यूं तो गुलशन में पैदा हुए, गाँधी और नेहरू भी।
मगर, फुल खिलें हैं जुबां-जुबां पर, तो अम्बेडकर ही।
कि तासीर हम कहें क्या उनकी, और उनके कैफियत की।
ढूंढते हैं, लोग निशां उनके, दरो और दीवारों पर।
कि करोगे क्या, शोहरत और पैसा, सब धरे रह जाएँगे,
लटका के जब हाथ चले जाओगे, इन्ही मीनारों पर।
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