पाठ 1
वर्ण परिचय
बुद्धकाल में हुए भदन्त कच्चायन ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था। उन्होंने उस में 41 वर्ण और 33 व्यंजन माने थे। स्मरण रहे, वैदिक भाषा में 64 और संस्कृत भाषा में 50 अक्षर होते हैं। भदन्त कच्चायन के अनन्तर भदन्त मोग्गलायन ने अपने व्याकरण में ‘ऐ’ और ‘औ’ को मिलाकर 10 स्वर और व्यंजन 33 ही माने। वर्तमान में कच्चायन व्याकरण ही व्यवहार में है, जिस में निम्नानुसार 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं-
स्वर : अ आ इ ई उ उ ए ओ
व्यंजनः क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स ह ळ अं
1. पांच-पांच वर्ण के पांच वर्ग होते हैं, जैसे क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त
वर्ग, प वर्ग। क वर्ग में क ख ग घ ङ ये पांच वर्ण आते हैं, इस प्रकार
33 वर्ण हैं। प्रत्येक वर्ग का पांचवां वर्ण ‘अनुनासिक’ होता है।
2. पालि में अं को निग्गहित(अनुस्वार) कहते है। इसे व्यंजन माना जाता है। इसका उच्चारण ‘अं ’ और ग को मिलाकर किया जाता है। जैसे बुद्धं = बुद्ध - अं।
3. ङ और अं के उच्चारण में कोई अन्तर नहीं होता। ‘ङ’ कभी भी शब्द के अन्त में नहीं आता है, बल्कि उसके साथ सदैव उसी वर्ग का कोई व्यंजन रहता है।
4. ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के साथ किया जाता है।
5. पालि भाषा में विसर्ग( : ) और हलन्त( ् ) का प्रयोग नहीं होता है। सभी शब्द स्वरान्त होते हैं।
6. पालि में ‘ऋ’ वर्ण नहीं होता। इसके स्थान पर अ, इ, उ वर्ण प्रयोग होते हैं। यथा- गृह - गहं। नृत्यं- नच्चं। यहां अ का उच्चारण हुआ।
ऋण- इणं। ऋषि - इसि। यहां ‘ऋ’ का इ और ‘षि’ का सि हुआ।
ऋतु- उतु। ऋषभ- उसभ। यहां ‘ऋ’ का उ हुआ।
7. पालि में मूर्धन्य ‘ष’ तथा तालव्य ‘श’ नहीं होते हैं। इन दोनों के स्थान पर दन्त्य स का प्रयोग होता है। यथा- यश- यस। शिष्य- सिस्स आदि।
8. हिन्दी का क्ष पालि में ‘क्ख’ हो जाता है। यथा- शिक्षा- सिक्खा आदि।
9. इसी प्रकार ‘ऐ’ और ‘औ’ पालि में ए और ओ हो जाता है। यथा-
ऐरावण- एरावण।
वैमानिक- वेमानिक। वैयाकरण- वेयाकरण।
कभी.कभी ‘ऐ’ का इ अथवा ई हो जाता है। यथा-
गैवेयं- गीवेय्यं। सैन्धव- सिन्धवं।
औदरिक- ओदरिक। दौवारिक- दोवारिक।
कभी.कभी ‘औ’ का अथवा उ हो जाता है। यथा-
मौत्त्किक- मुत्तिक। औद्धत्य- उद्धच्च।
10. पालि में ‘आधा र ’ नहीं होता। उसके स्थान पर निम्नानुसार शब्द-रूप बनते हैं-
कर्म- कम्म। सर्व- सब्ब।
तर्हि- तरहि। महार्ह- महारहो।
आर्य- अरिय। सूर्य- सूरिय।
भार्या- भरिया। पर्यादान- परियादान।
कृत- कित। प्रेत- पेत।
समग्र- समग्ग। इन्द्र- इन्दो, आदि।
वर्ण परिचय
