Saturday, July 7, 2018

अम्बलट्ठिक राहुलोवाद(म. नि.)

अपने या दूसरे को दुक्ख देने वाला काम न करें
तो क्या जानते हो, राहुल,
तं कि मञ्ञसि, राहुल,
दर्पण किस काम के लिए है ?
दप्पणो किं अत्थो  ?
भंते! देखने के लिए।
पच्चवेक्खणत्थो भंते।
ऐसे ही राहुल! देख-देख कर काया से काम करना चाहिए।
एवमेव खो राहुल, पच्चवेक्खित्वा कायेन कम्मं कत्तब्बं।
देख-देख कर वचन से काम करना चाहिए।
पच्चवेक्खित्वा वाचेन कम्मं कत्तब्बं
देख-देख कर मन से काम करना चाहिए।
पच्चवेक्खित्वा मनसा कम्मं कत्तब्बं

जब राहुल! तू काया से कोई काम करना चाहे,
यदेव त्वं राहुल, कायेन कम्मं कत्तुकामो अहोसि
काया के काम पर विचार करना चाहिए-
तदेव ते काय-कम्मं पच्चवेक्खितब्बं-
जो यह काम मैं करना चाहता हूँ,
यं नु खो अहं  कायेन-कम्मं कत्तुकामो
यह मेरा काय-कर्म अपने लिए पीड़ा दायक तो नहीं है ?
इदं मे काय-कम्मं अत्तब्याबाधायपि संवत्तेय्य?
दूसरे के लिए पीड़ा दायक तो नहीं है?
परब्याबाधाय पि संवत्तेय्य?
अकुशल काय-कर्म है
अकुसलं काय-कम्मं
दुक्ख उत्पन्न करने वाला  है
दुक्ख उदयं काय-कम्मं
ऐसा राहुल, काया से कर्म
एवरूपं ते राहुल,
सर्वथा नहीं करना चाहिए। 
ससक्कं न करणीयं।
(स्रोत- भिक्खु वग्गो: मञ्झिम  निकाय )?
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सरनीयं (स्मरणीय)-
पच्चवेक्खति- देखना, विचारना ।
संवत्तति- विदमान होता है।
ससक्कं- निश्चय से, सर्वथा।

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