Wednesday, April 8, 2020

पालि सिक्खणं: डा. पप्फुल्ल-गडपालो


पञ्चवीसति पाठो
छट्ठी-विभत्ति
(नपुंसकलिंग-शब्द)
अब तक आपने पालि में छट्ठी विभत्ति के अन्तर्गत पुल्लिंग शब्दों तथा स्त्रीलिंग शब्दों को भली प्रकार से जान लिया हैं तथा इनके अनेक प्रयोग भी आप कर चुके हैं। इसी प्रकार आपने बहुत सारे वाक्यों का निर्माण भी कर लिया हैं।
अब आप पूर्व पाठ में पठित कुछ शब्दों के अर्थों को भी जानियें-
नच्चकी - नर्तकी
भगिनी - बहन
लेखनी - पेन
अंकनी - पेंसिल
दब्बी - चम्मच
सूची - सुई
कत्तरी - कैंची
पदस्सिनी - प्रदर्शिनी
अंगुली - उंगली
वेल्लनी - बेलन
आसन्दी - कुर्सी
कूपी - बोतल
वीजनी - पंखा
वीथी - गली
वापी - जलाशय
सम्मुज्जनी - झाडू
सुकरी - सुअर
दोण्णी - बाल्टी
अजी - बकरी
घटी - घड़ी
आप इन शब्दों के अर्थों को ठीक प्रकार से याद करके इनके छट्ठी-विभत्ति के रूपों को भी याद रखें। आप यह भी याद रखें कि पालि में जो शब्द जिस लिंग के अन्तर्गत प्रयुक्त किया गया है, उसे उसी लिंग में याद करना चाहिए, आपस में मिश्रित नहीं करना चाहिए।
ईकारन्त-इत्थीलिंग के शब्दों को छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करते समय ‘ई’ (दीर्घ/बड़ी ई) को ‘इ’ (ह्रस्व/छोटी इ) में परिवर्तित करके ‘या’ लगाना चाहिए। जैसे-
वापी - वापिया
घटी - घटिया
अजी - अजिया ..... इत्यादि।
आइये, अब हम नपुंसक-लिंग शब्दों का छट्ठी-विभत्ति में प्रयोग भी देखें।
नपुंसक-लिंग शब्दों का छट्ठी-विभत्ति में प्रयोग-
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अब नपुंसक-लिंग के कुछ शब्दों से बने छट्ठी-विभत्ति वाले वाक्यों का अवलोकन करें-
पोत्थकस्स धम्मपदं
पवत्तिपत्तस्स नवभारतं
भवनस्स ताजमहलं
पाटलिपुत्तस्स नाम पटना
घरस्स सोगतगेहं
यन्तस्स वीजनं
वत्थस्स साटिका
नपुंसक-लिंग शब्दों के छट्ठी-विभत्ति में प्रयोग बहुत ही सरल हैं। नपुंसक-लिंग शब्दों में निग्गहित (अनुस्वार) लगा होता है।
जैसे - फलं।
यहां फल-शब्द में निग्गहित लगा हुआ है।
जब इस प्रकार के शब्दों में से निग्गहित हटा दिया जाता है, तो मूल-शब्द (पाटिपादिक/प्रातिपदिक) शेष रहता है।
जैसे-
फलं=फल।
इसी पाटिपादिक में विभत्ति (स्स) लगाई जाती है।
जैसे-
पोत्थकं - पोत्थकस्स
पवत्तिपत्तं - पवत्तिपत्तस्स
अब कुछ ऐसे ही शब्दों को छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करें।
यथा-
पोत्थकं (पुस्तक) - पोत्थकस्स
पण्णं (पर्ण) - ............
चित्तं - ............
लोचनं - ............
फलं - ............
कमलं - ............
अमतं - ............
पुप्फं - ............
भत्तं - ............
नगरं - ............
ओदनं (भात) - ............
वाहनं - ............
आवुधं - ............
सासनं - ............
यानं - ............
पुञ्ञं - ............
पापं - ............
जलं - ............
वातापानं (खिड़की) - ............
रञ्ञं (राज्य) - ............
चीवरं - ............
सोपानं (सीढ़ी) - ............
उपनेत्तं (चश्मा) - ............
ञाणं - ............
भवनं - ............
पत्तं - ............
घरं - ............
यन्तं (यन्त्र) - ............
वीजनं (पंखा) - ............

चतुवीसति पाठो
छट्ठी-विभत्ति (ईकारन्त-इत्थीलिंग-शब्द-2)
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अब तक आप पालि में छट्ठी विभत्ति के आकारन्त स्त्रीलिंग शब्दों के अनेक प्रयोग द्वारा वाक्यों का निर्माण करके समझ लिया है तथा अनेक शब्दों को छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करके भी देख चुके हैं। 

अब आप ईकारन्त-स्त्रीलिंग शब्दों के प्रयोग को देखेंगे। 
यथा-
नच्चकिया नाम सुगन्धा
जननिया नाम ममता
भगिनिया नाम पञ्ञा
गोतमिया पति सुद्धोदनो
लेखनिया करियं लेखनं

नीचे कुछ शब्द और उनके रूप दृष्टव्य हैं-
लेखनी - लेखनिया
अंकनी - अंकनिया
दब्बी - दब्बिया
नटी - नटिया

इसी प्रकार चित्र में प्रदत्त उदाहरणों के आधार पर कुछ वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िये।

अब आप कुछ शब्दों को छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करें-
यथा-
लेखनी - लेखनिया
सूची - ............
नदी - ............
मालिनी - ............
कत्तरी - ............
पदस्सिनी - ............
नगरी - ............
कासी - ............
साञ्ची - ............
अंकनी - ............
वेल्लनी - ............
आसन्दी - ............
कूपी - ............
मागन्धी - ............
जननी - ............
वीजनी - ............
वीथी - ............
वापी - ............
पुत्ती - ............
कुमारी - ............
राजधानी - ............
सम्मुज्जनी - ............
देवी - ............
आकासवाणी - ............
सुकरी - ............
दोण्णी - ............
अजी - ............
घटी - ............
भिक्खुणी - ............
वानरी - ............
तरुणी - ............
सखी - ............

आप उक्त शब्दों के प्रयोग से अनेक वाक्य बना सकते हैं। अब आप इनके प्रयोग से वाक्यों का निर्माण करें।



तेवीसति पाठो
अब तक आपने पालि में छट्ठी विभत्ति के अनेक पुल्लिंग शब्दों और वाक्यों का अभ्यास कर लिया है। अब आप छट्ठी-विभत्ति के प्रयोग द्वारा पालि में पुल्लिंग शब्दों के प्रयोग द्वारा असंख्य वाक्यों का निर्माण करने में समर्थ हो चुके हैं। अब आप छट्ठी-विभत्ति में स्त्रीलिंग शब्दों के प्रयोग द्वारा बने कुछ वाक्यों को ध्यान से पढ़िये-
महामायाय पति सुद्धोदनो
गोपाय (यसोधराय) पति सिद्धत्थो
सेविकाय सामी अनाथपिण्डिको
वासवदत्ताय पति सुत्थको
इस प्रकार स्त्रीलिंग के ‘महामाया’ शब्द में ‘य’ जोड़कर बहुत ही आसानी से छट्ठी-विभत्ति के शब्द बनाये जा सकते हैं।
जैसे-
खेमा - खेमाय
गोपा - गोपाय
तिस्सरक्खिता - तिस्सरक्खिताय
वासवदत्ता - वासवदत्ताय
इसी प्रकार निम्नोक्त शब्दों के छट्ठी-विभत्ति में रूप बनाकर अपने अभ्यास को पुष्ट करें-
यथा-
बालिका - बालिकाय
नावा - ............
अनुजा - ............
महामाया - ............
पत्तिका - ............
कुञ्चिका - ............
लज्जा - ............
पोत्थिका - ............
सेविका - ............
कप्पना - ............
परम्परा - ............
अज्झापिका - ............
पूजा - ............
गायिका - ............
माला - ............
वन्दना - ............
गाथा - ............
वसुन्धरा - ............
मुद्दिका - ............
कथा - ............
यसोधरा - ............
भासा - ............
साखा - ............
गोपा - ............
लेखिका - ............
साटिका - ............
उमा - ............
सम्पादिका - ............
गोसाला - ............
छुरिका - ............
वेज्झा - ............
पिप्पीलिका - ............
पेटिका - ............
मक्खिका - ............
द्विचक्किका - ............
थालिका - ............
आप दिये गये चित्र की मदद से कुछ वाक्य बना सकते हैं।
यथा-
खेमाय पति सेनिय-बिम्बिसारो
आप सूची में प्रदत्त शब्दों के प्रयोग से अनेक वाक्य बना सकते हैं। अब आप इनके प्रयोग से 50 वाक्यों का निर्माण करें।