बुद्धकाल में हुए भदन्त कच्चायन ने पालि भाषा का व्याकरण तैयार किया था। उन्होंने उस में 41 वर्ण और 33 व्यंजन माने थे। स्मरण रहे, वैदिक भाषा में 64 और संस्कृत भाषा में 50 अक्षर होते हैं। भदन्त कच्चायन के अनन्तर भदन्त मोग्गलायन ने अपने व्याकरण में ‘ऐ’ और ‘औ’ को मिलाकर 10 स्वर और व्यंजन 33 ही माने। वर्तमान में कच्चायन व्याकरण ही व्यवहार में है, जिस में निम्नानुसार 8 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं-
स्वर : अ आ इ ई उ उ ए ओ
व्यंजनः क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स ह ळ अं
1. पांच-पांच वर्ण के पांच वर्ग होते हैं, जैसे क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त
वर्ग, प वर्ग। क वर्ग में क ख ग घ ङ ये पांच वर्ण आते हैं, इस प्रकार
33 वर्ण हैं। प्रत्येक वर्ग का पांचवां वर्ण ‘अनुनासिक’ होता है।
2. पालि में अं को निग्गहित(अनुस्वार) कहते है। इसे व्यंजन माना जाता है। इसका उच्चारण ‘अं ’ और ग को मिलाकर किया जाता है। जैसे बुद्धं = बुद्ध - अं।
3. ङ और अं के उच्चारण में कोई अन्तर नहीं होता। ‘ङ’ कभी भी शब्द के अन्त में नहीं आता है, बल्कि उसके साथ सदैव उसी वर्ग का कोई व्यंजन रहता है।
4. ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ का उच्चारण ‘ह’ ध्वनि के साथ किया जाता है।
5. पालि भाषा में विसर्ग( : ) और हलन्त( ् ) का प्रयोग नहीं होता है। सभी शब्द स्वरान्त होते हैं।
6. पालि में ‘ऋ’ वर्ण नहीं होता। इसके स्थान पर अ, इ, उ वर्ण प्रयोग होते हैं। यथा- गृह - गहं। नृत्यं- नच्चं। यहां अ का उच्चारण हुआ।
ऋण- इणं। ऋषि - इसि। यहां ‘ऋ’ का इ और ‘षि’ का सि हुआ।
ऋतु- उतु। ऋषभ- उसभ। यहां ‘ऋ’ का उ हुआ।
7. पालि में मूर्धन्य ‘ष’ तथा तालव्य ‘श’ नहीं होते हैं। इन दोनों के स्थान पर दन्त्य स का प्रयोग होता है। यथा- यश- यस। शिष्य- सिस्स आदि।
8. हिन्दी का क्ष पालि में ‘क्ख’ हो जाता है। यथा- शिक्षा- सिक्खा आदि।
9. इसी प्रकार ‘ऐ’ और ‘औ’ पालि में ए और ओ हो जाता है। यथा-
ऐरावण- एरावण।
वैमानिक- वेमानिक। वैयाकरण- वेयाकरण।
कभी.कभी ‘ऐ’ का इ अथवा ई हो जाता है। यथा-
गैवेयं- गीवेय्यं। सैन्धव- सिन्धवं।
औदरिक- ओदरिक। दौवारिक- दोवारिक।
कभी.कभी ‘औ’ का अथवा उ हो जाता है। यथा-
मौत्त्किक- मुत्तिक। औद्धत्य- उद्धच्च।
10. पालि में ‘आधा र ’ नहीं होता। उसके स्थान पर निम्नानुसार शब्द-रूप बनते हैं-
कर्म- कम्म। सर्व- सब्ब।
तर्हि- तरहि। महार्ह- महारहो।
आर्य- अरिय। सूर्य- सूरिय।
भार्या- भरिया। पर्यादान- परियादान।
कृत- कित। प्रेत- पेत।
समग्र- समग्ग। इन्द्र- इन्दो, आदि।
No comments:
Post a Comment