शादी एक ऐसा जश्न जिसकी चाहत हर दिल में होती है। शादी के सपने देखने वाले जोड़े को मैं नमन करता हूँ। मैं नमन करता हूँ , उन जज्बातों को जो शादी के रूप में परिणित होते हैं । शादी, जहाँ एक सामाजिक बंधन है, जिम्मेदारी है, वही अधिकार और सम्मान से जीने का यह मार्ग भी है।
शादी के मौके पर ब्राइड की अपनी फिलिंग होती है और ब्राइड-ग्रूम की अपनी। ब्राइड का मन होता है कि वह अपनी दोनों बाहें फैलाए खुले आसमां में उडती जाए, बस उडती जाए।
यूँ आजकल, पढ़े-लिखे माँ-बाप बेटियों को पढ़ाने में पक्षपात नहीं कर रहे हैं। अत: आसमान में उड़ने वाली बात अब बीते ज़माने की बात हो चली है।
वही दूसरी ओर, ब्राइड ग्रूम की अपनी फिलिंग होती है। ब्राइड की तरह वह भी आसमान में उड़ना चाहता है। मगर, ब्राइड ग्रूम का घोडा आसमान में नहीं, जमीं पर दौड़ता है।
लड़की की शादी के लिए पिता की अपनी फिलिंग होती है और माँ की अपनी। ब्राइड के हम-उम्र सहेलियां अपनी फिलिंग को इस तरह जाहिर करती है - बाबुल का ये घर गोरी , कुछ दिन का ठिकाना है। बन के दुल्हन इक दिन, घर पिया का सजाना है---।
कल, एंगेजमेंट के समय वर पक्ष के साथ मंडप में बैठी पब्लिक को करीब 20 से 25 मिनिट इन्तजार करना पड़ा था। आप जानते हैं, वधु के साथ-साथ उसे असिस्ट करने वाली महिलाओं को भी सजना-संवरना होता है। ऐसे मौकों पर समय असहाय हो जाता है। दूसरी ओर, कार्य-क्रम स्थल पर ऐसे वक्त, लोगों की नजरे मंडप के मुख्य-द्वार पर टिकी होती है।
ताकसांडे और उनके परिवार की ओर से किये गए अनुरोध पर शादी मुंबई से ही होनी थी। यद्यपि, व्यवस्था की दृष्टि से यह ठीक नहीं था। शादी में वधु-पक्ष वालों की अधिक भूमिका होती है। मगर, हमें आश्वस्त किया गया था कि मेहमानों के ठहरने और उनके खान-पान की व्यवस्था ठीक ढंग से की जाएगी।
शादी की डेट 16 दिस तय होने के बाद मैंने रिश्तेदारों को एडवांस में सूचना दे दी थी ताकि उन्हें रिजर्वेशन करने में कोई असुविधा न हो। सप्ताह बीतते-बीतते करीब 65 टिकिटों के रिजर्वेशन कन्फर्मेशन हो चुके थे और शादी को अभी पूरा महिना बाकि था। मैंने ताक सांडे जी को मेहमानों के बढ़ने की सूचना दे दी थी। मगर, ताकसांडे जी ने बतलाया कि वे दोनों पक्ष के मेहमानों के लिए दो बेड रूम वाले तीन-तीन फ्लेट्स ही बुक कर सकते हैं। इससे अधिक कमरे लेना सम्भव नहीं है।
पिछले मुंबई प्रवास के दौरान दो बेड रूम वाले फ्लेट्स हम देख आए थे। बतलाये गए फ्लेट्स में 20 से 25 मेहमानों को ठहराया जा सकता था। मगर, एक ही टायलेट होने की वजह से मार्निंग हावर्स में काफी दिक्कत हो सकती थी। ताकसांडे की बात पर मैं बेहद चिंतित हो गया। अपने टेंशन को रिलीज करने के लिए मैंने अपना कंसर्न अपने करीबी रिश्तेदारों से शेयर किया। यद्यपि, मेरे बड़े लडके राहुल ने मुंबई में अलग से कोई विला किराये पर लेने की बात की थी मगर, मैं अलग से ऐसा कोई एरेंजमेंट करने के पक्ष में नहीं था। क्योंकि, इससे ताकसांडे जी की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो सकते थे।
यह मेरा अपना नजरिया है कि शादी-वगैरे के मौके पर हमारे यहाँ मेहमानों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना अन्य समाज में दिया जाता है। दलित समाज के लोग सरकारी नौकरी में तो आए हैं और शादी पर होने वाले ताम-झाम पर वे काफी खर्च भी करते हैं। मगर, जहाँ तक मेहमानों की बात है, अभी इसमें काम होना बाकि है।
मेरे इस कंसर्न पर ताकसांडे जी का कहना था कि अगर हजार की मी दूर मेहमान शादी अटेंड करने मुंबई जैसे शहर में आते है तो इस दौरान होने वाली असुविधा के लिए भी मानसिक रूप से तैयार होते हैं !
