संघ, व्यक्ति के ऊपर
एकं समयं भगवा सक्केसु विहरति कपिलवत्थुस्मिं निगोधा आरामे।
अथ खो महापजापति गोतमी नव दुस्स युगं आदाय येन भगवा तेनुपसङ्कमि।
उपसंकमितवा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
एकमन्तं निसिन्ना खो महापजापति गोतमी भगवन्तं एतदवोच-
"इदं मे भंते, नव दुस्स युगं उद्दिस्स सामं कन्तं सामं वायितं।
"भंते, यह स्वयं ही काता, स्वयं ही बुना मेरा यह नया धुस्सा-जोड़ा
तं मे भंते, भगवा पटिगण्हातु अनुकम्पं उपादाय।"
उसको भंते, भगवान ग्रहण करें, अनुकम्पा कर ।"
एवं वुत्ते, भगवा महापजापतिं गोतमिं एतद वोच-
"संघे गोतमी देहि। गोतमी, इसे संघ को दे दो .
संघे ते दिन्ने संघो च अहं येव पूजितो भविस्सामि।"
संघ को देने से संघ और मैं भी पूजित होंगा."
दुतियम्पि, ततियम्पि खो महापजापति गोतमी भगवन्तं एतदवोच-
"इदं मे भंते, नव दुस्स युगं उद्दिस्स सामं कन्तं सामं वायितं।
तं मे भंते, भगवा पटिगण्हातु अनुकम्पं उपादाय।"
तातियम्पि खो भगवा महापजापतिं गोतमिं एतद वोच-
"संघे गोतमी देहि।
संघे ते दिन्ने संघो च अहं येव पूजितो भविस्सामि।"
एवं वुत्ते आयस्मा आनन्दो भगवन्तं एतदवोच-
"पटिगण्हातु भंते, भगवा महापजापतिया गोतमिया नवं दुस्सयुगं।
भंते, भगवान महाप्रजा पति गोतमी के धुस्सा-जोड़े को स्वीकार करें।
बहू उपकारा भंते, महापजापति गोतमी भगवतो मातुच्छा
भंते, बहुत उपकारी है, महाप्रजापति गोतमी, भगवान की मौसी माँ
आपादिका, पोसिका, खिरस्स दायिका
दाई, पोषिका, दूध पिलाने वाली
भगवन्तं जनेत्तिया कालं कताय थञ्ञं पायेसि।
भगवान की जननी के मरने पर स्तन-पान कराने वाली।
भगवा पि भंते, बहुपकारो महापजापतिया गोतमिया।
भगवान भी महाप्रजापति गोतमी के महा-उपकारक हैं
भगवन्तं, भंते, आगम्म महापजापति गोतमी
भगवान की सरण आकर महाप्रजापति गोतमी
बुद्धं सरण गता, धम्मं सरण गता, संघं सरण गता
बुद्ध की सरण गई, धम्म की सरण गई. संघ की सरण गई
भगवन्तं, भंते, आगम्म महापजापति गोतमी
भगवान की सरण आकर महाप्रजापति गोतमी
पणातिपाता पटिविरता, अदिन्ना दाना पटिविरता
कामेसु मिच्छाचारा पटिविरता, मुसावादा पटिविरता
सूरा मेरयमज्ज पमादट्ठाना पटिविरता।"
भगवा-
"तदापि अहं आनंद, संघ गतं दक्खिणं अ-संखेय्य, अ-पमेय्य वदामि।
"तब भी मैं, आनंद ! संघ को दी दक्खिणा को अ-संखेय्य, अपरिमित कहता हूँ
न तव येव अहं आनंद, केनचि परयायेन संघ गताय दक्खिणाय
मैं नहीं, आनंद, किसी तरह भी संघ को दी दक्खिणा से
पाटिपुग्गालिकं दानं मह-फलतरं वदामि।"
व्यक्तिगत दान को अधिक फलदायी कहता।"
---------------------
वायेति- बुनवाना
सामं- स्वयं
आपादेति- दूध पिलाना
तदापाहं - तदापि अहं
त्वेवाहं- तव येव अहं
कान्त - कमनीय, सुन्दर
एकं समयं भगवा सक्केसु विहरति कपिलवत्थुस्मिं निगोधा आरामे।
अथ खो महापजापति गोतमी नव दुस्स युगं आदाय येन भगवा तेनुपसङ्कमि।
उपसंकमितवा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
एकमन्तं निसिन्ना खो महापजापति गोतमी भगवन्तं एतदवोच-
"इदं मे भंते, नव दुस्स युगं उद्दिस्स सामं कन्तं सामं वायितं।
"भंते, यह स्वयं ही काता, स्वयं ही बुना मेरा यह नया धुस्सा-जोड़ा
तं मे भंते, भगवा पटिगण्हातु अनुकम्पं उपादाय।"
उसको भंते, भगवान ग्रहण करें, अनुकम्पा कर ।"
एवं वुत्ते, भगवा महापजापतिं गोतमिं एतद वोच-
"संघे गोतमी देहि। गोतमी, इसे संघ को दे दो .
