दिमाग और लगन
बात तब की है जब लंदन में डॉ आंबेडकर पढाई के लिए गए थे। मगर, पैसे के अभाव में वे कानून की पढाई बीच में छोड़ कर वापिस आ गए थे। भीमराव वहाँ 'प्रॉबलम ऑफ़ रुपीज़' की थीसिस पर काम कर रहे थे। इण्डिया आ कर आंबेडकर मुम्बई के किसी कॉलेज में पढ़ा थे। मगर, इससे उनका इंग्लैण्ड जाने का खर्च नहीं निकल रहा था।आंबेडकर इसी उधेड़बून में थे कि उनका दोस्त नवल भटेना आ धमका। भटेना को एकाएक देख कर आंबेडकर खुश हुए। ये वही नवल भटेना थे जिसने लन्दन में कानून की पढाई के दौरान भीमरॉव को अपने पास बुला कर रूम शेयर किया था। नवल भटेना का रूम शेयर करने से भीमरॉव का काफी कम खर्च में काम चल गया था।
भीमरॉव की समस्या को सुन कर नवल भटेना ने कहा, ' दोस्त ! तुम जितना पैसा लगे , ले जाओ । मगर, पढाई जारी रखो। क्योंकि तुम्हारे पास दिमाग है और लगन भी।
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