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बावीसति पाठो
अब तक आपने पालि में छट्ठी विभत्ति के अनेक शब्दों और वाक्यों का अभ्यास कर लिया है। अब तक आपने जो परिश्रम किया है, जो अभ्यास किया है तथा जो अध्ययन किया है - वह अब फल के रूप में आपके समक्ष आने ही वाला है। पालि-शिक्षण के इस उपक्रम में आज का पाठ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस महत्त्वपूर्ण पाठ को पूर्ण मनोयोग से जानने-समझने का प्रयास करें। वैसे तो यह बहुत ही सरल है, फिर भी सावधानी से पढ़ना चाहिए। अब आप छट्ठी-विभत्ति के प्रयोग द्वारा पालि में असंख्य वाक्यों का निर्माण करने में समर्थ हो चुके हैं।
यथा-
बुद्धस्स मुखं सुन्दरं
बुद्धस्स नाम सुगतो
बुद्धस्स धम्मो अनुत्तरो
बुद्धस्स संघो पुञ्ञमयो
बुद्धस्स सावकसंघो सुगतिको
बुद्धस्स सासनं उत्तमं
वनस्स राजा सीहो
गहस्स सामी गहपति
सुद्धोदनस्स भरिया महामाया
सिद्धत्थस्स भाता देवदत्तो
बालकस्स एतं पोत्थकं उत्तमं
कम्मकरस्स नाम मोहनो
अनाथपिण्डिकस्स जेतवनं
तिपिटकस्स पोत्थकं धम्मपदं
फलस्स नाम अम्बफलं
वत्थस्स वण्णो नीलो
भिक्खुस्स नाम भदन्त-आनन्दो
पसुस्स नाम सीहो
साकस्स नाम आलुकं
मासस्स नाम माघो
दिनस्स नाम गुरुवारो
करियालयस्स नाम सचिवालयो
देसस्स भारतं
पदेसस्स नाम महारट्ठं
नगरस्स नाम नागपुरं
गामस्स नाम उमरी
बुद्धस्स उपट्ठाको (सहायको) आनन्दो
जयस्स मित्तो वीरु
इस प्रकार अब आप छट्ठी विभत्ति में असंख्य वाक्यों का निर्माण कर सकते हैं। आपको परामर्श दिया जाता है कि अब तक प्राप्त शब्दावली और विभक्ति-ज्ञान के आधार पर आप एकदम सरल वाक्यों का निर्माण करें। छोटे-छोटे और सरल वाक्यों का निर्माण करते हुए ध्यान रखें कि हो सके तो केवल छट्ठी-विभत्ति के ही वाक्य बनाये, ताकि इस विभत्ति में आप पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त कर सकें। इस हेतु आपको कुछ चित्र भी दिये जा रहे हैं।
पूरे उत्साह, लगन और परिश्रम से 200 या अधिक वाक्यों का निर्माण करें। वाक्य बनाते समय संयम और धैर्य रखें। प्राप्त शब्दावली और ज्ञात शब्दों के आधार पर सरल वाक्य बनायें। वर्तनियों (मात्राओं) का विशेष ध्यान रखें।
अब आपको पालि-साहित्य से एक सुन्दर गद्यांश दिया जा रहा है। यह छट्ठी विभत्ति का बहुत सुन्दर उदाहरण है-
(1) ‘पठमकप्पिकानं किर रञ्ञो महासम्मतस्स रोजो नाम पुत्तो अहोसि। रोजस्स वररोजो, वररोजस्स कल्याणो, कल्याणस्स वरकल्याणो, वरकल्याणस्स मन्धाता, मन्धातुस्स उपोसथो, उपोसथस्स चरो, चरस्स उपचरो, उपचरस्स मक्खादेवो। मक्खादेवपरम्पराय चतुरासीति खत्तियसहस्सानि अहेसुं।’
इसी प्रकार नीचे दिये गये गद्यांश को भी ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास करें-
(2) एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे।
इस गद्यांश को समझने का प्रयास करें।
इसी प्रकार कुछ गाथाओं को देखते हैं-
(3) सब्ब-पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा।
सचित्त-परियोदपनं, एतं बुद्धान सासनं ।।
निधि-कण्ड-सुत्त में भी बहुत सुन्दर प्रयोग प्राप्त होता है-
(4) यस्स दानेन सीलेन, संयमेन दमेन च।
निधी सुनिहितो होति, इत्थिया पुरिसस्स वा॥
धम्मपद की वह गाथा भी अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिसमें छट्ठी-विभत्ति का प्रयोग हुआ है-
(5) सुखो बुद्धानमुप्पादो, सुखा सद्धम्मदेसना।
सुखा सङ्घस्स सामग्गी, समग्गानं तपो सुखो॥
इसी प्रकार धम्मपद के ब्राह्मण-वग्ग में छट्ठी-विभत्ति के अनेक प्रयोग प्राप्त होते हैं। वैसे तो सम्पूर्ण बुद्धवाणी (तिपिटक साहित्य) में इस विभत्ति का बहुत प्रयोग हुआ है, किन्तु आपको कुछ गाथाओं एवं अंशों से परिचय कराने के लिए थोड़े ही प्रयोग दिये गये हैं।
परिसिट्ठं
भावार्थ-
(1) प्रथम कप्पिकों के राजा महासम्मत का रोज नामक पुत्र हुआ। रोज का वररोज, वररोज का कल्याण, कल्याण का वरकल्याण, वरकल्याण का मन्धाता, मन्धाता का उपोसथ, उपोसथ का चर, चर का उपचर, उपचर का मक्खादेव। मक्खादेव की परम्परा में चौरासी हजार क्षत्रिय हुए।
(2) एक समय भगवान् सावत्थी (श्रावस्ती) में विहार कर रहे थे जेतवन में अनाथपिण्डिक के आराम में।
(3) सभी पाप का न करना, कुसल (कर्मों) की उपसम्पदा (संचय) करना तथा अपने चित्त को पूर्णतः परिशुद्ध करना - यह बुद्धों की शिक्षा है।
(4) दान, शील, संयम एवं इंद्रिय-दमन के पुण्य प्रभाव से ही किसी स्त्री अथवा पुरुष का यह धन सुरक्षित रह सकता है।
(5) सुखकर है बुद्धों का जन्म, सुखकर है सद्धम्म का उपदेश, सुखकर है संघ की एकता और सुखकर है एक साथ तप करना।
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एकवीसति पाठो
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छट्ठी-विभत्ति (पुल्लिंग-शब्द)
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आप जानते हैं कि दो या अधिक लोगों या वस्तुओं में सम्बन्ध बताने के लिए छट्ठी-विभत्ति का प्रयोग किया जाता है। पूर्व पाठ में आपने छट्ठी-विभत्ति को अच्छी तरह समझ लिया है। इसके अनेक उदाहरणों एवं वाक्यों को पढ़कर आपने इसके विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली है। अब हम कुछ और उदाहरणों के द्वारा अपने ज्ञान को परिपुष्ट करते हैं। आज आप तीन अभ्यासों की सहायता से पालि सीखेंगे।
(1) आपको कुछ चित्र दिये जा रहे हैं। इनकी सहायता से आप अनेक वाक्यों को बना सकते हैं।
जैसे-
सुद्धोदनस्स पुत्तो सिद्धत्थो
बिन्दुसारस्स पुत्तो असोको
चन्दग्गुत्तस्स पुत्तो बिन्दुसारो
इसी प्रकार उक्त वाक्यों को विपरित क्रम में इस प्रकार कहा जा सकता है-
सिद्धत्थस्स पिता सुद्धोदनो
असोकस्स पिता बिन्दुसारो
बिन्दुसारस्स पिता चन्दग्गुत्तो
चित्र के आधार पर आप अन्य वाक्यों में छट्ठी-विभत्ति का प्रयोग करके अपनी नोटबुक में लिखें।
(2) इसी प्रकार आप कुछ और भी वाक्य बना सकते हैं। जैसे-
महारट्ठस्स राजधानी देहली
मज्झप्पदेसस्स राजधानी भोपालं
राजट्ठानस्स राजधानी जयपुरं
उत्तरप्पदेसस्स राजधानी लखनऊ
बिहारस्स राजधानी पाटलिपुत्तं
आप इसे भी अपने अभ्यास में समुल्लिखित करें।
(3) आपको एक और अभ्यास दिया जा रहा है। इसे आप छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करते हुए छट्ठी-विभत्ति के अपने ज्ञान को सुपुष्ट कर सकते हैं-
जैसे-
विसुद्धिमग्गो लेखको बुद्धघोसो
आप इसका उत्तर इस प्रकार दे सकते हैं-
विसुद्धिमग्गस्स लेखको बुद्धघोसो
आज आप इस अभ्यास को पूर्ण करके ग्रुप में शेयर करें।
इसके पश्चात् हम छट्ठी-विभत्ति के कुछ अन्य प्रकारों एवं उदाहरणों के विषय में विस्तार से जानेंगे तथा बु़द्धवाणी (तिपिटक) से उदाहरण लेते हुए पालि भी सीखेंगे और बुद्धवाणी भी।
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वीसति पाठो
छट्ठी-विभत्ति (षष्ठी-विभक्ति)
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अब आप छट्ठी-विभत्ति का अध्ययन करने हेतु तत्पर हैं। छट्ठी-विभत्ति बहुत ही सरल विभक्ति है।
किसी भी भाषा में यह सबसे अधिक प्रयोग होने वाली विभक्ति है। अतः इस विभक्ति को बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए। इसी कारण आपको सर्वप्रथम इसी विभक्ति का अध्यापन किया जा रहा है।
इस छट्ठी-विभत्ति का प्रयोग सम्बन्ध को प्रकट करने हेतु होता है। इसमें 'सम्बन्ध-कारक' होता है। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव या पदार्थ के साथ सम्बन्ध प्रकट करने हेतु इस विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
हिन्दी में ‘का, की, के’ तथा मराठी में ‘चा, ची, चे’ और अंग्रेजी में 'of' के भाव को प्रकट करने हेतु 'सम्बन्ध-कारक' का प्रयोग होता है।
जैसे-
देसस्स नाम भारतं।
(देश का नाम भारत)
इसके पूर्व हमने ‘देसो’-शब्द का अध्ययन कर लिया है। ‘देसो’ शब्द का पाटिपदिक/प्रातिपदिक या मूल-शब्द है-‘देस’। जब हम ‘देस’-शब्द के साथ छट्ठी-विभत्ति लगाते हैं, तो यह बन जाता है - देसस्स।
आपने सूत्र पढ़ा ही है- (1) ओआ, (2) अंए, (3) नहि, (4) सनं, (5) स्माहि, (6) सनं, (7) स्मिंसु।
इस सूत्र में छठे क्रम में आया है - सनं।
इस सूत्र का ‘स’ ही हम किसी भी पाटिपदिक में जोड़ देते हैं, जिससे छट्ठी-विभत्ति का शब्द तैयार हो जाता है।
कुछ उदाहरण देखते हैं-
देसो - देस - देसस्स
बालको - बालक - बालकस्स
नरो - नर - नरस्स
बुद्धो - बुद्ध - बुद्धस्स
निगमो - निगम - निगमस्स
इस प्रकार छट्ठी-विभत्ति के शब्दों का निर्माण बहुत ही सरल है। आप केवल अकारन्त-पुंल्लिग या अकारन्त नपुंसक-लिंग शब्दों में ‘स’ लगा देते हैं, तो छट्ठी एकवचन के शब्द-रूप सिद्ध हो जाते हैं।
आइये अब हम कुछ उदाहरणों को देखते हैं-
देसस्स नाम नेपालं।
देसस्स नाम भूटानं।
देसस्स नाम अमेरिका।
देसस्स नाम जापानं।
देसस्स नाम सिरीलंका।
देसस्स नाम भारतं।
अब हम भारत के कुछ राज्यों के नामों को देखते हैं-
पदेसस्स नाम महारट्ठं।
पदेस्स नाम राजट्ठानं।
पदेसस्स नाम छत्तीसगढं।
पदेसस्स नाम गुजरातं।
ऐसे ही कुछ सम्बन्धों का प्रयोग करते हुए प्रदेशों के नामों को पालि में सीखते हैं-
पदेस्स नाम बिहारो।
पदेसस्स नाम उत्तरप्पदेसो।
पदेसस्स नाम मज्झप्पदेसो।
आइये, अब हम कुछ नगरों के नामों को भी देखते हैं-
नगरस्स नाम नागपुरं।
नगरस्स नाम रायपुरं।
नगरस्स नाम भोपालं।
नगरस्स नाम चन्दप्पुरं।
नगरस्स नाम जयपुरं।
इसी प्रकार
भारतस्स राजधानी देहली।
मज्झप्पदेसस्स राजधानी भोपालं।
उत्तरप्पदेसस्स राजधानी लखनऊ।
बिहारस्स राजधानी पाटलिपुत्तं (पटना)।
इस प्रकार हमने कुछ सरल वाक्यों का निर्माण करते हुए छट्ठी-विभत्ति के प्रयोग को सीख लिया है। अब हम कुछ और सम्बन्धों के विषय में सीखेंगे।
जैसे-
महामाया सिद्धत्थस्स माता।
सिद्धत्थो राहुलस्स पिता।
असोको कुनालस्स पिता।
वीतसोको असोकस्स भाता।
अजातसत्तु बिम्बिसारस्स पुत्तो।
अब हम कुछ छट्ठी-विभत्ति प्रयोगों को देखेंगे, कि किस प्रकार बड़ी ही सरलता और सहजता से पालि में छट्ठी-विभत्ति बनाई जा सकती है। जैसे -
देवदत्तो - देवदत्तस्स
सुद्धोदनो - सुद्धोदनस्स
असोको - असोकस्स
भटो - भटस्स
अंगुलीमालो - अंगुलीमालस्स
अब्भासो
अब क्रम है अभ्यास का। नीचे कुछ शब्द दिये जा रहे हैं। आप इन्हें छट्ठी-विभत्ति में परिवर्तित करें।
जैसे-
बालको - बालकस्स
गजो - ............
सीहो - ............
हरिणो - ............
दहरो - ............
वानरो - ............
अस्सो - ............
अज्झापको - ............
सेवको - ............
मोरो - ............
पाचको - ............
नायको - ............
दण्डो - ............
गायको - ............
चोरो - ............
रुक्खो - ............
देसो - ............
बुद्धो - ............
तरुणो - ............
सुद्धो - ............
मग्गो - ............
मच्छो - ............
सुको - ............
सुरियो - ............
गजो - ............
नरो - ............
नच्चकारो - ............
कलाकारो - ............
पप्फुल्लो - ............
देवो - ............
तथागतो - ............
सुगतो - ............
आचरियो - ............
अब आप समझ ही गये होंगे कि छट्ठी-विभत्ति कितनी सरल है।

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एकूनवीसति पाठो
पालि-सिक्खणं
विभत्ति-सुत्तं (विभक्ति-सूत्र)
अब तक के अध्ययन के आधार पर आप जान चुके हैं कि -
1. पालि निम्नोक्त में तीन लिंग होते हैं - पुंल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग।
2. तीनों लिंगों के शब्दों के मूलरूप को पाटिपदिक (प्रातिपदिक/मूल-शब्द) कहा जाता है। पाटिपदिक बनाना भी आप सीख ही चुके हैं।
3. आप यह भी जान चुके हैं कि इन्हीं पाटिपदिकों (प्रातिपदिकों) में सातों विभक्तियों को लगाया जाता है।
4. कच्चायन-व्याकरण के विभक्ति-सूत्र को भी आपने याद कर ही लिया है, जो इस प्रकार है-‘सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु’।
5. आप जानते ही हैं कि पालि में दो वचन होते हैं - एकवचन और अनेकवचन (बहुवचन)।
6. इसी प्रकार आप जान ही गये हैं कि पालि में सात विभक्तियाँ हैं। जो इस प्रकार हैं-
पठमा-विभत्ति (प्रथमा-विभक्ति)
दुतिया-विभत्ति (द्वितीया-विभक्ति)
ततिया-विभत्ति (तृतीया-विभक्ति)
चतुत्थी-विभत्ति (चतुर्थी-विभक्ति)
पञ्चमी-विभत्ति (पञ्चमी-विभक्ति)
छट्ठी-विभत्ति (षष्ठी-विभक्ति)
सत्तमी-विभत्ति (सप्तमी-विभक्ति)
इसके पश्चात् "आलपन" यानि सम्बोधन-पठमा का क्रम आता है।
7. उक्त सूत्र "सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु" सात लघु-शब्द हैं, जो सात विभक्तियों के प्रत्यय हैं और किसी भी पाटिपदिक (शब्द) में लगकर उस विभक्ति को द्योतित करते हैं। इसमें पहला अक्षर एकवचन के लिए तथा दूसरा अक्षरा बहुवचन के लिए प्रयुक्त होता है।
यहाँ पर इस सूत्र को लगाकर समझने का प्रयास करते हैं - ‘सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु’। आलपन का सूत्र ‘सिग’ है।
इस सूत्र के द्वारा ‘बुद्ध’ शब्द में प्रथमा-विभक्ति बनानी हो तो वह निम्नोक्त प्रकार से बनाई जायेगी-
- अकारन्त-पुंल्लिंग-‘बुद्ध’-सद्दो
(अकारान्त पुंल्लिंग ‘बुद्ध’ शब्द)
विभत्ति एकवचनं अनेकवचनं
पठमा बुद्ध+सि= बुद्धो बुद्ध+यो = बुद्धा
दुतिया बुद्ध+अं = बुद्धं बुद्ध+यो = बुद्धे
ततिया बुद्ध+ना = बुद्धेन बुद्ध+हि = बुद्धेहि
चतुत्थी बुद्ध+स = बुद्धस्स बुद्ध+नं = बुद्धानं
पञ्चमी बुद्ध+स्मा = बुद्धस्मा बुद्ध+हि = बुद्धेहि
छट्ठी बुद्ध+स = बुद्धस्स बुद्ध+नं = बुद्धानं
सत्तमी बुद्ध+स्मिं = बुद्धस्मिं बुद्ध+सु = बुद्धेसु
आलपनं बुद्ध+सि = बुद्ध बुद्ध+ग = बुद्धा
कच्चान-व्याकरण के अनुसार 'सि' की 'ओ'-संज्ञा हो जाती है तथा 'यो' की 'आ'। इस प्रकार यह शब्द प्रथमा-विभक्ति में इस प्रकार होगा-
बुद्धो बुद्धा
आप अच्छी तरह जानते हैं कि पालि-शिक्षण का यह उपक्रम पालि से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ लोगों के लिए सरलता से पालि सीखाने के लिए किया गया है। जिन लोगों के पास पालि सीखने का कोई साहित्य नहीं है, वे भी इन क्रमिक पाठों को सीख सकते हैं। अतः कच्चान-व्याकरण की लम्बी और थका देने वाली प्रक्रियाओं में न जाते हुए आपको कुछ सरल विधि बताई जा रही है।
तीनों लिंगों के लिए तीन नये सूत्र आपको दिये जायेंगे। आप इनकी सहायता से असंख्य शब्दों की विभक्तियाँ बना सकते हैं। ये तीनों सूत्र भी कहीं-न-कहीं उपर्युक्त सूत्र से ही बनाये गये हैं।
- स्वरान्त-शब्द -
इन सूत्रों को बताने से पूर्व आपको यह जानना आवश्यक है कि यह ‘किमन्त’ (किस स्वर से समाप्त होने वाला) शब्द है? यानि किस अक्षर से समाप्त होने वाला शब्द है?
आपने ऊपर शीर्षक में देखा है- अकारन्त-पुंल्लिंग-‘बुद्ध’-सद्दो (अकारान्त पुंल्लिंग ‘बुद्ध’ शब्द)। यानि बुद्ध शब्द एक पुंल्लिंग शब्द है, जो अकारन्त है।
आप जानते हैं कि पालि में 8 स्वर हैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए और ओ। अतः ये आठ स्वर ही पालि के सभी प्रकार के शब्दों के अन्त में स्थित होते हैं।
अब कोई शब्द अकारन्त, आकारन्त, इकारन्त, ईकारन्त, उकारन्त, ऊकारन्त, एकारन्त या ओकारन्त है, यह कैसे जाना जायें? यदि शब्द के अंत में 'अ' हो, तो वह अकारन्त-शब्द कहलाता है। 'आ' अंत में हो, तो आकारन्त कहा जाता है। 'इ' अंत में हो, उसे इकारन्त-शब्द कहते है। आगे इसी प्रकार समझना चाहिए।
इसे समझने के लिए हम एक शब्द देखते हैं-‘नरो’। नरो का पाटिपदिक (प्रातिपदिक) है - नर। अतः हम ‘नर’ शब्द में स्थित व्यंजनों और स्वरों को पृथक्-पृथक् करके देखते हैं -
न्+अ = न
र्+अ = र
इस प्रकार
न्+अ+र्+(अ) - ‘अ’ अन्त में है, अतः अकारन्त। (यह अकारन्त पुंल्लिंग शब्द है।)
एक और उदाहरण देखते हैं-
लता
ल्+अ+त्+आ - ‘आ’ अन्त में है, अतः आकारन्त। (यह आकारन्त स्त्रीलिंग शब्द है।)
इस प्रकार ‘नर’ शब्द अकारन्त-पुंल्लिंग तथा लता शब्द आकारन्त-स्त्रीलिंग है।
इसी प्रकार अन्य शब्दों के विषय में भी समझना चाहिए।
पालि-भाषा की सरलता का एक बहुत बड़ा कारण यह है कि इसमें सभी शब्द स्वरान्त हैं। अर्थात् इसमें प्रयुक्त सभी शब्दों के अन्त में कोई स्वर ही है, व्यंजन नहीं।
तीन सरल विभक्ति-सूत्र-
अब आप तीन सरल विभक्ति सूत्रों को जानें -
1. अकारन्त-पुंल्लिंग-शब्द -ओआ, अंए, नहि, सनं, स्माहि, सनं, स्मिंसु
2. आकारन्त-इत्थिलिंग-शब्द - आओ, अंओ, यहि, यनं, यहि, यनं, यंसु
3. अकारन्त-नपुंसकलिंग-शब्द - अंनि, अंनि, नहि, सनं, स्माहि, सनं, स्मिंसु
उक्त सूत्रों में प्रथम अक्षर एकवचन और द्वितीय अक्षर बहुवचन का प्रत्यय है।
अब आप शब्द के अन्त के अक्षर को पहचानकर हजारों अकारन्त-पुंल्लिंग, आकारन्त-इत्थिलिंग तथा अकारन्त-नपुंसकलिंग की विभक्तियों को बना सकते हैं। संलग्न चित्र को देखकर सीखने का प्रयास करें।
कुछ शब्दों की विभक्तियों को देखते हैं-
- अकारन्त-पुंल्लिंग-‘सुगत’-शब्द
विभत्ति एकवचनं अनेकवचनं
पठमा सुगतो (ओ) सुगता (आ)
दुतिया सुगतं (अं) सुगते (ए)
ततिया सुगतेन (न) सुगतेहि (हि)
चतुत्थी सुगतस्स (स) सुगतानं (नं)
पञ्चमी सुगतस्मा (स्मा) सुगतेहि (हि)
छट्ठी सुगतस्स (स) सुगतानं (नं)
सत्तमी सुगतस्मिं (स्मिं) सुगतेसु (सु)
- आकारन्त-इत्थिलिंग-‘साधिका’-शब्द
विभत्ति एकवचनं अनेकवचनं
पठमा साधिका (आ) साधिकायो (ओ)
दुतिया साधिकं (अं) साधिकायो (ओ)
ततिया साधिकाय (य) साधिकाहि (हि)
चतुत्थी साधिकाय (य) साधिकानं (नं)
पञ्चमी साधिकाय (य) साधिकाहि (हि)
छट्ठी साधिकाय (य) साधिकानं (नं)
सत्तमी साधिकायं (यं) साधिकासु (सु)
- अकारन्त-नपुंसकलिंग-‘वन’-शब्द
विभत्ति एकवचनं अनेकवचनं
पठमा वनं (अं) वनानि (नि)
दुतिया वनं (अं) वनानि (नि)
ततिया वनेन (न) वनेहि (हि)
चतुत्थी वनस्स (स) वनानं (नं)
पञ्चमी वनस्मा (स्मा) वनेहि (हि)
छट्ठी वनस्स (स) वनानं (नं)
सत्तमी वनस्मिं (स्मिं) वनेसु (सु)
उक्त रूपों के अतिरिक्त पालि की विविध विभक्तियों में कुछ रूप विकल्प के तौर पर भी आते हैं। उन रूपों को यथा-काल व यथा-प्रसंग बता दिया जायेगा।
अब्भासो (अभ्यास)
आप निम्नोक्त शब्दों की विभक्तियाँ बनाकर ग्रुप में शेयर करें-
- अकारन्त-पुंल्लिंग-सद्दा - विनयो, धम्मो, आनन्दो
- आकारन्त-इत्थिलिंग-सद्दा - उपासिका, छाया, वन्दना
- अकारन्त-नपुंसकलिंग-सद्दा - नगरं, हदयं, धम्मपदं
वायामो (प्रयास)
इसके अतिरिक्त अब आप निम्नोक्त वाक्यों को समझने का प्रयास करें-
- देसस्स नाम भारतं
- देसस्स नाम नेपालं
- देसस्स नाम भूटानं
- पदेसस्स नाम महारट्ठं
- पदेसस्स नाम मज्झप्पदेसो
- पदेसस्स नाम उत्तरप्पदेसो
- नगरस्स नाम नागपुरं
- नगरस्स नाम जयपुरं
- नगरस्स नाम भोपालं