शादी के लिए मुंबई जाने के बाद मालुम हुआ कि ताकसांडे जी द्वारा हमारे लिए तीन की जगह चार कमरे बुक किए गए थे वे भी तीन-तीन बेड रूम वाले जिनमें दो-दो टायलेट्स अटेच थे। मगर,अब कुछ नहीं किया जा सकता था। क्योंकि, एकमडेशन के मेरे कंसर्न पर काफी मेहमानों की उत्सुकता खत्म हो गई थी। कुछ ने अपने टिकिट निरस्त करवा लिए थे।
ताई की शादी का बजट बनाते वक्त घरेलु उपयोग के आयटम देने के लिए हम ने कुछ बजट निर्धारित किया था। यह एक ट्रेडिशन सोच थी। शायद, हम पति-पत्नी अभी तक उस सोच से उभर नहीं पाए थे। मेरे बड़े बेटे राहुल ने इसका सख्त विरोध किया। और तो और, ताई को भी हमारा यह प्रस्ताव पसंद नहीं था।
एंगेजमेंट की बात मैंने ताई को ब्रीफ कर दी थी। और इसलिए लंच के बाद 3.00 बजे से ही उसने ब्राइड को तैयार करवाने वाली ब्यूटीशियन को बुला लिया था। दो-दो ब्यूटीशियनों के साथ वैशाली, सोनू भी इसमें अपने-अपने टिप्स दे रहे थे।
सायं ठीक 5.00 बजे ताई, दुल्हन के ड्रेस में तैयार हो गई थी । हम लोग ताई को लेकर 5.30 पर शादी के मंडप में पहुँच गए। मगर, वहां वर पक्ष की ओर से अभी कोई नहीं पहुंचा था। ताई, जो व्हाईट ड्रेस में तैयार थी, को सोनू और वैशाली ने ड्रेसिंग रूम में बैठाल दिया। मंडप के दोनों बाजू में ब्राइड और ब्राइड-ग्रूम के लिए अलग-अलग ड्रेसिंग रूम बनाये गए थे। यद्यपि ये ड्रेसिंग-रूम किसी काम नहीं आए थे। क्योंकि, ठीक व्यवस्था न होने से दूल्हा और दुल्हन दोनों को रिसेप्शन के लिए ड्रेस चेंज करने अपने-अपने फ्लेट्स ही ले जाना पड़ा था। मंडप में बैठी पब्लिक के लिए यह करीब एक घंटे का समय, बेहद बोरिंग था।
हमें बारात के स्वागत के लिए 5.30 पर मुख्य द्वार पर खड़े होना था। मैं, मेरे बड़े भाई आत्माराम उके सालेबर्डी, छोटे भाई रामेश्वर उके संजयनगर (अमलाई), मेरे दोनों बेटे राहुल जो आजकल नीदरलेंड में कार्यरत है, छोटू (ऐश्वर्य सागर आनंद) जो भोपाल के एक कालेज में प्रोफ़ेसर है, मेरा भांजा हुपेंद्र मेश्राम जो दिल्ली के एयर ट्रवलिग कम्पनी में है, मेरे दोनों साडू भाई मिस्टर डब्ल्यू आर दहाटे जबलपुर जो एस बी आई बैंक\से मेनेजर के पद से एक साल पहले ही रिटायर हुए हैं और बी आर बेलेकर, वारासिवनी जो हाइयर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल है, बेलेकर के सुपुत्र विक्रांत बेलेकर जो जी सी ऍफ़ फेक्टरी जबलपुर में आफिसर है, मेरे दोस्त ओ पी वैश्य, भिलाई जो छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड रायपुर में अधीक्षण अभियंता है, आदि बारात के स्वागत में खड़े थे।
करीब आधे घंटे बाद फूलों से सजी एक कार मेन गेट पर पहुंची। कार से बिपिन उतरे। मगर, वहां बारात जैसी कोई बात नहीं थी। हमें बताया गया था कि मुंबई में शादी धूम-धड़ाके के साथ न हो कर बहुत ही सादे तरीके से होती है। हम ने गेट पर आते से ही समय का फायदा उठा कर शादी के मंडप और केटरिंग का जायजा लिया था। मगर, वहां ऐसी कोई बात नज़र नहीं आई थी।
कार से उतर कर बिपिन जो सफेद कुरता पायजामा पहने थे, को हमने अभिवादन किया और फिर वे गेट से अन्दर चले गए। हम जो गेट पर खड़े थे, सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब हमें क्या करना है ? मेहमानों का एक-एक कर आना शुरू हो गया था। बिपिन की कार को नीरज ड्राइव कर लाए थे। नीरज, जो बिपिन के छोटे भाई हैं और जो इंदौर के आई आई एम् में एम् बी ए कर रहे हैं, आ कर हमारे बीच खड़े हो गए।
