बुद्ध के शरीर में 32 लक्षण
बाबासाहब अम्बेडकर कृत ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’ में बुद्ध के शरीर में बत्तीस महापुरुष-लक्षण का प्रसंग बालक सिद्धार्थ के जन्म के समय 'असित ऋषि के आगमन' से होता है-
1. जिस समय बालक का जन्म हुआ, उस समय हिमालय में असित नाम के एक बड़े ऋषि रहते थे।
2. असित ने सुना कि आकाश-स्थित देवता ‘‘बुद्ध’’ शब्द की घोषणा कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि वह अपने वस्त्रों को उपर उछाल-उछाल कर प्रसन्नता के मारे इधर-उधर घूम रहे हैं। वह सोचने लगा कि मैं वहां क्यों न जाउ, जहां ‘बुद्ध’ ने जन्म ग्रहण किया है।
3. जब असित ऋषि ने समस्त जम्बूद्वीप पर अपनी दिव्य दृष्टि डाली, तो देखा कि शुद्धोदन के घर एक दिव्य बालक ने जन्म ग्रहण किया है और देवताओं को भी इतनी प्रसन्नता का यही कारण है।
14. असित ने देखा कि बालक बत्तीस महापुरुष लक्षणों तथा अस्सी अनु-व्यंजनों से युक्त है। उसने देखा कि उसका शरीर शुक्र और ब्रह्मा के शरीर से भी अधिक दीप्त है और उसका तेजो-मण्डल उनके तेजोमण्डल से लाख गुणा प्रदीप्त है। उसके मुख से तुरन्त यह वाक्य निकला- ‘‘निस्संदेह यह अद्भूत पुरुष है।’’ वे अपने आसन से उठे, दोनों हाथ जोड़े और उसके पेरों पर गिर पड़े। उनहोंने बालक की परिक्रमा की और उसे अपने हाथों में लेकर विचार-मग्न हो गए।
15. असित ऋषि पुरानी भविष्यवाणी से परिचित थे कि जिसके शरीर में गौतम की तरह के बत्तीस महापुरुष-लक्षण होंगे, वह इन दो गतियों में से एक को निश्चित रूप से प्राप्त होगा, तीसरी को नहीं- ‘‘यदि वह गृहस्थ रहेगा, तो वह चक्रवर्ती नरेश होगा। लेकिन यदि वह गृह-त्याग कर प्रव्रजित हो जाएगा तो वह सम्यक सम्बुद्ध होगा।’’
तत्संबंध की चर्चा करते हुए धर्मानन्द कोसम्बी लिखते हैं- इस प्रकार के विस्तृत वर्णन ‘जातक’ की निदान कथा, ललितविस्तर’ और बुद्धचरित’ काव्य में आए हैं। ति-पिटक वांग्मय में अनेक स्थानों पर उनका विस्तृत उल्लेख आया है। पोक्खरसाति ब्राहमण ने तरुण अम्बष्ठ को यह देखने के लिए भेजा था कि बुद्ध के शरीर पर ये लक्षण स्पष्ट रूप से देखे। परन्तु उसे वे लक्षण दिखाई नहीं दिए। बुद्ध ने उसे वे अद्भूत चमत्कार दिखाये(दीघनिकायः अम्बट्ठ सुत्त)। इस प्रकार ‘बुद्धचरित’ के साथ इन लक्षणों का यत्र-तत्र संबंध दिखाया गया है। चूंकि बुद्ध का बड़कप्पन दिखाने का यह भक्त जनों का प्रयत्न होता है, अतयव उसमें विशेष तथ्य है, ऐसा समझने की आवश्यकता नहीं है(भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन, पृ. 79 )।
स्मरण रहे, दीघनिकाय के महापदान सुत्त में गौतम बुद्ध से पहले के छह बुद्धों और गौतम बुद्ध के चरित्र प्रारम्भ में संक्षेप में दिए हैं। गौतम बुद्ध से पहले सिखी, विपस्सी, वेस्सभू, ककुसंघ , कोणागमन, और कस्सप ये छह बुद्ध हो गए। इन में से पहले तीन क्षत्रिय और शेष ब्राह्मण थे।
भदन्तजी के अनुसार, बुद्धकालीन ब्राहमणों में इन लक्षणों का बहुत महत्व माना जाता था। अतयव यह दिखाने के लिए कि बुद्ध के शरीर पर ये सारे लक्षण थे, बुद्ध के पश्चात एक दो शताब्दियों के अनन्तर ये सुत्त बनाए गए होंगे और फिर इस ‘महापदान’सुत्त(दीघनिकाय) में दाखिल किए गए होंगे। गौतम बोधिसत्व के बुद्ध हो जाने पर ब्राहमण पंडित उनके लक्षण देखते थे। पर इस सुत्त में यह बतलाया गया है कि विपस्सी कुमार के लक्षण उनके जन्म के पश्चात तुरन्त ही देखे गए। इससे एक बड़ी असंगति उत्पन्न हुई है। वह यह कि उसके चालिस दांत हैं, वे सीधे हैं, उनमें विवर नहीं है और उसकी दाढ़ें शुभ्र है- यह चार लक्षण उनमें वैसे ही रह गए। इस सुत्तकार को इस बात का स्मरण नहीं रहा कि किसी बच्चे के जन्म के साथ दांत नहीं होते हैं (वही, पृ. 212, परिशिष्ट- 1) ।