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अट्ठदसो पाठो
पालि-सिक्खणं
पाटिपदिकं (प्रातिपदिक)
अब तक के अध्ययन के आधार पर आप जान ही चुके हैं कि पालि में तीन लिंग होते हैं। ये लिंग निम्नोक्त हैं-
1. पुंल्लिंग,
2. स्त्रीलिंग और
3. नपुंसकलिंग
आपको यहाँ यह स्मरण कराना सर्वथा प्रासंगिक है कि बुद्धवाणी में शब्दों का जिस लिंग में प्रयोग किया गया है, उसी लिंग में हमें भी प्रयोग करना चाहिए। अपनी तरफ से शब्दों में फेर-बदल नहीं करना चाहिए। अतः अब तक आपको जिन लिंगों में शब्दों को बताया गया है, उन्हें उसी प्रकार समझते हुए स्मरण करना चाहिए। आप इन शब्दों को अपनी नोटबुक में लिखकर अभ्यास कर सकते हैं।
भगवान् बुद्ध के निम्नोक्त वचन आपने अवश्य पढ़े होंगे-
‘चरथ, भिक्खवे, चारिकं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सानं; मा एकेन द्वे अगमित्थ; देसेथ, भिक्खवे, धम्मं आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसानकल्याणं सात्थं सब्यञ्जनं केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ।’
(अर्थात् भिक्खुओ! अधिकाधिक जनों के हित के लिए, अधिकाधिक जनों के सुख के लिए, लोक पर अनुकम्पा करने के लिए, देवताओं और मनुष्यों के प्रयोजन के लिए, हित के लिए, सुख के लिए विचरण करो। भिक्खुओ! उपदेश करने के लिए अकेले ही विचरण करो। भिक्खुओ! आरम्भ में, मध्य में और अन्त में, सभी अवस्थाओं में कल्याणकारी धम्म का उसके भावों और शब्दों सहित उपदेश करके सर्वांश में परिपूर्ण कर ब्रह्मचर्य को प्रकाशित करो।)
उक्त गद्यांश में ‘सात्थं सब्यञ्जनं केवलपरिपुण्णं’ इन शब्दों पर गौर करना चाहिए। यहां ‘सात्थं’ (अर्थसहित), ‘सब्यञ्जनं’ (अक्षर युक्त शब्दों सहित) तथा ‘केवलपरिपुण्णं’ (सर्वांश में परिपूर्ण) इसी बात के संकेतक है कि बुद्धवाणी को बिना किसी परिवर्तन के (जैसा है, वैसा ही) सीखना चाहिए।
अब तक आपने तीनों लिंगों में जो शब्द सीखे हैं, उनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
1. पुंल्लिंग शब्द - ये शब्द पुरुष-जाति के बोधक होते हैं। जैसे-बालको, बुद्धो, रुक्खो, मुनि, ञाणी, धम्मञ्ञू, सयम्भू, चित्तगो इत्यादि।
2. स्त्रीलिंग शब्द - ये शब्द स्त्री-जाति के बोधक होते हैं। जैसे-बालिका, उपासिका, कविता, भूमि, लेखनी, नदी, धेनु, वधू इत्यादि।
3. नपुंसकलिंग शब्द - ये शब्द पुरुष और स्त्री लिंग के अतिरिक्त अन्य श्रेणी के होते हैं। कुछ नपुंसकलिंग शब्द इस प्रकार हैं-फलं, पोत्थकं, अट्ठि, आयु इत्यादि।
उक्त तीनों प्रकार के शब्दों के मूलरूप (Root) को पाटिपदिक (प्रातिपदिक/मूलशब्द) कहा जाता है। हम निम्न प्रविधि द्वारा शब्दों के पाटिपदिक बना सकते हैं। जैसे-
शब्द पाटिपदिक (प्रातिपदिक)
- पुंल्लिंग-शब्द
बुद्धो बुद्ध
आनन्दो आनन्द
मुनि मुनि
ञाणी ञाणी
धम्मञ्ञू धम्मञ्ञू
सयम्भू सयम्भू
चित्तगो चित्तगो
- स्त्रीलिंग-शब्द
बालिका बालिका
उपासिका उपासिका
नदी नदी
वधू वधू
- नपुंसकलिंग-शब्द
फलं फल
विमानं विमान
अट्ठि अट्ठि
आयु आयु
आप कुछ तीनों लिंगों में 50-50 शब्दों को अपनी नोटबुक में लिखकर अभ्यास करें तथा ग्रुप में शेयर करें।
अब विशेष बात यह आती है कि इन्हीं प्रातिपदिकों में सातों विभक्तियों को लगाया जाता है।
कच्चायन-व्याकरण में एक विभक्ति-सूत्र आता है-
‘सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु’ (क.व्या. 2.1.4)
आप जानते ही है कि पालि में दो वचन होते हैं-
1. एकवचन और
2. अनेकवचन (बहुवचन)।
इसी प्रकार पालि में साथ विभक्तियाँ हैं। जो इस प्रकार हैं-
1. पठमा-विभत्ति (प्रथमा-विभक्ति)
2. दुतिया-विभत्ति (द्वितीया-विभक्ति)
3. ततिया-विभत्ति (तृतीया-विभक्ति)
4. चतुत्थी-विभत्ति (चतुर्थी-विभक्ति)
5. पञ्चमी-विभत्ति (पञ्चमी-विभक्ति)
6. छट्ठी-विभत्ति (षष्ठी-विभक्ति)
7. सत्तमी-विभत्ति (सप्तमी-विभक्ति)
इसके पश्चात् आलपनं (आलपन) यानि सम्बोधन-पठमा का क्रम आता है।
आप ध्यान पूर्वक देखेंगे तो ज्ञात हो जायेगा कि उक्त सूत्र ‘‘सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु’ सात लघु-शब्द हैं। जो इस प्रकार हैं-
1. सियो, 2. अंयो, 3. नाहि, 4. सनं, 5. स्माहि, 6. सनं, 7. स्मिंसु।
ये सातों सात विभक्तियों में इस्तेमाल किये जाते हैं। उक्त में पहला अक्षर एकवचन तथा दूसरा अक्षर अनेकवचन का द्योतक है।
सूत्र के अनुसार विभक्ति का प्रयोग पाटिपदिक (प्रातिपदिक) के अन्त में किया जाता है। जो इस प्रकार है-
विभत्ति एकवचन अनेकवचन
1. पठमा-विभत्ति सि यो
2. दुतिया-विभत्ति अं यो
3. ततिया-विभत्ति ना हि
4. चतुत्थी-विभत्ति स नं
5. पञ्चमी-विभत्ति स्मा हि
6. छट्ठी-विभत्ति स नं
7. सत्तमी-विभत्ति स्मिं सु
आलपन का सूत्र ‘सि ग’ है।
चित्र में दिये गये उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें तथा इन्हें समझने का प्रयास करें।
आज आप के लिए अभ्यास है कि ‘‘सियो अंयो नाहि सनं स्माहि सनं स्मिंसु’ इस सूत्र को बार-बार बोलकर रट लें तथा इसे रिकार्ड करके ग्रुप में शेयर करें।
आप इस सूत्र तथा विभक्ति की इन गुत्थियों से बिलकुल भी न घबरायें। आने वाले पाठों में आप बड़ी ही सरलता से इन विभक्तियों को सीख जायेंगे।
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सोळसो पाठो
पालि-सिक्खणं
नरसीह-गाथा द्वारा ‘एसो’ का स्पष्टीकरण
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
‘पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है।
आपने ‘सो’ सर्वनाम के अनेक प्रयोग देख चुके हैं तथा इन्हें अच्छी तरह से मनःसात् भी कर लिया है। अब आप ‘एसो’ (वह) के माध्यम से एक सुन्दर और चित्ताह्लादक दृश्य को पढ़ने की ओर अग्रसर है। पालि-परित्त, प्रातः संगायन (मार्निंग चेंटिंग) या धम्म-वन्दना में आप नरसीह-गाथा (नरसिंह-गाथा) का संगायन या पठन करते ही हैं। अब इस पाठ के द्वारा आप उन्हीं गाथाओं का स्पष्टीकरण प्राप्त करेंगे।
जिस समय अपने पिता राजा शुद्धोधन के आग्रह पर भगवान् बुद्ध कपिलवस्तु पधारे थे, उस समय राहुल-माता गोपा (यशोधरा) ने राहुल को इन्हीं शब्दों में तथागत का परिचय दिया था।
आप जानते ही हैं कि तथागत भगवान् गौतम बुद्ध की मैत्री और शान्ति की अद्भुत धर्मकाया की तरह उनकी शारीरिक काया भी अलौकिक सौन्दर्य से परिपूर्ण थी। ऐसा ही होता है, जब कोई व्यक्ति अपार पारमिताओं का संग्रह कर लेता है, तो उनकी झलक उसके शरीर और परिवेश को भी स्वयं में समाहित कर ही लेती है।
अस्तु, अपने पिता को पहले नहीं देखने के कारण वह वह अपनी माँ से पूछता है कि ‘मेरे पिता कौन हैं?’ तब माता उसे उसके पिता के विषय में बताती है कि ‘यह तेरे पिता है, जो नरों में सिंह के समान हैं’ (एस हि तुय्ह पिता नरसीहो)। इस दृश्य को कल्पना के माध्यम से समझने का प्रयास करें।
अब हम उन गाथाओं को सीधे समझने का प्रयास करते हैं-
- एसो पिता। (यह पिता।)
को पिता? (कौन पिता?)
एसो नरसीहो तुय्ह पिता। (यह नरसिंह तुम्हारा पिता।)
किदिसो एसो नरसीहो तुय्ह पिता? (किस प्रकार का यह नरसिंह तुम्हारा पिता है?)
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चक्क-वरंकित-रत्त-सुपादो,
लक्खण-मण्डित-आयत-पण्हि।
चामर-छत्त-विभूसित-पादो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 1।।
को पिता? (कौन पिता?)
(यो - जो)
1. चक्क-वरंकित-रत्त-सुपादो,
2. लक्खण-मण्डित-आयत-पण्हि,
3. चामर-छत्त-विभूसित-पादो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।
(भावार्थ-जिनके रक्त-वर्ण चरण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी लम्बी एड़ी शुभ-लक्षण वाली है, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से अंकित हो सुशोभित हो रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 1 ।।)
शब्दार्थ-
को - कौन
यो - जो
अत्थि - है।
..........................................................
को पिता? (कौन पिता?)
(यो - जो)
सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो,
लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो।
लोक-हिताय गतो नरवीरो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 2।।
को पिता?
(यो)
1. सक्य-कुमार-वरो सुखुमालो
2. लक्खण-चित्तिक-पुण्ण-सरीरो
3. लोक-हिताय गतो नरवीरो
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि।)
(भावार्थ-ये जो कुमार हैं, वे श्रेष्ठ शाक्य सुकुमार हैं, ये जो सुन्दर-चिद्दों से युक्त सुन्दर शरीर से संपन्न हैं, जिन्होंने लोकहित के लिए गृहत्याग किया है, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 2 ।।)
.........................................................
को पिता?
पुण्ण-ससंक-निभो मुखवण्णो,
देवनरान पियो नरनागो।
मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 3 ।।
को पिता?
(यो)
1. पुण्ण-ससंक-निभो मुखवण्णो,
2. देवनरान पियो नरनागो,
3. मत्त-गजिन्द-विलासित-गामी,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो।
(भावार्थ-जिनका मुख पूर्ण चन्द्र के समान प्रकाशित है। ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा सभी देवताओं और नरों के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 3 ।।)
.........................................................
को पिता?
खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो,
देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो।
सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 4 ।।
को पिता?
(यो)
1. खत्तिय-सम्भव-अग्गकुलीनो,
2. देव-मनुस्स-नमस्सित-पादो,
3. सील-समाधि-पतिट्ठित-चित्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।
(भावार्थ-ये जो अग्र क्षत्रिय कुलोत्पन्न हैं। ये जिनके चरणों की देव-मनुष्य सभी वन्दना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है; ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 4 ।।
..........................................................
को पिता?
आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो,
गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो।
इन्दधनु-अभिनील-भमूको,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 5 ।।
को पिता?
(यो)
1. आयत-युत्त-सुसण्ठित-नासो,
2. गोपखुमो अभिनील-सुनेत्तो,
3. इन्दधनु-अभिनील-भमूको,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)
(भावार्थ-ये जिनकी नासिका चैड़ी तथा सुडौल है, गाय के बछड़े की तरह जिनकी बरौनियाँ (पलकें) हैं, जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौहें इन्द्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 5 ।।)
..........................................................
को पिता? (कौन पिता?)
वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो,
सीहहनु मिगराज-सरीरो।
कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 6 ।।
को पिता?
(यो)
1. वट्ट-सुवट्ट-सुसण्ठित-गीवो,
2. सीहहनु मिगराज-सरीरो,
3. कञ्चन-सुच्छवि उत्तम-वण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)
(भावार्थ-ये जिनकी ग्रीवा गोलाकार है, सुगठित है, जिनकी ठोढ़ी मृगराज के समान है तथा जिनका शरीर मृगराज के समान है, जिनका वर्ण सुवर्ण (स्वर्ण) के समान आकर्षक है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 6 ।।)
.........................................................
को पिता? (कौन पिता?)
सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो,
हिंगुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो।
वीसति वीसति सेत-सुदन्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 7 ।।
को पिता?
(यो)
1. सिनिद्ध-सुगम्भीर-मञ्जु-सुघोसो,
2. हिंगुलबद्ध-सुरत्त-सुजिव्हो,
3. वीसति वीसति सेत-सुदन्तो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।
(भावार्थ-जिनकी वाणी स्निग्ध है, गम्भीर है, सुन्दर है; जिनकी जिह्ना सिंदूर के समान रक्तवर्ण है, जिनके मुख में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 7 ।।)
.........................................................
को पिता?
अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो,
कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो।
ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 8 ।।
को पिता?
(यो)
1. अञ्जन-वण्ण-सुनील-सुकेसो,
2. कञ्चन-पट्ट-विसुद्ध-नलाटो,
3. ओसधि-पण्डर-सुद्ध-सुवण्णो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)।
(भावार्थ-जिनके केस सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कंचन (सोने) के समान दीप्त है, जिनके भौंहों के बीच के बाल औषधि-तारे के समान शुभ्र (हल्के पीले) वर्ण है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 8 ।।)
.........................................................
को पिता? (कौन पिता?)
गच्छति नीलपथे विय चन्दो,
तारगणा-परिवेठित-रूपो।
सावक-मज्झगतो समणिन्दो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ।। 9 ।।
को पिता?
(यो)
1. गच्छति नीलपथे विय चन्दो,
2. तारगणा-परिवेठित-रूपो,
3. सावक-मज्झगतो समणिन्दो,
एस हि तुय्ह पिता नरसीहो (अत्थि)
(भावार्थ-जो आकाश में तारागण से घिरे चंद्रमा के समान बढ़े चले जा रहे हैं; जो श्रमणों में श्रेष्ठ (श्रमणेन्द्र) भिक्खुओं से उसी प्रकार घिरे हुए हैं-जैसे चन्द्रमा तारों से। वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं ।। 9 ।। )
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पञ्चदसो पाठो
पालि-सिक्खणं
पालि-साहित्य के प्रयोग से ‘सो’ का स्पष्टीकरण
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
‘पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। अब आप ‘सो’ सर्वनाम का पालि-परित्त, प्रातः संगायन (मार्निंग चेंटिंग) या धम्म-वन्दना में आये हुए सुत्तों या गाथाओं से स्पष्टीकरण प्राप्त करेंगे। ‘सो’ का अर्थ होता है-वह।
आपने पूज्य गोयनका गुरुजी की आवाज में प्रातः-संगायन में बहुत सारे सुत्तों एवं गाथाओं को सुना होगा। उस सुत्त-संगायन में निम्नोक्त पंक्ति को अवश्य सुना होगा या किसी पुस्तक में पढ़ा होगा-(संलग्न आॅडियो को सुनें)
इतिपि ‘सो’ भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिस-दम्मसारथी सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवा’ति।
यहाँ पर भी ‘सो’ आया है-इतिपि ‘सो’
इसका भी अर्थ होता है-वह।
अब हम आगे पढ़ेंगे-
1. सो भगवा
सो को? (वह कौन?)
सो भगवा
2. सो अरहं
सो को?
(सो) अरहं
3. सो सम्मासम्बुद्धो
सो को?
(सो) सम्मासम्बुद्धो
4. सो विज्जाचरणसम्पन्नो
सो को?
(सो) विज्जाचरणसम्पन्नो
5. सो सुगतो
सो को?
(सो) सुगतो
6. सो लोकविदू
सो को?
(सो) लोकविदू
7. सो अनुत्तरो
सो को?
(सो) अनुत्तरो
8. सो पुरिसदम्मसारथी
सो को?
(सो) पुरिसदम्मसारथी
9. सो सत्था देवमनुस्सानं
सो को?
(सो) सत्था देवमनुस्सानं
(सो) बुद्धो भगवा
उक्त विश्लेषण से अब आप इन शब्दों का अर्थ अवश्य समझ गये होंगे।
