Thursday, December 27, 2012

Tai (Prerana) Weds


   शादी एक ऐसा जश्न जिसकी चाहत हर दिल में होती है। शादी के सपने देखने वाले जोड़े को मैं नमन करता हूँ। मैं नमन करता हूँ , उन जज्बातों को जो शादी के रूप में परिणित होते हैं । शादी, जहाँ एक सामाजिक बंधन है, जिम्मेदारी है, वही अधिकार और सम्मान से जीने का यह मार्ग भी है।

शादी के मौके पर ब्राइड की अपनी फिलिंग होती है और ब्राइड-ग्रूम की अपनी। ब्राइड का मन होता है कि वह अपनी दोनों बाहें फैलाए खुले आसमां में उडती जाए, बस उडती जाए।
यूँ आजकल, पढ़े-लिखे माँ-बाप बेटियों को पढ़ाने में पक्षपात नहीं कर रहे हैं। अत: आसमान में उड़ने वाली बात अब बीते ज़माने की बात हो चली है।


वही दूसरी ओर, ब्राइड ग्रूम की अपनी फिलिंग होती है। ब्राइड की तरह वह भी आसमान में उड़ना चाहता है। मगर, ब्राइड ग्रूम का घोडा आसमान में नहीं, जमीं पर दौड़ता है।



लड़की की शादी के लिए पिता की अपनी फिलिंग होती है और माँ की अपनी। ब्राइड के हम-उम्र सहेलियां  अपनी फिलिंग को इस तरह जाहिर करती है - बाबुल का ये घर गोरी , कुछ दिन का ठिकाना है। बन के दुल्हन इक दिन, घर पिया का सजाना है---।

 कल, एंगेजमेंट के समय वर पक्ष के साथ मंडप में बैठी पब्लिक को करीब 20 से 25 मिनिट इन्तजार करना पड़ा था। आप जानते हैं, वधु के साथ-साथ उसे असिस्ट करने वाली महिलाओं को भी सजना-संवरना होता है। ऐसे मौकों पर समय  असहाय हो जाता है। दूसरी ओर, कार्य-क्रम स्थल पर ऐसे वक्त, लोगों की नजरे मंडप के मुख्य-द्वार पर टिकी होती है।

 ताकसांडे और उनके परिवार की ओर से किये गए अनुरोध पर शादी मुंबई से ही होनी थी। यद्यपि, व्यवस्था की दृष्टि से यह ठीक नहीं था। शादी में वधु-पक्ष वालों की अधिक भूमिका होती है। मगर, हमें आश्वस्त किया गया था कि मेहमानों के ठहरने और उनके खान-पान की  व्यवस्था ठीक ढंग से की जाएगी।

शादी की डेट 16 दिस तय होने के बाद मैंने रिश्तेदारों को एडवांस में सूचना दे दी थी ताकि उन्हें रिजर्वेशन करने में कोई असुविधा न हो। सप्ताह बीतते-बीतते करीब 65 टिकिटों के रिजर्वेशन कन्फर्मेशन हो चुके थे और शादी को अभी पूरा महिना बाकि था। मैंने ताक सांडे जी को मेहमानों के बढ़ने की सूचना दे दी थी। मगर, ताकसांडे जी ने बतलाया कि वे दोनों पक्ष के मेहमानों के लिए दो बेड रूम वाले तीन-तीन फ्लेट्स ही बुक कर सकते हैं। इससे अधिक कमरे लेना सम्भव नहीं है।

