Tuesday, February 21, 2012

मुंशी एन. एल. खोब्रागडे ( N.L.Khobragade:1924- )

बचपन से ही मैंने मुंशी एन. एल. खोब्रागडे जी के बारे में सुना था. सामाजिक आन्दोलन में उनकी भूमिका के बारे में काफी कुछ पढ़ा था. बालाघाट जिला मेरा जन्म स्थान होने के कारण यह स्वाभाविक ही था. आज, मुझे फक्र है, उनके बारे में कुछ लिखने का, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने का अवसर मिला है। वास्तव में, हमें ऐसे महापुरुषों के बारे अध्ययन करना चाहिए और उससे सीख लेनी चाहिए.
     मुंशी एन. एल. खोब्रागडे जी को म. प्र. में और खासकर बालाघाट जिले में न सिर्फ सामाजिक- आन्दोलन के प्रणेता के रूप में देखा जाता है बल्कि, दलित राजनीति के सूत्रधार के रूप में उन्हें स्मरण किया जाता है. जीवन के अन्तिम पड़ाव में उन्होंने अब साहित्य- सृजन पर खुद को केन्द्रित किया है. आज उनकी उम्र 86  वर्ष पार चुकी है. आईये उनके सामाजिक योगदान को जानने और समझने का प्रयास करें.
 जीवन परिचय -         मुंशी एन. एल. खोब्रागडे का पूरा नाम नत्थूलाल खोब्रागडे है.आपका जन्म 11  अग. सन 1924  को बालाघाट शहर से लगे एक छोटे-से गावं मड़कापार में हुआ था. बड़े होने पर आपका सारा समय बालाघाट में ही बीता है. खोब्रागडे जी शुरू से तीक्ष्ण बुध्दि के थे. मगर, वे गरीब परिस्थिति में पले-बढे थे. बड़े होने पर उन्होंने सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है.
    मुंशी एन. एल. खोब्रागडे जी ने सन 1946  से सामाजिक-आन्दोलन को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया था और तब से वे निरंतर सक्रिय हैं. वे आल इण्डिया रिपब्लिकन पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे थे. आप  प्रांतीय कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष भी रहे.वे जिला बालाघाट कार्यकारिणी के सन 1977  से 1997  तक लगातार 20 वर्षों तक अध्यक्ष रहे.
       राजनीति से सन्यास लेने के बाद उन्होंने दलित चेतना-साहित्य सृजन का काम हाथ में लिया था.वे म.प्र. दलित साहित्य अकादमी जिला शाखा बालाघाट के अध्यक्ष हैं. उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं करीब 100 - 150  लेख लिखे हैं. उन्होंने  21 पुस्तके लिखी हैं, जैसे कि एक इंटरव्यू में उन्होंने बतलाया. उनकी दो पुस्तके खासी चर्चित रही हैं.एक 'भारत की विकृत समाज व्यवस्था और दूसरी 'मध्य-भारत में दलित आन्दोलन का इतिहास'. इन में से पहली पुस्तक बेहद विवादास्पद रही है. इस पुस्तक ने उस समय बालाघाट जिले के सामाजिक ताने-बाने को झकझोर कर रख दिया था. दूसरी पुस्तक में म.प्र. में चले दलित- आन्दोलन का इतिहास है. निश्चित रूप से यह पुस्तक दलित आन्दोलन के शोधार्थियों के लिए एक प्रकाश-स्तम्भ है. प्रस्तुत लेख में यह पुस्तक और उनसे साथ लिया गया इंटरव्यू को आधार बनाया गया है.
विवादित पुस्तक  'भारत की विकृत समाज व्यवस्था' -    मुंशी एन. एल. खोब्रागडे द्वारा लिखी यह पुस्तक बड़ी चर्चित और विवादास्पद रही है. 'भारत की विकृत समाज व्यवस्था'  नामक इस पुस्तक ने उस समय शासन और प्रशासन को हिला कर रख दिया था. विरोध का बवंडर इतना घनिभूत और व्यापक था कि उसकी धुंध म.प्र. ही नहीं पास पड़ोस के राज्यों तक देखी जा सकती थी. समाज खुले तौर पर दो भागों में बंट गया था. महार वर्सेस हिन्दू संघर्ष की खबरें जहाँ-तहां से आ रही थी. हिन्दू पिछड़ी जाति के लोग सामूहिक रूप से महारों पर धावा बोल रहे थे. उनके मकानों को जलाया जा रहा था, प्रापर्टी को नुकसान पहुँचाया जा रहा था. हिन्दू जातियों द्वारा बौध्द महार समाज के विरुध्द रेलियाँ निकाल कर भड़काया जा रहा था. खास कर बालाघाट जिले के गावं-देहातों का सामाजिक ताना-बुना अत्यंत द्वेष-पूर्ण और आक्रोशित बन गया था.
