ब्राहमण छल कपट-
सम्राट अशोक ने अपने शिलालेखों में अपने लिए ‘देवानां पिय'(देवताओं की जिस पर कृपा हो) शब्द का प्रयोग किया है। किन्तु इससे ब्राह्मण पण्डे रुष्ट हो गए थे. उन्हें 'देवताओं' की ठेकेदारी अपने हाथ से खिसकती प्रतीत हुई. क्योंकि, बौद्ध धर्म के प्रति अशोक के झुकाव से ब्राहमण पंडो को अब राजा से मुप्त का माल, दान मिलना कम हो गया था. इसलिए धूर्त ब्राह्मणों ने चिढ़कर ‘देवानां प्रिय' का अर्थ ‘मूर्ख’ प्रचारित कर दिया (सन्दर्भ- व्याकरण बनाम ब्राहमणवादः पृ. 77ः डॉ. सुरेन्द्र कुमार अज्ञात)।
आप देखेंगे कि ब्राह्मण- ग्रंथों/व्याकरणों में 'बुद्ध' और 'दीवानां पिय' का अर्थ 'मूर्ख' मिलता है. ब्राह्मणों को इससे जरा भी शर्म नहीं है. क्योंकि हजारीप्रसाद द्विवेदी से शुक्ला, मिश्रा आदि स्वयं नामधन्य ब्राह्मण साहित्यकारों ने आज तक इसके लिए कोई सार्वजानिक माफ़ी नहीं मांगी है.
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