1956 में धम्म दीक्षा के अवसर पर नागपुर में बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ कराई थी। धर्मान्तरित बौद्ध, इन प्रतिज्ञाओं को अपने मुतिदाता के अंतिम वचन मानते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे महापरिनिर्वाण सुत्त में आनंद को दिए गए उपदेश 'अत्त दीपो भव' को बुद्ध के अनुयायी मानते हैं। जिस तरह बुद्धानुयायी, पांच शीलों को जीवन की आचार- संहिता के तौर पर ग्रहण करते हैं, ठीक उसी प्रकार बाबासाहेब अम्बेडकर के अनुयायी भी इन 22 प्रतिज्ञाओं को जीवन की आचार-संहिता मानते हैं।
बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त ये प्रतिज्ञाएँ, उन सड़े-गले आदर्शों से हमें बाहर निकालती है, जो हमारी वैयक्तिक और सामाजिक अवनति के लिए जिम्मेदार है, वहीँ उन उच्च आदर्शों पर चलने को प्रेरित करती है जो समता, स्वतंत्रता और बधुता का आधार है. हमारे मुक्तिदाता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त ये 22 प्रतिज्ञाएँ, हमारी पहचान है। ये हमें दूसरों से अलग करती है, हमारे चरित्र और संस्कारों को गढ़ती है, गैरों से पृथक करती है.
बाबासाहेब द्वारा प्रदत्त 22 प्रतिज्ञाएं हमारे सोच को निर्धारित करती है। यह धम्म की रीढ़ है। यह बुद्ध के धम्म का केंद्र है। आज से 2500 हजार वर्ष पहले, बुद्ध ने हिन्दू सामाजिक व्यवस्था और ब्राह्मणी दर्शन से खुद को अलग करते हुए इन प्रतिज्ञाओं की नीव रखी थी। ईश्वर में अविश्वास, आत्मा में अविश्वास, आत्मा के संसरण में अविश्वास, वेदों में अविश्वास, उपनिषदो में अविश्वास, ब्राह्मणी-ग्रंथों में अविश्वास, ब्रह्म में अविश्वास, ब्रह्मा के सृष्टि कर्ता होने में अविश्वास, कर्म-पुनर्जन्म में अविश्वास, चतुर्वर्ण-व्यवस्था में अविश्वास, ऊंच-नीच के घृणा पर आधारित जाति-पांति में अविश्वास ... ये 22 प्रतिज्ञाएँ ही थी. बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर इन प्रतिज्ञाओं को आसमान से नहीं लाए थे। ये पूरी की पूरी उन्होंने बुद्ध से ली थी(भारत में बौद्ध आंदोलन की भावी दिशा: डॉ पी टी बोराले: संकलन डॉ विमलकीर्ति)। समता-स्वतंत्रता और बंधुता का ये दर्शन उन्होंने बुद्ध से लिया था।
नए जीवन में प्रवेश करने के मूलाधारों को प्रथम आठ प्रतिज्ञाओं में निहित रखा गया है जो उन्हें वर्तमान बौद्ध विरोधी कृत्यों से बचाते हैं और सभी मनुष्यों में एकता प्रतिपादित करने के लिए उत्साह प्रदान करते हैं। 9 से 10 तक में समता और उसके लिए प्रयास की बात है(वही)। 11 और 12 में अष्टांगिक मार्ग और दस पारमिता का पालन, 13 से 17 में पञ्च शील, 18 वीं प्रतिज्ञा में प्रज्ञा, शील, करुणा, ति-रत्न का उपदेश है। 19 वीं प्रतिज्ञा में मानव-मात्र के उत्थान के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को ऊंच-नीच मानने वाले हिन्दू धर्म को छोड़ने तथा उसका परित्याग करने की बात कही गई है। 20, 21 और 22 वीं प्रतिज्ञा में बुद्ध धम्म को एक नए जीवन के रूप में स्वीकारने और तदनुसार आचरण करने की वचन-बद्धता दुहराई गई है।
बाबासाहेब डॉ आंबेडकर द्वारा प्रदत्त इन 22 प्रतिज्ञाओं का महत्त्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि विवाह के अवसर पर वर-वधु को दिलाई जाने वाली पांच-पांच- प्रतिज्ञाएं, जो असमानता पर आधारित होने के कारण बदलते परिवेश में असंगत हो गई थी, के स्थान पर, अब वर-वधु को समान मानते हुए घर- परिवार और समाज के सामने सामूहिक रूप से दोनों को ये बावीस प्रतिज्ञाएं कराई जाती है।
बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त ये प्रतिज्ञाएँ, उन सड़े-गले आदर्शों से हमें बाहर निकालती है, जो हमारी वैयक्तिक और सामाजिक अवनति के लिए जिम्मेदार है, वहीँ उन उच्च आदर्शों पर चलने को प्रेरित करती है जो समता, स्वतंत्रता और बधुता का आधार है. हमारे मुक्तिदाता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त ये 22 प्रतिज्ञाएँ, हमारी पहचान है। ये हमें दूसरों से अलग करती है, हमारे चरित्र और संस्कारों को गढ़ती है, गैरों से पृथक करती है.
