पालि सुत्तों को संक्षेप में देने का हमारा उद्देश्य धम्म के साथ पालि से परिचय कराना है।
उत्सुक पाठकों से अनुरोध है कि वे बस, इन्हे पढ़ते जाएं-
"भंते नागसेन !
कतमं नामं, कतमं रूपं ?"
"नाम क्या चीज है और रूप क्या चीज है ?"
"यं तत्थ महाराज ! ओळारिकं,
महाराज ! जितने स्थूल चीजें हैं,
एतं रूपं
सभी रूप हैं और
ये तत्थ सुखुमा चित्त-चेतसिका धम्मा
जितने सूक्ष्म मानसिक धर्म हैं
एतं नामं।"
सभी नाम हैं।"
"भंते ! केन कारणेेन
"भंते ! किस कारण से
नामं एव न पटिसंदहति
केवल नाम का ही पुनर्मिलन नहीं होता
रूपं येव वा ?"
अथवा रूप का ही ?"
"अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
महाराज ! एक-दूसरे की निर्भरता से
एते धम्मा एकतोव उप्पज्जन्ति। "
ये धर्म एक साथ पैदा होते हैं। "
"ओप्पमं करोहि। "
"कृपया उपमा देकर समझाएं ?"
"यथा महाराज ! कुक्कुटिया कललं न भवेय्य
"महाराज ! जैसे मुर्गी को कलल न हो
अंड अपि न भवेय्य
तो अंडा भी न हो।
यं च तत्थ कललं, यं च अण्ड
जहाँ कहीं कलल है, वहां अण्डा है
उभोपेते अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं
एकतोव नेसं उप्पति होति
उनकी(नेसं) उत्पत्ति एक साथ होती है
एवमेव खो महाराज !
इसी तरह महाराज !
यदि तत्थं नामं न भवेय्य
यदि नाम न हो
रूपं अपि न भवेय्य
तो रूप भी न हो
यंचेव तत्थ नामं, यंचेव रूपं
जहाँ कहीं नाम होगा, रूप भी होगा
उभोपेते अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं
एकतोव नेसं उप्पति होति
उनकी उत्पत्ति एकसाथ होती है
एवमेतं दीघ अद्धानं संधावितं।"
यह अनंत काल से होता चला है।"
"कल्लोसी भंते नागसेन !"
"भंते ! आपने ठीक कहा।"
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
उत्सुक पाठकों से अनुरोध है कि वे बस, इन्हे पढ़ते जाएं-
"भंते नागसेन !
कतमं नामं, कतमं रूपं ?"
"नाम क्या चीज है और रूप क्या चीज है ?"
"यं तत्थ महाराज ! ओळारिकं,
महाराज ! जितने स्थूल चीजें हैं,
एतं रूपं
सभी रूप हैं और
ये तत्थ सुखुमा चित्त-चेतसिका धम्मा
जितने सूक्ष्म मानसिक धर्म हैं
एतं नामं।"
सभी नाम हैं।"
"भंते ! केन कारणेेन
"भंते ! किस कारण से
नामं एव न पटिसंदहति
केवल नाम का ही पुनर्मिलन नहीं होता
रूपं येव वा ?"
अथवा रूप का ही ?"
"अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
महाराज ! एक-दूसरे की निर्भरता से
एते धम्मा एकतोव उप्पज्जन्ति। "
ये धर्म एक साथ पैदा होते हैं। "
"ओप्पमं करोहि। "
"कृपया उपमा देकर समझाएं ?"
"यथा महाराज ! कुक्कुटिया कललं न भवेय्य
"महाराज ! जैसे मुर्गी को कलल न हो
अंड अपि न भवेय्य
तो अंडा भी न हो।
यं च तत्थ कललं, यं च अण्ड
जहाँ कहीं कलल है, वहां अण्डा है
उभोपेते अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं
एकतोव नेसं उप्पति होति
उनकी(नेसं) उत्पत्ति एक साथ होती है
एवमेव खो महाराज !
इसी तरह महाराज !
यदि तत्थं नामं न भवेय्य
यदि नाम न हो
रूपं अपि न भवेय्य
तो रूप भी न हो
यंचेव तत्थ नामं, यंचेव रूपं
जहाँ कहीं नाम होगा, रूप भी होगा
उभोपेते अञ्ञमञ्ञ उपनिस्सिता
दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं
एकतोव नेसं उप्पति होति
उनकी उत्पत्ति एकसाथ होती है
एवमेतं दीघ अद्धानं संधावितं।"
यह अनंत काल से होता चला है।"
"कल्लोसी भंते नागसेन !"
"भंते ! आपने ठीक कहा।"
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
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