पाठ 2
विभक्ति
संस्कृत की तरह पालि में भी 8 विभक्तियां होती हैं- पठमा, दुतिया, ततिया, चतुत्थी, पंचमी, छट्ठी, सत्तमी, आलपण। अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारन्त आदि शब्दों के रूप थोड़े अलग- अलग होते हैं।
बुद्ध(अकारान्त पुल्लिंग)
कारक विभक्ति एकवचन अनेकवचन
पठमा(कर्ता) ने बुद्धो बुद्धा
दुतिया(कर्म) को बुद्धं बुद्धे
ततिया(करण) से,द्वारा बुद्धेन बुद्धेहि,बुद्धेभि
चतुत्थी(सम्प्रदान) को,के,लिए बुद्धाय, बुद्धस्स बुद्धानं
पञ्चमी(अपादान) से बुद्धा,बुद्धम्हा,बुद्धस्मा बुद्धेहि,बुद्धेभि
छट्ठी(सम्बन्ध) का,के,की बुद्धस्स बुद्धानं
सत्तमी(अधिकरण) में,पर,पास बुद्धे,बुद्धेम्हि,बुद्धिेस्मिं बुद्धेसु
आलपण (सम्बोधन) हे, अरे! बुद्ध! बुद्धा! बुद्धा!
अभ्यास-
1. पालि में केवल दो वचन होते हैं- एकवचन, अनेकवचन(बहुवचन)।
2. विभक्तियों को आप ऐसे याद कर सकते हैं- कर्तरि, कम्मत्थे, साधने, दानत्थे, विच्छेदे, सम्बन्धे, आधारे, सम्बोधने।
3. चतुत्थी और छट्ठी के विभक्ति रुप बहुधा समान होते हैं। इसी प्रकार ततिया और पञ्चमी के अनेकवचन में कारक रूप बहुधा समान होते हैं। पञ्चमी की विभक्ति ‘से’ दूरी को दर्शाती है।
4.अन्य अकारान्त (पु.) शब्द- धम्म, संघ, नर, मनुस्स, जनक, पुत्त, सहोदर, मातुल(मामा), किंकर(नौकर), धनिक, सिंह, सावक, गज, अज(बकरा), अस्स(घोड़ा), गदभ(गदहा), कुक्कुर/सोण(कुत्ता), वानर, महिस(भैंस), सकुण(चिड़िया), काक(कौआ), सुक(तोता), बक(बगुला), मोर, सप्प(सांप), नकुल, निगम, गोप(ग्वाला), पब्बत, तड़ाग(तालाब), लोहकार, सुवण्णकार, कुम्भकार, आचरिय(आचार्य), सिस्स(सिस्य), समुद्द(समुद्र), रुक्ख, अनल(आग), अनिल(हवा), आकास, सुरिय, चन्द, लोक, संसार, पोत, रथ, गाम, देस, भूप, पासाद, मज्जार(बिल्ली), बिडाल(बिल्ला), पमाद(प्रमाद), खय(क्षय), सारम्भ(झगड़ा) आदि।
5. अकारान्त (नपुं) शब्द- नगर, रट्ठ(राष्ट्र), पण्ण(पत्ता), मूल, तीर, खेत, जल, खीर, मंस(मांस), फल, पुप्फ, धञ्ञ(धान), सुवण्ण(सुवर्ण), पाप, कुल, नेत्त(नेत्र), मत्थक(मस्तक), सोत, मुख, पीठ, हदय, मञ्च, भत्त, धन, सुख, दुक्ख, कारण, बिम्ब, पोत्थक, चित्त, पुञ्ञ, हिरञ्ञ(सोना), आयुध, चीवर, ओदन(भात), ञाण(ज्ञान), वन, अरञ्ञ (जंगल) आदि।
‘फल’(अकारान्त नपुंसकलिंग )
पठमा फलं फला,फलानि
दुतिया फलं फले,फलानि
-शेष रूप ‘बुध्द’ शब्द के समान।
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
विभक्ति