    उक्त घटना के सिलसिले में हुए हिंसात्मक दंगे और लूटपाट के चलते पक्ष-विपक्ष के कई लोगों पर केस दर्ज किये गए थे, जो कई वर्षों तक चलते रहे. मुंशी एन. एल. खोब्रागडे पर भी प्रकरण कायम कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था. खोब्रागडे जी के अनुसार, उनका केस लड़ने के लिए कोई हिन्दू वकील तैयार नहीं था. बाध्य हो कर उन्होंने एक मुस्लिम वकील को अपने केस की पैरवी करने को राजी किया.
विवादित पुस्तक में हिन्दू समाज पर ब्राह्मणवाद द्वारा देश के सामाजिक ढांचे को हजारों जातियों और उप-जातियों में बाँट कर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को जो खतरा पहुँचाया गया है, उस षड़यंत्र का बड़ी बेबाकी से पर्दाफाश किया गया है.
बालाघाट जिले की सामाजिक स्थिति   -     बालाघाट, जंगली आदिवासी बाहुल्य पिछड़ा हुआ जिला है. जिले की प्रमुख जातियों में  महार, पंवार और लोदी समाज के लोग हैं. सन 1961  की जनगणना के अनुसार, बालाघाट जिले में अनु. जाति के लोगों की संख्या  1,20,000  थी.
      बालाघाट जिला पहले सी. पी.(मध्य भारत) एंड बरार (विदर्भ)  में आता था. मगर, बाद में (सन 1950 ) जब देश का संविधान लागू हुआ तब यही सी. पी. एंड बरार* नए मध्य-प्रदेश राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। प्रशासनिक कारणों से लम्बे समय तक बालाघाट जिला विदर्भ से जुड़ा रहने के कारण वहाँ की सांस्कृतिक शैली का प्रभाव यहाँ देखा जा सकताहै।
दूसरे, सन  1800 के आस-पास ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में बरार (विदर्भ) में भयंकर अकाल पड़ा था. तब वहां, प्लेग जैसी बीमारी ने महामारी का रूप लिया था जिससे बचने के लिए हजारों, लाखों की संख्या में लोग रोजी-रोटी की तलाश में यहाँ आये थे. इनमे महार जाति के लोग सबसे ज्यादा थे.
महार जाति के लोग बड़े परिश्रमी और खेती में पारंगत होते हैं. सम्पन्न महारों के घर में खेती का काम करने हिन्दू  समाज के लोग नौकर भी रहा करते थे. वे कपड़ा बुनने और दूसरे प्रकार के व्यवसाय भी करते थे. किन्तु बाद में सूती कपड़ा मिलों के कारण महार समाज के लोगों ने बीडी बनाने का व्यवसाय अपना लिया .
  बालाघाट  जिले में पंवार जाति के लोग भी काफी हैं. ये लोग मुस्लिम शासन के आतंक से त्रस्त हो कर धार जिले से बड़ी संख्या में पलायन करते हुए यहाँ आ कर बस गए थे. पंवार जाति के लोगों ने भोले आदिवासियों का लाभ उठा कर खूब जमीन-जायदाद हासिल कर ली थी. वे पटेल, साहूकार और गावं के मुखिया बन  गए थे. ब्राह्मण समाज के लोग गावों में एक्का-दुक्का थे. मगर, वे जितने थे,  गावं के पटेल और मालगुजार थे. स्कूल के गुरूजी और मन्दिरों के पंडितजी भी ब्राह्मण ही थे.
   आदिवासियों में बड़ी संख्या गोंड समाज की हैं. किन्तु, आज भी इनके गरीबी और भुखमरी में कोई अंतर नहीं आया है. कई गावों में इनके पास खेती की जमीन है. किन्तु, वह अधिकतर अन-उपजाऊँ है.