पिछले मुंबई प्रवास के दौरान दो बेड रूम वाले फ्लेट्स हम देख आए थे। बतलाये गए फ्लेट्स में 20 से 25 मेहमानों को ठहराया जा सकता था। मगर, एक ही टायलेट होने की वजह से मार्निंग हावर्स में काफी दिक्कत हो सकती थी। ताकसांडे की बात पर मैं बेहद चिंतित हो गया। अपने टेंशन को रिलीज करने के लिए मैंने अपना कंसर्न अपने करीबी रिश्तेदारों से शेयर किया। यद्यपि, मेरे बड़े लडके राहुल ने मुंबई में अलग से कोई विला किराये पर लेने की बात की थी मगर, मैं अलग से ऐसा कोई एरेंजमेंट करने के पक्ष में नहीं था। क्योंकि, इससे ताकसांडे जी की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो सकते थे।

यह मेरा अपना नजरिया है कि शादी-वगैरे के मौके पर हमारे यहाँ मेहमानों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना अन्य समाज में दिया जाता है। दलित समाज के लोग  सरकारी नौकरी में तो आए हैं और शादी पर होने वाले ताम-झाम पर वे काफी खर्च भी करते हैं। मगर, जहाँ तक मेहमानों की बात है, अभी इसमें काम होना बाकि है।

मेरे इस कंसर्न पर ताकसांडे जी का कहना था कि अगर हजार की मी दूर मेहमान शादी अटेंड करने मुंबई जैसे शहर में आते है तो इस दौरान होने वाली असुविधा के लिए भी मानसिक रूप से तैयार होते हैं !




 शादी के लिए मुंबई जाने के बाद मालुम हुआ कि ताकसांडे जी द्वारा हमारे लिए तीन की जगह चार कमरे बुक किए गए थे वे भी तीन-तीन बेड रूम वाले जिनमें दो-दो टायलेट्स अटेच थे। मगर,अब कुछ नहीं किया जा सकता था। क्योंकि, एकमडेशन के मेरे कंसर्न पर काफी मेहमानों की उत्सुकता खत्म हो गई थी। कुछ ने अपने टिकिट निरस्त करवा लिए थे।

ताई की शादी का बजट बनाते वक्त  घरेलु उपयोग के आयटम देने के लिए हम ने कुछ बजट निर्धारित किया था। यह एक ट्रेडिशन सोच थी।  शायद, हम पति-पत्नी अभी तक उस सोच से उभर नहीं पाए थे। मेरे बड़े बेटे राहुल ने इसका सख्त विरोध किया। और तो और, ताई को भी हमारा यह प्रस्ताव पसंद नहीं था।

 एंगेजमेंट की बात मैंने ताई को ब्रीफ कर दी थी। और इसलिए लंच के बाद 3.00 बजे से ही उसने ब्राइड को तैयार करवाने वाली ब्यूटीशियन को बुला लिया था। दो-दो ब्यूटीशियनों के साथ वैशाली, सोनू भी इसमें अपने-अपने टिप्स दे रहे थे।

सायं ठीक 5.00 बजे ताई, दुल्हन के ड्रेस में तैयार हो गई थी । हम लोग ताई को लेकर 5.30 पर शादी के मंडप में पहुँच गए। मगर, वहां वर पक्ष की ओर से अभी कोई नहीं पहुंचा था। ताई, जो व्हाईट ड्रेस में तैयार थी, को सोनू और वैशाली ने ड्रेसिंग रूम में बैठाल दिया। मंडप के दोनों बाजू में ब्राइड और ब्राइड-ग्रूम  के लिए अलग-अलग ड्रेसिंग रूम बनाये गए थे। यद्यपि ये ड्रेसिंग-रूम किसी काम नहीं आए थे। क्योंकि, ठीक व्यवस्था न होने से दूल्हा और दुल्हन दोनों को रिसेप्शन के लिए ड्रेस चेंज करने अपने-अपने फ्लेट्स ही ले जाना पड़ा था। मंडप में बैठी पब्लिक के लिए यह करीब एक घंटे का समय, बेहद बोरिंग था।