बाबासाहब अम्बेडकर कृत ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’ में बुद्ध के शरीर में बत्तीस महापुरुष-लक्षण का प्रसंग बालक सिद्धार्थ के जन्म के समय 'असित ऋषि के आगमन' से होता है-
1. जिस समय बालक का जन्म हुआ, उस समय हिमालय में असित नाम के एक बड़े ऋषि रहते थे।
2. असित ने सुना कि आकाश-स्थित देवता ‘‘बुद्ध’’ शब्द की घोषणा कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि वह अपने वस्त्रों को उपर उछाल-उछाल कर प्रसन्नता के मारे इधर-उधर घूम रहे हैं। वह सोचने लगा कि मैं वहां क्यों न जाउ, जहां ‘बुद्ध’ ने जन्म ग्रहण किया है।
3. जब असित ऋषि ने समस्त जम्बूद्वीप पर अपनी दिव्य दृष्टि डाली, तो देखा कि शुद्धोदन के घर एक दिव्य बालक ने जन्म ग्रहण किया है और देवताओं को भी इतनी प्रसन्नता का यही कारण है।
14. असित ने देखा कि बालक बत्तीस महापुरुष लक्षणों तथा अस्सी अनु-व्यंजनों से युक्त है। उसने देखा कि उसका शरीर शुक्र और ब्रह्मा के शरीर से भी अधिक दीप्त है और उसका तेजो-मण्डल उनके तेजोमण्डल से लाख गुणा प्रदीप्त है। उसके मुख से तुरन्त यह वाक्य निकला- ‘‘निस्संदेह यह अद्भूत पुरुष है।’’ वे अपने आसन से उठे, दोनों हाथ जोड़े और उसके पेरों पर गिर पड़े। उनहोंने बालक की परिक्रमा की और उसे अपने हाथों में लेकर विचार-मग्न हो गए।
15. असित ऋषि पुरानी भविष्यवाणी से परिचित थे कि जिसके शरीर में गौतम की तरह के बत्तीस महापुरुष-लक्षण होंगे, वह इन दो गतियों में से एक को निश्चित रूप से प्राप्त होगा, तीसरी को नहीं- ‘‘यदि वह गृहस्थ रहेगा, तो वह चक्रवर्ती नरेश होगा। लेकिन यदि वह गृह-त्याग कर प्रव्रजित हो जाएगा तो वह सम्यक सम्बुद्ध होगा।’’
तत्संबंध की चर्चा करते हुए धर्मानन्द कोसम्बी लिखते हैं- इस प्रकार के विस्तृत वर्णन ‘जातक’ की निदान कथा, ललितविस्तर’ और बुद्धचरित’ काव्य में आए हैं। ति-पिटक वांग्मय में अनेक स्थानों पर उनका विस्तृत उल्लेख आया है। पोक्खरसाति ब्राहमण ने तरुण अम्बष्ठ को यह देखने के लिए भेजा था कि बुद्ध के शरीर पर ये लक्षण स्पष्ट रूप से देखे। परन्तु उसे वे लक्षण दिखाई नहीं दिए। बुद्ध ने उसे वे अद्भूत चमत्कार दिखाये(दीघनिकायः अम्बट्ठ सुत्त)। इस प्रकार ‘बुद्धचरित’ के साथ इन लक्षणों का यत्र-तत्र संबंध दिखाया गया है। चूंकि बुद्ध का बड़कप्पन दिखाने का यह भक्त जनों का प्रयत्न होता है, अतयव उसमें विशेष तथ्य है, ऐसा समझने की आवश्यकता नहीं है(भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन, पृ. 79 )।
स्मरण रहे, दीघनिकाय के महापदान सुत्त में गौतम बुद्ध से पहले के छह बुद्धों और गौतम बुद्ध के चरित्र प्रारम्भ में संक्षेप में दिए हैं। गौतम बुद्ध से पहले सिखी, विपस्सी, वेस्सभू, ककुसंघ , कोणागमन, और कस्सप ये छह बुद्ध हो गए। इन में से पहले तीन क्षत्रिय और शेष ब्राह्मण थे।
भदन्तजी के अनुसार, बुद्धकालीन ब्राहमणों में इन लक्षणों का बहुत महत्व माना जाता था। अतयव यह दिखाने के लिए कि बुद्ध के शरीर पर ये सारे लक्षण थे, बुद्ध के पश्चात एक दो शताब्दियों के अनन्तर ये सुत्त बनाए गए होंगे और फिर इस ‘महापदान’सुत्त(दीघनिकाय) में दाखिल किए गए होंगे। गौतम बोधिसत्व के बुद्ध हो जाने पर ब्राहमण पंडित उनके लक्षण देखते थे। पर इस सुत्त में यह बतलाया गया है कि विपस्सी कुमार के लक्षण उनके जन्म के पश्चात तुरन्त ही देखे गए। इससे एक बड़ी असंगति उत्पन्न हुई है। वह यह कि उसके चालिस दांत हैं, वे सीधे हैं, उनमें विवर नहीं है और उसकी दाढ़ें शुभ्र है- यह चार लक्षण उनमें वैसे ही रह गए। इस सुत्तकार को इस बात का स्मरण नहीं रहा कि किसी बच्चे के जन्म के साथ दांत नहीं होते हैं (वही, पृ. 212, परिशिष्ट- 1) ।
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