दलित समाज में व्याप्त कुरुतियाँ -     मराठों और पेशवाओं के शासन में महारों पर भयंकर अमानवीय अत्याचार किये गए थे. उन्हें आम रास्तों पर चलने की मनाही थी. सडक पर थूकने तक की आजादी नहीं थी. उनके काम नियत थे, यथा: हिन्दुओं के घरों से मृत पशुओं को उठाना, गावं-मोहल्लों की सफाई करना, मृत्यु और ब्याह आदि के मौकों पर उनके घरों में बाजा बजाना. यद्यपि, समाज में परिवर्तन की हवा चल रही थी, लोग पुरानी प्रथाओं और गंदे व्यवसायों को त्याग रहे थे; मगर, परिवर्तन की यह गति अत्यंत मंथर थी. समाज में मृत पशु का मांस खाना,हिन्दू घरों में दलित स्त्रियों ने जा कर दाई-पन का काम करना, मृत्यु और -ब्याह के मौकों पर बाजा बजाना,त्यौहारों के समय हिन्दू घरों में जा कर भात मांगना आदि कुरुतियाँ बदस्तूर चालू थी.
बालाघाट जिले में सामाजिक-सुधार का आन्दोलन -     बाला घाट जिले में समाज-सुधार के कार्य सन 1946  के दौर में गोंदिया के कालीचरण नंदा गवली द्वारा शुरू किये गए थे. नंदागवली साहेब तब शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के कार्य-कर्ता हुआ करते थे.वे राष्ट्रीय स्तर पर फेडरेशन के कार्यों से जुड़े थे.यद्यपि, वे बाद में कांग्रेस में चले गए थे.मगर, समाज सुधार के क्षेत्र में उनके कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता.
      बालाघाट जिले में सामाजिक सुधार का आन्दोलन सन 1948-49 के दौर में तेजी पकड़ा था. यह आन्दोलन वारासिवनी के दलित महार समाज के नेता ओंकारदास बोम्बर्डे के नेतृत्व में शुरू हुआ था.ओंकारदास बोम्बर्डे साहेब, वारासिवनी से सटे गावं सिकंदरा के रहने वाले थे.सन 1945 /1942 को नागपुर के कस्तूरचंद पार्क में डा. बाबा साहेब आंबेडकर ने जो ऐतिहासिक भाषण दिया था, ओंकारदास बोम्बर्डे उससे बेहद प्रभावित हुए थे. उन्होंने तभी से प्रण किया था कि बाबा साहेब के आन्दोलन को अपने क्षेत्र में वे एक सैनिक की तरह जीवन की अन्तिम साँस तक चलाते रहेंगे.
         इस आन्दोलन के दूसरे प्रमुख सूत्रधार स्वयं मुंशी एन. एल. खोब्रागडे जी थे. खोब्रागडे जी के अनुसार, इस आन्दोलन में कटंगी के महंत ज्ञानदास साहेब, नांदी के घनश्याम वासनिक, मोह्गावं के संत सेवकदास कठाने साहेब, बिसोनी (लांजी) के तुकाराम मेश्राम ,पालडोंगरी के बाबूदास रामटेके, कुम्हारी के सदाराम मडामे आदि की अहम भूमिका थी. जिले में जो लोग अग्रणी भूमिका में काम रहे थे, उन से अधिकांश धार्मिक प्रवृति के शाकाहारी संत समाज से जुड़े हुए सद्चरित्र, निष्ठावान,कर्तव्य-निष्ठ और ईमानदार कार्य-कर्ता थे.इन में से कुछ लोग ऐसे भी थे, जो जीवन के अन्तिम दिनों तक समाज और संगठन के कार्य में सलग्न रहे.
