धार्मिक आतंक
'आदमी से अधिक गाय की अहमियत' मोदी काल पर प्रसिद्द सिने अभिनेता नसरुद्दीन साह का गुस्सा सही में डर पैदा करता है. इसके पहले आमिर खान ने इस पर खुल कर बोलने की हिम्मत की थी. निस्संदेह देश का मुस्लिम डरा हुआ है, गुस्से में है. मुस्लिम समाज के ऐसे प्रतिष्ठित लोग, जो एक मुकाम हासिल कर चुके हैं, भी इस खौप को खुले में कहने से डरते हैं. क्योंकि उन्हीं के घरों के आस-पास अनुपम खेर जैसे लोग भी रहते हैं जो इस धार्मिक आतंक को 'बुद्धिजीवियों की गेंग' कह कर तरफदारी करते हैं !
और मुस्लिम ही क्यों, दलित क्या कम डरे हैं ? क्रश्चियन क्या कम डरे हैं ? बात हिम्मत की है, बेशक मुस्लिम समाज ने बड़ी ही बहादूरी से इस डर का मुकाबला किया है. दलित समाज इसके लिए उन्हें सलाम करता है. वर्तमान में, हिंदी राज्यों में कांग्रेस का उभरना फिलहाल हम समझते हैं, इस दक्षिणी धूर्व के डैने फैलाते गिद्ध के परों को कतरेगा, शक्ति कम करेगा.
गाय हो या सुअर, ये पशु हैं. आदमी और पशु में अन्तर है. जो भी हो, आदमी पशु नहीं हो सकता ? आदमी को हर हालत में आदमी बने रहना है. उसे आदमी और पशु में हर हालत में फर्क समझना है. सत्ता का मद आदमी को पशु नहीं बनाता. सनद रहे, जिन्होंने सत्ता के मद में आदमी को पशु समझा है, इतिहास ने उन्हें माफ़ नहीं किया है . उनके शरीर पर कीड़ें पड़े हैं.
'आदमी से अधिक गाय की अहमियत' मोदी काल पर प्रसिद्द सिने अभिनेता नसरुद्दीन साह का गुस्सा सही में डर पैदा करता है. इसके पहले आमिर खान ने इस पर खुल कर बोलने की हिम्मत की थी. निस्संदेह देश का मुस्लिम डरा हुआ है, गुस्से में है. मुस्लिम समाज के ऐसे प्रतिष्ठित लोग, जो एक मुकाम हासिल कर चुके हैं, भी इस खौप को खुले में कहने से डरते हैं. क्योंकि उन्हीं के घरों के आस-पास अनुपम खेर जैसे लोग भी रहते हैं जो इस धार्मिक आतंक को 'बुद्धिजीवियों की गेंग' कह कर तरफदारी करते हैं !
और मुस्लिम ही क्यों, दलित क्या कम डरे हैं ? क्रश्चियन क्या कम डरे हैं ? बात हिम्मत की है, बेशक मुस्लिम समाज ने बड़ी ही बहादूरी से इस डर का मुकाबला किया है. दलित समाज इसके लिए उन्हें सलाम करता है. वर्तमान में, हिंदी राज्यों में कांग्रेस का उभरना फिलहाल हम समझते हैं, इस दक्षिणी धूर्व के डैने फैलाते गिद्ध के परों को कतरेगा, शक्ति कम करेगा.
गाय हो या सुअर, ये पशु हैं. आदमी और पशु में अन्तर है. जो भी हो, आदमी पशु नहीं हो सकता ? आदमी को हर हालत में आदमी बने रहना है. उसे आदमी और पशु में हर हालत में फर्क समझना है. सत्ता का मद आदमी को पशु नहीं बनाता. सनद रहे, जिन्होंने सत्ता के मद में आदमी को पशु समझा है, इतिहास ने उन्हें माफ़ नहीं किया है . उनके शरीर पर कीड़ें पड़े हैं.
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