बुद्ध की नजर में 'ब्रह्म'
बुद्ध ने 'ब्रह्म' की तुलना 'नगरवधू' से कर उसका भयानक उपहास किया। बुद्ध कहते हैं, कुछ लोगों का कहना होता है कि हम अमुक जनपद कल्याणी को बहुत चाहते हैं। उनसे पूछ जाए कि वह जनपद-कल्याणी कैसी है- गोरी है, काली है या गेहुवे रंग की है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं ! उनसे पूछा जाए कि वह लम्बे कद की है, मंझले कद की है या छोटे कद की है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं ! उनसे पूछा जाए कि वह ब्राह्मणी है, क्षत्राणी है या वैश्यानि है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं !
भिक्खुओं, यही हाल इन 'ब्रह्म' के पीछे भटकने वालों का है। जब उनसे पूछ जाए कि ब्रह्म कैसा है तो वे नेति, नेति अर्थात अनिर्वचनीय कहते/बतलाते हैं(भदन्त आनंद कौसल्यायन : दर्शन वेद से मार्क्स तक: पृ 53-54 )।
बुद्ध ने 'ब्रह्म' की तुलना 'नगरवधू' से कर उसका भयानक उपहास किया। बुद्ध कहते हैं, कुछ लोगों का कहना होता है कि हम अमुक जनपद कल्याणी को बहुत चाहते हैं। उनसे पूछ जाए कि वह जनपद-कल्याणी कैसी है- गोरी है, काली है या गेहुवे रंग की है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं ! उनसे पूछा जाए कि वह लम्बे कद की है, मंझले कद की है या छोटे कद की है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं ! उनसे पूछा जाए कि वह ब्राह्मणी है, क्षत्राणी है या वैश्यानि है ? वे कहते हैं हम नहीं जानते किन्तु हम उसे बहुत चाहते हैं !
भिक्खुओं, यही हाल इन 'ब्रह्म' के पीछे भटकने वालों का है। जब उनसे पूछ जाए कि ब्रह्म कैसा है तो वे नेति, नेति अर्थात अनिर्वचनीय कहते/बतलाते हैं(भदन्त आनंद कौसल्यायन : दर्शन वेद से मार्क्स तक: पृ 53-54 )।
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