धम्मचक्क पवत्तन दिवस
धम्मचक्क पवत्तन दिवस का बौद्ध धर्मावलम्बियों में उतना ही महत्त्व है, जितना मुस्लिमों में ईद का, सिक्खों में बैसाखी का और हिन्दुओं में दीपावली । 14 अप्रेल अम्बेडकर जयंती के बाद अम्बेडकर अनुयायियों में यह दूसरा बड़ा त्यौहार है।
धम्मचक्क पवत्तन के दिन नागपुर में बाबासाहब के अनुयायियों का मार्च देखते ही बनता है। पूरे शहर में उस दिन जो भी टेक्सी, बस मिलेगी, दीक्षा भूमि की ओर जाते दिखती है। ऑटो, रिक्शा, टेक्टर, बसे नीली-नीली दिखती हैं। नीले रंग की टोपी या गमछा बांधे बाबासाहब के अनुयायियों से गलियां और सड़कें पट जाती हैं। दूर-दूर से आये अम्बेडकर अनुयायियों का नागपुर के लोग भी बिना किसी जाति भेद-भाव के जैसे स्वागत करते दिखाई देते हैं, जगह-जगह टेंट और तम्बुओं में उन्हें बैठा कर बिना मूल्य भोजन परोसते हैं ।
दीक्षा भूमि का दृश्य तो देखते ही बनता है। करीब 5 एकड़ के प्लाट में पांव रखने जगह नहीं होती। दीक्षा भूमि से जुडी सड़कें 'जयभीम' की गूंज से सरोबोर होती हैं। अम्बेडकरी और धम्म की पुस्तकें/सीडी/डीवीडी,, बाबासाहब का फोटो लगे हुए बेज/लॉकेट, धम्मचक्क पवत्तन का सफेद निशान लगी टोपियां, बाबासाहब का फोटो अथवा धम्मचक्क पवत्तन का निशान लिए गमछे, धम्मचक्क पवत्तन का निशान लिए नीले और पंचरंगी झंडे, अम्बेडकरी/बुद्धिस्ट त्यौहारों, तिथियों और दलित महापुरुषों को दर्शाते कैलेंडर, डायरियों से सजी दुकानें लाईन से सजी होती हैं। दीक्षा भूमि की चारों गेट खोल दी जाती हैं, बाबासाहब अनुयायियों के स्वागत में।
मगर, यहाँ कुछ नहीं होता है तो वह है पुलिस। बाबासाहब के लाखों अनुयायी बिना किसी पुलिस की सहायता के आते-जाते हैं। यहाँ तक की अंदर चारों प्रवेश द्वार से भी स्त्री- पुरुष- बच्चे-बूढें अपने-आप आते-जाते हैं मानों खड़े-खड़े रेंग रहे हों। कोई भीड़ नहीं, सब निहायत ही व्यवस्थित। हम देखते हैं कि अन्य धर्म-स्थलों में ऐसे मौकों पर, जबरदस्त पुलिस का बंदोबस्त होता है, तब भी दुर्घटनाएं होती हैं और बच्चें-बूढ़े और माँ-बहनें मौत के मुहं में चली जाती है।
एक और मीडिया है, जो यहाँ नहीं होता। न प्रेस या टीवी चैनलों में इसके बारे में कोई खबर होती है और न यहाँ संपन्न कार्य-क्रमों की कवरेज होती है। बाबा साहब के लाखों अनुयायी देश-विदेश से बिना अखबार/ टीवी खबरों के प्रति वर्ष यहाँ रेले के रेले आते हैं और बिना बेश्कीमती कैमरों की फलेश लाईट के दीक्षा भूमि के सामने खड़े हो कर मोबाईल से अपना फोटो खींच धन्य होते हैं।
हमारे देश में, धम्मचक्क पवत्तन दिवस समारोह14 अक्टू और अशोक विजया दशमी, दोनों ही दिन मनाने की परम्परा है। इसकी वजह यह है कि बाबा साहब ने अशोक विजय दशमी का दिन चुना था, इस ऐतिहासिक धर्मान्तर समारोह के लिए। स्मरण रहे, इसी दिन सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद बुद्ध के शांति सन्देश को न सिर्फ हृदयंगम किया था वरन, इसे विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाने का संकल्प भी लिया था। बाबासाहब इस घटना से जबरदस्त अनुप्रेरित थे और इसी कारण उन्होंने अपने अनुयायियों की धम्म-दीक्षा के लिए यह तिथि चुना था।
किन्तु, धर्मान्तरित बौद्धों के ह्रदय में बाबासाहब इतने रचे-बसे हैं कि वे 14 अक्टू के दिन को भी वे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध महापरिनिर्वाण के 200 वर्ष बाद इस उप-महाद्वीप को बुद्धमय करने के लिए सम्राट अशोक को दिया था। और, इसलिए अम्बेडकर अनुयायियों के लिए 14 अक्टू उतना ही महत्वपूर्ण है। इस दिन साफ-सफाई की जाती है, घरों/बौद्ध विहारों को सजाया है, रोशनी की जाती है और फटाके फोड़े जाते हैं .