      सामाजिक-सुधार के दौर में समाज में व्याप्त कुप्रथाओं और कुरूतियों को त्यागने के लिए जन-चेतना सभाएं और सम्मेलन किये गए. अर्थ दंड लगाए गए.कई लोगों को समाज से बहिष्कृत किया गया. यद्यपि इन उपायों से सफलता मिल रही थी किन्तु, गुटबाजी होने का भी ख़तरा था. तब कुछ  दूसरे उपाय भी किये गए. प्राय: गावों में तब, हर एक समाज के नामी पहलवान हुआ करते थे. इन पहलवानों की अपने-अपने मोहल्लों में बड़ी धाक होती थी. ऐसे पहलवानों को आन्दोलन से जोड़ कर फिर उनकी सेवाएं उन लोगों के लिए ली गई जो हठधर्मिता दिखाया करते थे.
       ओंकारदास बोम्बर्डे के नेतृत्व में 'समाज सुधार मंडल' नामक संस्था का गठन किया गया था. सन 1956  आते-आते सामाजिक सुधार के कार्य ने काफी तेजी पकड़ा था. जिस किसी ने अनुशासन तोड़ने की कोशिश की, उसे कठोर दंड दिया गया. सन 1975  में ओंकारदास बोम्बर्डे का निधन हो गया. ओंकारदास बोम्बर्डे के निधन के पश्चात बालाघाट के एडव्होकेट एम्. डी. मेश्राम को अध्यक्ष बनाया गया. एडव्होकेट मेश्राम साहब के निधन के बाद सन 1977  से मुंशी एन. एल. खोब्रागडे अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे थे.
युवा कार्य-कर्ताओं की टीम -     बालाघाट जिले में युवा कार्य-कर्ताओं की शुरू से ही सामाजिक-सुधार के  आन्दोलन में सक्रिय भूमिका रही है. डा. बाबा साहेब के आन्दोलन से प्रभावित हो कर उन्होंने पहले से ही  कार्यरत वरिष्ठ बुजुर्ग लोगों में आस्था रखते हुए बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. इन में रामपायली के केशवराव मेश्राम, कटोरी के डोमादास शेंडे, मोह्गावं के कुंवरलाल घोड़ेसवार,सोनझरा के बलिराम खोब्रागडे,नोनसा के श्रीराम नकाशे,परसवाडा के टी. एम्. भालेराव, कवलीवाडा के चरणदास चौरे, जामडी के रामचंद्र नागवंशी,सारद सिवनी के रामलाल भालाधारे,कटंगी के नामदेव मेश्राम,गटापायली के गणेशराम सतदेवे, वारासिवनी के एडव्होकेट एम्. सी. शंभरकर , हरिदास नागवंशी ,पोतनदास वैद्य आदि विशेष उल्लेखनीय हैं.
 जिला बौध्द संघ का गठन -     जिले में बाबा साहेब डा. आंबेडकर के द्वारा स्थापित भारतीय बौध्द महासभा कार्यरत थी. मगर, केंद्रीय नेतृत्व की शिथिलता और नियंत्रण के अभाव में ठीक से कार्य नहीं हो पा रहा था. इन परिस्थितियों के चलते मुंशी एन. एल. खोब्रागडे के नेतृत्व में  सन 1974  में जिला बौध्द संघ का गठन किया गया. नए सिरे से एक आचार सहिंता बनायीं गई. इस आचार सहिंता को गावं-गावं में पहुँचाया गया. जिला बौध्द संघ के तत्वाधान में सामाजिक नियमों में एकरूपता ला कर समाज के लोगों में सदाचार , संगठन और एकता स्थापित करने का बहुमूल्य काम किया गया.   
        स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सन 1951-52  में देश में आम चुनाव हुए थे.वयस्कता प्राप्त  21  वर्ष के प्रत्येक व्यक्ति को मताधिकार का हक मिला.आजादी के आन्दोलन के दौरान  डा. आंबेडकर के नेतृत्व में देश भर में जो दलित आन्दोलन चला,  बालाघाट जिला उस में शुरू से ही भागीदार रहा था.
शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की जिले में स्थापना -      पहले यहाँ  शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन का गठन नहीं हुआ था. ऐसी स्थिति में वारासिवनी से ओंकारदास बोम्बर्डे को निर्दलीय प्रत्यासी की हैसियत से कांग्रेस के नेता अमई के शंकरलाल तिवारी के विरुध्द उतारा गया था. ओंकारदास बोम्बर्डे को चुनाव से हट जाने के लिए बहुतेरे प्रलोभन दिए गए. किन्तु,  वे डट कर खड़े रहे थे. चूँकि, यह पहला मौका था, ओंकारदास बोम्बर्डे अथक प्रयास के बाद भी सीट निकाल नहीं पाए. इसके तत्काल बाद बाबा साहेब आंबेडकर को तार भेज कर प्रार्थना की गई की बालाघाट जिले में 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' की स्थापना की जाये. तार प्राप्त होते ही बाबा साहेब ने बापू साहेब  पी. एन. राजभोज, दादा साहेब गायकवाड , बाबू हरिदास आवडे, पं. रेवाराम कवाडे आदि नेताओं को शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना के लिए बालाघाट भेजा और अंतत: सन 1946  में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की यहाँ स्थापना हो गई.
        शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के झंडे तले और ओंकारदास बोम्बर्डे के नेतृत्व में बालाघाट जिले ने एक अलग पहचान बनायीं थी.राजनैतिक जाग्रति, समाज सुधार और अनेकों रचनात्मक कार्यों द्वारा डा. बाबा साहेब आंबेडकर के सामाजिक-राजनैतिक आन्दोलन के प्रगति की दिशा में लोगों ने ईमानदारी और अटूट निष्ठां के साथ नि:स्वार्थ भाव से काम किया था.इन में दौलतराम फुलमारी वारासिवनी के, हरिदास शेंडे और गोविन्द बागडे कटोरी, चिंधुजी रामटेके नीलामा, सदाराम मड़ामे कुम्हारी, नारायण राव घोनमोड़े तिरोडी, तिरपुडे तिरोडी, घोड्कूजी भालाधरे मानेगावं (कटंगी), बारकू खोब्रागडे महकेपार, दयाराम तिरपूड़े मोंहगावं (नांदी), रामजी मुख्त्यार बनेरा, लक्ष्मण नंदागवली अमई, बोदलदास बनसोड चरेगावं, रामचंद और हरिदास नागवंशी जामडी, ताराचंद वैद्य और उम्मेद भिमटे किरनापुर, डोडेलाल रामटेके दमोह, लटारु भिमटे मुरझड़ ( फार्म ),डोमाजी वाहने खुर्शीपार, चरणदास चौरे कवलीवाडा, सुखराम डोंगरे लालबर्रा, लोकचंद पटले वारा, ताराचंद उके वारासिवनी, यसोदा बाई ओरमा, शंकरराव गजभिये समनापुर, तुलाराम और कुंवरलाल घोड़ेसवार मोहगावं घाट (नांदी ), सुन्दरलाल मंडलेकर परसवाडा आदि प्रमुख हैं.
      सन 1951-52 के आम चुनाव में कटंगी-रामपायली सुरक्षित सीट से ओंकारदास बोम्बर्डे को चुनाव मे उतारा गया किन्तु, वे चुनाव नहीं जीत  सके. मगर,  इससे क्षेत्र में लोगों को राजनैतिक रूप से जाग्रत करने में भारी सफलता मिली थी.
        डा. बाबा साहेब के धर्मान्तरण के बाद उनकी इच्छा अनुसार, दीक्षा भूमि नागपुर में ही   3  अक्टू. 1957  को उनके लाखों अनुयायियों की उपस्थिति में 'शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' को समाप्त कर उसके स्थान पर 'रिपब्लिकन पार्टी आफ इण्डिया' नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया गया था.
       म.प्र. में रिपब्लिकन पार्टी और भारतीय बौध्द महासभा का तब, अस्तित्व नहीं था.बालाघाट जिले में सर्व प्रथम इस दिशा में प्रयास किया गया. 15 - 17  मार्च सन 1958  को वारासिवनी में हजारों लोगों के साथ विशाल  अधिवेशन में दोनों संस्थाओं के प्रांतीय शाखाओं का गठन किया गया.बालाघाट जिले में यह दलित समाज का ऐतिहासिक अधिवेशन था.इस अधिवेशन में नागपुर के कर्मवीर बाबू हरिदास आवडे, पं. रेवाराम कवाडे, विधायक पंजाबराव, मजदूर नेता ना. ह. कुंभारे, आन्ध्र प्रदेश से ईश्वरी बाई, उ. प्र. से बी. पी. मौर्य आदि ने शिरकत की थी.