 हमें बारात के स्वागत के लिए  5.30 पर मुख्य द्वार पर खड़े होना था। मैं, मेरे बड़े भाई आत्माराम उके सालेबर्डी, छोटे भाई रामेश्वर उके संजयनगर (अमलाई),  मेरे दोनों बेटे राहुल जो आजकल नीदरलेंड में कार्यरत है, छोटू (ऐश्वर्य सागर आनंद) जो भोपाल के एक कालेज में प्रोफ़ेसर है, मेरा भांजा हुपेंद्र मेश्राम जो दिल्ली के एयर ट्रवलिग  कम्पनी में है, मेरे दोनों साडू भाई मिस्टर डब्ल्यू आर दहाटे जबलपुर जो एस बी आई बैंक\से मेनेजर के पद से एक साल पहले ही रिटायर हुए हैं और बी आर बेलेकर, वारासिवनी जो हाइयर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल है, बेलेकर के सुपुत्र विक्रांत बेलेकर जो जी सी ऍफ़ फेक्टरी जबलपुर में आफिसर  है, मेरे दोस्त ओ पी वैश्य, भिलाई जो छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड रायपुर में अधीक्षण अभियंता है, आदि  बारात के स्वागत में खड़े थे।


करीब आधे घंटे बाद फूलों से सजी एक कार मेन गेट पर पहुंची। कार से बिपिन उतरे। मगर, वहां बारात जैसी कोई बात नहीं थी। हमें बताया गया था कि मुंबई में शादी धूम-धड़ाके के साथ न हो कर बहुत ही सादे तरीके से होती है। हम ने गेट पर आते से ही समय का फायदा उठा कर शादी के मंडप और केटरिंग का जायजा लिया था। मगर, वहां ऐसी कोई बात नज़र नहीं आई थी।

कार से उतर कर बिपिन जो सफेद कुरता पायजामा पहने थे, को हमने अभिवादन किया और फिर वे गेट से अन्दर चले गए। हम जो गेट पर खड़े थे, सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब हमें क्या करना है ? मेहमानों का एक-एक कर आना शुरू हो गया था।  बिपिन की कार को नीरज ड्राइव कर लाए थे। नीरज, जो बिपिन के छोटे भाई हैं और जो इंदौर के आई आई एम् में एम् बी ए कर रहे हैं, आ कर हमारे बीच खड़े हो गए।

 करीब 20 मिनिट बाद दुल्हे के पिता अपने कुछ मेहमानों के साथ नज़र आए। वे आते से ही मुझसे कहने लगे कि आप ने आज भी लेट कर दिया ? हम सभी लोग अवाक उन्हें देखने लगे। कुछ सम्भल कर मैंने कहा कि हम लोग तो यहाँ पर पिछले एक घंटे से खड़े हैं। इसी बीच नीरज जो शायद आस-पास ही खड़े थे, स्थिति को भांपते हुए अपने पिता को दूसरी ओर ले गए। मुझे लगा कि दुल्हे के पिता के मन में कुछ था जो बाहर आना चाहता था।

खैर, 10-15 मिनिट बाद ही हम ने  देखा कि गेट से 10-15 मी पीछे ही बाजा बजने लगा है। इस तरह के बाजे  को यहाँ बेन्जो कहा जाता है। कुछ लोग बेन्जों की धुन पर डांस करने लगे थे। इधर गेट के सामने फटाके फोड़े जाने लगे रहे थे। अब जा कर हम लोगों को बारात का एहसास हुआ। कुछ समय पहले जो माहौल था, एकाएक ख़ुशी में बदल गया।

बारात धीरे-धीरे गेट की ओर बढ़ने लगी। बारात के आगे-आगे जो डांस कर रहे थे, उन में दुल्हे के पिता ही  अधिक नज़र आ रहे थे। पुत्र की शादी में ख़ुशी का एहसास हर कोई जाहिर नहीं कर पाता। इसके लिए एक-दो डांस के स्टेप आना जरुरी है। हम अर्ध-मिश्रित रोमांच से ये सब देख रहे थे।

