अनुज्ञा परस्सपद लकार (Imperative Tense)
पुरिस- एकवचन बहुवचन
उत्तम पुरिस- भवामि भवाम
मज्झिम पुरिस- भव/भवाहि भवथ
पठम पुरिस- भवतु भवन्तु
टिप-
1. उ. पु. और म. पु. बहुवचन के किरिया-पद, बहुधा वत्तमान(पच्चुपन्न) काल के समान होते हैं।
2. इस तरह के किरिया-पद आदेश, निषेध, निमंत्रण, इच्छा आदि व्यक्त करने प्रयोग होते है।
वाक्यानि पयोगा
इच्छा -
अहं सप्पुरिसो भवामि(मैं अच्छा आदमी बन जाऊं/जाता हूँ )।
अज्ज, अहं अवकास सिकरोमि(आज, मैं अवकाश/छुट्टी लेता हूँ)।
अम्हे खिप्पं सज्जा भवाम(हम शीघ्र तैयार होते हैं )।
अज्ज चल-चित्तं पस्साम(आज, चल-चित्र/मूवी देखते हैं)।
चल भोजनं करोम(चलो, भोजन करते हैं )।
सदा माता-पितुन्न वचनकरा भवथ।
(माता-पिता कि आज्ञा का सदा पालन करो )।
सुखिनो च दीघायु भव(सुखी और दीर्घायु हों )।
निवेदन-
आगच्छतु/ निसीदतु। (आओ/ बैठो )
भवं, पीठेसु निसीदन्तु (महोदय, कुर्सियों पर बैठें।
चायं सिकरोतु(चाय स्वीकार/ग्रहण करें )।
आसंदी इध आनेतु(आसान/आसंदी इधर ले आओ )।
द्वारं उग्घाटेतु (कपाट/दरवाजा खोलो) ।
अजयं इदं सूचेतु(अजय के यह बतला देना )।
यानं मन्दं चालेतु(वाहन धीरे से चलाओ )।
विजनं चालेतु(फंखा चलाओ )।
मम सहायता करोतु(मेरी सहायता करें )।
सावधानेन करियं करोतु(सावधानी से कार्य करें )।
अस्स हिन्दियं अनुवादं करोतु(इसका हिंदी में अनुवाद करो ) ।
याव इच्छतु ताव सिकरोतु(जितनी इच्छा हो, उतना लीजिए )।
मम आसयं सुणोतु(मेरा आशय तो सुनो )।
आदेश-
यमहं(यं-अहं) वदामि, तं वदेहि/ वदेथ((तुम) जैसा मैं कहता हूँ, वैसा कहो)।
तुम्हे इध तिट्ठथ(तुम लोग इधर बैठो)।
भिक्खवे! अहं धम्मं देसेमि, साधुकं सुनाथ।
(भिक्खुओं! मैं धम्म की देशना करता हूँ, तुम लोग अच्छी तरह सुनो )।
त्वं घरस्मा निक्खमाहि(तुम घर से निकलो )।
आवुसो, अटविया दारुं आहरित्वा अग्गिं करोहि।
आवुस, जंगल से लकड़ी लाकर आग करो/जलाओ) ।
मम वाहनं इध आहर(मेरा वहां इधर ले आओ )।
निषेध-
मा गच्छ(मत जाओ )।
मा द्वारं द्वारं उग्घाटेहि(दरवाजा मत खोलो )।
मा इध तिटठथ(यहाँ खड़े मत रहो )।
मा सद्दं(शब्द (आवाज) मत करो )।
मा निरत्थकं वद(बकवास मत करो )।
आवुसो, भिक्खु पुरतो मा तिट्ठथ(आवुस, भिक्खु के सामने मत बैठो )।
कं अपि तस्स वत्थेन न जानातु।
(किसी को उसके कपड़ों से मत पहिचानों )।
वच्छ ! आतापे मा गच्छाहि(बेटा! धुप में मत जाओ )।
अनुपाहनेन विना मा चलथ(बिना जूतों के मत चलों )।
