Wednesday, April 7, 2021

धम्मपद और ताराराम

 ताराराम 

"...... उपनिषदों के निरपेक्ष ब्रह्म या परं ब्रह्म की अवधारणा बुद्ध के समय प्रचलन में नहीं आयी थी।

किसी भी पालि सुत्त में अंतिम सत्य के रूप में उपनिषद के ब्रह्म सिद्धांत का हवाला नहीं दिया गया है।

अतः इसकी आलोचना का प्रश्न ही नहीं उठता---।"

"---उपनिषद का परब्रह्म का विचार ईश्वर, ब्रह्म अथवा प्रजापति के रूप में वैदिक विचारों के केंद्रीय-बिंदु के रूप में आविर्भूत नहीं हूं था।

जीवों के ऊपर ब्रह्मा की सर्वोच्चता और वैदिक कर्मकांड करके कल्पो स्वर्ग प्राप्त करने की वांछनीयता का बुद्ध द्वारा बार-बार खंडन किया गया है।

महानतम वैदिक देव, इंद्र, ब्रह्मा प्रजापति कईं पालि ग्रंथों में बुद्ध के श्रद्धालु शिष्य प्रतीत होते है।"

"यह तथ्य कि बुद्ध अपने कईं प्रवचनों में आदर्श ब्रह्म की प्रशंसा करते है और अपने कई प्रवचनों में ब्रह्मचर्य, ब्रह्मकाया, ब्रह्मभूतः शब्दों का प्रयोग करते है, परंतु इससे हमें भ्रांति में नहीं पड़ना चाहिए। 

'ब्रह्म' शब्द पर वैदिक  ब्राह्मणों का एकाधिकार नहीं था; यह शब्द बुद्धकाल में लोगों के बीच में सामान्य प्रयोग में था।

धम्मपद के ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द का अर्थ वैदिक-पुरोहित्य (पौरोहित्य) ब्राह्मण नहीं है।

बौद्ध-धम्म में सच्चे ब्राह्मण की अवधारणा का अर्थ अर्हत  अथवा बुद्ध की अवधारणा है।

ब्राह्मण शब्द मुनि अथवा श्रमण का पर्यायवाची है।"

"ब्रह्मचर्या का अर्थ धम्मचरिया है।

पालि मूल/पाठों में ब्रह्मचरिया का जो अर्थ है, वही शान्तिदेव अपने बोधिचरियावतार में बोधिचर्या का अर्थ लेते है।

चूंकि ब्रह्म, बोधि, धम्म और बुद्ध का प्रयोग यहां पर्यायवाची शब्दों के रूप में हुआ है।

अतः ब्रह्मकाया का अर्थ धम्मकाया है अर्थात परम तत्व (धम्म धातु) अथवा निर्वाण-धम्म।

निर्वाण एक ऐसी शांति है, जो अनिर्वचनीय है।

ब्रह्मभूत शब्द का अर्थ निब्बूत अथवा सीतिभूत है, जो तथागत का उपनाम है।"

   (ब्राह्मणवाद, बुद्ध धम्म और हिंदूवाद, पृष्ठ 66-67)

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1. बाबासाहब अम्बेडकर ने बौद्ध-हिन्दू संघर्ष को दो संस्कृतियों का खुनी संघर्ष कहा है. 

2. बौद्ध परम्परा में, सिंहलद्वीप के ग्रन्थ दिव्यावदान(300 ईस्वी), असोकवदान और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ(1600 ईस्वी) के 'हिस्टरी आफ बुद्धिज्म' ग्रन्थ उक्त खुनी संघर्ष के साक्षी हैं.

 इन ग्रंथों में बतलाया गया है कि कैसे पुष्यमित्र शुंग(  ईस्वी ) ने बौद्धों का बड़े पैमाने पर संहार किया था और  लाखों बुद्धविहार धराशायी किये थे. पुष्यमित्र शुंग ने राजज्ञा जारी की थी जो किसी समण का सिर लायेगा उसे 100 सोने की मोहरे दिए जायेंगे.

3. ह्वेनसांग(650 ईस्वी) के अनुसार, राजा शशांक(600 ईस्वी ) ने बुद्धगया के विहारों को जमीदोज कर बोधिवृक्ष को जला दिया था.

4. हिन्दू परम्परा में कुमारिल भट्ट(550 ईस्वी) ने बुद्ध की कठोर निंदा की है.

'शंकर दिग्विजय' में शंकर(788-820  ईस्वी) के शिष्य सुधन्वा राजा का बौद्धों के प्रति द्वेष उल्लेखित है. 

"स्कंधगुप्त सम्राट(455- 474 ईस्वी) ने जैसा किया था, उसका अनुशरण करते हुए सुधन्वा राजा ने भी(शंकर की इच्छा से) अपने भृत्यों को यह आज्ञा दी थी की रामेश्वर के सेतु से हिमालय पर्वत तक, बौद्धों को मार डालो, उनके बुद्धे-बच्चों को तक न छोडो और जो उनको मारने से हिचके, उसे भी मार डालो. 

वाल्मीकि रामायण हो या मनुस्मृति, बौद्ध द्वेष सर्व विदित है.

(1.)