इस प्रकार पालि में बहुत जगह ‘सो’ एवं ‘एसो’ का प्रयोग पालि-सुत्तों में प्राप्त होता है।
अब आप पुनः पढ़े तथा अपने अभ्यास को पुष्ट करने के लिए गुरुजी द्वारा संगायित संलग्न संगायन को ध्यान से सुनें और याद करें-
इतिपि सो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिस-दम्मसारथी सत्था देवमनुस्सानं बुद्धो भगवा’ति।
(वह भगवान्, अर्हत्, सम्यक्सम्बुद्ध, विद्या-आचरण से सम्पन्न, सुगत (सुन्दर गति वाले), लोकविद् (लोक-लोकान्तर के रहस्य के ज्ञाता), अनुत्तर, अद्वितीय सारथी की भाँति (राग, द्वेष और मोह मंे फँसे हुए) मानव को ठीक रास्ते पर लाने वाले, देवताआंे और मनुष्यांे के शिक्षक-बुद्ध भगवान् है।)
इस प्रकार अब आप अवश्य पालि में बताये गये उक्त पाठ्य को समझ ही गये होंगे।
इसी प्रकार धम्म के गुण बताये गये हैं। उन गुणों का एक बार संगायन या पारायण कर लेना चाहिए। ये इस प्रकार हैं-
स्वाक्खातो भगवता धम्मो सन्दिट्ठिको अकालिको एहिपस्सिको ओपनेय्यिको पच्चत्तं वेदितब्बो विञ्ञू हीति।
अब हम प्रत्येक गुण को इस प्रकार समझ सकते हैं-
सो भगवता धम्मो
को भगवता धम्मो? (कौन सा भगवान् का धम्म?)
1. (सो) स्वाक्खातो भगवता धम्मो
सो को? (वह कौन?)
(सो) स्वाक्खातो भगवता धम्मो
2. सन्दिट्ठिको
सो को?
(सो) सन्दिट्ठिको (धम्मो)
3. अकालिको
सो को?
(सो) अकालिको (धम्मो)
4. एहिपस्सिको
सो को?
(सो) एहिपस्सको (धम्मो)
5. ओपनेय्यिको
सो को?
(सो) ओपनेय्यिको (धम्मो)
6. पच्चत्तं वेदितब्बो विञ्ञू
सो को?
(सो) पच्चत्तं वेदितब्बो विञ्ञू
अब उक्त पाठ्य को पुनः संगायित करते हुए समझने का प्रयास करते हैं-
स्वाक्खातो भगवता धम्मो सन्दिट्ठिको अकालिको एहिपस्सिको ओपनेय्यिको पच्चत्तं वेदितब्बो विञ्ञू हीति।
(भगवान् बुद्ध का धम्म सु-आख्यात (अनुभव की कसौटी पर कसकर सुन्दर ढंग से निरूपित किया हुआ) है। यह धम्म सान्दृष्टिक (ठोक-बजा कर देखने और परखने योग्य) है। अकालिक (सभी देशांे व समयांे मंे आचरण करने योग्य) है। एहिपस्सिक (आकर व अच्छी तरह परखकर देखने योग्य) है। यह धम्म उच्चता (निर्वाण तक) पहुँचाने वाला है। यह धम्म प्रत्यात्म (विद्वान पुरुषांे) द्वारा स्वयं अनुभव करने का विषय है।)
इसी प्रकार अब हम संघ-गुणों को भी समझने का प्रयास करें-
सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो-यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्ठपुरिसपुग्गला ‘एस’ भगवतो सावकसंघो, आहुणेय्यो, पाहुणेय्यो, दक्खिणेय्यो, अञ्जलिकरणीय्यो, अनुत्तरं पुञ्ञक्खेत्तं लोकस्साति।
संघ-गुणों को भी हम निम्नोक्त प्रकार से समझ सकते हैं-
(एसो सावकसंघो)
1. (एसो) सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
(एसो) को? (यह कौन?)
(एसो) सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
2. उजुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
(एसो) को?
(एसो) उजुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
3. ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो,
(एसो) को?
(एसो) ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
4. सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो-
(एसो) को?
(एसो) सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
5. यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्ठपुरिसपुग्गला एस भगवतो सावकसंघो
(एसो) को?
(एसो) यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्ठपुरिसपुग्गला-एस सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो
6. आहुणेय्यो
(एसो) को?
(एसो) आहुणेय्यो (सावकसंघो)
7. पाहुणेय्यो
(एसो) को?
(एसो) पाहुणेय्यो (सावकसंघो)
8. दक्खिणेय्यो
(एसो) को?
9. (एसो) दक्खिणेय्यो (सावकसंघो)
10. अञ्जलिकरणीय्यो
(एसो) को?
(एसो) अञ्जलिकरणीय्यो (सावकसंघो)
- अनुत्तरं पुञ्ञक्खेत्तं लोकस्साति।
उक्त पाठ्य को पुनः पढ़कर देखते हैं-
सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, ञायपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, सामीचिपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो-यदिदं चत्तारि पुरिसयुगानि अट्ठपुरिसपुग्गला एस भगवतो सावकसंघो, आहुणेय्यो, पाहुणेय्यो, दक्खिणेय्यो, अञ्जलिकरणीय्यो, अनुत्तरं पुञ्ञक्खेत्तं लोकस्साति।
(भगवान का सावक-संघ (शिष्यगण) भगवान् द्वारा बताए गए सुंदर (सुपटिपन्न/सुप्रतिपन्न), सरल ( उजुपटिपन्न/ऋजुप्रतिपन्न), ज्ञान (ञायपटिपन्नो/ज्ञायप्रतिपन्न) और समीचीन/ठीक (सामीचिपटिपन्न/समीचिन-प्रतिपन्न) मार्ग पर चलने में कुशल है। यह संघ चार युग्म श्रेणियांे तथा आठ अंगांे वाला है। यह सब बुद्ध श्रावकसंघ आहुणेय्य/आह्वानीय (आह्वान करने योग्य) है, पाहुणेय्य (पाहुणा/अतिथि बनाने योग्य) है, दक्खिणेय्य/दक्षिणेय (दान देने योग्य) है, और अञ्जलिकरणीय्य (हाथ जोड़कर/अंजलि बनाकर प्रणाम करने योग्य) है। मनुष्यों के पाप-क्षय और पुण्य-बुद्धि के लिए यह परम पावन अलौकिक पुण्य-क्षेत्र है।)
अब आप थोड़ा-थोड़ा पालि-भाषा ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं और सुत्तांश को समझ रहे हैं।
इस प्रकार आप ‘सो’ और ‘एसो’ की सहायता से मूल-पालि पाठ को समझने में सक्षम होने लगे हैं। ध्यान से अध्ययन करें। धैर्यपूर्वक जानने का प्रयास करें। आप जल्दी ही कुछ और सुत्तों का परिचय प्राप्त करेंगे।
अब आप यह भी घटना याद करने का प्रयास करें कि जब तथागत भगवान् बुद्ध राजा शुद्धोदन के आमन्त्रण पर प्रथम बार अपनी जन्मभूमि पर पधारे तथा भिक्खाटन कर रहे थे। तब माता यशोधरा ने राहुल कुमार को उसके पिता का परिचय देते हुए बुद्ध को ‘एस हि तुय्ह पिता नरसीहो’ कहा था। यानि इसमें भी ‘एसो नरसीहो’ कहा गया। अग्रिम पाठ में हम इसी के विषय में जानेंगे।
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चतुद्दसो पाठो
पालि-सिक्खणं
सो बुद्धो
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। बुद्धोयह एक पुल्लिंग शब्द है। अब भगवान् बुद्ध के चित्र की सहायता से आप सीखेंगे कि यदि बुद्ध का चित्र दूर है तो हम कहेंगे - सो बुद्धो
तब प्रश्न होता है-
को बुद्धो?
उनके गुणों के आधार पर उन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे-
सो भगवा बुद्धो।
सो सम्मासम्बुद्धो।
इसी प्रकार उन्हें इन नामों से भी जाना जाता है-
सो भगवा बुद्धो
सो अरहं
सो सम्मा सम्बुद्धो
सो विज्जाचरणसम्पन्नो
सो सुगतो
सो लोकविदू
सो अनुत्तरो
सो पुरिसदम्मसारथी
सो सत्था (देवमनुस्सानं)
इन नामों के अतिरिक्त उनके और भी अनेक नाम हैं। जैसे-
सो
सुगदो / सामी / सुखदो / सन्तिदायको / सब्बसत्तानुकम्पको / सब्बुत्तमो / सेट्ठो / समणग्गो / सन्तिस्सरो / भग्गरागो / भग्गदोसो / भग्गमोहो / भग्गमानो / भग्गमायो / यथावादी तथाकारी / तथपत्तो तथागतो / यथाकारी तथावादी / धम्मनियामे कोविदो / धम्मट्ठितिया कोविदो / वीतरागो / वीतदोसो / वीतकोधो / वीतभयो / वीतासवो / वीतमोहो / महावीरो / महासूरो / महाधीरो / महब्बलो / महासीलो / महाचित्तो / महाबुधो / महामुनि / महागुरु / नरगुरु / देवगुरु / गुरुवरो / जेट्ठगुरु / सेट्ठगुरु / विस्सगुरु / लोकगुरु/ धम्मगुरु / गुरुत्तमो / धम्मदो / विचित्तधम्मकथिको / नाथो / निरहंकरो / निरालम्बो / निरालयो / निरारम्भो / निप्पपञ्चो / निरासंको / निरातंको / निरंगणो / निस्संगो / निब्भयो / नरनिसभो / निच्छम्भी / नरकेसरी / निद्दरो/ वरनायको / ञाणिको / ञाणभूसनो / ञाणपारगू / ञाणगू / ञाणी / ञाणसम्पन्नो / पञ्ञासम्पन्नो / सब्बञ्ञू / धम्मञ्ञू / धम्मसम्पन्नो / ञाणमयो / ञाणालयो / ञाणकोविदो / ञाणदस्सनसम्पन्नो / ञाणभासी / ञाणविदू / कालभासी / कालविदू / सच्चभासी / सच्चविदू / मायामुत्तो / मोहमुत्तो / दोसमुत्तो / मोहमुत्तो
इतिपि सो को?
सो सक्यसीहो।
सक्यसीहो की तरह नरसीहोभी उनका एक नाम है।
उक्त नामों को ध्यानपूर्वक लिखें और पढ़े तथा आने वाले पाठों में मूल-पालि पाठ को समझने का प्रयास करें।
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तेरसो पाठो
पालि-सिक्खणं
लिंग-बोध
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। यह पाठ एक अभ्यासात्मक पाठ है। नीचे कोष्ठक में कुछ शब्द दिये गये हैं। इनमें कुछ पुल्लिंग, कुछ स्त्रीलिंग तथा कुछ नपुंसकलिंग शब्द हैं। आपको इनमें से समुचित स्थान में इन शब्दों को रिक्त स्थान में योजित करना है।
अब्भासो (अभ्यास)
मंजूसायं केचन सद्दा दत्ता सन्ति। तेसं उपयोगं कत्वा समुचितं रित्तट्ठलं पूरयन्तु।
(मंजूषा में कुछ शब्द दिये हुए हैं। उनका उपयोग करके समुचित रिक्त-स्थान पूर्ण करें।)
पुल्लिंग - स्त्रीलिंग - नपुंसकलिंग
सो/एसो - सा/एसा - तं/एतं
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(बालको, यानं, वीजनं, गायिका, जनको, आसन्दो, रुक्खो, घटी, नटी, फलं, पेटिका, दीपो, माला, लेखनी, घटो, नच्चकी, पत्तं, आपणो, द्वारं, सेविका, पण्णं, चक्कं, पाचको, चित्तं)
आगे के पालि शिक्षण की यह प्रमुख सीढ़ी है। जब आप लिंग को पहचानना सीख जायेंगे, तो इसके पश्चात् पालि की गाथाओं और सुत्तों को समझने में समर्थ हो सकेंगे।
इसके पश्चात् आप कुछ मूल सुत्तों तथा गाथाओं को सीखेंगे। अतः शीघ्रातिशीघ्र अभ्यास पूर्ण कर लें।
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बारसो पाठो
पालि-सिक्खणं
नपुंसकलिंग शब्द
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। इसके पूर्व आपने तंतथा एतंनपुंसकलिंग सर्वनाम का प्रयोग तथा अभ्यास पढ़ा। अब आप नपुंसकलिक के कुछ और शब्दार्थों को लिखकर याद करें तथा इनके सहयोग से 'तं' तथा 'एतं' के साथ 50-50 वाक्य-द्वय बनायें-
सद्दसूची (शब्द-सूची)
भवनं - भवन
फलं - फल
चक्कं - चक्र
पण्णं - पर्ण/पत्ता
चित्तं - चित्र
कंकणं - कंगन
मुखं - मुँह
अम्बं - आम
हदयं - हृदय
कमलं - कमल का पुष्प
पुप्फं - पुष्प/फुल
आलुकं - आलू
मन्दिरं - मन्दिर
पत्तं - पत्र (लेटर)/पत्ता/पात्र (बर्तन)
करांसुकं - सर्ट
पादांसुकं - पेण्ट
द्वारं - दरवाजा
नाणकं - सिक्का
वातापानं - खिड़की
कीळनकं - खिलौना
सोपानं - सीढ़ी
कण्हफलकं - ब्लेक बोर्ड
लोचनं - आँख/नेत्र
नगरं - नगर/शहर
उय्यानं - उद्यान (पार्क)
वनं - वन/जंगल
दुद्धं - दुग्ध/दूध
छत्तं - छत्र/छाता
वत्थं - वस्त्र (कपड़ा)
धम्मपदं - धम्मपद
उपनेत्तं - चश्मा
चेतियं - चैत्य
रञ्ञं - राज्य/प्रदेश
वीजनं - पंखा
वाहनं - वाहन
घरं - घर
पोत्थकं - पुस्तक
रेलयानं - रेलगाड़ी
जलं - जल
इन शब्दों को गम्भीरतापूर्वक याद करें तथा तीनों लिंगों के विषय में विशेषतः याद रखें-
दूर - समीप
(पुल्लिंग) सो - एसो
(स्त्रीलिंग) सा - एसा
(नपुंसकलिंग) तं - एतं
इसी के साथ लिंगों के विषय में कुछ बातों को जान लेना चाहिए-
1. पालि भाषा में तीन लिंग होते हैं-पुल्लिंग (पुरुषजाति बोधक), स्त्रीलिंग (स्त्रीजाति बोधक) तथा नपुंसकलिंग (नपुंसकलिंग जाति बोधक-पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग से इतर)।
2. इन लिंगों को ध्यानपूर्वक समझना चाहिए। प्रायः लोग लिंगों में अपप्रयोग (गलत प्रयोग) कर लेते हैं।
3. जिस क्रम से पाठों में लिंग बताये गये हैं। उसी क्रम से प्रयोग करना चाहिए।
4. प्रायः निम्नोक्त प्रकार की गलतियां देखने में आती है-
सुद्धं (शुद्ध) - असुद्धं (अशुद्ध)
सो बालको - सो बालिका
सो नरो - सा नरो
सा नारी - सो नारी
सा महिला - सो महिला
तं फलं - सो फलं
तं चित्तं - सा चित्तं
सो पुरिसो - तं पुरिसं
इन पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देकर सुधार करना चाहिए।
5. ये तमाम प्रयास बुद्धवाणी रूपी पालि-साहित्य तथा तिपिटक को समझने के लिए हैं। अतः ध्यानपूर्वक सीखना चाहिए। तिपिटक को समझने के लिए लिंग-ज्ञान बहुत आवश्यक होता है। पालि व्याकरण के महान् आचार्य कच्चान (कच्चायन/कात्यायन) ने सत्थुस्स तस्स वचनत्थवरं सुबोद्धुंइस पंक्ति के द्वारा स्पष्ट किया था कि वे शास्ता (भगवान् बुद्ध) के श्रेष्ठ वचनों को समझाने के लिए कच्चान-व्याकरणकी रचना कर रहे हैं। उन्हीं के अनुकरण पर पालि-शिक्षण का यह क्रम भी शास्ता के वचनों को समझने के लिए ही है। इसमें प्रमाद न करें।
6. याद रखें कि वाक्य में स्थित दोनों शब्दों में एक ही वर्तनी (मात्रा) का प्रयोग करें।
जैसे-
(अ) सो बालको
(इस वाक्य में दोनों शब्दों में अन्त में का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार दोनों शब्दों के एक साथ उच्चारण से एक रिदमउत्पन्न होता है।)
(आ) सा महिला
(प्रस्तुत वाक्य में दोनों शब्दों में अन्त में आया है। इस प्रकार दोनों के एक साथ उच्चारण करने से संगीतात्मकता उत्पन्न होती है।)
(इ) तं फलं
(उपर्युक्त वाक्य में दोनों शब्दों में अन्त में अंया निग्गहित का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार दोनों के एक साथ उच्चारण करने से एक संगीत पैदा होता है।)
तिपिटक के संगायन में जो संगीतात्मकता उत्पन्न होती है, उसका एक कारण इस प्रकार समान लिंगों में प्रयोग करना भी है। विशेष्य-विशेषण का साथ-साथ प्रयोग होने से भी ऐसा होता है।
7. अतः आपको परामर्श दिया जाता है कि इसके पूर्व में उपस्थापित पाठों में शब्दों को जिस लिंग में बताया गया है, उन्हें उसी प्रकार तथा उसी लिंग में याद कर लें।
कच्चान-व्याकरण में एक सूत्र आया है-लिङ्गञ्च निपच्चते। इस सूत्र के माध्यम से आचार्य कच्चान के द्वारा बुद्धोपदिष्ट वचनों में जिस अवस्था में प्रातिपदिक (मूल-शब्द) प्राप्त होते हैं, उन्हें उसी प्रकार स्वीकार करनेका निर्देश दिया गया है। यानि तथागत भगवान् बुद्ध द्वारा बुद्धवाणी तिपिटक में जो शब्द जिस लिंग में प्रयुक्त किये गये हैं, हमें उसी लिंग में उनका उच्चारण या प्रयोग करना चाहिए। अपनी तरफ से न तो कुछ जोड़ना चाहिए, ना ही कुछ कम करना चाहिए। अतः बड़ी सावधानी से लिंग-ज्ञान पुष्ट करना चाहिए।
8. यह विषय आने वाले पाठों में और भी अधिक स्पष्ट किया जायेगा।
9. एक और महत्त्वपूर्ण बात आपको यह बतायी जा रही है कि लिंगत्व पद में होता है, पदार्थ में नहीं।
10. पद का अर्थ होता है शब्द और पदार्थ यानि कोई वस्तु। इस प्रकार लिंगत्व शब्द में रहता है, किसी भौतिक वस्तु, व्यक्ति या स्थानादि में नहीं होता है।
11. पालि में लिंग-निर्धारण कर्ता की विभक्तियों से ज्ञात किया जा सकता है। किसी शब्द के अर्थ से लिंग का निर्धारण नहीं करना चाहिए। वस्तुतः पालि में लिंग-निर्धारण व्याकरण-प्रक्रिया अधिक है, प्राकृतिक कम।
12. उदाहरण के लिए मग्गो, वत्तनी, वटुमं क्रमशः पुल्लिंग, इत्थीलिंग और नपुंसकलिंग शब्द है। इन तीनों शब्दों का अर्थ एक ही होता है-मार्ग। इस प्रकार मार्ग शब्द का अर्थ देने वाले तीन शब्द तीनों लिंगों में उपलब्ध हैं। इस प्रकार पालि में लिंग-निर्धारण कठिन हैं। अतः इस विषय में सावधानी बरतनी चाहिए।
13. पालि में बहुत सारे शब्द पुल्लिंग और नपुसंकलिंग दोनों ही लिंगों में प्राप्त होते हैं। इन्हें द्विलिंगी या दुलिंगी शब्द कहा जाता है।
14. कुछ शब्द त्रिलिंगी भी होते है।
इसे ध्यान से पढ़कर अभ्यासों को जल्दी पूर्ण कर लें। इसके बाद आपको कुछ मनोरंजक अभ्यास दिये जायेंगे।