उधर, अन्दर से बारात के आने की खबर पा कर मिसेज, बड़ी बहू सोनू, वैशाली और अन्य लेडिज मेहमानों के साथ दुल्हे का स्वागत करने परम्परागत तरीके से गेट पर आ चुकी थी। करीब 15-20 मिनिट के अन्दर ही हम ने  बारात को रिसीव किया।


शादी के मंडप में सभी अपने-अपने स्थानों पर बैठ गए। सिटिंग एरेंजमेंट बहुत ही लाजवाब था। मंडप में मेहमानों के सिटिंग के बाद केटरिंग की व्यवस्था थी। पूरा मंडप एक शानदार और ग्लेयरिंग लुक दे रहा था। मेन-गेट का गेट-अप आकर्षक था। स्टेज कलात्मक-ढग से सजाया गया था। स्टेज के एक ओर भंते जी अपने अन्य दो श्रामनेरों के साथ विराजमान थे। माइक पर शादी कन्डक्ट करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता पब्लिक को सम्बोधित कर रहे थे।

शादी बौद्ध बिधि विधान से सम्पन्न हुई। शादी का मंडप मेहमानों से खचा-खच भरा हुआ था। शादी लगने के बाद रिसेप्शन का समय होता है जिसमें आए हुए मेहमान स्टेज पर जा कर एक-एक कर दूल्हा-दुल्हन को शुभकामनाएं देते हैं। मेहमानों की लम्बी लाइन थी।



करीब एक घंटे बाद दूल्हा-दुल्हन रिसेप्शन के लिए स्टेज पर आ चुके थे। मेहमान एक-एक कर दूल्हा-दुल्हन को शुभकामनाएँ दे रहे थे। सबसे अंत में हम लीगों ने भी एक एक कर अपनी शुभकामनाएँ दी।

अब करीब रात का 1.00 बज रहा था। मेहमान डिनर साथ-साथ में ले रहे थे। अब दूल्हा-दुल्हन के परिवार को डिनर लेना था। दुल्हे के पिता ने मुझे इसके लिए आमंत्रित किया। दूल्हा-दुल्हन और उसके परिवार ने डिनर का लुफ्त उठाया। इसके बाद लड़की के विदाई का समय आता है।

बेटी के विदाई का समय बड़ा ह्रदय -विदारक और कारुणिक होता है। हमारे घर-परिवार में काफी शादियाँ हुई है। जहाँ तक मेरा अपना सवाल है, मैं थोड़े अलग प्रकृति का हूँ। मेरे हर उस दृश्य पर आंसू निकल आते  हैं, जो ह्रदय को बींधता है। मैं प्राय: ऐसे मौके पर दृश्य से ओझल हो जाता हूँ। मगर, इस दृश्य से गायब होना मुश्किल था। दूल्हा-दुल्हन स्टेज के सामने खड़े थे। मिसेज ने मेरी ओर देखा। मिसेज का आशय समझ कर मैं आगे बढ़ा और  दूल्हा-दुल्हन को सदा खुश रहने का आशीर्वाद दे कर एक तरफ हो गया। लड़की की विदाई में रात के करीब 2.00 बज गए। हम लोग दूल्हा-दुल्हन को मेन -गट तक छोड़ने के बाद  अपने-अपने फ्लेट्स आ गए। दूसरे दिन मुंबई दर्शन करना था। 

Monday, December 24, 2012

Interesting Facebook chat

Interesting Facebook chat between me and a female Picker.

“Hi !!!”
“---------“. - I took no notice.
“Tum kya free nahin ho ?”
“Hello.” -I replied.” 
“Bhut busy ho kia tum ?”
“Not so.”- I said and asked formally- “H r u ?”
“I fine. kha rehte ho ?” asked from other side.
“S Block 31/42 Gurgaon.” – I said.
“Kia work karte ho ?” – Again come query.
”No work. Free.”- I replied.
“Why ?” Marriage nahin ki kia ?”
“I have 3 children.”
“Fir unko kesy khana khilate ho ?”
“I am retired Supt. Engr from MPSEB.”
“Theak. to ab tum gar par he rehte ho.” Kya like karte ho tum ?
“………….” -I was completely unable to understand the raised query.

