अनुपश्यना आणि अभीध् म्म या वरच अधिक भर दिल्या जात आहे) This way of presenting Buddhism to Indian would be fatal to our cause.(या मार्गाने जर बुद्ध धर्म भारतात प्रस्तुत केला तर तो आमच्या हेतु साठी अडथळा ठरेल किंवा घातक ठरेल)fatal चा अर्थ अडथळा सुद्धा होतो.रस्त्यात अपघात होतो तेव्हा fatal आक्सिडेंट म्हणतात fatal शब्द त्यावेळी घातक अर्थी वापरतात. अन्यथा अडथळा असा अर्थ आहे. बरे ते काही का असू द्या, या वरून आपल्या लक्षात येईल की, त्यांनी धम्म ग्रंथ लिहताना ध्यान व अभीधम्म या वर अधिक भर द्यायचा नाही असे म्हटले, Emphasis म्हणजे भर देणे होते. भर न देणे म्हणजे नाकारने होत नाही.
पुस्तक लिहताना या बाबी सुध्दा 'बुद्ध आणि धम्म' ग्रंथात समाविष्ट केल्या आहेत. धम्म म्हणजे काय ? या प्रकरणात कायानुपश्यना, चित्तानुपश्यना, वेदनापश्यना, धम्मानुपश्यना नमुद केली आहे.सम्य्क समाधी चा तर उल्लेख आहेच, 35 वेळा Meditation शब्द देखील आहे. अभिधम्म शिवाय बुद्ध धम्म कसा पूर्ण होवू शकेल ?
ग्रंथ लिहताना अधिक भर कशावर द्यायचा व कशावर द्यायचा नाही या बाबत डॉ बाबासाहेब बोलले, त्या वेळी म्यानमार मधे निव्वळ जंगलात जावून ध्यान करणारे भिक्कू होते तसे बाबासाहेबानी बघितले होते.ते नको होते तर धम्म प्रचारक हवे होते. नुकतेच हिंदू धर्मातून बाहेर आलेल्या समाजाला स्वाभिमानी चळवळीत(self respect movement) पक्व करायचे होते.शील आणि नैतिकता शिकवणे गरजेचे होते.लगेचच ध्यानाकडे अधिक भर दिला तर चळवळीला गती आली नसती.पण डॉ बाबासाहेब आंबेडकरानी ते नाकारले नाही हे स्पष्ट आहे अधिक भर न देणे not Emphasis म्हणजे नकारान्त नव्हे.not Emphasis म्हणजे अधिक भर न देने होते. नाकारले असते तर स्पष्ट पणे I do not accept किंवा I denied it असे लिहले असते.ते स्पष्टवक्ते होते.हा मुद्दा पुस्तकातील मसुदा कसा राहील या वर होता.लेखक एखाद्या मुद्द्यावर अधिक भर न देता मुद्दा कायम ठेवत असतो तसे बाबासाहेब म्हणाले.सटिपठ्ठान सुत्त डॉ बाबासाहेब कसे काय नाकारतातील ? तो तर बुद्धाचा शोध आहे.सुत्तपीटका चा अविभाज्य अंग आहे.
विपश्यना ला खूप महत्व द्या असे आम्ही सुद्धा म्हणत नाही आमचे म्हणणे असे की तो बुद्धा चा सतिपठ्ठान सूत्तातिल उपदेश आहे हे सूर्यप्रकाशा इतके स्पष्ट आहे.त्यावर टीका करू नका,टिंगल करू नका,.द्वेष करू नका.
संवर्धन करा.तुम्ही विपश्यना करा की नका करू पण धम्म उपदेशाची चुगली करून गैरसमज पसरवू नका .
contemplation म्हणजे विपश्यना असा अर्थ डॉ बाबासाहेब अम्बेड्करानी पाली शब्द कोशात (लेखन आणि भाषणे खंड 16) मध्ये सांगितला आहे Contemplation म्हणजे विपश्यना बुद्ध आणि त्यांचा धम्म ग्रंथात बाबासाहेबानी खालील प्रमाणे धम्म म्हणजे काय या प्रकरणात लिहले आहे.
