बहुजन समाज पार्टी के संगठणात्मक ढाँचे से प्रतीत होता है कि बहन मायावती, किसी तगड़े दावेदार से आवश्यकता से अधिक आशंकित रहती है और यही कारण है कि उ प्र सहित चाहे जो स्टेट हों, किसी सशक्त नेतृत्व को उभरने नहीं दिया जाता. हमने म प्र में फुलसिंग बरैया का हश्र देखा है.
बेशक, देश में बसपा चौतरफा जनाधार वाली पार्टी है. मगर, इसका श्रेय बहन मायावती से कहीं अम्बेडकर-मूव्हमेंट को है जिसकी पैठ और व्यापकता दलित-आदिवासियों से लेकर ओबीसी और अल्पसंख्यकों तक है. कांसीराम साहब और उनसे उत्तराधिकार में प्राप्त यह आन्दोलन बहन मायावती के कन्धों पर स्वाभाविक रूप से है.
दलित, स्वाभाविक रूप से बसपा को अपनी पार्टी मानते हैं. वे दलित, जो किन्हीं कारणों-वश विरोधी पार्टियों में हैं, बसपा को 'दलित स्वाभिमान' के रूप में ही देखते हैं. सवाल है, आप प्रभारी भेज कर कब तक काम चलाओगे ? प्रभारी की अपनी सीमा होती है. आखिर, म प्र में स्थानीय नेतृत्व को क्यों उभरने नहीं दिया जाता ?
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