‘‘भन्ते नागसेन! सल्लपिस्ससि(सास्त्रार्थ करोगे) मया(मेरे) सद्धिं(साथ)?’’ यवनो राजा मिलिन्दो आह।
‘‘भन्ते नागसेन! क्या आप मेरे साथ शास्त्रार्थ करेंगे?’’ -यवन राजा मिलिन्द ने कहा।
‘‘‘सचे त्वं महाराज! पण्डितवादं सल्लपिस्ससि, सल्लपिस्सामि।’’
‘महाराज! यदि आप पण्डितों की तरह शास्त्रार्थ करेंगे तो अवश्य करूंगा।’’
‘‘सचे पन राजवादं सल्लपिस्ससि, न सल्लपिस्सामि।’’
‘‘और यदि राजाओं की तरह शास्त्रार्थ करेंगे तो नहीं करूंगा।’’
‘‘कथं, भन्ते नागसेन, पण्डिता सल्लपन्ति?’’
‘‘भन्ते नागसेन! किस तरह पण्डित लोग शास्त्रार्थ करते हैं?’’
पण्डितानं खो, महाराज, सल्लापे आवेठनं अपि करियति, निब्बठेनं अपि करियति निग्गहनं अपि करियति, पटिकम्मं अपि करियति, विस्सासो अपि करियति, पटिविस्सासोपि करियति, न च तेन पण्डिता कुप्पन्ति। एवं खो, महाराज, पण्डिता सल्लपन्ति।’’
‘‘महाराज! पण्डित शास्त्रार्थ में एक दूसरे को लपेट लेता है, एक दूसरे की लपेटन को खोल देता है। एक दूसरे को तर्कों से पकड़ लेता है, एक दूसरे की पकड़ से छूट जाता है। एक दूसरे के सामने तर्क रखता है। वह उसका खण्डन कर देता है। किन्तु इन सब के होने पर भी कोई गुस्सा नहीं करता।’’
‘‘कथं पन, भन्ते, राजानो सल्लपन्ति?’’
‘‘भन्ते! राजा लोग कैसे शास्त्रार्थ करते हैं?’’
‘‘राजानो खो, महाराज, सल्लापे एकं वत्थुं पटिजानन्ति। यो तं वत्थु विलोमेति, तस्स दण्डं आणापेति। एवं खो, महाराज, राजानो सल्लपन्ति।’’
‘‘महाराज! राजाओं के शास्त्रार्थ में यदि कोई राजा का खण्डन करता है तो उसे तुरन्त दण्ड दिया जाता है। इस प्रकार महाराज, राजाओं का शास्त्रार्थ होता है।’’
‘‘पण्डितवादं अहं भन्ते, सल्लपिस्सामि, नो राजवादं। एवं विस्सट्ठो भदन्तो सल्लपतु मा भायतु।’’
‘‘भन्ते! मैं पण्डितो की तरह शास्त्रार्थ करूंगा, राजाओं की तरह नहीं। आप पूरे विस्वास से मेरे साथ शास्त्रार्थ करें। मतडरें।’’
‘‘सुट्ठु महाराजा‘ति थेरो अब्भानुमोदि।
‘‘बहुत अच्छा।’’ कह कर स्थविर ने स्वीकार किया।
राजा आह ‘‘भन्ते नागसेन, पुच्छिस्सामि।’’
राजा बोला- ‘‘भन्ते! मैं पूछता हूं।’’
‘‘पूच्छ महाराजा।’’
‘‘महाराज पूछें।’’
‘‘पूच्छितोसि मे भन्ते।’’
‘‘भन्ते! मैंने पूछा।’’
‘‘विस्सज्जितं महाराजा।’’
‘‘महाराज! तो मैंने उसका उत्तर भी दे दिया।’’
‘‘किं पन, भन्ते, तया विस्सज्जितं।’’
भन्ते! आपने क्या उत्तर दिया?’’
‘‘किं पन, महाराज, तया पूच्छितं?’’
‘‘महाराज! आपने क्या पूछा।’’
अथ खो मिलिन्दस्स रञ्ञो एतदहोसि- ‘‘ पण्डितो खो अयं भिक्खु पटिबलो मया सद्धिं सल्लपितुं !