बौध्द धर्मान्तरण आन्दोलन -    भारतीय बौध्द महासभा के गठन के निमित्त भदंत आनंद कौशल्यायन, बाबा साहेब के पुत्र भैयासाहेब यशवंतराव आंबेडकर उपस्थित हुए थे.इसके आलावा, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, राज नांद गावं, सिवनी,छिंदवाडा, बैतूल, जबलपुर, सागर, इंदौर आदि से हजारों प्रतिनिधि इस अधिवेशन में शामिल हुए थे.
         उक्त अधिवेशन में बौध्द धर्म के प्रकांड विद्वान् भदंत आनंद कौशल्यायन ने 10,000 दलित समाज के लोगों को बौध्द धर्म की दीक्षा दिया था. इसके बाद सन 1959  को लांजी में नागपुर के त्रिपिटिकाचार्य भिक्षु धर्म रक्षित और सीलोन ( श्रीलंका ) के भिक्षु संघरत्न के द्वारा  8,000  दलितों को बौध्द धर्म की दीक्षा दी गई थी. इसी तरह मोहगावं में 5,000  दलित समाज के लोगों की धम्म-दीक्षा हुई थी. इस तरह की सामूहिक धम्म-दीक्षा को लेकर करीब 68,000  दलित समाज के लोगों ने अपनी पुरानी बेड़ियों को काट कर  बौध्द धम्म को अंगीकार किया था.
समता सैनिक दल -      इस अधिवेशन में समता सैनिक दल की टुकड़ियों ने जिले में पहली बार प्रदर्शन किया था. वारासिवनी, एक सैनिक छावनी में तब्दील हो गई थी. शहर की सडकों पर समता सैनिक दल की टुकड़ियों का प्रदर्शन लोगों के लिए कुतूहल का विषय बन गया था. बालाघाट जिले में इसके पहले अनेकों सामाजिक और धार्मिक कार्य-क्रम हुए थे. किन्तु, ऐसा अनोखा और विशाल अधिवेशन लोगों ने पहली बार देखा था.
रिपब्लिकन पार्टी  -       बालाघाट जिले में रिपब्लिकन पार्टी के प्रचार-प्रसार पर जम कर काम हुआ था. पार्टी के प्रत्यासी खड़े किये गए थे. किन्तु, शरू-शुरू में सफलता हाथ नहीं आयी थी. अंतत:  सन 1969  के विधान सभा चुनाव में पार्टी को सफलता मिली. इस चुनाव में कटंगी के कचरूलाल जैन को प्रचंड मत से पहली बार पार्टी की ओर से विजय हासिल हुई. कचरूलाल जैन रिपब्लिकन पार्टी की ओर से विधान सभा में प्रदेश के एक मात्र प्रतिनिधि बन कर गए थे. सन 1977 में लोकसभा के आम चुनाव हुए थे. इस बार कचरूलाल जैन को लोक सभा का प्रत्याशी बनाया गया और पार्टी के ओर से पहला सांसद लोक सभा में चुन कर भेजा गया.  सन 1980  में विधान सभा के चुनाव हुए. इस चुनाव में पार्टी की ओर से खैरलांजी विधान सभा क्षेत्र से डोमनसिंग नगपुरे को प्रत्यासी बना कर विधान सभा में भेजा गया था .
---------------------------------------------------------------------------------
C P & Berar had 22 Districts in five(Jabalpur, Narbada, Nagpur, Chhatisgarh and Berar) Division. Jabalpur(Jubbulpore) Division had Jabalpur, Sagar, Damoh, Seoni and Mandal District. Narbada Division had Narsinghpur, Hoshangabad, Nimar, Betul and Chhindwara District. Nagpur division had Nagpur, Bhandara, Chanda, Wardha and Balaghat District.Chhatisgarh Division had Bilaspur, Raipur and Durg District. Berar Division had Amraoti. Akola, Ellichpur, Buldhana, Basim and Wun District. In 1956, the Marathi speaking area of Madhya-Pardesh i. e.  Berar and Nagpur division was made the part of Bombay state. Further, in 1960  Bombay state was re-organised. Marathi speaking area was connected with Maharashtra and Gujarati speaking area with Gujarat state.

2 comments:

  1. this post very useful to history student of balaghat jilha boudh sangh

    ReplyDelete