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एकादसो पाठो
पालि-सिक्खणं
तं तथा एतं (वह तथा यह)
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। अभी तक आपने सो व एसोएवं सा व एसाका भली प्रकार अध्ययन कर लिया है। अब आप तंतथा एतंका प्रयोग सीखेंगे।
जिस प्रकार दूर तथा समीप के लिए क्रमशः सो व एसोपुल्लिंग में प्रयोग होते हैं; ‘सा व एसास्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं-उसी प्रकार नपुंसकलिंग में तं व एतंलगाये जाते हैं।
नपुंसकलिंग में तंका प्रयोग दूर की वस्तु के लिए किया जाता है तथा एतंका प्रयोग पास की वस्तु के लिए किया जाता है। इस पाठ को आप ध्यानपूर्वक सीखें।
इसके पूर्व नपुंसकलिंग के शब्दों का प्रयोग आपने पूर्व पाठों में नहीं किया है। अतः इन नवीन शब्दों को अच्छी प्रकार स्मरण करें तथा वाक्यों में प्रयोग भी करें।
सबसे पहले हम दूर के अर्थ में प्रयुक्त होने वाले तंसर्वनाम का प्रयोग देखते हैं। जैसे-
तं कमलं (वह कमल)
तं नगरं (वह नगर)
तं घरं (वह घर)
तं जलं (वह जल)
तं धनं (वह धन)
इसी प्रकार समीप के लिए प्रयोग किये जाने वाले एतंसर्वनाम का प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है-
एतं तीरं (यह तीर/किनारा)
एतं फलं (यह फल)
एतं रथं (यह रथ)
एतं आसनं (यह आसन)
एतं हदयं (यह हृदय)
एतं मुखं (यह मुख)
अब आप जान ही गये होंगे कि पालि में नपुंसकवाची तंतथा एतं’ - इन सर्वनामों का प्रयोग क्रमशः वहऔर यहइस अर्थ में किया जाता है। इनका प्रयोग इस प्रकार होता है-
(दूर के लिए) - तं।
जैसे - तं आसनं।
(समीप के लिए) - एतं।
जैसे - एतं उपवनं।
इसी प्रकार नीचे सूची में दिये गये शब्दों तथा पूर्व में सीखें हुए शब्दों के आधार पर नपुसंकलिंग सर्वनाम शब्दों तंएवं एतंकी मदद से 50 वाक्य-द्वयं बनाकर अपना अभ्यास परिपुष्ट करें।
जैसे-
दूर - समीप
तं अम्बं - एतं पुप्फं
(वह आम) - (यह पुष्प/फुल)
तं द्वारं - एतं मुखं
तं वाहनं - एतं विमानं
तं धम्मपदं - एतं थेरापदानं
अब आप नीचे दिये गये शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा याद करें-
सद्दसूची (शब्द-सूची)
नगरं - शहर
रट्ठं - राष्ट्र
वनं/अरञ्ञं - जंगल
घरं - घर
पण्णं - पर्ण
मूलं - जड़
तीरं - किनारा
जलं - जल
कग्गजं - कागज
खीरं/दुद्धं - दूध
धञ्ञं - धान
सुवण्णं - सोना
नेत्तं - आँख
मत्थकं - मस्तक
सोतं - कान
मुखं - मुख/मुँह
आसनं - आसन
हदयं - हृदय
मञ्चं - चारपाई
भत्तं - भात
धनं - धन
पत्तं - पत्र/पत्ता
उपधानं - तकिया
पिट्ठं - पृष्ठ/पेज
चित्तं - चित्र
उपनेत्तं - चश्मा
वीजनं - पंखा
सासनावरणं - लिफाफा
पवत्तिपत्तं - समाचार-पत्र
अम्बं - आम
रेलट्ठानकं - रेल्वे स्टेशन
चलचित्तघरं - सिनेमा
पुलिस-ठानं - पुलिस-थाना
डाक-घरं - डाकघर
रथं - रथ
फलं - फल
विमानं - एयरो प्लेन
अब आप इन शब्दों को भली प्रकार बिना वर्तनियों (मात्राओं) में परिवर्तन किये ठीक तरह से याद करें। आने वाले पाठों में इन शब्दों की बहुत आवश्यकता होगी।
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दसमो पाठो
पालि-सिक्खणं
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
सा-एसा 
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका अभिनन्दन है। अब आप साऔर एसाके विषय में सीखेंगे।
जब कोई महिला, उपासिका, बालिका या मादा-प्राणी आदि दूर दिखाई दे, तो पालि भाषा में उसे साकहते हैं। साका अर्थ होता है-वह। इस सर्वनाम शब्द का पालि साहित्य में बहुत्र प्रयोग हुआ है। अतः इसे ध्यानपूर्वक जानना चाहिए।
जब कोई साधिका दूर स्थित हो, तो उसे पालि में सा साधिकाकहा जाता है। इसी प्रकार कुछ उदाहरणों को ध्यान से देखें-
सा साधिका (वह साधिका)
सा महिला (वह महिला)
सा गायिका (वह गायिका)
सा बालिका (वह बालिका)
सा नटी (वह नटी) ..... इत्यादि।
इसी प्रकार समीप की महिला या स्त्री-वर्ग को एसाकहा जाता है। एसाका अर्थ होता है-यह। इसके कुछ उदाहरण देखते हैं-
एसा उपासिका (यह उपासिका)
एसा भिक्खुनी (यह भिक्खुनी)
एसा सुजाता (यह सुजाता)
एसा धम्मसेविका (यह धम्मसेविका)
एसा माधुरी (यह माधुरी)
एसा तिस्सरक्खिता (यह तिष्यरक्षिता)
इस प्रकार पालि में स्त्रीवाची सातथा एसा’-इन सर्वनामों का प्रयोग क्रमशः वहऔर यहइस अर्थ में किया जाता है। इनका प्रयोग इस प्रकार होता है-
(दूर के लिए) - सा।
जैसे - सा गोपा।
(समीप के लिए) - एसा।
जैसे - एसा गोतमी।
इसी प्रकार नीचे सूची में दिये गये शब्दों तथा पूर्व में सीखें हुए शब्दों के आधार पर स्त्रीलिंग सर्वनाम शब्दों साएवं एसाकी मदद से 50 वाक्य-समूहों की रचना कर अपना अभ्यास सुदृढ़ करें।
जैसे-
दूर - समीप
सा बालिका - एसा वेजयन्ती
(वह बालिका) - (यह वैजयन्ती)
सा साविका - एसा साधिका
सा नायिका - एसा खलनायिका
सा जया - एसा हेमा
सद्दसूची (शब्द-सूची)
अच्छरा - अप्सरा
ऊका - जूँ
कुटिका - कुटी
किरिया - क्रिया
अजा - बकरी
दिसा - दिशा
उक्का - मशाल
कञ्ञा - कन्या
कसा - चाबुक
कुञ्चिका - चाबी
गीवा - गला
गुहा - गुफा
चन्दिमा - चन्द्रमा
चन्दिका - चाँदनी
जाला - ज्वाला
जिव्हा - जीभ
तुला - तराजू
धारा - प्रवाह
नावा - नौका
पजा - प्रजा
पताका - ध्वजा
पूजा - पूजा
मञ्जूसा - पिटारी
महिला - महिला
माला - माला
रथिका - गली
लता - लता
छाया - छाया
नासा - नाक
निसा - रात
मक्खिका - मक्खी
मातुच्छा - मौसी
मुत्ता - मुक्ता-मोती
साखा - शाखा
सिला - पत्थर
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नवमो पाठो
पालि-सिक्खणं
सो 
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका हार्दिक स्वागत है। अब आप एक नये विषय को सीखने की ओर अग्रसर है। इस पाठ को बिना किसी प्रमाद के सीखने का प्रयास करें। धैर्य से सीखें, ध्यान से सीखें, मन से सीखें।
जब कोई व्यक्ति दूर स्थित हो तो पालि में उसे सोकहा जाता है। सोका अर्थ होता है-वह। इस सर्वनाम शब्द का पालि साहित्य में बहुत प्रयोग हुआ है। अतः इसे ध्यानपूर्वक जानना चाहिए। जब कोई बालक दूर हो, तो उसे पालि में सो बालकोकहा जाता है। इसी प्रकार कुछ उदाहरणों को देखे-
सो साधको (वह साधक)
सो पुरिसो (वह पुरुष)
सो आचरियो (वह आचार्य)
सो गायको (वह गायक)
सो कलाकारो (वह कलाकार)
इसी प्रकार समीप के व्यक्ति को एसोकहा जाता है। एसोका अर्थ होता है-यह। इसके कुछ उदाहरण नीचे देखते हैं-
एसो पप्फुलो (यह प्रफुल्ल)
एसो उपासको (यह उपासक)
एसो भिक्खु (यह भिक्खु)
एसो धम्मपालको (यह धम्मपालक)
एसो असोको (यह अशोक)
एसो नटो (यह नट)
पालि में पुरुषवाची सोतथा एसोसर्वनामों का प्रयोग क्रमशः वहऔर यहइस अर्थ में किया जाता है। इनका प्रयोग इस प्रकार होता है-
(दूर के लिए) - सो
जैसे - सो बुद्धो
(समीप के लिए) - एसो
जैसे - एसो सावको
इसी प्रकार नीचे सूची में दिये गये शब्दों तथा पूर्व में सीखें हुए शब्दों के आधार पर पुल्लिंग सर्वनाम शब्दों सोएवं एसोकी मदद से 50 वाक्य-युग्मों का निर्माण करें। जैसे-
दूर - समीप
सो बालको - एसो पुरिसो
(वह बालक) - (यह बालक)
सो सावको - एसो उपासको
सो नायको - एसो खलनायको
सो अमिताभो - एसो अमरीसपुरी
दिये हुये चित्र की सहायता से इसे समझने का प्रयास करें।
सद्दसूची (शब्द-सूची)
जनको - पिता
पुत्तो/दारको - पुत्र
मनुस्सो/मानुसो - मनुष्य
धनिको - धनी
दलिद्दो/अध्नो - गरीब
गजो/हत्थी - हाथी
अस्सो/घोटको - घोड़ा
गद्रभो - गधा
कुक्कुरो - कुत्ता
वानरो - बन्दर
महिसो - भैंस
सकुणो - चिड़िया
काको - कौंआ
सुको - तोता
बको - बगुला
मोरो/मयूरो - मोर
सप्पो - सर्प
नकुलो - नेवला
निगमो - कस्बा
गोपो - ग्वाला
पब्बतो - पर्वत
तडागो - तालाब
समुद्दो - समुद्र
रुक्खो - वृक्ष
सुरियो - सूर्य
चन्दो - चन्द्र
गामो - ग्राम
आसन्दो - कुर्सी
देसो - देश
पासादो - महल
मज्जारो/बिडालो - बिल्ला
भूपति/राजा - राजा
गहपति - गृहस्थ
सेनापति - सेनापति
कवि - कवि
अतिथि - अतिथि
गिरि - पर्वत
रवि - सूर्य
रासि - ढेर/समूह
निधि - खजाना
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अट्ठमो पाठो
पालि-सिक्खणं
पालि  वर्णमाला 
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका हार्दिक स्वागत है। इस पाठ में आपको पालि भाषा की वर्णमाला के विषय में बताया जायेगा। आप जानते हैं कि किसी भी भाषा को जानने के लिये वर्णों का ज्ञान बहुत जरुरी होता है। इस पाठ को पढ़कर आप पालि भाषा के वर्णों के विषय में ठीक से जान पायेंगे।
कच्चायन-व्याकरण के अनुसार 41 वर्ण ही माने गये हैं। इन वर्णों में 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं। यथा-
स्वर - अ, , , , , , , ओ।
व्यंजन -
वर्ग - क ख ग घ ङ
वर्ग - च छ ज झ ञ
वर्ग - ट ठ ड ढ ण
वर्ग - त थ द ध न
वर्ग - प फ ब भ म
अन्तःस्थ - य र ल व
ऊष्म - स ह
ळ अं
अब इन वर्णों के विषय में कुछ आवश्यक तथा तकनीकी बातों को सावधानीपूर्वक जानना अत्यन्त चाहिए। जैसे कि ऊपर बताया जा चुका है कि पालि में 8 ही स्वर हैं।
स्वर वर्ण के विषय में ज्ञातव्य महत्त्वपूर्ण बातें -
, , , , , , , ओ - ये 8 स्वर हैं।
इन वर्णों को ध्यानपूर्वक याद करें। पालि में 8 ही स्वर होंगे-न कम, न ज्यादा।
ध्यान रखें कि इनमें दो-दो स्वरों के जोड़े को सवर्ण’ (समान वर्ण) कहा जाता है।
जैसे-
(1) ,
(2) ,
(3) ,
(4) ,
इन प्रत्येक वर्ग के प्रथम वर्ण को निम्न लिखित स्वरो को ह्रस्व’ (छोटा/लघु) कहा जाता है-
ह्रस्व स्वर - अ, ,
इसी प्रकार निम्नोक्त स्वर दीर्घ (बड़ा/गुरु) कहे जाते हैं -
दीर्घ स्वर - आ, , , , ओ।
व्यंजन वर्णों के विषय में महत्त्वपूर्ण तथ्य -
पालि के व्यंजनों को पाँच-पाँच वर्णों के रूप में व्यवस्थित किया गया है। जैसे - कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग। इसके अतिरिक्त अन्तस्थ, ऊष्म तथा अन्य वर्ण भी वर्णमाला के अन्तर्गत आते हैं। ध्यानपूर्वक इन्हें लिखकर याद करें-
वर्ग - क ख ग घ ङ
वर्ग - च छ ज झ ञ
वर्ग - ट ठ ड ढ ण
वर्ग - त थ द ध न
वर्ग - प फ ब भ म
अन्तःस्थ -य र ल व
ऊष्म - स ह
ळ अं
इस प्रकार वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 33 होती है। जिनमें पाँच-पाँच वर्णों के पाँच वर्ग बनाये गये हैं। इन वर्गों का नामकरण इनके वर्गों के प्रथम वर्ण के नाम पर रखा गया है। जिस प्रकार परिवार के प्रथम सदस्य (बड़े व्यक्ति) के नाम से उस घर की पहचान होती है, कि यह अमुक का घर है; उसी प्रकार वर्ग के प्रथम वर्ण के आधार पर उस वर्ग का नाम निर्धारित किया गया है। जैसे- कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग। इन वर्गों को बहुत ध्यानपूर्वक तथा सावधानीपूर्वक जानें।
आगे चलकर इसकी बहुत आवश्यकता पड़ती है तथा आपको भाषा के अनेक पहलुओं को जानने-समझने में सहायता मिलती है।
स्मरणीय बातें-
अब आप निम्नोक्त बातों को ध्यानपूर्वक स्मरण रखें।
1. ‘अंको निग्गहीत कहा जाता है। निग्गहीत का तात्पर्य है-अनुस्वार। यानि शब्द पर ( ं ) अनुस्वार लगाया जाता है, तो उसे निग्गहीत कहते हैं। जैसे-
बुद्धं - इसमें बुद्ध के साथ जो ( ं ) लगाया गया, वह निग्गहीत है।
2. पालि में म्का प्रयोग नहीं किया जाता। वस्तुतः पालि में हलन्त होता ही नहीं। यानि व्यंजन-वर्ण हलन्त नहीं होते और न पद के अन्त में स्थित निग्गहीत म्की लिखा जाता है। यथा-
पालि में बुद्धं सरणं गच्छामिलिखा जाता है।
बुद्धम् शरणम् गच्छामिअशुद्ध है। (पालि में म्तो होता ही नहीं।)
3. पालि भाषा में और का प्रयोग नहीं होता है। इनके स्थान पर केवल का ही प्रयोग किया जाता है।
4. पालि भाषा में नहीं होता।
5. इस भाषा में विसर्ग ( : ) भी नहीं होता है। अतः किसी भी शब्द में विसर्ग को योजन नहीं करना चाहिए।
6. इसमें तथा भी नहीं होते हैं। '' की जगह "ए" और '' की जगह "ओ" का प्रयोग किया जाता है।
7. इसमें क्ष, त्र, ज्ञ का प्रयोग नहीं होता है। प्रायः क्ष के स्थान पर क्ख’, त्र के स्थान पर त्ततथा ज्ञ के स्थान पर का प्रयोग किया जाता है।
8. पालि में विसर्ग और रेफ भी नहीं होते। रेफ का कहीं-कहीं लोप हो जाता है और कहीं-कहीं वह के रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे-
सुरियो - सूर्य
अरियो - आर्य
करियं - कार्य
कहीं कहीं हटकर समीपस्थ आधा अक्षर भी आ जाता है। जैसे-
कम्म - कर्म
धम्म - धर्म
र् का भी लोप होता है। जैसे-
जैसे- पकासो - प्रकाश
परिस्समो - परिश्रम
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि पालि-व्याकरण के महान् वैयाकरण आचार्य मोग्गलान ने अपने मोग्गल्लान-व्याकरण में एॅतथा ओ ॅको भी वर्ण माना हैं। इसका अनुकरण बाद के आचार्यों ने भी किया। ये दोनों वर्ण ह्रस्व माने जाते हैं। अतः आचार्य मोग्गलान के अनुसार 43 वर्ण माने गये हैं।
नोट-पालि भाषा में वर्ण विशेष है। यह हिन्दी तथा लौकिक संस्कृत में प्रयुक्त नहीं होता, किन्तु मराठी तथा पंजाबी में इसका प्रचलन है।
यह भी जाने कि वैदिक भाषा में 64 वर्ण होते हैं और संस्कृत में 50, लेकिन पालि भाषा में 43 या 41 वर्ण होते हैं।
पालि की इस वर्णमाला को ठीक तरह से याद करें तथा लेखन के अवसर पर इनका अच्छी तरह प्रयोग करें।
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सत्तमो पाठो
पालि-सिक्खणं
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ में आपका हार्दिक स्वागत है।
आपने अब तक अनेक वाक्य बनाने सीख लिये हैं। अब आप कुछेक और शब्दों को ध्यानपूर्वक पढ़िये-
पुल्लिंग-सद्दा इत्थिलिंग-सद्दा
(पुरिस-जाति-वाचका) (इत्थिलिंग-जाति-वाचका)
पुरिसो (पुरुष) महिला/इत्थी (स्त्री)
नरो नारी
सेवको सेविका
युवको युवती
साधको साधिका
उपासको उपासिका
धम्मसेवको धम्मसेविका
संघरक्खितो संघरक्खिता
समाजसेवको समाजसेविका
भिक्खु भिक्खुणी
सावको (श्रावक) साविका (श्राविका)
बुद्धसावको (बुद्धश्रावक) बुद्धसाविका (बुद्धश्राविका)
धम्मपालको धम्मपालिका
धम्मकथिको (धम्मकथिक) धम्मकथिका
उपदेसको (उपदेशक) उपदेसिका (उपदेशिका)
देसको (उपदेशक) देसिका ( उपदेशिका)
माणवको (विद्यार्थी) माणविका (विद्यार्थिनी)
छत्तो (छात्र) छत्ता (छात्रा)
दहरो (युवा) दहरा (युवती)
सेवानिब्बुतो (सेवानिवृत्त) सेवानिब्बुता (सेवानिवृत्ता)
धम्मिको (धार्मिक) धम्मिका (धार्मिका)
आचरियो (आचार्य) आचरिया (आचरिया)
पाचरियो (प्राचार्य) पाचरिया (प्राचार्या)
उपज्झायो (उपाध्याय) उपज्झाया (उपाध्याया)
सच्चवादी (सत्यवादी) सच्चवादिनी (सत्यवादिनी)
बालको बालिका
धम्मट्ठो (धर्मिष्ठ) धम्मिट्ठा (धर्मिष्ठ)
महिसो (राजा) महिसी/राणी
वरो (वर) वधू (वधू)
वरो (श्रेष्ठ) वरा (श्रेष्ठा)
अवेरो (वैररहित) अवेरा (वैररहिता)
उत्तमो उत्तमा
सेट्ठो (श्रेष्ठ) सेट्ठा (श्रेष्ठ)
सन्तो (शान्त/सन्त) सन्ता (शान्त)
अधिकारी अधिकारिणी
विपस्सी (विपश्यी/विदर्शी) विपस्सिका (विपश्यिका/विदर्शिका)
गहपति (गृहपति/गृहस्थ) गहपतिनी (गृहिणी)
गही (गृही/गृहस्थ) घरणी (गृहिणी)
भूपति भूपतिनी
मित्रो! बिना समय गंवाये खूब अध्ययन करें तथा आगे जाकर परियत्ति-विद्या को अच्छी तरह समझने हेतु कृत-संकल्पित हो जायें।
विशेष - इस पाठ तथा पूर्व पाठ के आधार पर कल्पना करते हुए अहंके साथ इन शब्दों को जोड़कर 50 वाक्यों का निर्माण करें। यथा-
अहं आचरियो
अहं सेवको
अहं सावको
अहं धम्मिको
अहं दहरो ........इत्यादि।
अब्भासो (अभ्यास)
50 वाक्य

