रामचंद्र जी. खंडाले
देश में ऐसे कई सामाजिक परिवर्तन में सहाय्य नेता हुए हैं जिन्हे नमन करने की जरुरत है। बाबासाहब डा आंबेडकर से अनुप्रेरित होकर जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों के अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्य अनुसार कार्य कर सामाजिक परवर्तन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. हमें उन स्रोतों को खंगालने की जरुरत है जहाँ से उनका पता चल सकता है, इतिहास मिल सकता है.
ऐसे ही एक सामाजिक परिवर्तनकारी शख्स महाराष्ट्र के मांग समाज में पैदा हुए रामचंद्र खंडाले है।
आर. जी. खंडाले का जन्म 21 मई 1913 को महाराष्ट्र, पुणे जिले के कुरकुंभ गावं में हुआ था। इनका पूरा नाम रामचंद्र गेबूजी खन्ड़ाले था। इनके पिता गेबूजी खन्ड़ाले कृषि मजदूर थे। बालक रामचंद्र ने 4 थी कक्षा 1931 में उत्तीर्ण की थी। इनकी पत्नी का नाम लालबाई था।
आपने कई गावं-देहातों में किन्हीं मुश्किलातों में पैदा हुए बच्चे को किसी पण्डे/पुजारी की सलाह पर गावं देवी की सेवा में लगे हुए देखा होगा। बालक रामचंद्र को भी इसी तरह पोटराज (देवी का अटेंडेंट ) के रूप में अर्पित किया गया था। उसके सिर पर लम्बे-लम्बे बाल थे। किन्तु जय हो, बाबासाहब डा अम्बेडकर के नेतृत्व में चले दलित आंदोलन का कि दौंद(पुणे) निवासी बाबासाहब आंबेडकर के अनुयायी बाबा वाघमारे द्वारा समझाने-बुझाने पर उसके सिर के बाल काटे गए और तभी से बालक रामचंद्र बाबासाहब डा आंबेडकर का अनुयायी हो गया। सनद रहे, यह घटना 1930 की हैं।
हम बतला चुके हैं कि बचपन से ही रामचंद्र खन्ड़ाले बाबासाहब डा आंबेडकर के द्वारा चलाए गए दलित-आंदोलन से बहुत प्रभावित थे । रामचंद्र ने भी, जिस समाज में वे पैदा हुए थे, उस मातंग समाज को संगठित करने का संकल्प लिया। इस उद्देश्य के निमित्त रामचंद्र खंडाले ने 1932 में 'अखिल भारतीय मातंग सेवा समाज' की स्थापना की। इसी प्रकार, वर्ष 1934 की अवधि में पुणे की दौंद तालुका में, रामचंद्र खांडाले ने बम्बई प्रदेश मातंग परिषद की बड़ी सभा आयोजित की थी जिसमें मुख्य अतिथि बी. के. गायकवाड़ और अध्यक्ष पी. एन. राजभोज थे। इस सभा में एक स्वर से बाबासाहब डा आंबेडकर का अनुकरण करने का संकल्प लिया गया था।
हिन्दुओं की हठ-धर्मिता देख कर बाबासाहब डा आंबेडकर ने दलितों की अस्मिता की रक्षा के लिए जब इंडियन नेशनल कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के आगे 'पृथक निर्वाचन' की मांग रखी तो रामचंद्र खंडाले ने 'मातंग समाज' की ओर इसका पुरजोर समर्थन किया था।
रामचंद्र खंडाले, सामाजिक बुराइयों यथा मद्यपान, गो मांस भक्षण, हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा के विरोधी थे । 'पोटराज प्रथा', 'देव दासी प्रथा' और 'मुराली प्रथा' के भी रामचंद्र खन्ड़ाले सख्त विरोधी थे। वे महारों और मांगों द्वारा परम्परागत की जा रही 'महारकी' और 'मांगकी' प्रथा के खात्मे के प्रबल समर्थक थे । महाराष्ट्र में उन्होंने मांग और महारों की एकता के लिए जी तोड़ प्रयास किया था।
रामचंद्र खन्ड़ाले का राजनितिक जीवन उललरखनीय है। आप 1937 में 'इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी' में सम्मिलित हुए थे। 1939 में जिला स्थानीय बोर्ड पुणे के सदस्य चुने गए थे। रामचंद्र खन्ड़ाले 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के पदाधिकारी थे। वे वर्ष 1957 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया में सम्मिलित हुए थे।
रामचंद्र खंडाले ने नागपुर दीक्षा भूमि में 14 अक्टू 1956 को बाबासाहब के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का गौरव प्राप्त किया था। वे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सतत कार्य करते रहे। वे बौद्ध होने के कारण 1957 के चुनाव में सुरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ सकें थे। 1958 में जब इनकी पत्नी का निधन हुआ था, सामाजिक कार्यों में व्यस्त होने के कारण ये घर से बाहर थे।
रामचंद्र खंडाले ने दौंद में 1959 में अनु जाति के विद्यार्थियों के लिए 'नव जीवन विद्यार्थी वसती गृह' नामक छात्रावास की स्थापना की थी। वे आजीवन उसकी देखभाल करते रहे।
रामचंद्र खन्ड़ाले 1960 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के महाराष्ट्र इकाई के संयुक्त सचिव चुने गए थे। उन्होंने 1962 और 1972 में चुनाव लड़ा था किन्तु वे विजयी न हो सके थे। समाज के प्रति उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 21 मई 1987 को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया पुणे इकाई के एक विशाल कार्यक्रम में रू. 15051 की राशि भेट कर उनका सार्वजानिक सम्मान किया गया था(Source:Encyclopaedia of Dalits in India:Leaders Page 287-289)।
देश में ऐसे कई सामाजिक परिवर्तन में सहाय्य नेता हुए हैं जिन्हे नमन करने की जरुरत है। बाबासाहब डा आंबेडकर से अनुप्रेरित होकर जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों के अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्य अनुसार कार्य कर सामाजिक परवर्तन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. हमें उन स्रोतों को खंगालने की जरुरत है जहाँ से उनका पता चल सकता है, इतिहास मिल सकता है.