करीब 20 मिनिट बाद दुल्हे के पिता अपने कुछ मेहमानों के साथ नज़र आए। वे आते से ही मुझसे कहने लगे कि आप ने आज भी लेट कर दिया ? हम सभी लोग अवाक उन्हें देखने लगे। कुछ सम्भल कर मैंने कहा कि हम लोग तो यहाँ पर पिछले एक घंटे से खड़े हैं। इसी बीच नीरज जो शायद आस-पास ही खड़े थे, स्थिति को भांपते हुए अपने पिता को दूसरी ओर ले गए। मुझे लगा कि दुल्हे के पिता के मन में कुछ था जो बाहर आना चाहता था।
खैर, 10-15 मिनिट बाद ही हम ने देखा कि गेट से 10-15 मी पीछे ही बाजा बजने लगा है। इस तरह के बाजे को यहाँ बेन्जो कहा जाता है। कुछ लोग बेन्जों की धुन पर डांस करने लगे थे। इधर गेट के सामने फटाके फोड़े जाने लगे रहे थे। अब जा कर हम लोगों को बारात का एहसास हुआ। कुछ समय पहले जो माहौल था, एकाएक ख़ुशी में बदल गया।
बारात धीरे-धीरे गेट की ओर बढ़ने लगी। बारात के आगे-आगे जो डांस कर रहे थे, उन में दुल्हे के पिता ही अधिक नज़र आ रहे थे। पुत्र की शादी में ख़ुशी का एहसास हर कोई जाहिर नहीं कर पाता। इसके लिए एक-दो डांस के स्टेप आना जरुरी है। हम अर्ध-मिश्रित रोमांच से ये सब देख रहे थे।
उधर, अन्दर से बारात के आने की खबर पा कर मिसेज, बड़ी बहू सोनू, वैशाली और अन्य लेडिज मेहमानों के साथ दुल्हे का स्वागत करने परम्परागत तरीके से गेट पर आ चुकी थी। करीब 15-20 मिनिट के अन्दर ही हम ने बारात को रिसीव किया।
शादी के मंडप में सभी अपने-अपने स्थानों पर बैठ गए। सिटिंग एरेंजमेंट बहुत ही लाजवाब था। मंडप में मेहमानों के सिटिंग के बाद केटरिंग की व्यवस्था थी। पूरा मंडप एक शानदार और ग्लेयरिंग लुक दे रहा था। मेन-गेट का गेट-अप आकर्षक था। स्टेज कलात्मक-ढग से सजाया गया था। स्टेज के एक ओर भंते जी अपने अन्य दो श्रामनेरों के साथ विराजमान थे। माइक पर शादी कन्डक्ट करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता पब्लिक को सम्बोधित कर रहे थे।
शादी बौद्ध बिधि विधान से सम्पन्न हुई। शादी का मंडप मेहमानों से खचा-खच भरा हुआ था। शादी लगने के बाद रिसेप्शन का समय होता है जिसमें आए हुए मेहमान स्टेज पर जा कर एक-एक कर दूल्हा-दुल्हन को शुभकामनाएं देते हैं। मेहमानों की लम्बी लाइन थी।
करीब एक घंटे बाद दूल्हा-दुल्हन रिसेप्शन के लिए स्टेज पर आ चुके थे। मेहमान एक-एक कर दूल्हा-दुल्हन को शुभकामनाएँ दे रहे थे। सबसे अंत में हम लीगों ने भी एक एक कर अपनी शुभकामनाएँ दी।
अब करीब रात का 1.00 बज रहा था। मेहमान डिनर साथ-साथ में ले रहे थे। अब दूल्हा-दुल्हन के परिवार को डिनर लेना था। दुल्हे के पिता ने मुझे इसके लिए आमंत्रित किया। दूल्हा-दुल्हन और उसके परिवार ने डिनर का लुफ्त उठाया। इसके बाद लड़की के विदाई का समय आता है।
बेटी के विदाई का समय बड़ा ह्रदय -विदारक और कारुणिक होता है। हमारे घर-परिवार में काफी शादियाँ हुई है। जहाँ तक मेरा अपना सवाल है, मैं थोड़े अलग प्रकृति का हूँ। मेरे हर उस दृश्य पर आंसू निकल आते हैं, जो ह्रदय को बींधता है। मैं प्राय: ऐसे मौके पर दृश्य से ओझल हो जाता हूँ। मगर, इस दृश्य से गायब होना मुश्किल था। दूल्हा-दुल्हन स्टेज के सामने खड़े थे। मिसेज ने मेरी ओर देखा। मिसेज का आशय समझ कर मैं आगे बढ़ा और दूल्हा-दुल्हन को सदा खुश रहने का आशीर्वाद दे कर एक तरफ हो गया। लड़की की विदाई में रात के करीब 2.00 बज गए। हम लोग दूल्हा-दुल्हन को मेन -गट तक छोड़ने के बाद अपने-अपने फ्लेट्स आ गए। दूसरे दिन मुंबई दर्शन करना था।