 ब्रह्म- 1. बुद्ध ने वैदिक ऋषियों के दर्शन को बेकार जान उसकी सम्पूर्ण रूप से अवहेलना की(बुद्ध और उनके पूर्वज/समकालीन  खण्ड 1 भाग- 5/6: डॉ, अम्बेडकर; बुद्धा एंड हिज धम्मा ). 2. बुद्ध ने ब्राह्मणों के चार आधारभूत सिद्धांत यथा वेद. आत्मा, चातुर्वर्ण व्यवस्था और पुनर्जन्म आधारित कर्मवाद को अस्वीकार कर दिया(वही).  3. ब्रह्म और उसकी संकल्पना को बुद्ध ने नकार दिया(वही).

(2.) 

"जीवों के ऊपर ब्रह्मा की सर्वोच्चता और वैदिक कर्मकांड करके कल्पित स्वर्ग प्राप्त करने की वांछनीयता का बुद्ध द्वारा बार-बार खंडन किया गया है। महानतम वैदिक देव, इंद्र, ब्रह्मा प्रजापति कईं पालि ग्रंथों में बुद्ध के श्रद्धालु शिष्य प्रतीत होते है।" 

क्या उक्त दोनों वाक्य आपस में विरोधाभाषी नहीं ?

(3.)  

धम्मपद के ब्राह्मण-वग्ग में ब्राह्मण शब्द का अर्थ वैदिक-पुरोहित्य (पौरोहित्य) ब्राह्मण नहीं है। बौद्ध-धम्म में सच्चे ब्राह्मण की अवधारणा का अर्थ अर्हत अथवा बुद्ध की अवधारणा है। ब्राह्मण शब्द मुनि अथवा श्रमण का पर्यायवाची है।"

बुद्धकाल में 'ब्राह्मण' शब्द रूढ़ था. वह ब्राह्मणों की लिए ही प्रयोग होता था. यथा-                                            यम्हा धम्मं विजानेय्य सम्मा सम्बुद्ध देसितं.                                                                                                     सक्कच्चं तं नमस्सेय्य अग्गिहुत्तं व ब्राह्मणो. धम्मपद 393

जिस उपदेशक से बुद्ध द्वारा उपदिष्ट धर्म जाने, उसे वैसे ही नमस्कार करे जैसे ब्राह्मण अग्नि होत्र को.

बुद्ध ब्राह्मण की सर्वोच्चता को पसंद नहीं करते थे और इसलिए जब भी अवसर आया उन्होंने ब्राह्मण की गर्हा की. ऐसे ढेरों प्रसंग हैं जिन्हें इस सन्दर्भ में उल्लेखित किया जा सकता है. 

(4.) 

"ब्रह्मचर्या का अर्थ धम्मचरिया है।

निस्संदेह, ब्रह्मचरिया ही धम्मचरिया है. किन्तु सवाल यह नहीं है. सवाल यह है कि हर उत्तम  चीज में ब्रह्म कैसे घुस गया ?  जिस ब्रह्म को बुद्ध नकार रहे हैं, वह उत्तमता का प्रतीक कैसे हो सकती है ?

(5.) 

"ब्रह्मभूत शब्द का अर्थ निब्बूत अथवा सीतिभूत है, जो तथागत का उपनाम है।"

निब्बुत पालि शब्द है, जिसका अर्थ 'बुझ जाना' है. बाकि ब्राह्मणीकरण है. 

(6.)  

ब्रह्म, आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, देवलोक, परलोक  का बुद्ध ने उपदेश नहीं दिया. जबकि धम्मपद में अनेक गाथाये हैं जो इनका प्रचार करती हैं.

(7.)  

धम्मपद की ये गाथाये कौन सा उपदेश देती है, सिवाय ब्राह्मण सर्वोच्चता और स्वच्छंदता के ?                                          मातरं पितरं हन्त्वा, राजानो द्वे च खत्तिये.                                                                                                                      रट्ठं सानुचरं हन्त्वा, अनीघो याति ब्राह्मणो. 294

(8) 

ति-पिटक में जो बुद्धवचन के रूप में लिखा और कहा गया है, उसे 'बुद्धवचन' स्वीकारते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए(परिचय: डॉ. अम्बेडकर: बुद्धा एंड हिज धम्मा)

(9.)

बुद्धिज्म को समता का प्रतीक कहा जाता है, फिर धम्मपद में 'ब्राह्मणवग्ग' ही क्यों ? अन्य वर्गों का क्या अपराध था ? विशेष कर तब, जब ब्राह्मण के बारे में बुद्ध के अच्छे विचार नहीं थे.

(10.)

बुद्धा एंड हिज धम्मा में बाबासाहब अम्बेडकर ने ति-पिटकाधीन कई ग्रंथों से उद्धरण लिए हैं. उद्धरण को जस के तस लिखा जाता है.

(11.)

न ब्राह्मणस्स पहरेय्य नास्स मुंचेथ ब्राह्मणो.

धि ब्राह्मणस्स हन्तार ततो धि यस्स मुंचति. 389

ब्राह्मण पर प्रहार न करे, न ब्राह्मण उसे छोड़े.

ब्राह्मण हत्या करने वाले को धिक्कार है, उसको धिक्कार है, जो उसे छोड़ता है.

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