"अशोक की लिपि को "धम्मलिपि" कहने केलिए इतनी उदासीनता क्यों?
भारत में लिखावट का इतिहास शुरू होता हैं सम्राट अशोक के अभिलेखों से. उसके पहले के कोई सबूत नही मिलता क्योंकि ना कोई अभिलेख हैं ना कोई हस्तलिखित ना कुछ लिखावट मिलती हैं. १८३६ में जेम्स प्रिंसेप ने पहली बार अशोक के अभिलेख का लिप्यांतर कर उसका भाषांतर किया. प्रिंसेपने इस अभिलेख की भाषा पालि - प्राकृत बताई मगर लिपि के बारे में कोई सबूत न मिलने पर उसने इन अभिलेखों की लिपि को पहले 'लट' कहा (क्यूंकि ये अभिलेख लट यानि स्तम्भ पर लिखा था) और बाद में 'इंडिक स्क्रिप्ट (indic script) कहा. प्रिंसेप के बाद आये हुए अनेक संशोधकों ने इस लिपि को 'पालि', 'अशोकन स्क्रिप्ट', 'इंडो पालि' भी कहा हैं.
१९वी शताब्दी में Terrien de Lacouperie ने इस लिपि को 'ब्राह्मी' कहा. उसका प्रमुख आधार था बौद्धों का 'ललितविस्तार' और जैन धर्म का 'समवायांग सूत्र' ग्रन्थ जो लगभग ४थी से ६ठी शताब्दी के दरम्यान लिखे हुए हैं. इन दोनों ग्रन्थ में लिपियों की सूचि में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का नाम पहले और दूसरे स्थान पर हैं. इसका आधार लेते हुए Lacouperie ने बाएं से दाएं लिखने वाली लिपि को 'ब्राह्मी' कहा और दाएं से बाएं लिखने वाली लिपि को 'खरोष्ठी' कहा. ६४ लिपियों के सूचि में से इन्ही दो नामो को क्यों चुना इसका कारण Lacouperie ने नही बताया हैं. भारत के इन प्राचीन लिपियों को ये दो नाम देने के कारण इस प्रकार हैं -
१. जैन धर्मियों की श्रद्धा हैं की भगवन ऋषभदेवने अपनी बेटी बंभि को जो लिखावट सिखाई उसी लिखावट को अपने बेटी का नाम दिया जो 'बंभि' हैं. (इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं.)
२. १३ वे शताब्दी में पैदा हुए सायणाचार्य कहते हैं - "ब्राह्मी: ब्राह्मणप्रेरितः यही महत्य: ऋतस्य यज्ञस्य मातरः निर्मात्र्य: स्तुतय:" यानी ब्राह्मणों द्वारा जिस लिपि का उच्चारण हुआ हैं और जो लिपि से स्तुति ग्रंथों में देवों की प्रशंसा की हैं वही लिपि 'ब्राह्मी' हैं. नारदस्मृति ग्रन्थ में कहा गया हैं की ब्रह्मदेवने जिस लिपि का निर्माण किया हैं वही 'ब्राह्मी' कहलायी. (इसका भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं और हो भी नहीं सकता!)
३. प्रा. विश्वम्भरशरण पाठक (अर्वाचीन संस्कृत भाषा के विद्वान) का कहना हैं की ऋग्वेद में आया शब्द 'ब्रह्मी' वेदकालीन हैं और अशोक की लिपि ही वेदकालीन ब्रह्मी हैं जो आगे चलकर ब्राह्मी के रूप मैं आयी हैं.
अब इनकी चर्चा करते हैं -
१. जेम्स प्रिंसेप जिसने सबसे पहले बार इस लिपि का लिप्यांतरण किया, उसने भी इस लिपि का नाम जानना चाहा. उस वक्त बनारस के ब्राह्मणोंने उसे कहा की ब्राह्मी नाम दिया जाय क्यूंकि ये उनके धर्म की मान्यता हैं, मगर प्रिंसेप ने इसे साफ़ नकारा क्यूंकि इस नाम का कोई प्रमाण नहीं मिलता.
२. ललितविस्तार ग्रन्थ में ६४ लिपियों का नाम हैं. इसका क्या प्रमाण हैं की इस सूचि में जो पहला नाम हैं - ब्राह्मी वही अशोक के अभिलेखों की लिपि हैं? क्या अशोक के अभिलेखों की लिपि बाकी के ६३ लिपि में से कोई लिपि नहीं हो सकती क्या?
३. Lacouperie और उसके बाद के लिपि विशेषतज्ञोंने बाएं से दाएं लिखने वाली लिपि को 'ब्राह्मी' कहने का कोई प्रमाण नहीं दिया.
४. जगविख्यात लिपि विशेषतज्ञ रिचर्ड सालोमोन अपनी किताब "Indian Epigraphy" में कहते हैं - .....it should be kept in mind that we do not know precisely what form or derivative of the script the authors of the early script lists were referring to as Brahmi nor whether this term was actually applied to the script used in the time of Ashok". मतलब भारत के इस प्राचीन लिपि का नाम ब्राह्मी ही हैं या कुछ और हैं ये हमें पता नहीं और ये भी पता नहीं की क्या अशोक के समय इस लिपि को ब्राह्मी ही कहा जाता था या कुछ और.