संघे ते दिन्ने संघो च अहं येव पूजितो भविस्सामि।"
संघ को देने से संघ और मैं भी पूजित होंगा."
दुतियम्पि, ततियम्पि खो महापजापति गोतमी भगवन्तं एतदवोच-
"इदं मे भंते, नव दुस्स युगं उद्दिस्स सामं कन्तं सामं वायितं।
तं मे भंते, भगवा पटिगण्हातु अनुकम्पं उपादाय।"
तातियम्पि खो भगवा महापजापतिं गोतमिं एतद वोच-
"संघे गोतमी देहि।
संघे ते दिन्ने संघो च अहं येव पूजितो भविस्सामि।"
एवं वुत्ते आयस्मा आनन्दो भगवन्तं एतदवोच-
"पटिगण्हातु भंते, भगवा महापजापतिया गोतमिया नवं दुस्सयुगं।
भंते, भगवान महाप्रजा पति गोतमी के धुस्सा-जोड़े को स्वीकार करें।
बहू उपकारा भंते, महापजापति गोतमी भगवतो मातुच्छा
भंते, बहुत उपकारी है, महाप्रजापति गोतमी, भगवान की मौसी माँ
आपादिका, पोसिका, खिरस्स दायिका
दाई, पोषिका, दूध पिलाने वाली
भगवन्तं जनेत्तिया कालं कताय थञ्ञं पायेसि।
भगवान की जननी के मरने पर स्तन-पान कराने वाली।
भगवा पि भंते, बहुपकारो महापजापतिया गोतमिया।
भगवान भी महाप्रजापति गोतमी के महा-उपकारक हैं
भगवन्तं, भंते, आगम्म महापजापति गोतमी
भगवान की सरण आकर महाप्रजापति गोतमी
बुद्धं सरण गता, धम्मं सरण गता, संघं सरण गता
बुद्ध की सरण गई, धम्म की सरण गई. संघ की सरण गई
भगवन्तं, भंते, आगम्म महापजापति गोतमी
भगवान की सरण आकर महाप्रजापति गोतमी
पणातिपाता पटिविरता, अदिन्ना दाना पटिविरता
कामेसु मिच्छाचारा पटिविरता, मुसावादा पटिविरता
सूरा मेरयमज्ज पमादट्ठाना पटिविरता।"
भगवा-
"तदापि अहं आनंद, संघ गतं दक्खिणं अ-संखेय्य, अ-पमेय्य वदामि।
"तब भी मैं, आनंद ! संघ को दी दक्खिणा को अ-संखेय्य, अपरिमित कहता हूँ
न तव येव अहं आनंद, केनचि परयायेन संघ गताय दक्खिणाय
मैं नहीं, आनंद, किसी तरह भी संघ को दी दक्खिणा से
पाटिपुग्गालिकं दानं मह-फलतरं वदामि।"
व्यक्तिगत दान को अधिक फलदायी कहता।"
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वायेति- बुनवाना
सामं- स्वयं
आपादेति- दूध पिलाना
तदापाहं - तदापि अहं
त्वेवाहं- तव येव अहं
कान्त - कमनीय, सुन्दर
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