Tuesday, February 28, 2012

बौध्द भिक्षु

        बौध्द भिक्षु चीवर धारण करते हैं. भगवे रंग के तीन कपड़ों के सेट को  चीवर कहा जाता है. इस सेट में एक पहनने का कपड़ा जिसे अंतर वासक कहा जाता है।  दूसरा ओढने का कपड़ा जिसे उत्तरा संग और तीसरा संगाठी अर्थात छाती के चारो ओर लपेटने का कपड़ा होता है।  उत्तरा संग को दुपट्टे की तरह ओढ़ा जाता है। .

 एक बौध्द भिक्षु के पास चीवर के आलावा भिक्षा-पात्र, अंगोछा,करधनी और उस्तरा होता है. हर पन्द्रहवें दिन भिक्षु एक दूसरे का मुंडन करते हैं. भिक्षु स्वयं उपार्जन करते हैं। उनकी आजीविका भिक्षा है। एक भिक्षु से अपेक्षा की जाती है कि वह विनय (भिक्षु आचरण के नियम ) का कठोरता से पालन करें। आम जनता में भिक्षु , धार्मिक संस्कार सम्पन्न करते/कराते हैं। धर्मानुसार आचरण के लिए वे प्रेरणा-स्रोत होते हैं।

 मगर, देखा जाता है कि इसके उलट, भिक्षु धन का संग्रह करते हैं। उनका घर-बार होता है।  बीबी और बच्चें होते हैं। वे वैवाहिक जीवन का आनंद उठाते हैं। वे यूवा-वस्था में प्रव्रजित हो भिक्षु नहीं बनते बल्कि , अधेड़ होने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागने के लिए काषाय वस्त्र धारण करते हैं। भिक्षु विनय में उल्लेखित नियमों के परिपालन में ऐसे भिक्षु बिरले ही होते हैं।

 एक भिक्षु पी एच डी थे।  मगर, वे बार बार इसका उल्लेख कर रहे थे। आप पी एच डी हैं तो इसका पता सामने वाले को आपके प्रवचन से होना चाहिए न कि आपके बताने से। बेशक, पी एच डी से व्यक्तित्व में एक ठसक आती है।  मगर ,  इस ठसक में दबाव न हो कर एक सहजता होनी चाहिए।

यह भी हो सकता है कि मैंने उस तरह के भिक्षु ही न देखे हो। जिन भिक्षुओं से मेरा मिलना हुआ वे दरअसल, टाइम पास भिक्षु हो। अगर ऐसा है तो मैं उन भिक्षुओं को पूरे आदर के साथ नमन करता हूँ, वंदन करता हूँ।
 बुद्धं नमामि।

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