Monday, February 13, 2012

शिवराम जानबा काम्बले (Shivram J. Kamble )

  शिवराम जानबा काम्बले (1875-1940)

    शिवराम जानबा काम्बले, दलित समाज में पैदा होने वाले एक ऐसे चिन्तक, समाज सुधारक,लेखक और  सम्पादक हुए हैं जिन्हें दलित समाज कभी भूल नहीं पायेगा. आज अगर दलित समाज में सामाजिक चेतना है, तो उसका श्रेय निश्चित रूप से दलित समाज में पैदा हुए शिवराम जानबा काम्बले जैसे समाज सुधारक हैं.
  
शिवराम जानबाजी काम्बले का जन्म सन 1875  में हुआ था. वे महार दलित कौम में पैदा हुए थे. उनके पिताजी का नाम जानबाजी काम्बले था। जानबा काम्बले मूल रूप से भांबुरडे नामक गाँव के वतनदार(हकदार) थे(डॉ गंगाधर पानतावणेे; महान पत्रकार डॉ अम्बेडकर ) किन्तु गावं को (अछूतपन के काम) छोड़ कर  पूना में अंग्रेजों के यहाँ बटलर का काम करते थे. पिताजी के अंग्रेजों के यहाँ काम करने से शिवराम भी अंग्रेजों की तहजीब और सभ्यता के सम्पर्क में आये.

अंग्रेजों के रहन-सहन का प्रभाव बालक शिवराम पर पडा. यह अंग्रेजी तहजीब का ही प्रभाव था कि जिस दलित समाज में शिवराम  पैदा हुए थे, उस समाज में व्याप्त अंध-विश्वास, कुरुतियों और अनेक कुप्रथाओं को ख़त्म करने का बीड़ा शिवराम जानबाजी काम्बले ने उठाया.

    सामाजिक सुधार के कार्यों को करने के लिए लोगों को अपने विश्वास में लेना होता है.शिवराम जानबाजी काम्बले ने इसके लिए समाज को संगठित करने का पहला कार्य किया. उन्होंने सन 1903 में ससाबड़े नामक स्थान पर दलित समाज के लोगों की एक बड़ी सभा का आयोजन किया.

सन 1904  में उन्होंने 'सोमवंशीय हित-चिन्तक मित्र समाज' नामक एक संस्था की स्थापना की. वे एक ओर जहाँ दलित समाज को  संगठित कर रहे थे, समाज में व्याप्त बुराईयों के बारे में लोगों को जगा रहे थे वहीँ, दूसरी ओर वे इस बात की बराबर कोशिश करते रहते थे कि हिन्दू अपना दृष्टिकोण बदले और दलितों की हुई अधोगति में उनकी अपनी जिम्मेदारी के बारे में सोचे, उनको आगे बढ़ने में मदद करे.

     वे दलित समाज के व्याप्त बुराईयों जैसे पशुओं की बलि देना, मृत पशु के मांस का सेवन करना, मन्दिरों में लड़कियों को देवदासी बनाना इत्यादि के विरुध्द सतत प्रचार कर  रहे थे. अपने उद्देश्य के लिए शिवराम काम्बले ने सन 1908 से 1910  तक  'सोमवंशीय मित्र' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया था. इस पत्रिका में वे तत-सम्बन्ध में सतत लेख  लिखा करते थे.

    देवदासी प्रथा के विरुध्द शिवरामजी काम्बले ने उल्लेखनीय कार्य किया. ध्यान रहे अधिकांश देवदासियां दलित समाज की होती है. गरीबी के कारण दलित समाज के लोग ब्राह्मण पंडों के झांसे में जल्दी आ जाते हैं. ब्राह्मण पण्डे-पुजारी भगवान् के नाम पर दलित लडकियों का शोषण  करते हैं. शिवराम काम्बले ने इस कुप्रथा के विरुध्द जम कर काम किया. उन्होंने दलित जातियों में देवदासी बनने की प्रथा के विरुध्द एक बड़ा अभियान चलाया.उनके द्वारा प्रकाशित  'सोमवंशीय मित्र' के एक अंक में शिबूबाई लक्ष्मण जाधव का पत्र छपा था. शिबूबाई देवदासी थी. पत्र में शिबूबाई  ने देवदासी बनने के लिए अपने माँ-बाप को दोषी बताया था. शिबू बाई ने लिखा था की हिन्दू पंडों के झांसे में आकर गरीब दलित समाज के लोग भगवान् के नाम पर अपनी लडकियों को मन्दिर में दान दे देते हैं. बाद में यही लडकियाँ पण्डे और धन्ना सेठों की हवस की  शिकार हो जाती है.वे उन्हें गलत रास्ते पर चलने के लिए बाध्य कर  देते हैं.शिबू बाई जाधव का पत्र पढ़ कर गनपत राव हनमंत गायकवाड नामक दलित युवक ने शिबूबाई से विवाह कर लिया था.इस तरह के देवदासियों के विवाह शिवराम जी कामले ने अनेक दलित युवकों से कराये

     दलितों की माली हालत सुधारने दलितों को पुलिस और सेना में भर्ती किया जाना चाहिए,ऐसी शिवराम जानबाजी काम्बले की सोच थी. सन 1896 से ब्रिटिश आर्मी में महारों की भर्ती बंद थी। इस संबंध में सन 1904 में शिवराम काम्बले ने पूणे के पास सासवड नामक स्थान में एक बड़ी मीटिंग बुलायी। इसमें 51 गावों के दलित समाज के लोग जमा हुए थे। मीटिंग में एक प्रस्ताव पारित कर गवर्नर बाम्बे को सौपा गया। यही मांग-पत्र सन 1905  में भारत सरकार और 10  दिस.  सन 1910 को भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट को सौपा गया।

शिवराम जानबा जी काम्बले की मेहनत अंतत: रंग लाई।  6 फरवरी 1917 को जब प्रथम विश्व युद्ध अपने चरम पर था , ब्रिटिश आर्मी में महारों की भर्ती खुली। दलितों में ज्ञान होना चाहिए, इस दिशा में शिवराम जानबाजी काम्बले ने दलित बस्तियों में कई वाचनालयों की स्थापना की.

शिवराम काम्बले के सामाजिक कार्यों से बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ बेहद प्रभावित हुए थे ।  उन्होंने शिवराम जानबाजी काम्बले को बड़ौदा बुलाकर 11 सित 1908 को उनका अपने राज्य की ओर से सम्मान किया था ।
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You may read Book- S J Kamale; Yanche Charitra (H. N. Navalkar)

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