धार्मिक और सामाजिक आजादी के रूप में उक्त दोनों तिथियों को सिलेब्रेट करने की आम सहमति और आग्रह बौद्ध अनुयायियों में एक मत से है। इसके अनुसार 14 अक्टू. को लोग स्थानीय स्तर पर अपने-अपने घरों अथवा बुद्ध विहारों या अम्बेडकर चौराहों पर जश्न मनाते हैं जबकि अशोक विजया दशमी के दिन नागपुर दीक्षा-भूमि जाकर, अपने मसीहा और मुक्तिदाता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने उन्हें आदमी होने का अहसास दिलाया।
धम्मचक्क पवत्तन दिवस का बौद्ध धर्मावलम्बियों में उतना ही महत्त्व है, जितना मुस्लिमों में ईद का, सिक्खों में बैसाखी का और हिन्दुओं में दीपावली । 14 अप्रेल अम्बेडकर जयंती के बाद अम्बेडकर अनुयायियों में यह दूसरा बड़ा त्यौहार है।
धम्मचक्क पवत्तन के दिन नागपुर में बाबासाहब के अनुयायियों का मार्च देखते ही बनता है। पूरे शहर में उस दिन जो भी टेक्सी, बस मिलेगी, दीक्षा भूमि की ओर जाते दिखती है। ऑटो, रिक्शा, टेक्टर, बसे नीली-नीली दिखती हैं। नीले रंग की टोपी या गमछा बांधे बाबासाहब के अनुयायियों से गलियां और सड़कें पट जाती हैं। दूर-दूर से आये अम्बेडकर अनुयायियों का नागपुर के लोग भी बिना किसी जाति भेद-भाव के जैसे स्वागत करते दिखाई देते हैं, जगह-जगह टेंट और तम्बुओं में उन्हें बैठा कर बिना मूल्य भोजन परोसते हैं ।
दीक्षा भूमि का दृश्य तो देखते ही बनता है। करीब 5 एकड़ के प्लाट में पांव रखने जगह नहीं होती। दीक्षा भूमि से जुडी सड़कें 'जयभीम' की गूंज से सरोबोर होती हैं। अम्बेडकरी और धम्म की पुस्तकें/सीडी/डीवीडी,, बाबासाहब का फोटो लगे हुए बेज/लॉकेट, धम्मचक्क पवत्तन का सफेद निशान लगी टोपियां, बाबासाहब का फोटो अथवा धम्मचक्क पवत्तन का निशान लिए गमछे, धम्मचक्क पवत्तन का निशान लिए नीले और पंचरंगी झंडे, अम्बेडकरी/बुद्धिस्ट त्यौहारों, तिथियों और दलित महापुरुषों को दर्शाते कैलेंडर, डायरियों से सजी दुकानें लाईन से सजी होती हैं। दीक्षा भूमि की चारों गेट खोल दी जाती हैं, बाबासाहब अनुयायियों के स्वागत में।
मगर, यहाँ कुछ नहीं होता है तो वह है पुलिस। बाबासाहब के लाखों अनुयायी बिना किसी पुलिस की सहायता के आते-जाते हैं। यहाँ तक की अंदर चारों प्रवेश द्वार से भी स्त्री- पुरुष- बच्चे-बूढें अपने-आप आते-जाते हैं मानों खड़े-खड़े रेंग रहे हों। कोई भीड़ नहीं, सब निहायत ही व्यवस्थित। हम देखते हैं कि अन्य धर्म-स्थलों में ऐसे मौकों पर, जबरदस्त पुलिस का बंदोबस्त होता है, तब भी दुर्घटनाएं होती हैं और बच्चें-बूढ़े और माँ-बहनें मौत के मुहं में चली जाती है।
एक और मीडिया है, जो यहाँ नहीं होता। न प्रेस या टीवी चैनलों में इसके बारे में कोई खबर होती है और न यहाँ संपन्न कार्य-क्रमों की कवरेज होती है। बाबा साहब के लाखों अनुयायी देश-विदेश से बिना अखबार/ टीवी खबरों के प्रति वर्ष यहाँ रेले के रेले आते हैं और बिना बेश्कीमती कैमरों की फलेश लाईट के दीक्षा भूमि के सामने खड़े हो कर मोबाईल से अपना फोटो खींच धन्य होते हैं।
हमारे देश में, धम्मचक्क पवत्तन दिवस समारोह14 अक्टू और अशोक विजया दशमी, दोनों ही दिन मनाने की परम्परा है। इसकी वजह यह है कि बाबा साहब ने अशोक विजय दशमी का दिन चुना था, इस ऐतिहासिक धर्मान्तर समारोह के लिए। स्मरण रहे, इसी दिन सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद बुद्ध के शांति सन्देश को न सिर्फ हृदयंगम किया था वरन, इसे विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाने का संकल्प भी लिया था। बाबासाहब इस घटना से जबरदस्त अनुप्रेरित थे और इसी कारण उन्होंने अपने अनुयायियों की धम्म-दीक्षा के लिए यह तिथि चुना था।
किन्तु, धर्मान्तरित बौद्धों के ह्रदय में बाबासाहब इतने रचे-बसे हैं कि वे 14 अक्टू के दिन को भी वे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना बाबासाहब डॉ अम्बेडकर ने बुद्ध महापरिनिर्वाण के 200 वर्ष बाद इस उप-महाद्वीप को बुद्धमय करने के लिए सम्राट अशोक को दिया था। और, इसलिए अम्बेडकर अनुयायियों के लिए 14 अक्टू उतना ही महत्वपूर्ण है। इस दिन साफ-सफाई की जाती है, घरों/बौद्ध विहारों को सजाया है, रोशनी की जाती है और फटाके फोड़े जाते हैं .
धार्मिक और सामाजिक आजादी के रूप में उक्त दोनों तिथियों को सिलेब्रेट करने की आम सहमति और आग्रह बौद्ध अनुयायियों में एक मत से है। इसके अनुसार 14 अक्टू. को लोग स्थानीय स्तर पर अपने-अपने घरों अथवा बुद्ध विहारों या अम्बेडकर चौराहों पर जश्न मनाते हैं जबकि अशोक विजया दशमी के दिन नागपुर दीक्षा-भूमि जाकर, अपने मसीहा और मुक्तिदाता बाबासाहब डॉ अम्बेडकर को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं जिन्होंने उन्हें आदमी होने का अहसास दिलाया।
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