तब, राजा के मन में यह बात आयी- ‘‘अरे! यह भिक्खु पण्डित है, मेरे साथ शास्त्रार्थ कर सकता है !
‘‘भन्ते नागसेन! क्या आप मेरे साथ शास्त्रार्थ करेंगे?’’ -यवन राजा मिलिन्द ने कहा।
‘‘‘सचे त्वं महाराज! पण्डितवादं सल्लपिस्ससि, सल्लपिस्सामि।’’
‘महाराज! यदि आप पण्डितों की तरह शास्त्रार्थ करेंगे तो अवश्य करूंगा।’’
‘‘सचे पन राजवादं सल्लपिस्ससि, न सल्लपिस्सामि।’’
‘‘और यदि राजाओं की तरह शास्त्रार्थ करेंगे तो नहीं करूंगा।’’
‘‘कथं, भन्ते नागसेन, पण्डिता सल्लपन्ति?’’
‘‘भन्ते नागसेन! किस तरह पण्डित लोग शास्त्रार्थ करते हैं?’’
पण्डितानं खो, महाराज, सल्लापे आवेठनं अपि करियति, निब्बठेनं अपि करियति निग्गहनं अपि करियति, पटिकम्मं अपि करियति, विस्सासो अपि करियति, पटिविस्सासोपि करियति, न च तेन पण्डिता कुप्पन्ति। एवं खो, महाराज, पण्डिता सल्लपन्ति।’’
‘‘महाराज! पण्डित शास्त्रार्थ में एक दूसरे को लपेट लेता है, एक दूसरे की लपेटन को खोल देता है। एक दूसरे को तर्कों से पकड़ लेता है, एक दूसरे की पकड़ से छूट जाता है। एक दूसरे के सामने तर्क रखता है। वह उसका खण्डन कर देता है। किन्तु इन सब के होने पर भी कोई गुस्सा नहीं करता।’’
‘‘कथं पन, भन्ते, राजानो सल्लपन्ति?’’
‘‘भन्ते! राजा लोग कैसे शास्त्रार्थ करते हैं?’’
‘‘राजानो खो, महाराज, सल्लापे एकं वत्थुं पटिजानन्ति। यो तं वत्थु विलोमेति, तस्स दण्डं आणापेति। एवं खो, महाराज, राजानो सल्लपन्ति।’’
‘‘महाराज! राजाओं के शास्त्रार्थ में यदि कोई राजा का खण्डन करता है तो उसे तुरन्त दण्ड दिया जाता है। इस प्रकार महाराज, राजाओं का शास्त्रार्थ होता है।’’
‘‘पण्डितवादं अहं भन्ते, सल्लपिस्सामि, नो राजवादं। एवं विस्सट्ठो भदन्तो सल्लपतु मा भायतु।’’
‘‘भन्ते! मैं पण्डितो की तरह शास्त्रार्थ करूंगा, राजाओं की तरह नहीं। आप पूरे विस्वास से मेरे साथ शास्त्रार्थ करें। मतडरें।’’
‘‘सुट्ठु महाराजा‘ति थेरो अब्भानुमोदि।
‘‘बहुत अच्छा।’’ कह कर स्थविर ने स्वीकार किया।
राजा आह ‘‘भन्ते नागसेन, पुच्छिस्सामि।’’
राजा बोला- ‘‘भन्ते! मैं पूछता हूं।’’
‘‘पूच्छ महाराजा।’’
‘‘महाराज पूछें।’’
‘‘पूच्छितोसि मे भन्ते।’’
‘‘भन्ते! मैंने पूछा।’’
‘‘विस्सज्जितं महाराजा।’’
‘‘महाराज! तो मैंने उसका उत्तर भी दे दिया।’’
‘‘किं पन, भन्ते, तया विस्सज्जितं।’’
भन्ते! आपने क्या उत्तर दिया?’’
‘‘किं पन, महाराज, तया पूच्छितं?’’
‘‘महाराज! आपने क्या पूछा।’’
अथ खो मिलिन्दस्स रञ्ञो एतदहोसि- ‘‘ पण्डितो खो अयं भिक्खु पटिबलो मया सद्धिं सल्लपितुं !
तब, राजा के मन में यह बात आयी- ‘‘अरे! यह भिक्खु पण्डित है, मेरे साथ शास्त्रार्थ कर सकता है !
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