विगत दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव को दिल्ली पुलिस ने जिस ढंग से हेंडल किया, उस पर फैसला सुनाते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि नि;संदेह, पुलिस का रवैया अलोकतांत्रिक था. यूँ कोर्ट ने बाबा रामदेव को भी वातावरण को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार माना है.
बेशक, पुलिस ने जरा ज्यादा ही सख्त रवैया अपनाया था.प्रथम दृष्टया तो ऐसा ही लगता है. पुलिस, अगर चाहती तो बाबा को इससे बेहतर ढंग से निपट सकती थी. उस सीन को जिसने भी देखा, वह यही कहेगा. किन्तु , मुझे लगता है बात इतनी भर नहीं है.लोग बाबाओं के पीछे पागलों की तरह भागते हैं.बाबाओं के आश्रमों में भेड़-बकरियों की तरह मची भगदड़ और उन में मरने वालों की संख्या इसे सिध्द करती है.
दिल्ली के रामलीला मैदान में रामदेव बाबा ने योग शिविर के लिए अनुमति ली थी. मगर, क्या वह योग शिविर था ? आखिर, योग शिविर को, केंद्र सरकार को धमकाने के लिए लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ में कैसे तब्दील कर दिया गया ? बाबा रामदेव योग शिविर के बहाने केंद्र सरकार को क्यों धमका रहे थे ? क्या योग शिविर के बहाने लाखों लोगों को इकट्ठा करना, जिस में स्त्रीयां और बच्चे भी थे, पहले से एक सोचा-समझा गया प्लान था ? और अगर ऐसा है, तो रामदेव बाबा को योग शिविर के बहाने सरकार को धमकाने की इजाजत सरकार, चाहे दिल्ली की हो या केंद्र की, कैसे दे सकती है ?
यूँ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए. कोर्ट ने जहाँ दिल्ली पुलिस को फटकार लगायी है वहीँ रामदेव बाबा को भी कटघरे में खड़ा किया है. कोर्ट के निर्णय से जहाँ पुलिस, बाबाओं को हेंडल करने में लोकतान्त्रिक ढंग अपनाएगी वही, रामदेव जैसे बाबा लोग योग शिविर की आड़ में ऐसा बखेड़ा करने को दस बार सोचेंगे.
वैसे, मीडिया कोर्ट के निर्णय को पचाने की स्थिति में नहीं दीखता. वह इसे, सरकार के विरुध्द लोगों को अपना विरोध जाहिर करने पर ब्रेक लगाने के रूप में देखता है.क्यों न हो, आखिर बाबा रामदेव को मीडिया कवर जो कर रहा था ? मीडिया के पूरे चेनल बाबा रामदेव को टेलीकास्ट कर रहे थे.मीडिया कहता है कि देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उनके अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है.सर्वोच्च न्यायालय को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए.
बेशक, पुलिस ने जरा ज्यादा ही सख्त रवैया अपनाया था.प्रथम दृष्टया तो ऐसा ही लगता है. पुलिस, अगर चाहती तो बाबा को इससे बेहतर ढंग से निपट सकती थी. उस सीन को जिसने भी देखा, वह यही कहेगा. किन्तु , मुझे लगता है बात इतनी भर नहीं है.लोग बाबाओं के पीछे पागलों की तरह भागते हैं.बाबाओं के आश्रमों में भेड़-बकरियों की तरह मची भगदड़ और उन में मरने वालों की संख्या इसे सिध्द करती है.
दिल्ली के रामलीला मैदान में रामदेव बाबा ने योग शिविर के लिए अनुमति ली थी. मगर, क्या वह योग शिविर था ? आखिर, योग शिविर को, केंद्र सरकार को धमकाने के लिए लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ में कैसे तब्दील कर दिया गया ? बाबा रामदेव योग शिविर के बहाने केंद्र सरकार को क्यों धमका रहे थे ? क्या योग शिविर के बहाने लाखों लोगों को इकट्ठा करना, जिस में स्त्रीयां और बच्चे भी थे, पहले से एक सोचा-समझा गया प्लान था ? और अगर ऐसा है, तो रामदेव बाबा को योग शिविर के बहाने सरकार को धमकाने की इजाजत सरकार, चाहे दिल्ली की हो या केंद्र की, कैसे दे सकती है ?
यूँ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए. कोर्ट ने जहाँ दिल्ली पुलिस को फटकार लगायी है वहीँ रामदेव बाबा को भी कटघरे में खड़ा किया है. कोर्ट के निर्णय से जहाँ पुलिस, बाबाओं को हेंडल करने में लोकतान्त्रिक ढंग अपनाएगी वही, रामदेव जैसे बाबा लोग योग शिविर की आड़ में ऐसा बखेड़ा करने को दस बार सोचेंगे.
वैसे, मीडिया कोर्ट के निर्णय को पचाने की स्थिति में नहीं दीखता. वह इसे, सरकार के विरुध्द लोगों को अपना विरोध जाहिर करने पर ब्रेक लगाने के रूप में देखता है.क्यों न हो, आखिर बाबा रामदेव को मीडिया कवर जो कर रहा था ? मीडिया के पूरे चेनल बाबा रामदेव को टेलीकास्ट कर रहे थे.मीडिया कहता है कि देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उनके अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है.सर्वोच्च न्यायालय को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए.
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