सवाल, माइंड-सेट का है


आभा पाठक, जो मेरी बेटी के समान है, पिछले तीन-चार महीनों से हमारे ही रुम पर रहती है। वह मेरी बिटिया   की फ़ास्ट फ्रेंड है। इन दोनों ने इंदौर डे ए वि वि के आई एम् एस से एम् बी ए साथ-साथ किया था। अभी पिछले  16 दिस 12 को मुंबई में सम्पन्न बिटिया की शादी में वह एक घर के सदस्य के रूप में शरीक थी।

कल 24 दिस को टी वी के सारे चेनल दिल्ली के एक बस में घटी गेंगरेप से उत्पन्न पब्लिक आऊटरेग को इण्डिया गेट से सीधे प्रसारित कर रहे थे। शुरू-शुरू में पब्लिक का गुस्सा पुलिस और प्रशासन के विरोध में शांति-पूवर्क चल रहा था। मगर, दिन डूबते-डूबते यह कहीं-कहीं हिंसक हो चला था।

टी वी पर सब की नजरे गडी थी । चेनल वाले कवरेज के साथ पब्लिक आउट रेग को पुलिस और प्रशासन के विरुध्द उबलता गुस्सा बतला रहे थे। हम सब भी इस पर अपने-अपने तई कमेंट्स कर रहे थे। आभा भी सिर  हिला कर एक्जेटली--ओबियसली--या या ---कर रही थी। एक चेनल वाला किसी महिला को पुलिस से झुमा-झटकी करते हुए दिखा रहा था। आभा चीख रही थी -
"मारो --और मार साले को---  "
"... चोर चमार साले, रिजर्वेशन के भरोसे नौकरी में पहुँच गए हैं तो अपने आप को सरकारी बाप समझते हैं।"
"आभा, तू इसमें रिजर्वेशन को क्यों ठूस रही है।" - मिसेज ने बिस्तर से ही आभा के माथे पर पड़े बल को पढ़ते हुए टोका। मिसेज की तबियत इधर कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही है।
"आंटी, देखों न दिल्ली में हम जैसी लडकियों की सुरक्षा पुलिस नहीं कर सकती तो काहे के लिए सरकारी नौकरी में ये साले आ जाते हैं ? अगर रिजर्वेशन नहीं होता तो इन्हें कोई कुत्ता भी नहीं पूछता।"
"मगर, रिजर्वेशन से ही ये पुलिस वाले आये हैं, तुम्हें कैसे मालुम ?"- टी वी से ध्यान हटा कर मैंने टोका।
"ओबीवियसली, रिजर्वेशन से ही ऐसे निक्कमे आ सकते हैं। आप नहीं समझोगे अंकल।"
"ओह, यह बात है----" - मैं आश्चर्य से उसे देखने लगा।
"तो तुम रिजर्वेशन के खिलाफ हो ?" - मिसेज ने सिर पर ढका कम्बल चेहरे से हटाते हुए कहा। ठण्ड होने  से उसने सिर से पावं तक कम्बल ढाक  रखा था।
"बिलकुल, आप ये बतलाइये कि कोई आपका कलिग ही कुछ दिनों के बाद आपका बॉस बन जाए तो आपको कैसा लगेगा।"
"अच्छा, ये बतलाओ, किसी मन्दिर में कोई चमार पुजारी बन जाए तो तुम्हें कैसे लगेगा ?"
"अगर उसे पूजा करनी आती है तो बन सकता है। मगर, सिस्टम को बिगाड़ना ठीक नहीं है। जो सामाजिक-व्यवस्था चल रही है, वह ठीक है। भला चमार पुजारी से आप प्रसाद कैसे पा सकते हैं ?" 

