हमारे यहाँ, राजनेताओं को अगर विदेशों में भारत का आईना दिखाना होता है तो वे बुद्ध को आगे कर देते हैं। घटना सन 1956 की है। बुद्ध, जिसने विश्व को शांति का संदेश दिया, के नाम से लोग भारत को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
गवर्नमेंट आफ इण्डिया ने भगवान् बुद्ध के जन्म की 2500 वी वर्ष गाँठ पर बुद्ध जयंती मनाने का फैसला लिया था। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर बुद्ध जयंती समारोह समिति बनायीं गई थी जिसके अध्यक्ष तत्कालीन उप राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन थे। डा आंबेडकर को इस समिति में शामिल नहीं किया गया था।
डा आंबेडकर तब, नेहरू मंत्री- मंडल में विधि मंत्री थे। याद रहे, सम्राट अशोक के बाद डा आंबेडकर भारत में बुद्ध और उनके धर्म के सबसे बड़े प्रतिपादक बन कर उभरे थे। यह डा आंबेडकर थे, जिन्होंने बर्मा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में 'बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य ' पर ऐतिहासिक भाषण दे कर विश्व को भारत के गौरवमयी इतिहास की याद दिलायी थी।
डा आंबेडकर ने इधर कुछ वर्षों से रात-दिन सतत काम करके बुद्ध और उनके दर्शन पर एक बड़े ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ 'दी बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिख कर तैयार हो चुका था। मगर, ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए डा आंबेडकर के पास आवश्यक धन-राशि नहीं थी।
पं जवाहरलाल नेहरू की इस पहल पर कि राष्ट्रीय स्तर पर बुद्ध जयंती मनायी जाएगी, उन्होंने पं नेहरू को एक पत्र लिखा। डा आंबेडकर ने पत्र में लिखा कि उन्होंने विगत पांच वर्षों से सतत काम करके बुद्ध और उनके दर्शन पर एक शोध ग्रन्थ तैयार किया है। शोध-ग्रन्थ के प्रकाशन का खर्च करीब बीस हजार आ रहा है जो उनकी क्षमता के बाहर है। अच्छा हो, भारत सरकार विभिन्न पुस्तकालयों के लिए पांच सौ पुस्तकों की बिक्री का प्रबंध कर दे तो उनका प्रयत्न आसानी से फलित हो जायेगा। साथ ही बुद्ध जयंती के अवसर पर देश और विदेश के मानद शिक्षाविदों को यह पुस्तक वितरित की जा सकती है। वैसे वे अपने तई भी वे इसके प्रकाशन के लिए प्रयास कर रहे हैं ।
डा आंबेडकर के पत्र का पं नेहरू ने दूसरे ही दिन जवाब दिया। पं नेहरु ने लिखा कि जयंती के लिए प्रकाशकों के निमित रखा गया फंड समाप्त हो गया है और वे चाहे तो इस सम्बन्ध में समिति के अध्यक्ष से बात कर लें।
डा आंबेडकर ने उपराष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से सम्पर्क किया। मगर, एस राधा कृष्णन ने इस तारतम्य में अपनी असमर्थता जाहिर की।
पाठक भूले नहीं होंगे कि यही एस राधाकृष्णन थे जिन्होंने सन 1967 में संसद के प्रांगण में स्थापित डा बाबा साहेब आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया था।
गवर्नमेंट आफ इण्डिया ने भगवान् बुद्ध के जन्म की 2500 वी वर्ष गाँठ पर बुद्ध जयंती मनाने का फैसला लिया था। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर बुद्ध जयंती समारोह समिति बनायीं गई थी जिसके अध्यक्ष तत्कालीन उप राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन थे। डा आंबेडकर को इस समिति में शामिल नहीं किया गया था।
डा आंबेडकर तब, नेहरू मंत्री- मंडल में विधि मंत्री थे। याद रहे, सम्राट अशोक के बाद डा आंबेडकर भारत में बुद्ध और उनके धर्म के सबसे बड़े प्रतिपादक बन कर उभरे थे। यह डा आंबेडकर थे, जिन्होंने बर्मा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में 'बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य ' पर ऐतिहासिक भाषण दे कर विश्व को भारत के गौरवमयी इतिहास की याद दिलायी थी।
डा आंबेडकर ने इधर कुछ वर्षों से रात-दिन सतत काम करके बुद्ध और उनके दर्शन पर एक बड़े ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ 'दी बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिख कर तैयार हो चुका था। मगर, ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए डा आंबेडकर के पास आवश्यक धन-राशि नहीं थी।
पं जवाहरलाल नेहरू की इस पहल पर कि राष्ट्रीय स्तर पर बुद्ध जयंती मनायी जाएगी, उन्होंने पं नेहरू को एक पत्र लिखा। डा आंबेडकर ने पत्र में लिखा कि उन्होंने विगत पांच वर्षों से सतत काम करके बुद्ध और उनके दर्शन पर एक शोध ग्रन्थ तैयार किया है। शोध-ग्रन्थ के प्रकाशन का खर्च करीब बीस हजार आ रहा है जो उनकी क्षमता के बाहर है। अच्छा हो, भारत सरकार विभिन्न पुस्तकालयों के लिए पांच सौ पुस्तकों की बिक्री का प्रबंध कर दे तो उनका प्रयत्न आसानी से फलित हो जायेगा। साथ ही बुद्ध जयंती के अवसर पर देश और विदेश के मानद शिक्षाविदों को यह पुस्तक वितरित की जा सकती है। वैसे वे अपने तई भी वे इसके प्रकाशन के लिए प्रयास कर रहे हैं ।
डा आंबेडकर के पत्र का पं नेहरू ने दूसरे ही दिन जवाब दिया। पं नेहरु ने लिखा कि जयंती के लिए प्रकाशकों के निमित रखा गया फंड समाप्त हो गया है और वे चाहे तो इस सम्बन्ध में समिति के अध्यक्ष से बात कर लें।
डा आंबेडकर ने उपराष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से सम्पर्क किया। मगर, एस राधा कृष्णन ने इस तारतम्य में अपनी असमर्थता जाहिर की।
पाठक भूले नहीं होंगे कि यही एस राधाकृष्णन थे जिन्होंने सन 1967 में संसद के प्रांगण में स्थापित डा बाबा साहेब आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया था।
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