Saturday, December 1, 2018

कर्म का सिद्धांत (मिलिंद पन्ह)

कर्म का सिद्धांत
.‘‘भन्ते नागसेन, को पटिसन्दहति?’’ राजा आह।
‘‘भन्ते नागसेन, कौन पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘नामरूपं महाराज, पटिसन्दहति।’’ थेरो आह।
‘‘महाराज! नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’
‘‘किं इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति?’’
‘‘क्या यही नाम और रूप पुनर्मिलन करता है?’’
‘‘न खो महाराज, इमं येव नामरूपं न पटिसन्दहति।
‘‘ नहीं महाराज, यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता।

इमिना पन, महाराज, नामरूपेन कम्मं करोति, कुसलं वा अकुसलं वा
किन्तु महाराज, इस नाम और रूप से कर्म करता है; कुशल आय अकुशल
तेन कम्मेन अञ्ञंं नामरूपं पटिसन्दहति।’’
उस कर्म से दूसरा नाम और रूप पुनर्मिलन करता है।’’

‘‘यदि भन्ते, न इमं येव नामरूपं पटिसन्दहति
‘‘यदि भन्ते! यही नाम और रूप पुनर्मिलन नहीं करता
ननु सो मुत्तो भविस्सति अकुसलेहि कम्मेहि ?’’
तो निश्चय ही वह अकुशल-कर्मोंसे मुक्त होगा ?’’

‘‘यदि न पटिसन्दहेय्य, मुत्तो भवेय्य अकुसलेहि कम्मेही
‘‘यदि पुनर्मिलन न हो, तो मुक्त हो अकुशल कर्मों से
यस्मा च खो महाराज, पटिसन्दहति, तस्मा न मुत्तो अकुसलेहि कम्मेहि।’’
जब तक पुनर्मिलन होता है, तब तक अकुशल-कर्मों से मुक्ति नहीं।’’
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टीप-  भदन्त आनंद कोसल्यायन के शब्दों में, धम्म-ग्रंथों की बातें छान कर ही ग्रहण करने योग्य है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार मिलिंद पन्ह के पहले तीन परिच्छेद ही असली मालूम पड़ते हैं(दर्शन दिग्दर्शन पृ  550 )। बी एम बरुआ(प्रि-बुद्धिस्ट इंडियन फ़िलासफ़ी ), मल्ल शेखर आदि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त लेखकों और इतिहासविदों ने मिलिंद पन्ह की विषय सामग्री पर कई सवाल खड़े किए हैं (देवी प्रसाद चटोपाध्याय : लोकायत पृ  406)।

 बाबासाहेब डॉ आम्बेडकर ने मिलिंद पन्ह के उक्त ‘कर्म’ की ब्राह्मणी थ्योरी को यह कहते हुए अस्वीकार किया है कि बुद्ध के कर्म के सिद्धांत का संबंध मात्र ‘कर्म’ से है और वह भी वर्तमान जन्म के कर्म से(देखें- बुद्धा एॅण्ड धम्माः दूसरा भागः चतुर्थ काण्ड, कर्मः 2/3, पृ. 269)। कर्म की निरंतरता को पुनर्जन्म से जोड़ना महायानी संकल्पना है जो इस जन्म भूमि से बुद्धिज्म के ध्वंश का कारण  बनी।
-अ ला ऊके   @amritlalukey.blogspot.com

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