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पञ्चमो पाठो
पालि-सिक्खणं
अञ्ञं-मञ्ञं परिचयो
प्रिय अध्येता मित्रो!
नमो बुद्धस्स!
पालि भाषा शिक्षण के इस पाठ के माध्यम से हम आपका हार्दिक स्वागत करते हैं।
अब तक आपने पालि में परिचय करना भली प्रकार से सीख लिया है। आपने अपना नाम बताना इस प्रकार से सीखा है-
अहं पप्फुल्लो
इसके पश्चात् आप दूसरों से परिचय इस प्रकार पूछ सकते हैं-
भवं को? (आप कौन है?) पुरुष-वर्ग के लिए
तथा
भोति का? (आप कौन है?) स्त्री-वर्ग के लिए।
आप जान ही गये होंगे कि नाम के साथ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-
गोतमो
गोतमो’ = गोतम+ओ
अतः प्रश्न पूछते समय भी कोका प्रयोग किया जाता है।
को+ओ
यानि दोनों शब्दो में का ही प्रयोग करें।
इसी प्रकार महिलाएँ भी अपना परिचय इस प्रकार दे सकती हैं-
अहं पूजा
इसमें भी अन्त में आया है।
प्+ऊ+ज्+आ
अतः प्रश्न पूछते समय भी भोति काइस प्रकार प्रयोग किया जाना चाहिए। दोनों ही शब्दों में का प्रयोग किया जाना चाहिए।
अस्तु, अब इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए हम अपने विषय में कुछ और अधिक बातों को सबके समक्ष उद्घाटित करेंगे। जैसे-
अहं पप्फुल्लो - अहं आचरियो
(आचरियो = आचार्य)
आप (पुरुष-वर्ग) भी जिस किसी व्यवसाय से जुड़े हैं, निम्नोक्त सूची को पढ़कर अहंके पश्चात् लगाये-
आचरियो = आचार्य
कलाकारो = कलाकार
लेखको = लेखक
सम्पादको = सम्पादक
अज्झापको = अध्यापक
सिक्खको = षिक्षक
कस्सको = कृषक
इसी प्रकार स्त्री-वर्ग भी अहंके पश्चात् निम्न प्रकार से व्यवसाय को लगाये। यथा-
अहं लेखिका
लेखिका = लेखिका
आचरिया = आचार्या
कलाकारा = कलाकारा
सम्पादिका = सम्पादिका
अज्झापिका = अध्यापिका
सिक्खिका = षिक्षिका
कस्सिका = कृषिका
अब आप ग्रुप में अहंके साथ अपने व्यवसाय को भी लिखें। जैसे-
अहं अमितो - अहं कलाकारो
तथा
अहं रोझा - अहं अज्झापिका
साथ ही एक चित्र दिया जा रहा है। इसे ध्यान से देखकर व्यवसाय को समझे तथा ग्रुप में इस प्रकार कमेंट करें-
अहं.......................... अहं ..........................
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पालि-सिक्खणं
चतुत्थो पाठो
आदरणीय महानुभावो एवं मित्रो!
नमो बुद्धाय!
हार्दिक स्वागत तथा वन्दन।
अब तक आपने निम्नोक्त विषयों को जाना है-
1. मम नाम .................. (मेरा नाम ........................)
2. भवन्तस्स नाम ..................... (आपका नाम ...................) - पुरुष-जाति के लिए
3. भोतिया नाम ................ (आपका नाम ..........................) - स्त्री-जाति के लिए
4. भवन्तस्स नाम किं? (आपका नाम क्या है?)
5. भोतिया नाम किं? (आपका नाम क्या है?)
ध्यान रखें अनुस्वार ( ं या निग्गहित या बिन्दु) का उच्चारण संस्कृत के म्या ( ं ) की तरह न हो यानि अन्त में आधे मका उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ( ं ग् ) की तरह उच्चारण किया जाना चाहिए। इस हेतु संलग्न आॅडियो सुने।
वस्तुतः पालि शिक्षण का यह चौथा पाठ प्रस्तुत करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है। देशभर से बड़ी संख्या में लोगों का प्रतिसाद प्राप्त हो रहा है। इस शिक्षण उपक्रम के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि आज देश में पालि पढ़ने के इच्छुकों की संख्या बहुत अधिक है। पालि संवर्धन प्रतिश्ठान के विभिन्न व्हाटस्अप ग्रुप्स तथा फेसबुक के माध्यम से बहुत सारे जिज्ञासुओं तथा पालि-शिक्षणार्थियों ने इसे बड़ी ही प्रसन्नता से स्वीकार किया है। किन्तु एक खेद भी व्यक्त करना चाहता हूँ कि बहुत सारे लोगों में पालि सीखने की इच्छा तो हैं, किन्तु वस्तुतः बिना पढ़े ही वे पालि सीख जाना चाहते हैं; ऐसा कदापि सम्भव नहीं है। बिना पढ़े या बिना अभ्यास किये कोई भाषा सीखी नहीं जा सकती है। इन छोटी-छोटी पोस्ट्स को आप ध्यानपूर्वक पढ़े तथा समझकर फिर उत्तर दें। आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि कृपया प्रत्येक बार-बार पढ़कर विषय को स्पष्ट करने का प्रयास करें। इसके पश्चात् ही आप कमेंट करके पूछे गये विषय या अभ्यास को कमेंट में लिखें। ध्यानपूर्वक पढ़ना तथा ध्यानपूर्वक सुनना बहुत आवश्यक है। आज हमारी आदत बिना पढ़े ही, बिना समझे ही कमेंट करने की हो चुकी है। याद कीजिये थ्री इडियटके उस दृश्य की; जिसमें नायक (आमिर खान) कक्षा में प्रोफेसर के कहें जाने पर ब्लैकबोर्ड पर कोई शब्द लिखकर प्रश्न पूछता है। वहाँ उपस्थित छात्र बिना विषय को समझे ही पुस्तक में उसका उत्तर ढूँढने लगते हैं। आप ऐसा न करें। बिना ठीक से पोस्ट को पढ़े, कोई कमेंट न करें। यदि समझ में नहीं आता, तो ग्रुप में ही जिज्ञासा प्रकट करें। इससे दूसरों का भी लाभ होगा। यदि कोई व्यक्तिगत कठिनाई हो तो सीधे भी सम्पर्क किया जा सकता है। इस कार्य में अनुज आषीश गड़पालभी आपका यथोचित मार्गदर्शन करेंगे।
भगवान् बुद्ध ने ठीक से अध्ययन करने को उत्तम मंगलकहा है-
बाहुसच्चं च सिप्पं च’ (अर्थात् बहुश्रुत होना, धम्मग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त करना तथा शिल्प सीखना उत्तम-मंगल है।)
उस समय श्रुत-परम्परा होने के कारण सुनने से ही अध्ययन होता था, किन्तु आज सुनने के साथ पढ़ना भी पढ़ता है। अतः आप ध्यानपूर्वक पालि सीखें तथा प्रत्येक सदस्य पोस्ट को पढ़कर कमेंट अवश्य करें, ताकि यह जाना जा सकें कि आप विषय को मनःसात् कर पा रहे हैं।
अहं
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इसके पश्चात् आप पालि में परिचय के एक और प्रकार को सीखेंगे। जैसे-
अहं पप्फुलो (मैं प्रफुल्ल)
यहाँ अहंका अर्थ है मैं
इसी के आधार पर आप अपना परिचय एक बार पुनः प्रदान करें। जैसे-
अहं आसीसो
अहं हस्सवड्ढनो
अहं पेमजि
अहं भिक्खु संघानन्दो
अहं मोबिनो
अहं असोको
अहं रवि ............... इत्यादि।
स्त्रीवर्ग भी इसी प्रकार परिचय दें। जैसे-
अहं पीति
अहं पूजा
अहं सरणा
अहं संघमित्ता
अहं रोझा ............ इत्यादि।
यह भी ध्यान रखें कि आपसे बीच-बीच में कुछ प्रश्न पूछे जायेंगे। तो आप उनका उत्तर अहं ......................इस प्रकार दें। प्रश्न केवल दो ही होंगे, जो इस प्रकार हैं-
1. भवं को? (आप कौन?) पुरुष-वर्ग के लिए
2. भोति का? (आप कौन?) स्त्री-वर्ग के लिए
आप अपनी फोटो पोस्ट करें और नीचे लिखें-
अहं ....…............
कुछ चित्र भी आपको पोस्ट किये जा रहे हैं। इन्हें भी ध्यानपूर्वक देखें और विषय को समझने का प्रयास करें। पूरे शिक्षण की यह एक महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है, यह ध्यान रखें।
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पालि-शिक्षण
द्वितीय भाग
आदरणीय महानुभावो एवं मित्रो!
नमो बुद्धाय!
पालि भाषा शिक्षण के इस समूह में आपका हार्दिक स्वागत है।
पालि-शिक्षण रूपी बुद्धवाणी के ज्ञानाधारित इस मंगल-पथ हमने कदम रख दिया है। अब कदम-कदम चलते हुए इस मार्ग में प्रगति करते हुए वांछित गन्तव्य में पहुँचने का सत्संकल्प लें। धीरे-धीरे आप वहाँ तक अवश्य पहुँच जायेंगे।
पालि सीखना बहुत सरल है। वस्तुतः पालि एक सरल भाषा है। विशेषतः भारतीयों के लिए तो यह सरल है ही। भारत के किसी भी प्रान्त के निवासियों के लिए सचमुच पालि सीखना एक सरल कार्य है। चाहे मराठी-भाषी लोग हो या गुजराती; हिन्दी-भाषी हो या हिन्दी की किसी भी उपभाषा या बोली को बोलते हो; गुजराती हो या पंजाबी; भोजपुरी, मगधी (मागधी) या मैथिली बोलने वाले हो अथवा ओड़िआ (उड़िया) में दैनिक-व्यवहार सम्पादित करने वाले हो; हरियाणवी (कौरवी इत्यादि) में भावाभिव्यक्ति करते हो या राजस्थानी (मारवाड़ी इत्यादि) का इस्तेमाल करते हो; राजस्थान की भाषा से अपने मन की बात करने वाले हो या पर्वतीय भाषाओं (हिमाचली, गढ़वाली, कुमाउँनी या पूर्वोत्तर की भाषाएँ) में भाषण करते हो अथवा दक्षिण-भारतीय भाषाओं से अपना काम निपटाते हो - सभी भाषाओं में 70-75 प्रतिशत या अधिक शब्द पालि-भाषा के ही हैं। एकदम वैसे ही या थोड़े से परिवर्तन के साथ हम भारतीय अपने दैनिक जीवन में पालि के ही शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस मायने अंशतः कहीं न कहीं हम पालि ही बोलते हैं। इसी कारण पालि पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैसे हम अपनी ही भाषा को पढ़ रहे हैं। सच ही यह प्राचीन भारत में एक बहुत बड़े क्षेत्र में पालि एक जनभाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। यह जन-भाषा थी। जन-जन इस भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति कर रहा था। इतनी सदियों बाद भी जनभाषात्व का वह गुण हमारी जनभाषाओं में विद्यमान है। इस मायने सबके अन्तःकरण में पालि के बीज सुप्तावस्था में विद्यमान हैं ही। बस, एक बारिश की आवश्यकता है। अब पालि-शिक्षण के इस उपक्रम के द्वारा पालि की बारिश आरम्भ हो गई है। अब सबके हृदय में स्थित बीज समय से अंकुरित होंगे, पौधे बनेंगे और अभ्यास करते-करते बड़े-बड़े वृक्ष बन जायेंगे।
इतिहास के आईने में झाँकने पर देखते हैं कि पालि इस देश में लम्बे समय तक नहीं रही, किन्तु भारत के बाहर पड़ौसी देशों में खूब फली-फूली और अनन्त लोक-मंगल में सहायक बनी। चाहे जो कारण रहे हो-पालि इस देश में नहीं रही, परन्तु इसकी सुगन्ध को इस देश के संस्कारों, रीति-रिवाजों, लोक-व्यवहार, लोकोक्तियों, मुहावरों, लोक-मान्यताओं, सन्त-वाणियों, सुभाषितों, सूक्तियों और शब्द-सम्पदा में सहज ही महसूस किया जा सकता है। इस मायने यह कहते चलें कि देष की समस्त भाषाओं के शब्द-कोष पालि-शब्दार्थ के साथ रचे जाने चाहिए और प्रकाशित किये जाने चाहिए। जैसे-मराठी-पालि शब्दकोष, हिन्दी-पालि शब्दकोष, गुजराती-पालि शब्दकोष, तेलुगु-पालि शब्दकोष इत्यादि।
एक और उदाहरण से इस बात को स्पष्ट करते हैं। जैसे किसी सुखी हुए घास-फूस के किसी विशाल ढेर को एक नन्हीं सी चिनगारी भी जलाकर भस्मीभूत कर देती है। ईंधन और अग्नि के मिलन से आग का गुब्बार उठने लगता है। उसी प्रकार पालि के इन थोड़े से दिनों के शिक्षण व अभ्यास से आप के भीतर स्थित विशाल पालि-ज्ञान का भण्डार जलकर आपके व्यक्तित्व को दैदीप्यमान कर देगा। पालि के निरन्तर शिक्षण और अभ्यास से पालि आपको अपनी-सी भाषा लगने लगेगी। वास्तविकता तो यह है कि यह आपकी ही भाषा है...आपकी अपनी। लेकिन व्यवहार और अध्ययन नहीं होने के कारण ये नई-सी लगती है। ये तो रही कुछ बातें जो पालि की सरलता और सहजता की। कुछ शिक्षण और अभ्यास के द्वारा इस बात को पुष्ट किया जायें और पालि-शिक्षण में एक कदम आगे बढें-
पालि भाषा- शिक्षण के इस क्रम में हम परिचय करना सीखेंगे। किसी भी भाषा में परिचय शिक्षण की पहली सीढ़ी होती है। पालि शिक्षण में भी यह क्रम अपनाया जाता है। पालि में परिचय करना बहुत आसान है। यथा-
मम नाम पफ्फुल्लो
(मेरा नाम प्रफुल्ल)
यहाँ, मम = मेरा तथा नाम = नाम।
उक्त तीन शब्दों में से दो शब्द हमारे पूर्व परिचित शब्द हैं। पालि इतनी सरल भाषा है। जब भी आप अपना परिचय देते हैं या नाम बताते हैं, तो नाम के अन्त में का प्रयोग करें। (यह एक प्रत्यय है।) जैसे-
राहुल - राहुलो
राजीव - राजीवो
विजय - विजयो.....इत्यादि।
तो कोई राहुलनाम का बालक या व्यक्ति अपना परिचय इस प्रकार देगा-
मम नाम राहुलो
अब आप भी अपना परिचय इसी प्रकार दे सकते हैं या अपना नाम बता सकते हैं। पालि परिचय का यह कदम बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा इसे बड़े ध्यान से सीखना चाहिए। इसके प्रति उपेक्षा, उदासी या आलस्य ना रखें। यह सबसे महत्त्वपूर्ण बात है।
इसी प्रकार नीचे कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं-
मम नाम आनन्दो
मम नाम विनयो
मम नाम गोतमो
मम नाम सामो
मम नाम कस्सपो
मम नाम अंकितो
मम नाम अनाथपिण्डिको
मम नाम भारतो
मम नाम कपिलो
मम नाम अमतलालो
मम नाम अजयो
मम नाम विकासो
मम नाम मोहनो.....इत्यादि।
इनके अतिरिक्त ऐसे भी अनेक नाम होते हैं, जो दो शब्दों को मिलाकर (सन्धि करके, जोड़कर) बनाये जाते हैं। ऐसे शब्दों के विषय में थोड़ी सी जानकारी कर लेना आवश्यक होता है। ऐसे नामों को थोड़े परिवर्तन के साथ पालि में प्रयोग किया जाता है। ऐसे ही कुछ नाम नीचे दिये जा रहे हैं-
(मम नाम ................................)
हिन्दी पालि
महेश महिसो (महा+इसो)
नरेश नरिसो
सुरेश सुरिसो
राकेश राकिसो
हितेश हितिसो
दिनेश दिनिसो
दिनेन्द्र दिनिन्दो (दिन+इन्दो)
राजेन्द्र राजिन्दो
मच्छिन्द्र मच्छिन्दो
शैलेन्द्र सेलिन्दो
नितेन्द्र नितिन्दो
बुद्धप्रिय बुद्धप्पियो (बुद्ध+पियो)
धम्मप्रकाश धम्मप्पकासो
इसी प्रकार के कुछ परिवर्तन नामों में होते हैं। आगे के शिक्षण तथा अभ्यासों में इन्हें तथा अन्य नामों तथा नियमों को स्पष्ट किया जायेगा। ध्वनि-परिवर्तन के नियमों के तहत इनके विषय में और अधिक स्पष्टता प्रकट की जायेगी।
ध्यान रखे पालि में सन्धि के नियम नियत नहीं है। कहीं-कहीं दो स्वरों के मेल से (सन्धि से) दीर्घता (बड़ी मात्रा) होती है और कहीं-कहीं ह्रस्वता (छोटी मात्रा) और कहीं-कहीं कोई बदलाव नहीं होता हैं।
उक्त सभी नाम पुरुषवाचक हैं। ये पुरुषों के नाम हैं।
स्त्री-वर्ग या उपासिकाएँ भी इसी प्रकार सहजता से अपना परिचय दे सकती हैं। जैसे-
मम नाम सुजाता
मम नाम लता
मम नाम सारिका
मम नाम संघमित्ता
मम नाम याचना
मम नाम संघप्पिया
मम नाम चित्तरेखा
मम नाम गीता
मम नाम सुरेखा
मम नाम सालिनी
मम नाम वेसाली
मम नाम अम्बपाली
इत्यादि....। इसी प्रकार अन्य स्त्रीवाचक नाम सीधे-सीधे बताये जा सकते हैं।