6) I will now turn to the preliminary steps which must be taken for the revival of the Buddhism in India I mention below those that occur to me
1)The preparation of Buddhist Gospel which could be a constant companion of the convert.The want of a small Gospel containing the teaching of the Buddha is a great handicap in propagation of Buddhism in having the message of Christ,contained in a small booklet.The Bible This handicap in the way of the propagation of Buddhism must be removed.In regard to the preparation of Buddhas Gospel care must be taken to emphasis
(भर देणे)the social and moral teaching of the Buddh.I have to emphasis(हे मी भर देवून सांगत आहे कारण) this because what is emphasis is meditation,contemplation and Abhidhamma.(ध्यान,अनुपश्यना आणि अभीध् म्म या वरच अधिक भर दिल्या जात आहे) This way of presenting Buddhism to Indian would be fatal to our cause.(या मार्गाने जर बुद्ध धर्म भारतात प्रस्तुत केला तर तो आमच्या हेतु साठी अडथळा ठरेल किंवा घातक ठरेल)fatal चा अर्थ अडथळा सुद्धा होतो.रस्त्यात अपघात होतो तेव्हा fatal आक्सिडेंट म्हणतात fatal शब्द त्यावेळी घातक अर्थी वापरतात. अन्यथा अडथळा असा अर्थ आहे. बरे ते काही का असू द्या, या वरून आपल्या लक्षात येईल की, त्यांनी धम्म ग्रंथ लिहताना ध्यान व अभीधम्म या वर अधिक भर द्यायचा नाही असे म्हटले, Emphasis म्हणजे भर देणे होते. भर न देणे म्हणजे नाकारने होत नाही.
पुस्तक लिहताना या बाबी सुध्दा 'बुद्ध आणि धम्म' ग्रंथात समाविष्ट केल्या आहेत. धम्म म्हणजे काय ? या प्रकरणात कायानुपश्यना, चित्तानुपश्यना, वेदनापश्यना, धम्मानुपश्यना नमुद केली आहे.सम्य्क समाधी चा तर उल्लेख आहेच, 35 वेळा Meditation शब्द देखील आहे. अभिधम्म शिवाय बुद्ध धम्म कसा पूर्ण होवू शकेल ?
ग्रंथ लिहताना अधिक भर कशावर द्यायचा व कशावर द्यायचा नाही या बाबत डॉ बाबासाहेब बोलले, त्या वेळी म्यानमार मधे निव्वळ जंगलात जावून ध्यान करणारे भिक्कू होते तसे बाबासाहेबानी बघितले होते.ते नको होते तर धम्म प्रचारक हवे होते. नुकतेच हिंदू धर्मातून बाहेर आलेल्या समाजाला स्वाभिमानी चळवळीत(self respect movement) पक्व करायचे होते.शील आणि नैतिकता शिकवणे गरजेचे होते.लगेचच ध्यानाकडे अधिक भर दिला तर चळवळीला गती आली नसती.पण डॉ बाबासाहेब आंबेडकरानी ते नाकारले नाही हे स्पष्ट आहे अधिक भर न देणे not Emphasis म्हणजे नकारान्त नव्हे.not Emphasis म्हणजे अधिक भर न देने होते. नाकारले असते तर स्पष्ट पणे I do not accept किंवा I denied it असे लिहले असते.ते स्पष्टवक्ते होते.हा मुद्दा पुस्तकातील मसुदा कसा राहील या वर होता.लेखक एखाद्या मुद्द्यावर अधिक भर न देता मुद्दा कायम ठेवत असतो तसे बाबासाहेब म्हणाले.सटिपठ्ठान सुत्त डॉ बाबासाहेब कसे काय नाकारतातील ? तो तर बुद्धाचा शोध आहे.सुत्तपीटका चा अविभाज्य अंग आहे.
विपश्यना ला खूप महत्व द्या असे आम्ही सुद्धा म्हणत नाही आमचे म्हणणे असे की तो बुद्धा चा सतिपठ्ठान सूत्तातिल उपदेश आहे हे सूर्यप्रकाशा इतके स्पष्ट आहे.त्यावर टीका करू नका,टिंगल करू नका,.द्वेष करू नका.