Sunday, December 23, 2012

Tai (Prerana) Haldi & Engagment



गौतम ताकसांडे जी, जो मुंबई के बी ए आर सी के एम्पलाईज हैं, के सुपुत्र बिपिन से बिटिया का रिश्ता हम लोग पिछली मुंबई विजिट में तय कर आए थे। आपसी बातचित में एंगेजमेंट का कार्यक्रम भी तय हुआ था। एंगेजमेंट का कार्यक्रम दिल्ली और मुंबई की दूरी को ध्यान में रख कर अपनी सुबिधा अनुसार करने की बात हुई थी।

तय हुआ कि शादी अर्थात 16 दिस के एक दिन पहले एंगेजमेंट का कार्यक्रम हो। शादी के रजिस्ट्रेशन और एंगेजमेंट के लिए हम लोग काफी पहले अर्थात  11 दिस को ही मुंबई आ चुके थे। मेहमानों का आना 15 दिस की सुबह से ही शुरू हो चूका था। हमारे तरफ से मेहमानों के लिए 4 फ्लेट्स पहले ही तैयार किए जा चुके थे।

गौतम ताकसांडे जी के आवास के पास ही लान में मंडप तैयार था। एंगेजमेंट के कार्यक्रम के साथ दोनों परिवारों के मेहमानों के लिए ब्रेक फास्ट, लंच और डिनर की व्यवस्था यही पर की गई थी। एक 7 सीटर  फोर व्हीलर भी एंगेज किया गया था ताकि ब्रेक फास्ट, लंच और डिनर के लिए मेहमानों को उनके फ्लेट्स, जो यहाँ से करीब एक की मी की दूरी पर  था,  से लाने-ले जाने में सुविधा हो।
15 दिस की सुबह ब्रेक फास्ट के बाद हल्दी का कार्यक्रम शुरू हुआ। हम लोगों ने अपने फ्लेट्स में हल्दी का कार्यक्रम न रखते हुए इसी मंडप में करने का फैसला लिया था जबकि वर पक्ष ने इस मंडप से लगे अपने फ्लेट्स में ही करना श्रेयकर समझा।

दुल्हन की मेहँदी के लिए दो लेडिज हायर थी। 14 दिस की देर रात तक यह कार्यक्रम चला था। दुल्हन-दुल्हे के साथ बाराती महिलाओ में खास कर इस पर्व पर मेहँदी लगाने का रिवाज है। मेहँदी का पेड़  हर जगह पाया जाता है। यह झाड़ीनुमा पेड़ लोग फेंसिंग के रूप में अपने घरों की बाउंडरी में करते हैं, विशेषत: महिलाओं का इसके प्रति लगाव को ध्यान में रख कर।  पहले मेहँदी की पत्तियों को तोड़ कर घंटों सिल-बट्टे में पिसा जाता था। सिल-बट्टे में मेहँदी को जितना पिसा जाता था, मेहँदी का रंग उतना ही चढ़ता था। मगर, आजकल पीसी मेहँदी बाजार में रेडीमेट मिलती है। महिलाऐं पिसने-पिसाने का झंझट छोड़ बाजार से मेहँदी के कोन खरीद लाती है। कोन से सुविधा यह होती है कि फाइन से फाइन आर्ट भी आप इससे आसानी से कर सकते है।

 अब हल्दी का कार्यक्रम शुरू होना था। बीच मंडप में एक पाटा रखा गया था जिस पर दुल्हन को बैठना था। मेरी बड़ी बहू सोनू, छोटा भांजा राजा के तरफ की बहू वैशाली, ताई की मामी मेडम प्रदीप नागदेवे आदि ने ताई को रस्म रिवाज के अनुसार बीच पाटे पर बैठाला। मेडम ने मुझे संकेत किया। मैंने आदेश का आशय समझते हुए ताई को हल्दी लगाते हुए टिका लगा कर कार्यक्रम की शुरुआत की। सभी मेहमान जो वहां उपस्थित थे, ने बारी-बारी से ताई को हल्दी लगा कर टिका किया।