पुरिस- एकवचन बहुवचन
उत्तम पुरिस- भवामि भवाम
मज्झिम पुरिस- भव/भवाहि भवथ
पठम पुरिस- भवतु भवन्तु
टिप-
1. उ. पु. और म. पु. बहुवचन के किरिया-पद, बहुधा वत्तमान(पच्चुपन्न) काल के समान होते हैं।
2. इस तरह के किरिया-पद आदेश, निषेध, निमंत्रण, इच्छा आदि व्यक्त करने प्रयोग होते है।
वाक्यानि पयोगा
इच्छा -
अहं सप्पुरिसो भवामि(मैं अच्छा आदमी बन जाऊं/जाता हूँ )।
अज्ज, अहं अवकास सिकरोमि(आज, मैं अवकाश/छुट्टी लेता हूँ)।
अम्हे खिप्पं सज्जा भवाम(हम शीघ्र तैयार होते हैं )।
अज्ज चल-चित्तं पस्साम(आज, चल-चित्र/मूवी देखते हैं)।
चल भोजनं करोम(चलो, भोजन करते हैं )।
सदा माता-पितुन्न वचनकरा भवथ।
(माता-पिता कि आज्ञा का सदा पालन करो )।
सुखिनो च दीघायु भव(सुखी और दीर्घायु हों )।
निवेदन-
आगच्छतु/ निसीदतु। (आओ/ बैठो )
भवं, पीठेसु निसीदन्तु (महोदय, कुर्सियों पर बैठें।
चायं सिकरोतु(चाय स्वीकार/ग्रहण करें )।
आसंदी इध आनेतु(आसान/आसंदी इधर ले आओ )।
द्वारं उग्घाटेतु (कपाट/दरवाजा खोलो) ।
अजयं इदं सूचेतु(अजय के यह बतला देना )।
यानं मन्दं चालेतु(वाहन धीरे से चलाओ )।
विजनं चालेतु(फंखा चलाओ )।
मम सहायता करोतु(मेरी सहायता करें )।
सावधानेन करियं करोतु(सावधानी से कार्य करें )।
अस्स हिन्दियं अनुवादं करोतु(इसका हिंदी में अनुवाद करो ) ।
याव इच्छतु ताव सिकरोतु(जितनी इच्छा हो, उतना लीजिए )।
मम आसयं सुणोतु(मेरा आशय तो सुनो )।
आदेश-
यमहं(यं-अहं) वदामि, तं वदेहि/ वदेथ((तुम) जैसा मैं कहता हूँ, वैसा कहो)।
तुम्हे इध तिट्ठथ(तुम लोग इधर बैठो)।
भिक्खवे! अहं धम्मं देसेमि, साधुकं सुनाथ।
(भिक्खुओं! मैं धम्म की देशना करता हूँ, तुम लोग अच्छी तरह सुनो )।
त्वं घरस्मा निक्खमाहि(तुम घर से निकलो )।
आवुसो, अटविया दारुं आहरित्वा अग्गिं करोहि।
आवुस, जंगल से लकड़ी लाकर आग करो/जलाओ) ।
मम वाहनं इध आहर(मेरा वहां इधर ले आओ )।
निषेध-
मा गच्छ(मत जाओ )।
मा द्वारं द्वारं उग्घाटेहि(दरवाजा मत खोलो )।
मा इध तिटठथ(यहाँ खड़े मत रहो )।
मा सद्दं(शब्द (आवाज) मत करो )।
मा निरत्थकं वद(बकवास मत करो )।
आवुसो, भिक्खु पुरतो मा तिट्ठथ(आवुस, भिक्खु के सामने मत बैठो )।
कं अपि तस्स वत्थेन न जानातु।
(किसी को उसके कपड़ों से मत पहिचानों )।
वच्छ ! आतापे मा गच्छाहि(बेटा! धुप में मत जाओ )।
अनुपाहनेन विना मा चलथ(बिना जूतों के मत चलों )।
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