संवर्धन करा.तुम्ही विपश्यना करा की नका करू पण धम्म उपदेशाची चुगली करून गैरसमज पसरवू नका .
contemplation म्हणजे विपश्यना असा अर्थ डॉ बाबासाहेब अम्बेड्करानी पाली शब्द कोशात (लेखन आणि भाषणे खंड 16) मध्ये सांगितला आहे Contemplation म्हणजे विपश्यना बुद्ध आणि त्यांचा धम्म ग्रंथात बाबासाहेबानी खालील प्रमाणे धम्म म्हणजे काय या प्रकरणात लिहले आहे.
Herin a monk abides contemplating the body as body,(कायानुपश्यना ) strenuous,mi.dful
and self possessed,having overcome both the bankering and discontent common in
the world
He abides contemating the feelings as feeling (वेदनानुपश्यना )
He abides contemplating the mind as mind ?(चित्तानुपश्यना)
He abides contemating the ideas as ideas ,(धम्माणुपश्यना )
डॉ बाबासाहेबा च्या इंग्रजी मेमोरेन्डम ४ डिसेंबर १९५४ चा अर्थ नीट समजून न घेताg बाबासाहेबानी विपश्यना नाकारली म्हणून ओरड केली जाते.सामान्य माणसाची दिशा भूल केली जात आहे.uncle
डॉ बाबासाहेब आंबेडकरांनी आनापान चा अर्थ, 'Inhaled,extended,breath, inspiration, respiration' असा पाली डिक्शनरीत (खंड १६) सांगितला आहे.ते स्वतः ध्यान करायचे असा उल्लेख चांगदेव खैर्मोडे लिखित चरित्र ग्रंथात आहे.असे सर्व असताना ते ध्यान विरोधी होते,विपश्यना विरोधी होते असा अपप्रचार केला जातो या अशा लोकांपासून सावध रहा.
विपश्यना चा इतका स्पष्ट उल्लेख डॉ बाबासाहेब आंबेडकरानी बुद्ध आणि त्याचा धम्म ग्रंथात केला असूनही त्यांनी विपश्यना नाकारली असा अप प्रचार करणे समाजाची दिशाभूल करणे आहे.
He abides contemating the feelings as feeling (वेदनानुपश्यना )
He abides contemplating the mind as mind ?(चित्तानुपश्यना)
He abides contemating the ideas as ideas ,(धम्माणुपश्यना )
डॉ बाबासाहेबा च्या इंग्रजी मेमोरेन्डम ४ डिसेंबर १९५४ चा अर्थ नीट समजून न घेताg बाबासाहेबानी विपश्यना नाकारली म्हणून ओरड केली जाते.सामान्य माणसाची दिशा भूल केली जात आहे.uncle
डॉ बाबासाहेब आंबेडकरांनी आनापान चा अर्थ, 'Inhaled,extended,breath, inspiration, respiration' असा पाली डिक्शनरीत (खंड १६) सांगितला आहे.ते स्वतः ध्यान करायचे असा उल्लेख चांगदेव खैर्मोडे लिखित चरित्र ग्रंथात आहे.असे सर्व असताना ते ध्यान विरोधी होते,विपश्यना विरोधी होते असा अपप्रचार केला जातो या अशा लोकांपासून सावध रहा.
विपश्यना चा इतका स्पष्ट उल्लेख डॉ बाबासाहेब आंबेडकरानी बुद्ध आणि त्याचा धम्म ग्रंथात केला असूनही त्यांनी विपश्यना नाकारली असा अप प्रचार करणे समाजाची दिशाभूल करणे आहे.
शब्दांचे
अर्थ :-
१) Emphasis :- (giving) special importance or attention (एखाद्या गोष्टीकडे दिलेले) विशेष लक्ष किंवा (तिला दिलेले) विशेष महत्व,प्राधान्य,भर.
(Oxford English-English-Marathi Dictionary Page No,452)
१) Emphasis :- (giving) special importance or attention (एखाद्या गोष्टीकडे दिलेले) विशेष लक्ष किंवा (तिला दिलेले) विशेष महत्व,प्राधान्य,भर.