एक बात और कहनी है। मेरे फेसबुक Prafull Gadpal पर मेरे द्वारा रचित गीत पालिभासा अतिसरलाचित्र और विडियो के रूप में उपलब्ध है। आप चित्र के माध्यम से इसे ध्यानपूर्वक पढ़े और वीडियो में गाये गये गीत को ध्यानपूर्वक सुने तथा उसे गाकर रिकार्ड करके वाट्स्-अप, फेसबुक या अन्य संचार माध्यमों द्वारा शेयर करें। इसका कारण यह है कि कोई भी भाषा को सीखने के चार स्तर होते हैं-सुनना, बोलना, लिखना और पढ़ना। आप पढ़-लिख तो लेते हैं, किन्तु सुनना और बोलना भी आवष्यक होता है। इन चारों चरणों को यह अभ्यास पूर्ण करेगा और पालि-गीत के माध्यम से हम समाज में पालि का प्रचार भी कर पायेंगे।
ध्यान रखें अनुस्वार ( ं या निग्गहित या बिन्दु) का उच्चारण संस्कृत के म्या ( ं ) की तरह न हो यानि अन्त में आधे मका उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ( ं ग् ) की तरह उच्चारण किया जाना चाहिए। ( ं ) का उच्चारण करते समय मुँह खुला हुआ रहना चाहिए, बन्द नहीं होना चाहिए। इस हेतु संलग्न आॅडियो सुने।