हल्दी के दूसरे दौर में सोनू वगैरे के ग्रुप के साथ मेरी भोपाल वाली बहन कुमुद बागडे, गोपिका वैद्ये बालाघाट आदि ने फिर, दुल्हन को अनौपचारिक रूप से हल्दी लगाया। हल्दी और मेहँदी शादी का अनिवार्य हिस्सा है। हल्दी घरों में प्रयुक्त मशालों का एक पार्ट है। यह एक न्यूट्रीशन के साथ तगड़ा एंटीबायटिक कम्पोनेंट है। मगर, हल्दी का उपयोग शरीर के ऊपर उबटन लगाने के लिए भी किया जाता रहा है। यह सही है कि हल्दी का उबटन पड़ते ही दुल्हन- और दुल्हे के साथ बारातियों का रंग खिल जाता है।


  हल्दी के कार्यक्रम में बेन्गल पहिनने का रिवाज है। इस मौके पर बेंगल हरे रंग की होती है। हरी क्यों होती है, यह शोध का विषय है ? मगर, ऐसे मौकों पर शोध नहीं, रस्म निभाने की प्रथा है।

एंगेजमेंट के मायने है, शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े का एंगेजमेंट। भारतीय संस्कृति और परिवेश में इसका मतलब दो परिवारों का एंगेजमेंट है। एंगेजमेंट में रस्म-रिवाज होती है। ये रस्मों-रिवाज सामाजिक और धार्मिक आधार पर अलग-अलग होती है। बुद्धिस्ट पद्धति में भी इसका अपना तरीका है। इन फेक्ट, बाबा साहब डा आंबेडकर ने सन 1956 की अपनी धम्म-दीक्षा के बाद जो गाइड लाइन दी, समाज उसी को फालो करता है।

मूलत: एंगेजमेंट सिरेमनी में रिंग एक्सचेंज की जाती है। यह रिंग एक्सचेंज की प्रक्रिया भंते जी की उपस्थिति में सम्पन्न होती है। दोनों परिवारों के साथ समाज के गण-मान्य लोग इसका विटनेस होते हैं।

सायंकाल करीब 7.00 बजे इसी मण्डप पर एंगेजमेंट का कार्यक्रम शुरू हुआ। मेहमान अधिकतम आ चुके थे।

हमारे एरिया म प्र और इसके आस पास एंगेजमेंट जिस तरह होता है, मुंबई में उसके कुछ पार्ट स्लिप होते नजर आए। मगर, हम लोगों ने  विविधता वाले देश और समाज में यह सोच कर इसे अपनी मौन स्वीकृति दी कि अगर कुछ हट कर होता है तो उससे अपना अनुभव बढाया जाना चाहिए। कुल मिला कर एंगेजमेंट का कार्यक्रम सुचारू रूप से और बड़े ढंग से सम्पन्न हुआ।

एंगेजमेंट के कार्यक्रम के बाद मस्ती करनी शेष थी। ब्राइड ग्रूम फ्लोर पर आ चूका था और आभा पाठक, ताई की फ़ास्ट फ्रेंड जो हम लोगों के परिवार का हिस्सा है, ने डी जे की धुन पर लहराना शुरू किया। देखते ही देखते दोनों तरफ के मेहमानों में से, खास कर युवा लडके-लड़कियाँ डी जे पर बजती धुनों पर थिरकने लगे।

डी जे पर बजती एक से एक करेंट फ़िल्मी गीतों की धुनों पर लोग थिरकते रहे और हम जैसे लोग इसका आनंद लेते रहे। मगर, जल्दी ही डी जे बंद कर देना पड़ा। मुंबई में रात 9.30-10.00 के बाद शोर बिलकुल भी अलाऊ नहीं होता।