(Oxford English-English-Marathi Dictionary Page No,452)
२)आनापान :- Inhaled,extended breath,
inspiration, respiration (आन +अपान)
(पाली शब्द कोश खंड १६ लेखक डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर )
३)विपस्सको हा पाली शब्द आहे विपश्यना चे क्रियापद त्याचा इंग्रजी अर्थ खुद्द डॉ बाबासाहेब अम्बेडकरानी दिला तो असा Contemplating,endowed with
(पाली शब्द कोश Volume १६ लेखक डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर )
या वरून आपल्या लक्षात येईल की डॉ बाबासाहेबानी विपश्यना नाकारली नाही.तर स्वीकारलीपर आहे .
सम्यक समाधी चा उपदेश म्हणजे काय ?मनात वाईट विचार येवू न देणे आलेले रस काढणे . हे कसे साध्य करायचे ?? केवळ वंदना म्हटल्या ने शक्य आहे काय ? मुळीच नाही तर या साठी सतीपत्ठान सुत्त हे प्रॅक्टिकल आहे.ज्यामुळे मन निर्मळ होईल अर्थात सम्य्क समाधीचा उद्देश पूर्ण होईल.बौद्ध धम्मा तिल सम्यक समाधी म्हणजे हिंदू समाधी नव्हे.बुवाबाबाची नव्हे .बुद्धा च्या विपश्यना ध्यान पद्धती मधे उपासक सतत जागरूक असतो.मनावर पहारा देत असतो.हे ध्यान एकदा अवगत झाले की केवळ बसून विपश्यना करायची नसून २४ तास करू शकता.आपण काय करतो याची सतत जाणीवnnj ठेवणे.याला स्म्रूतिची प्रतिष्ठापणा म्हणजे सतीपठाण सुत्त म्हणतात हे विशिष्ट पणे केल्या जाते म्हणून विपश्यना म्हणतात.
विपश्यना शिबिरात शील पालन अनिवार्य असते,१० पारमिता चा अभ्यास सुद्धा आपल्याला समजतो जो कुठेच समजाविले जात नाही.मैत्री भावना व अष्टशील तसेच बुद्धाचे उपदेश प्रवचनात सांगितल्या जाते .विपश्यना शिबिर म्हणजे धम्म उपदेशा ची प्रयोग शाळा आहे.
Satish Ghewande
(पाली शब्द कोश खंड १६ लेखक डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर )
३)विपस्सको हा पाली शब्द आहे विपश्यना चे क्रियापद त्याचा इंग्रजी अर्थ खुद्द डॉ बाबासाहेब अम्बेडकरानी दिला तो असा Contemplating,endowed with
(पाली शब्द कोश Volume १६ लेखक डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर )
या वरून आपल्या लक्षात येईल की डॉ बाबासाहेबानी विपश्यना नाकारली नाही.तर स्वीकारलीपर आहे .
सम्यक समाधी चा उपदेश म्हणजे काय ?मनात वाईट विचार येवू न देणे आलेले रस काढणे . हे कसे साध्य करायचे ?? केवळ वंदना म्हटल्या ने शक्य आहे काय ? मुळीच नाही तर या साठी सतीपत्ठान सुत्त हे प्रॅक्टिकल आहे.ज्यामुळे मन निर्मळ होईल अर्थात सम्य्क समाधीचा उद्देश पूर्ण होईल.बौद्ध धम्मा तिल सम्यक समाधी म्हणजे हिंदू समाधी नव्हे.बुवाबाबाची नव्हे .बुद्धा च्या विपश्यना ध्यान पद्धती मधे उपासक सतत जागरूक असतो.मनावर पहारा देत असतो.हे ध्यान एकदा अवगत झाले की केवळ बसून विपश्यना करायची नसून २४ तास करू शकता.आपण काय करतो याची सतत जाणीवnnj ठेवणे.याला स्म्रूतिची प्रतिष्ठापणा म्हणजे सतीपठाण सुत्त म्हणतात हे विशिष्ट पणे केल्या जाते म्हणून विपश्यना म्हणतात.
विपश्यना शिबिरात शील पालन अनिवार्य असते,१० पारमिता चा अभ्यास सुद्धा आपल्याला समजतो जो कुठेच समजाविले जात नाही.मैत्री भावना व अष्टशील तसेच बुद्धाचे उपदेश प्रवचनात सांगितल्या जाते .विपश्यना शिबिर म्हणजे धम्म उपदेशा ची प्रयोग शाळा आहे.
Satish Ghewande
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