बाबासाहेब द्वारा प्रदत्त 22 प्रतिज्ञाएं हमारे सोच को निर्धारित करती है। यह धम्म की रीढ़ है। यह बुद्ध के धम्म का केंद्र है। आज से 2500 हजार वर्ष पहले, बुद्ध ने हिन्दू सामाजिक व्यवस्था और ब्राह्मणी दर्शन से खुद को अलग करते हुए इन प्रतिज्ञाओं की नीव रखी थी। ईश्वर में अविश्वास, आत्मा में अविश्वास, आत्मा के संसरण में अविश्वास, वेदों में अविश्वास, उपनिषदो में अविश्वास, ब्राह्मणी-ग्रंथों में अविश्वास, ब्रह्म में अविश्वास, ब्रह्मा के सृष्टि कर्ता होने में अविश्वास, कर्म-पुनर्जन्म में अविश्वास, चतुर्वर्ण-व्यवस्था में अविश्वास, ऊंच-नीच के घृणा पर आधारित जाति-पांति में अविश्वास ... ये 22 प्रतिज्ञाएँ ही थी. बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर इन प्रतिज्ञाओं को आसमान से नहीं लाए थे। ये पूरी की पूरी उन्होंने बुद्ध से ली थी(भारत में बौद्ध आंदोलन की भावी दिशा: डॉ पी टी बोराले: संकलन डॉ विमलकीर्ति)। समता-स्वतंत्रता और बंधुता का ये दर्शन उन्होंने बुद्ध से लिया था।
नए जीवन में प्रवेश करने के मूलाधारों को प्रथम आठ प्रतिज्ञाओं में निहित रखा गया है जो उन्हें वर्तमान बौद्ध विरोधी कृत्यों से बचाते हैं और सभी मनुष्यों में एकता प्रतिपादित करने के लिए उत्साह प्रदान करते हैं। 9 से 10 तक में समता और उसके लिए प्रयास की बात है(वही)। 11 और 12 में अष्टांगिक मार्ग और दस पारमिता का पालन, 13 से 17 में पञ्च शील, 18 वीं प्रतिज्ञा में प्रज्ञा, शील, करुणा, ति-रत्न का उपदेश है। 19 वीं प्रतिज्ञा में मानव-मात्र के उत्थान के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को ऊंच-नीच मानने वाले हिन्दू धर्म को छोड़ने तथा उसका परित्याग करने की बात कही गई है। 20, 21 और 22 वीं प्रतिज्ञा में बुद्ध धम्म को एक नए जीवन के रूप में स्वीकारने और तदनुसार आचरण करने की वचन-बद्धता दुहराई गई है।
बाबासाहेब डॉ आंबेडकर द्वारा प्रदत्त इन 22 प्रतिज्ञाओं का महत्त्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि विवाह के अवसर पर वर-वधु को दिलाई जाने वाली पांच-पांच- प्रतिज्ञाएं, जो असमानता पर आधारित होने के कारण बदलते परिवेश में असंगत हो गई थी, के स्थान पर, अब वर-वधु को समान मानते हुए घर- परिवार और समाज के सामने सामूहिक रूप से दोनों को ये बावीस प्रतिज्ञाएं कराई जाती है।
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