संस्कृत की तरह पालि में भी 8 विभक्तियां होती हैं- पठमा, दुतिया, ततिया, चतुत्थी, पंचमी, छट्ठी, सत्तमी, आलपण। अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारन्त आदि शब्दों के रूप थोड़े अलग- अलग होते हैं।
बुद्ध(अकारान्त पुल्लिंग)
कारक विभक्ति एकवचन अनेकवचन
पठमा(कर्ता) ने बुद्धो बुद्धा
दुतिया(कर्म) को बुद्धं बुद्धे
ततिया(करण) से,द्वारा बुद्धेन बुद्धेहि,बुद्धेभि
चतुत्थी(सम्प्रदान) को,के,लिए बुद्धाय, बुद्धस्स बुद्धानं
पञ्चमी(अपादान) से बुद्धा,बुद्धम्हा,बुद्धस्मा बुद्धेहि,बुद्धेभि
छट्ठी(सम्बन्ध) का,के,की बुद्धस्स बुद्धानं
सत्तमी(अधिकरण) में,पर,पास बुद्धे,बुद्धेम्हि,बुद्धिेस्मिं बुद्धेसु
आलपण (सम्बोधन) हे, अरे! बुद्ध! बुद्धा! बुद्धा!
अभ्यास-
1. पालि में केवल दो वचन होते हैं- एकवचन, अनेकवचन(बहुवचन)।
2. विभक्तियों को आप ऐसे याद कर सकते हैं- कर्तरि, कम्मत्थे, साधने, दानत्थे, विच्छेदे, सम्बन्धे, आधारे, सम्बोधने।
3. चतुत्थी और छट्ठी के विभक्ति रुप बहुधा समान होते हैं। इसी प्रकार ततिया और पञ्चमी के अनेकवचन में कारक रूप बहुधा समान होते हैं। पञ्चमी की विभक्ति ‘से’ दूरी को दर्शाती है।
4.अन्य अकारान्त (पु.) शब्द- धम्म, संघ, नर, मनुस्स, जनक, पुत्त, सहोदर, मातुल(मामा), किंकर(नौकर), धनिक, सिंह, सावक, गज, अज(बकरा), अस्स(घोड़ा), गदभ(गदहा), कुक्कुर/सोण(कुत्ता), वानर, महिस(भैंस), सकुण(चिड़िया), काक(कौआ), सुक(तोता), बक(बगुला), मोर, सप्प(सांप), नकुल, निगम, गोप(ग्वाला), पब्बत, तड़ाग(तालाब), लोहकार, सुवण्णकार, कुम्भकार, आचरिय(आचार्य), सिस्स(सिस्य), समुद्द(समुद्र), रुक्ख, अनल(आग), अनिल(हवा), आकास, सुरिय, चन्द, लोक, संसार, पोत, रथ, गाम, देस, भूप, पासाद, मज्जार(बिल्ली), बिडाल(बिल्ला), पमाद(प्रमाद), खय(क्षय), सारम्भ(झगड़ा) आदि।
5. अकारान्त (नपुं) शब्द- नगर, रट्ठ(राष्ट्र), पण्ण(पत्ता), मूल, तीर, खेत, जल, खीर, मंस(मांस), फल, पुप्फ, धञ्ञ(धान), सुवण्ण(सुवर्ण), पाप, कुल, नेत्त(नेत्र), मत्थक(मस्तक), सोत, मुख, पीठ, हदय, मञ्च, भत्त, धन, सुख, दुक्ख, कारण, बिम्ब, पोत्थक, चित्त, पुञ्ञ, हिरञ्ञ(सोना), आयुध, चीवर, ओदन(भात), ञाण(ज्ञान), वन, अरञ्ञ (जंगल) आदि।
‘फल’(अकारान्त नपुंसकलिंग )
पठमा फलं फला,फलानि
दुतिया फलं फले,फलानि
-शेष रूप ‘बुध्द’ शब्द के समान।
-अ ला ऊके @amritlalukey.blogspot.com
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