निवेदन
आदरणीय महानुभावो एवं मित्रो!
विनम्र अभिवादन,
‘‘पालि भाषा शिक्षण के इस उपक्रम में आपका हार्दिक स्वागत है।’’
विश्वव्यापी महामारी कोरोना-वायरस के फैलने के कारण यह समय हम सभी के लिए बहुत ज्यादा नाजुक और कठिन है। इस कठिन समय यदि हम घर में रहें, तो ही सुरक्षित रह पायेंगे; लेकिन घर में रहना भी बहुत कठिन लग रहा होगा। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे कठिन समय में घर में रहते हुए हम अपनी ऊर्जा का प्रयोग पालि शिक्षण, ध्यान और अध्ययन में कर सकते हैं तथा नया ज्ञान अर्जित कर सकते हैं या अपने ज्ञान को परिपक्व कर सकते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस समूह में वर्चुअल या ऑनलाइन पालि शिक्षण का क्रम शुरू किया जा रहा है। आप आशा और विश्वास रखें कि आप में से जो भी पालि सीखना चाहते हैं, वे इन 20-25 दोनों में अवश्य ही पालि में परिपूर्ण ज्ञान अर्जित कर पायेंगे। इस हेतु आपसे मेरी केवल एक ही गुजारिश है और इसके लिए सबसे आवश्यक भी है, वह है--धैर्य। आप धैर्य धारण करते हुए धीरे-धीरे पालि का अध्ययन शुरू करें और मात्रा 20-25 दिनों में निम्नोक्त विषयों को जान पायेंगे तथा लाभान्वित होंगे-
- आप 20,000 से अधिक नवीन पालि के शब्द तथा उनका अर्थ को जान पायेंगे।
- 20,000 से अधिक नवीन पालि शब्दों का सभी विभक्तियों में शुद्ध और समुचित प्रयोग करने में सक्षम हो जायेंगे।
- पालि व्याकरण तथा भाषा-विज्ञान की बारीकियों और प्रयोग से सुपरिचित तथा दक्षता प्राप्त कर पायेंगे।
- 200 से अधिक धातुओं (क्रियापदों) का विविध कालों में सहजता और सरलता से प्रयोग करने में समर्थ हो जायेंगे।
- 10,000 से अधिक पालि वाक्यों को स्वयं बना पायेंगे और इसके पश्चात अनेक वाक्यों का निर्माण कर पायेंगे।
- पालि वन्दना, परित्त-पाठ तथा प्रातःकालीन वन्दना में संगायित गाथाओं या सुत्तों का बिना किसी अनुवाद के सीधे समझने में दक्षता प्राप्त कर लेंगे।
- पालि-भाषा में बातचीत कर पायेंगे तथा अपने मनोभावों और भावनाओं को प्रभावी तरीके से अभिव्यक्त करने में सक्षम हो सकेंगे।
किन्तु उक्त में सबसे बड़ा लाभ आपका ये होगा कि आप भगवान् बुद्ध की कल्याणकारी षिक्षाओं को समझने हेतु पालि शिक्षण का एक मार्ग प्राप्त कर लेंगे। इसी प्रकार धीरे-धीरे कार्य करते रहे, तो आप पालि भाषा तथा परियत्ति मार्ग में आगे बढ़ पायेंगे।
भगवान् बुद्ध के वचनों का रक्षण-पोषण करने के कारण इस भाषा को पालिकहा जाता है। इसी कारण यह उनके वचनों की मां है। इस मायने यह हमारी भी मां है। इसकी रक्षा और पालन-पोषण हमारी सबकी संयुक्त जिम्मेदारी है। अतः हमें पालि का शिक्षण, प्रचार-प्रसार, अनुसन्धान और संवर्धन अवश्य ही करना चाहिए।
शीघ्र ही विविध माध्यमों से मैं आपसे सम्पर्क करुंगा। वह लाइव फेसबुक हो सकता है अथवा व्हाटस्अप हो सकता है या वीडियोज हो सकते हैं या शिक्षण हेतु चित्र, रेखाचित्र, वाक्यमाला, पीडीएफ फाईल्स हो सकती हैं। मेरा लक्ष्य आपसे संवाद स्थापित करते हुए पालि सीखाना है। इसमें मैं प्रत्येक सदस्य से संवाद स्थापित करना चाहूँगा किन्तु आप धैर्य तथा समझदारी का परिचय दें।
हम यहाँ पालि भाषा का शिक्षण प्रदान करेंगे। इस शिक्षण के दौरान न तो पालि-साहित्य का इतिहास पढ़ाया जायेगा, ना ही इसकी प्राचीनता-नवीनता के चर्चे होंगे। इसमें दार्शनिक चर्चा भी नहीं होगी। अतः आप केवल और केवल पालि के व्याकरणांशों को सीखने का धैर्यपूर्वक प्रयास करें और इसे दूसरों तक भी पहुँचायें। सफलता मिलेगी ही...
आपका
- डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल
8126485505

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