वर्ण-व्यवस्था का खंडन
ऐसा मैंने सुना-
एवं मे सुतं-
एक समय भगवान जेतवन, सावत्थि में
एकं समयं भगवा सावत्थियं जेतवने
अनाथ पिण्डिक के आराम में विहार करते थे।
विहरति अनाथ पिण्डिकस्स आरामे
तब एसुकारी ब्राह्मण जहाँ भगवान थे, वहां गया।
अथ खो एसुकारी बाह्मणो येन भगवा तेनुपसंकमि
जा कर भगवन के साथ कुशल-मंगल पूछा
उपसंमित्वा भगवता सद्धिं सम्मोदि
कुशल-मंगल पूछकर एक ओर बैठ गया
सम्मोदनीयं कथं सारणीयं वीतिसारेत्वा एकमन्तं निसीदि
एकमंत निसिन्नो खो एसुकारी बाह्मणो भगवन्तं एतद वोच -
एक ओर बैठे एसुकारी ब्राह्मण ने भगवन से यह कहा-
भो गोतम, ब्राह्मण चार प्रकार के सेवा-धर्म(परिचर्या) बतलाते हैं-
भो गोतम, बाह्मणा, चतस्सो परिचरिया पञ्ञपेन्ति-
बाह्मण, बाह्मण की परिचर्या करें।
बाह्मणा बाह्मणस्स परिचरेय्य।
क्षत्री बाह्मण की परिचर्या करें । क्षत्री, क्षत्री की परिचर्या करें।
खत्तियो बाह्मणस्स परिचरेय्य, खत्तियो खत्तियस्स परिचरेय्य।
वेस्स्सो वेसस्स परिचरेय्य।
वैश्य वैश्य की परिचर्या करें,
शुद्र वैश्य की पर्चार्य करें, शूद्र, शूद्र ही परिचर्या करें।
सुद्दो वेसस्स परिचरेय्य, सुद्दो सुद्दस्स परिचरेय्य।
भगवा-
''ब्राह्मण, क्या सभी लोग ब्राह्मणों को
किं पन बाह्मण, सब्ब लोका बाह्मणानं
इस के लिए अनुज्ञा देते हैं-
एतद अब्भनुजानान्ति-
कि इन चारों परिचर्याओं को वे प्रज्ञापन करें ?
इमा चतस्सो परिचरिया पञ्ञपेतुं ?''
''नहीं भो, गोतम।
नो हि इदं भो गोतम।''
नाहं बाह्मण, सब्बं परिचरितब्बं वदामि,
बाह्मण, न मैं सभी परिचार्याओं को परिचरणीय कहता हूँ
नाहं बाह्मण, सब्बं न परिचरितब्बं वदामि.
और न मैं सभी परिचारियाओं को अ-परिचरणीय कहता हूँ .
ब्राह्मण! जिसको परिचरण करते
यं हि अस्स बाह्मण, परिचरतो
जिसे परिचर्या के हेतु अहित होता है,
परिचारिया हेतु पापियो,
उसे मैं परिचरणीय नहीं कहता
नाहं तं परिचरिब्बं वदामि .
जिसको परिचरण करते
यं च खो अस्स बाह्मण, परिचरतो
जिसे परिचर्या के हेतु हित होता है
तमहं परिचरितब्बं वदामि.
बाह्मण, उच्च कुल वाला भी
बाह्मण, उच्चाकुलीनो पि हि
कोई पाणातिपाती होता है, अदिन्ना दायी होता है
इध एकच्चो पाणातिपाती होति, अदिन्नादायी होति
काम मिथ्याचारी होता है, पिशुनभासी होता है
कामेसुमिच्छाचारी होति, पिसुनावाचो होति
फरुस भासी होता है, संप्रलापी होता है
फारुसावाचो होति, सम्फप्पलापी होति
अभिध्यालु(लोभी) होता है
अभिज्झालु(लोभी) होति
व्यापन्न चितो(द्वेषी) होति, मिच्छा दिट्ठि होति .
उच्चाकुलीनो पि हि बाह्मण,
इध एकच्चो पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति .
तं किं मञ्ञसि बाह्मण;
तुम क्या सोचते हो बाह्मण,
बाह्मण येव नु खो पहोति(समर्थ होता है)
बाह्मण ही समर्थ होता है
अवेरं, अब्याबज्झं मेत्तचित्तं भावेतुं ?
अवैर, व्यापाद रहित मैत्री-चित्त की भावना करने के लिए ?
क्षत्री, वैश्य और शुद्र नहीं ?
नो खत्तियो, नो वेस्सो,नो सुद्दो ?