ऐसे ही एक सामाजिक परिवर्तनकारी शख्स महाराष्ट्र के मांग समाज में पैदा हुए रामचंद्र खंडाले है।
आर. जी. खंडाले का जन्म 21 मई 1913 को महाराष्ट्र, पुणे जिले के कुरकुंभ गावं में हुआ था। इनका पूरा नाम रामचंद्र गेबूजी खन्ड़ाले था। इनके पिता गेबूजी खन्ड़ाले कृषि मजदूर थे। बालक रामचंद्र ने 4 थी कक्षा 1931 में उत्तीर्ण की थी। इनकी पत्नी का नाम लालबाई था।
आपने कई गावं-देहातों में किन्हीं मुश्किलातों में पैदा हुए बच्चे को किसी पण्डे/पुजारी की सलाह पर गावं देवी की सेवा में लगे हुए देखा होगा। बालक रामचंद्र को भी इसी तरह पोटराज (देवी का अटेंडेंट ) के रूप में अर्पित किया गया था। उसके सिर पर लम्बे-लम्बे बाल थे। किन्तु जय हो, बाबासाहब डा अम्बेडकर के नेतृत्व में चले दलित आंदोलन का कि दौंद(पुणे) निवासी बाबासाहब आंबेडकर के अनुयायी बाबा वाघमारे द्वारा समझाने-बुझाने पर उसके सिर के बाल काटे गए और तभी से बालक रामचंद्र बाबासाहब डा आंबेडकर का अनुयायी हो गया। सनद रहे, यह घटना 1930 की हैं।
हम बतला चुके हैं कि बचपन से ही रामचंद्र खन्ड़ाले बाबासाहब डा आंबेडकर के द्वारा चलाए गए दलित-आंदोलन से बहुत प्रभावित थे । रामचंद्र ने भी, जिस समाज में वे पैदा हुए थे, उस मातंग समाज को संगठित करने का संकल्प लिया। इस उद्देश्य के निमित्त रामचंद्र खंडाले ने 1932 में 'अखिल भारतीय मातंग सेवा समाज' की स्थापना की। इसी प्रकार, वर्ष 1934 की अवधि में पुणे की दौंद तालुका में, रामचंद्र खांडाले ने बम्बई प्रदेश मातंग परिषद की बड़ी सभा आयोजित की थी जिसमें मुख्य अतिथि बी. के. गायकवाड़ और अध्यक्ष पी. एन. राजभोज थे। इस सभा में एक स्वर से बाबासाहब डा आंबेडकर का अनुकरण करने का संकल्प लिया गया था।
हिन्दुओं की हठ-धर्मिता देख कर बाबासाहब डा आंबेडकर ने दलितों की अस्मिता की रक्षा के लिए जब इंडियन नेशनल कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के आगे 'पृथक निर्वाचन' की मांग रखी तो रामचंद्र खंडाले ने 'मातंग समाज' की ओर इसका पुरजोर समर्थन किया था।
रामचंद्र खंडाले, सामाजिक बुराइयों यथा मद्यपान, गो मांस भक्षण, हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा के विरोधी थे । 'पोटराज प्रथा', 'देव दासी प्रथा' और 'मुराली प्रथा' के भी रामचंद्र खन्ड़ाले सख्त विरोधी थे। वे महारों और मांगों द्वारा परम्परागत की जा रही 'महारकी' और 'मांगकी' प्रथा के खात्मे के प्रबल समर्थक थे । महाराष्ट्र में उन्होंने मांग और महारों की एकता के लिए जी तोड़ प्रयास किया था।
रामचंद्र खन्ड़ाले का राजनितिक जीवन उललरखनीय है। आप 1937 में 'इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी' में सम्मिलित हुए थे। 1939 में जिला स्थानीय बोर्ड पुणे के सदस्य चुने गए थे। रामचंद्र खन्ड़ाले 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के पदाधिकारी थे। वे वर्ष 1957 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया में सम्मिलित हुए थे।
रामचंद्र खंडाले ने नागपुर दीक्षा भूमि में 14 अक्टू 1956 को बाबासाहब के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का गौरव प्राप्त किया था। वे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सतत कार्य करते रहे। वे बौद्ध होने के कारण 1957 के चुनाव में सुरक्षित सीट से चुनाव नहीं लड़ सकें थे। 1958 में जब इनकी पत्नी का निधन हुआ था, सामाजिक कार्यों में व्यस्त होने के कारण ये घर से बाहर थे।
रामचंद्र खंडाले ने दौंद में 1959 में अनु जाति के विद्यार्थियों के लिए 'नव जीवन विद्यार्थी वसती गृह' नामक छात्रावास की स्थापना की थी। वे आजीवन उसकी देखभाल करते रहे।
रामचंद्र खन्ड़ाले 1960 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के महाराष्ट्र इकाई के संयुक्त सचिव चुने गए थे। उन्होंने 1962 और 1972 में चुनाव लड़ा था किन्तु वे विजयी न हो सके थे। समाज के प्रति उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 21 मई 1987 को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया पुणे इकाई के एक विशाल कार्यक्रम में रू. 15051 की राशि भेट कर उनका सार्वजानिक सम्मान किया गया था(Source:Encyclopaedia of Dalits in India:Leaders Page 287-289)।
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