अब सम्राट अशोक के अभिलेखों के कुछ अंश देखा जाए -
"इयं धंमलिपि देवानांप्रियेन प्रियदसिना राञा लेखापिता.....", "यदा अयं धंमलिपि लिखिता.....", "एताये आठाये इयं धंमलिपि लेखिता.......", "अथाय अयं धंमलिपि लेखापिता किं च........", "अयं धंमलिपि देवानांप्रियेन प्रियदसिना राञा लेखापिता........" - ये सब गिरनार के अभिलेख हैं.
"अयं च लिपि तिसनखतेन सोतविया......", "एताये आठाये इयं धंमलिपि लेखित....." - ये दोनों अभिलेख धौली के हैं.
"इयं च लिपि आनुचातुंमासं सोतविया तिसेन......." - ये जौगड का अभिलेख हैं.
"हेदिसा च इका लिपि तुफाकंतिकं हुवाति संसलनसि निखिता इकं च लिपिं हेदिसमेव उपासकानंतिकं निखिपाथ......." - ये सारनाथ का लघुस्तंभ अभिलेख हैं.
"सडुवीसतिवस अभिसितेन मे इयं धंमलिपि लेखापिता......", "इयं धंमलिबि अत अथी सिलाथंभानि वा सिलाफलकानि वा तत कटाविया एन एस चिल ठीतिके सिया......" - ये अभिलेख टोपरा के स्तम्भ पर उत्कीर्ण किया हैं.
ऐसे और भी लगभग ४० अभिलेख हैं. थोड़ा गौर करोगे तो पता चलेगा की 'लिपि', 'लेखापिता' और 'लेखिता' ये शब्द इन अभिलेख के शुरुवात के कुछ शब्द हैं. अशोक के इस अभिलेख का कई अध्ययनकर्ताओंने जो अर्थ लगाया हैं - "ये धर्मलेख देवों के प्रिय राजा लिख रहा हैं" बिलकुल गलत हैं. क्यूँकि धम्मलिपि का अर्थ धर्मलेख नहीं हो सकता हैं. लिपि और लेख में फर्क हैं. लिपि शब्द का मूल धातु लिप हैं और लेख का धातु लिख हैं. अगर अशोक को धम्मलेख शब्द अभिप्रेत होता तो वे लिखते - "इयं धम्मलेख देवानं प्रियेन प्रियदसि राज्ञा लेखापिता". सम्राट अशोकने बड़े साफ़ शब्दों में धम्मलिपि इसलिए लिखा क्यूँकि वे बताने चाहते हैं की जो भी अभिलेख वे लिख रहें हैं वे "धम्मलिपि" में लिख रहे हैं.
अशोकने दिया हुआ भारत के इस प्राचीन लिपि का नाम यहाँ के भाषाविद और लिपितज्ञ इसलिए नकारते हैं क्यूँकि "धम्म" इस शब्द से उन्हें एलर्जी हैं. धम्म शब्द जुड़ने से उन्हें लगता हैं यह बौद्ध धर्म का प्रतिक होगा. अगर वे पालि जानते तो उन्हें पता होता की यह शब्द सबसे पहले भ.बुद्ध ने इस्तेमाल किया था लेकिन पालि भाषा में धम्म शब्द अनेक अर्थों से इस्तेमाल किया हैं. मंगल कामना, आदेश, सुचना, मंगल विचार, देशना, प्रवचन इन अर्थों से धम्म शब्द पालि त्रिपिटक में दिखाए पड़ता हैं.
यह क्यों नहीं सोचा जाता हैं की अशोक के समय इस लिपि का नाम "धम्मलिपि" ही होगा और बाद में अनेक देश के राजाओं ने इसे अपनाकर अपनी एक लिपि विकसित की. और यह भी हो सकता हैं की ललितविस्तर और समवायांग सूत्र में जो लिपियाँ हैं उन में धम्मलिपि जैसे लचीलापन न होने से सारी लिपियाँ नष्ट हुयी. यही तो सत्य हैं वरना भारत के २.५ करोड़ हस्तलिखित, ताम्रपट, अभिलेख, शिलापट, इत्यादि में एक बार भी "ब्राह्मी" शब्द नहीं आया हैं, बल्कि "धम्मलिपि" शब्द ३२ बार आया हैं.
जिस सम्राट ने भारत के लेखन इतिहास का प्रारम्भ किया और जिसके लिपि के कारण पुरे एशिया में लिपि, भाषा और संस्कृति का उत्कर्ष हुआ, क्या हम उस सम्राट अशोक के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उसने लिखी हुई लिपि को उसीने दिया हुआ नाम "धम्मलिपि" नहीं कह सकते? विश्व के एक महान सम्राट को इससे बड़ी आदरांजलि और क्या हो सकती हैं!
अतुल भोसेकर
९५४५२७७४१०