नो हि इदं भो गोतम,
खत्तियो'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुं
चत्तारो वण्णा 'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुं
एवमेव खो बाह्मण, खत्तिय कुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
एवमेव खो बाह्मण, वेस्सकुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
एवमेव खो बाह्मण, सुद्दा कुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
स्रोत- एसुकारी सुत्त: मझिम निकाय
ऐसा मैंने सुना-
एवं मे सुतं-
एक समय भगवान जेतवन, सावत्थि में
एकं समयं भगवा सावत्थियं जेतवने
अनाथ पिण्डिक के आराम में विहार करते थे।
विहरति अनाथ पिण्डिकस्स आरामे
तब एसुकारी ब्राह्मण जहाँ भगवान थे, वहां गया।
अथ खो एसुकारी बाह्मणो येन भगवा तेनुपसंकमि
जा कर भगवन के साथ कुशल-मंगल पूछा
उपसंमित्वा भगवता सद्धिं सम्मोदि
कुशल-मंगल पूछकर एक ओर बैठ गया
सम्मोदनीयं कथं सारणीयं वीतिसारेत्वा एकमन्तं निसीदि
एकमंत निसिन्नो खो एसुकारी बाह्मणो भगवन्तं एतद वोच -
एक ओर बैठे एसुकारी ब्राह्मण ने भगवन से यह कहा-
भो गोतम, ब्राह्मण चार प्रकार के सेवा-धर्म(परिचर्या) बतलाते हैं-
भो गोतम, बाह्मणा, चतस्सो परिचरिया पञ्ञपेन्ति-
बाह्मण, बाह्मण की परिचर्या करें।
बाह्मणा बाह्मणस्स परिचरेय्य।
क्षत्री बाह्मण की परिचर्या करें । क्षत्री, क्षत्री की परिचर्या करें।
खत्तियो बाह्मणस्स परिचरेय्य, खत्तियो खत्तियस्स परिचरेय्य।
वैश्य बाह्मण की परिचर्या करें, वैश्य क्षत्री की परिचर्या करें ।
वेस्सो बाह्मणस्स परिचरेय्य, वेस्स्सो खत्तियस्स परिचरेय्य।वेस्स्सो वेसस्स परिचरेय्य।
वैश्य वैश्य की परिचर्या करें,
शुद्र बाह्मण की परिचर्या करें, शुद्र क्षत्रिय की परिचर्या करें
सुद्दो बाह्मणस्स परिचरेय्य। सुद्दो खत्तियस्स परिचरेय्यशुद्र वैश्य की पर्चार्य करें, शूद्र, शूद्र ही परिचर्या करें।
सुद्दो वेसस्स परिचरेय्य, सुद्दो सुद्दस्स परिचरेय्य।
यहाँ, आप गोतम क्या कहते हैं ?
इध, भवं गोतमो किं आह ?
भगवा-
''ब्राह्मण, क्या सभी लोग ब्राह्मणों को
किं पन बाह्मण, सब्ब लोका बाह्मणानं
इस के लिए अनुज्ञा देते हैं-
एतद अब्भनुजानान्ति-
कि इन चारों परिचर्याओं को वे प्रज्ञापन करें ?
इमा चतस्सो परिचरिया पञ्ञपेतुं ?''
''नहीं भो, गोतम।
नो हि इदं भो गोतम।''
नाहं बाह्मण, सब्बं परिचरितब्बं वदामि,
बाह्मण, न मैं सभी परिचार्याओं को परिचरणीय कहता हूँ
नाहं बाह्मण, सब्बं न परिचरितब्बं वदामि.
और न मैं सभी परिचारियाओं को अ-परिचरणीय कहता हूँ .
ब्राह्मण! जिसको परिचरण करते
यं हि अस्स बाह्मण, परिचरतो
जिसे परिचर्या के हेतु अहित होता है,
परिचारिया हेतु पापियो,
उसे मैं परिचरणीय नहीं कहता
नाहं तं परिचरिब्बं वदामि .
जिसको परिचरण करते
यं च खो अस्स बाह्मण, परिचरतो
जिसे परिचर्या के हेतु हित होता है
परिचारिया हेतु सेय्यो
उसे मैं परिचरणीय कहता हूँतमहं परिचरितब्बं वदामि.
बाह्मण, उच्च कुल वाला भी
बाह्मण, उच्चाकुलीनो पि हि
कोई पाणातिपाती होता है, अदिन्ना दायी होता है
इध एकच्चो पाणातिपाती होति, अदिन्नादायी होति
काम मिथ्याचारी होता है, पिशुनभासी होता है
कामेसुमिच्छाचारी होति, पिसुनावाचो होति
फरुस भासी होता है, संप्रलापी होता है
फारुसावाचो होति, सम्फप्पलापी होति
अभिध्यालु(लोभी) होता है
अभिज्झालु(लोभी) होति
व्यापन्न चितो(द्वेषी) होति, मिच्छा दिट्ठि होति .
उच्चाकुलीनो पि हि बाह्मण,
इध एकच्चो पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति .
तं किं मञ्ञसि बाह्मण;
तुम क्या सोचते हो बाह्मण,
बाह्मण येव नु खो पहोति(समर्थ होता है)
बाह्मण ही समर्थ होता है
अवेरं, अब्याबज्झं मेत्तचित्तं भावेतुं ?
अवैर, व्यापाद रहित मैत्री-चित्त की भावना करने के लिए ?
क्षत्री, वैश्य और शुद्र नहीं ?
नो खत्तियो, नो वेस्सो,नो सुद्दो ?
नो हि इदं भो गोतम,
खत्तियो'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुं
वेस्सो 'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुं
सुद्दो 'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुंचत्तारो वण्णा 'पि पहोती अवेरं, अब्याबज्झं, मेत्त-चित्तं भावेतुं
एवमेव खो बाह्मण, खत्तिय कुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
एवमेव खो बाह्मण, वेस्सकुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
एवमेव खो बाह्मण, सुद्दा कुला च अपि
अगारस्मा, अग्गारियं पब्बजितो होति
सो च तथागत उप्वेदितं धम्म विनयं आगम्म
पाणातिपाती पटिविरतो होति, अदिन्नादाना पटिविरतो होति,
कामेसुमिच्छाचारा पटिविरतो होति, पिसुनावाचा पटिविरतो होति,
फारुसावाचा पटिविरतो होति, सम्फप्पलापा पटिविरतो होति,
अनभिज्झालु(अ-लोभी) होति,
अव्यापन्न चितो(अ-द्वेषी) होति, सम्मा दिट्ठि होति।
स्रोत- एसुकारी सुत्त: मझिम निकाय
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